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Showing posts from October, 2022

विदेशों में भारतीय कानून: IPC, UAPA, और अंतरराष्ट्रीय संधियों के तहत भारतीय अधिकार क्षेत्र की समझ

" आयकर आय पर लगने वाला कर है , प्राप्तियों पर लगने वाला नहीं । " इस कथन की विवेचना कीजिए तथा ' आय ' शब्द के प्रमुख लक्षण बताइए । [ “ Income tax is a tax on income and not on receipts . " Discuss this statement and give essential characteristics of term Income . " ]

आय   ( Meaning of Income ) :- आयकर के मामले में ' आय ' शब्द काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि आयकर किसी व्यक्ति की आय पर ही लगाया जाता है । आयकर अधिनियम की विषयवस्तु वास्तव में आय ही है परन्तु आयकर अधिनियम में ' आय ' शब्द की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है । आयकर अधिनियम अनुसार आय में निम्न मर्दे शामिल हैं की धारा 2 ( 24 ) सिर्फ इस की तरफ इशारा करती है कि आय में क्या - क्या शामिल है । इसके अनुसार आय में निम्न मदें शामिल हैं  ( 1 ) कोई भी लाभ की रकम  ( 2 ) लाभांश  ( 3 ) निम्न के द्वारा स्वेच्छापूर्वक प्राप्त चंदों से इन्कम  ( a ) ऐसे ट्रस्ट या संस्था जिनकी स्थापना धार्मिक या पुष्यार्थ उद्देश्यों के लिए हुई हो ,  ( b ) वैज्ञानिक शोध संघ ,  ( c ) खेलकूद संघ ( Games or Sports Association ) ,  ( d ) पुण्यार्थ कोष अथवा पूर्णतया सार्वजनिक , धार्मिक तथा पुण्यार्थ उद्देश्यों के लिए स्थापित ट्रस्ट अथवा संस्था ,  Income (Meaning of Income) :-  In the case of income tax, the word 'income' is very important because income tax is levied only on the income of a person.  The subject

अन्तर्राभिवचनीय वाद में वाद पत्र की रचना कीजिए । ( Draft a plaint in an inter pleader suit . )

                        न्यायालय श्रीमान सिविल जज ( जू ० डि ० ) महोदय ,बांदा वाद संख्या ........                                                                                                        ........सन् 2022                         अ पुत्र क आयु लगभग ....... वर्ष निवासी मुहल्ला (जिला ) ........वादी                                                                                      बनाम . ..  ( i ) ब पुत्र ख आयु लगभग ...... वर्ष मुहल्ला  , निवासी (जिला ) प्रतिवादी संख्या 1 ( ii ) स विधवा ग आयु लगभग .... वर्ष , निवासनी मुहल्ला (जिला ) प्रतिवादनी संख्या - 2  वादी निम्नलिखित सादर निवेदन करता है  1. यह कि 4 जनवरी  2022 ई ० को ग ने आभूषणों का एक सन्दूक सुरक्षित अभिरक्षा के लिए वादी के पास जमा किया था ।  2. यह कि उक्त ग दिनांक 27 जनवरी  , 2022 ई ० को मर गया ।  3. यह कि प्रतिवादी नं ० । मृतक ग के दत्तक पुत्र की हैसियत से वादी से उन आभूषणों के सन्दूक को प्राप्त करने का दावा करता है ।  4. यह कि प्रतिवादी नं ० 2 भी उपर्युक्त ग की विधवा के रूप में उक्त सन्दूक को लेने का दावा ककरती है और

प्रलेख शास्त्र क्या होते हैं ? इसके उद्देश्य इंगित करते हुए एक बिलेख के आवश्यक अंगों की व्याख्या कीजिए । ( What do you understand by conveyancing . Discuss the essential party off a dood . )

प्रलेख शास्त्र से आशय ( Meaning of Conveyancing )  कोई व्यक्ति अपने साम्पत्तिक अधिकारों को विभिन्न प्रकार से अन्तरित कर सकता है । उदाहरणार्थ - विक्रय , पट्टे दान आदि के विलेखों द्वारा तथा इन्हीं क्लेिखों एवं दस्तावेजों के लिखने को प्रलेखन कहते हैं । पिब्सन के अनुसार , “ किसी पक्षकार के कार्य द्वारा एक दस्तावेज के माध्यम से सम्पत्ति और सम्पत्ति के अधिकारों के अन्तरण के सम्बन्धी विधि को प्रलेखशास्त्र की विधि कहा जा सकता है । " Meaning of Conveyancing  A person can transfer his property rights in various ways.  For example - through the deeds of sale, lease donation etc. and the writing of these writings and documents is called documentation.   According to Pibson, “ The law relating to the transfer of property and rights to property by means of a document by the act of a party may be called the law of documentation”.  ,  सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 2 ( 10 ) के अनुसार , हस्तान्तरण लेखन से तात्पर्य एक जीवित व्यक्ति द्वारा दूसरे जीक्ति व्यक्ति को चल या अचल सम्पत्ति क

विशिष्टयाँ क्या हैं ? अभिवचनों में किन विशिष्टियों का दिया जान आवश्यक है ? विशिष्टियों एवं सारभूत तथ्यों में प्रभेद कीजिए । ( What are particulars ? What particulars are required to be given in the particulars ? Distinguish between particulars and material facts . )

 विशिष्टियों से आशय ( Meaning of Particulars )                 विशिष्टियों से तात्पर्य पक्षों द्वारा वाद - पत्र में उठाई गई घटनाओं के स्पष्ट और निश्चित वर्णन से है । विशिष्टियों के अन्तर्गत दावों के विभिन्न कथन शामिल हैं जो वादी या प्रतिवादी अपने वाद - पत्र या लिखित कथन या मौखिक ब्यान में देते हैं । किसी वाद में किसी घटना का कितनी मात्रा में विवरण दिया जाना चाहिये , इसका कोई निश्चित नियम नहीं है । किन्तु उतनी निश्चितता और विवरण पर जोर दिया जाना चाहिये जितना जरूरी समझा जाये । उदाहरणार्थ- किसी बेनामी लेन देन सम्बन्धी वाद में उन तथ्यों की विशिष्टियाँ ( विवरण ) दिये जाने चाहिये जिनसे यह ज्ञात हो सके कि अभिवचन का पक्ष या विपक्ष किस प्रकार बेनामी हुआ ; जैसे - वादी ने प्रतिफल दिया और बयनामा प्रतिवादी के नाम लिखाया गया ।                 सामान्यत : विवरण के दो मुख्य उद्देश्य होते हैं- पहला यह कि वादी द्वारा प्रतिवादी को इस बात की जानकारी देना कि यह किन - किन बातों पर अपना वाद पेश करके न्यायालय से अनुतोष पाना चाहता है ; दूसरे अभिवचनों की व्यापकता को सीमित करना ताकि पूछ ताछ के समय पक्

प्रति आपत्ति तथा प्रति अपील एवं साम्यिक प्रतिसादन तथा विधिक प्रतिसादन क्या होते है?

प्रति आपत्ति तथा प्रति अपील ( Cross objection and Cross Appeal )  प्रति आपत्ति ( Cross objection ) — जहाँ कि पारित की गई डिक्री भागतः उत्तरवादी के खिलाफ है तथा भागत : उसके पक्ष में है और ऐसी डिक्री से अपील की जाती , वहाँ उत्तरवादी डिक्री के इस भाग पर तो उसके खिलाफ है , ऐसी आपत्ति कर सकेगा , जो एक पृथक् अपील के रूप में की जा सकती थी । ऐसी आपत्तियों को प्रति आपत्तियाँ ( Cross - objection ) कहते हैं और वे एक ज्ञापन के रूप में प्राप्त की जाती है ।          कोई भी उत्तरवादी ( Respondent ) किसी आधार पर जो उसके खिलाफ , निचली अदालत में फैसला किये गये हैं , उस डिक्री का केवल समर्थन ही नहीं कर सकेगा बल्कि इस डिक्री पर कोई भी ऐसी आपत्ति कर सकेगा , जिसे उसने अपील द्वारा किया होता ।           प्रति आपत्तियाँ उत्तरवादी ( Respondent ) द्वारा अपीलीय न्यायालय में उस तारीख से एक महीने के अन्दर जिस तारीख पर तामील की गई है , या ऐसे अतिरिक्त समय के अन्दर जैसी कि ..अपीलीय अदालत मंजूर करे , दायर की जा सकेगी ।            प्रति आपत्ति की तामील - यदि उत्तरवादी ( Respondent ) अपनी आपत्ति के साथ - सा

शपथ पत्र क्या होते हैं ? शपथ पत्र का प्रारूप तैयार करने के कौन से नियम है का वर्णन कीजिए । ( What do you understand by affidavit ? Describe the rules for making he affidavit . )

    शपथ पत्र का अर्थ ( Meaning of Affidavit ) शपथपत्र से आशय ऐसे लिखित कथन से होता है जिसे शपथ पत्र लेकर किसी प्राधिकारी के सम्मुख किया गया हो । दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 19 नियम 3 के अनुसार वाद में प्रयोग किए जाने वाले शपथ पत्र को छोड़कर शेष समस्त शपथ पत्रों में केवल ऐसे तथ्यों को ही लिखा जाना चाहिए जिसे शपथग्रहीता निजी ज्ञान पर सिद्ध कर सके तथा बाद में उपयोग आने वाले शपथ पत्रों के विश्वास पर आधारित कथन को भी ग्रहण कर सकता है किन्तु विश्वास से ग्रहण करने के कारण का भी कथन करना आवश्यक है ।               इस प्रकार शपथ पत्र न्यायालय की विभिन्न कार्यवाहियों में पक्षकारों द्वारा दाखिल किये जाते हैं । इसके द्वारा किसी ऐसे तथ्य की साक्ष्यता के बारे में प्रतिज्ञा की जाती है जिसका या तो लिखित प्रमाण नहीं होता है अथवा किसी साक्ष्य द्वारा साबित नहीं किया जा सकता । शपथ पत्र का अर्थ शपथ पर किये हुए ऐसे लिखित कथन से होता है जिसे किसी प्राधिकृत अधिकारी के समक्ष किया गया हो ।           शपथ पक्ष में साधारणतया वही तथ्य होने चाहिए जिन्हें शपथ पर लेने वाला अपने ज्ञान से सिद्ध कर सके ।

प्रतिसादन क्या होता है ? एक वैद्य प्रतिसादन के आवश्यक तत्वों वर्णन कीजिए ।( What do you understand by set - off ? Describe the essentials of a legal set - off )

प्रतिसादन से आशय ( Meaning of Set - off )  प्रतिसादन या मुजराई ऋणों का एक पारस्परिक मोचन होती है । धन वसूल करने के मुकदमें में प्रतिसादन , प्रतिवादी द्वारा धन के लिए एक प्रतिदावा होती है , जिसके लिए वह वादी के खिलाफ एक वादे कायम कर सकता है और वह वादी के दावे को खत्म करने का प्रभाव रखती है । प्रतिसादन विधि का वह सिद्धान्त है जो प्रतिवादी को किन्हीं परिस्थितियों के अधीन न्यायालय के सामने वादी के खिलाफ अपना दावा रखने की आज्ञा देता है ।  एक वैद्य प्रतिसादन के आवश्यक तत्त्व ( Essentials of a legal Set - off ) एक वैद्य प्रतिसादन के आवश्यक तत्त्व या शर्तें निम्नलिखित है-  ( 1 ) धनराशि निर्धारित या निश्चित होनी चाहिए ।  ( 2 ) यह विधि के अनुसार वसूल करने योग्य होनी चाहिए अर्थात् उसकी कालावधि न समाप्त हुई हो ।  ( 3 ) इसे वसूल करने का अधिकारी प्रतिवादी को होना चाहिए , यदि प्रतिवादी एक से अधिक है तो सबको होना चाहिए ।  ( 4 ) वह वादी से वसूल करने योग्य होना चाहिए ।  ( 5 ) प्रतिसादन की धनराशि उस न्यायालय के आर्थिक अधिक्षेत्र की सीमा के बाहर न होनी चाहिए जिसमें वाद किया गया हो ।  ( 6 ) दो

वे कौन से साधारण नियम हैं जो व्यवहार प्रक्रिया संहिता में लिखित कथन के सम्बन्ध में दिए गए हैं ? ( What are the general rules provide in civil procedure code regarding written statement ? )

लिखित कथन ( Written Statement )  अभिवचन में वाद - पत्र एवं लिखित कथन दोनों ही सम्मिलित होते हैं । वादी जो दावा करता है उसका एक लिखित उत्तर प्रतिवादी को अपनी प्रतिरक्षा में न्यायालय में निश्चित समय के भीतर दाखिल करना होता है । लिखित कथन वाद की प्रथम सुनवाई के समय या उसके पूर्व या ऐसे समय के भीतर जो न्यायालय ने दे दिया हो , दाखिल किया जाना चाहिए । न्यायालय प्रतिवादी को उपस्थिति होने के समय या उसके पश्चात् किसी भी नियत समय के भीतर प्रतिवाद - पत्र ( लिखित कथन ) दाखिल कर , की अनुमति दे सकता है । ऐसी आज्ञा के पश्चात् प्रतिवादी लिखित कथन दाखिल करने के लिए बाध्य है । यदि वह लिखित कथन दाखिल नहीं करता है तो न्यायालय  उसके खिलाफ निर्णय दे सकता है ।    लिखित कथन का शीर्षक और नाम ( Heading and title of Written State ment ) - लिखित कथन या प्रतिवादी पत्र की रचना अधिक सावधानी से करनी चाहिए । इसमें शीर्षक और नाम वही होने चाहिए जो कि वाद - पत्र में दिये हों । उदाहरण के लिए ,  न्यायालय श्री मान सिविल  मजिस्ट्रेट महोदय (जिले का नाम ),  .  वाद संख्या 326 सन् 2022 पिन्टू पाण्डेय , आदि ............वादीगण  ब

एक वाद - पत्र किन अवस्थाओं में निरस्त किया जा सकता है ? ( On what circumstances a plaint can be rejected ? )

एक - वाद - पत्र का निरस्त किया जाना ( Rejection of Plaint )  एक वाद - पत्र को निम्नलिखित परिस्थितियों में निरस्त किया जा सकता है-  ( 1 ) जहाँ कि वाद - पत्र में वाद हेतु प्रकट नहीं होता है । हरद्वारी लाल बनाम कुँवल सिंह के वाद में सर्वोत्तम न्यायालय ने यह अभिमत व्यक्त किया है कि जहाँ वाद कारण प्रकट नहीं होता वहाँ वाद - पत्र को खारिज किया जाता है । जो वाद - पत्र समुचित वाद हेतु स्पष्ट नहीं करता उसे एक अच्छा वाद - पत्र नहीं कहा जा सकता है और उसे अस्वीकृत किया जा सकता है ।         जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 87 , चुनाव याचिकाओं के विचारण में व्यवहार प्रक्रिया संहिता को लागू करती है । अतः कथित ' हरद्वारी लाल ' के मामले में यह धारित किया गया है कि यदि किसी चुनाव याचिका में वाद हेतु का उल्लेख नहीं किया गया है तो संक्षिप्त रूप में खारिज किया जा सकता है ।  ( 2 ) जहाँ कि दावा किया गया अनुतोष कम मूल्यांकित किया गया है और वादी मूल्यांकित को ठीक करने के लिए न्यायालय द्वारा अपेक्षित किये जाने पर उस समय के भीतर ऐसा करने में असफल रहता है तो न्यायालय ने नियत किया है , तो वाद -

वादियों के संयोजन तथा प्रतिवादियों के संयोजन से क्या होता हैं ? संयोजन के सम्बन्ध में नियमों का वर्णन कीजिए । ( What do you understand by Joinder of Plcadings nad Joinder of defen dants ? State the rules of Joinder . )

 वादियों तथा प्रतिवादियों के संयोजन के सम्बन्ध में नियम व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश1 में दिए गए हैं , जो इस प्रकार है - वादियों का संयोजन ( Joinder of Plaintiff )  " जहाँ कि यदि वे व्यक्ति जिनके बारे में यह अभिकथित है कि एक ही कार्य या संव्यवहार या कार्यों या संव्यवहारों की श्रृंखला के लिए या से पैदा होने वाले अनुतोष पाने का कोई अधिकार उनमें संयुक्त , पृथक्तः या पर्याप्त वर्तमान है , पृथक् वाद लाते हैं तो कोई सामान्य विधि या तथ्य का प्रश्न पैदा होता वहाँ ऐसे सब व्यक्ति वादियों के रूप में एक वाद में संयुक्त किये जा सकेंगे । " ( आदेश । नियम 1. )  उपर्युक्त आदेश 1 नियम 1 के अन्तर्गत वे सभी व्यक्ति मुकदमें में वादी के रूप में संयोजित किये जा सकते हैं जहाँ कि अनुतोष के प्रति अधिकार जिसका प्रत्येक वादी में वर्तमान होना अभिकथित है जो उसी एक ही कार्य से या व्यवहार से उत्पन्न हुआ है तथा यदि ऐसे व्यक्तियों ने अलग - अलग मुकदमा चलाया तो वहाँ कानून या तथ्य का कोई सामान्य प्रश्न उठता हो ।  इस विषय में आंग्ल विधि के सिद्धान्तों के अनुसार पक्षकार के संयोजन के लिए किन्हीं सुन