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Showing posts from March, 2021

अग्रिम जमानत याचिका का क्या अर्थ होता है ? What is the meaning of anticipatory bail petition?

संस्वीकृति का अर्थ: Meaning of confession

न्यायिक प्रक्रिया में संस्वी्कृति का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि संस्वी्कृति के अंतर्गत अभियुक्त मजिस्ट्रेट के सम्मुख अपने अपराध को स्वीकार करता है इसलिए इससे अभियोजन पक्ष मजबूत हो जाता है तथा न्यायिक कार्यवाही अत्यंत सरल तथा शीघ्रगामी हो जाती है भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 24 में संस्वी्कृत की परिभाषा निम्न प्रकार है - (:) वह अभियुक्त के द्वारा की गई हो (:) वह अर्थात सस्वीकृति मजिस्ट्रेट के समक्ष की गई हो (:) अभियुक्त ने अपने अपराध को स्वीकार कर लिया हो( पल विंदर कौर बनाम पंजाब राज्य ए आई आर 1951 एस सी 354)            संस्वीकृति का स्वैच्छिक होना भी जरूरी अर्थात वह बिना किसी भय दबाव प्रलोभन या उत्प्रेरण के की जानी चाहिए (भा द  प्रक्रिया संहिता की धारा 163) संस्वीकृति लेखबंध्द करने की रीति (mode of confession);                    दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 में संस्वीकृति को लेखबध्द किए जाने की रीति का वर्णन किया गया है इसके अनुसार (1) संस्वीकृति का मजिस्ट्रेट के सम्मुख  किया जाना  अभियुक्त के द्वारा अपराध की संस्वीकृति केवल मजिस्ट्रेट के सम्मुख ही की जा सकती है प

संघात्मक संविधान के प्रमुख तत्व: - main elements of Federal constitution

न्यायालय का प्राधिकार  परिषदीय राज्य में संविधान की विधिक सर्वोच्चता परिषद की प्रणाली के लिए आवश्यक है सरकार की समकक्ष शाखाओं के बीच और परी संघीय शासन और संघटक राज्यों के बीच शक्तियों के विभाजन को बनाए रखना अपरिहार्य है। यह सुनिश्चित करने के लिए न्यायालय में संविधान के निर्वाचन की सर्वोच्च शक्ति निहित होती है। न्यायालय को यह शक्ति प्राप्त होती है कि वह परी संघीय और राज्य सरकारों द्वारा किए गए ऐसे कार्यों को शून्य  घोषित कर दे जो संविधान के उपबंध का उल्लंघन करते हैं यह कार्य भारत में उच्चतम न्यायालय को सौंपा गया है।          अत हमारे संविधान द्वारा जिस राजनीतिक प्रणाली को अपनाया गया है उसमें परी संघीय राज व्यवस्था के सभी तत्व विद्यमान है अतः संविधान परिसंघात्मक है। ह्हीयर और जेनिंग्स जैसे कुछ विदेशी संविधानवेत्ताओ मे हमारे संविधान को संघात्मक मानने में आपत्ति की है। प्रोफेसर हीयर के अनुसार संघात्मक संविधान में कुछ अपवाद हो सकते हैं किंतु उसमें परिसंघात्मक तत्वों की प्रधानता होती है। यदि किसी संविधान में ऐसे तत्व हैं जो संघात्मक तत्व को गॉड बना देते हैं तो वह संविधान पर संघात

Know about consumer forum

व्यक्ति जब भी किसी वस्तु या सेवा को प्राप्त करने के मूल्य झुकाता है तो वह यही उम्मीद रखता है कि उसके साथ कोई धोखाधड़ी नहीं होगी लेकिन आजकल निरंतर ऐसी घटनाएं बढ़ रही है लोगों को उपभोक्ता अधिकारों के प्रति जागरूक बनाने के उद्देश्य से शुरू किया जा रहा है हमें यह पता होना चाहिए कि यदि आप किसी भी प्रोडक्ट को मार्केट से परचेज करते हो तो आप के क्या क्या अधिकार हैं consumer forum ya consumer court क्या होता है और आप की यह किस तरह से help कर सकता है इन सभी के बारे में ध्यान रखना चाहिए.            आज के डिजिटल जमाने में अधिकतर लोग ऑनलाइन शॉपिंग पर निर्भर होते जा रहे हैं क्योंकि यह बहुत सुविधाजनक है लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि इसके इस्तेमाल के दौरान कुछ लोग ठगी के शिकार हो जाते हैं ऐसी समस्याओं के समाधान के लिए कानूनन उपभोक्ता को कुछ अधिकार दिए गए हैं जिसके बारे में सभी को जानना बहुत ही आवश्यक है. संशोधित उपभोक्ता कानून: - नया उपभोक्ता संरक्षण कानून 2019 में देश में पुराने कानून की जगह 20 जुलाई 2020 से किया गया है इसमें इंटरनेट या टेलिसॉपिंग आदि माध्यमों से खरीदारी करने वाले लोग

Who can claim maintenance? (भरण पोषण की मांग कौन कर सकता है?)

भरण पोषण की मांग पत्नी अपने बच्चे एवं माता-पिता कर सकते हैं भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता के अध्ययन 9 में एक व्यक्ति के इस आधारभूत कर्तव्य को संविधिक मान्यता दी गई है वह अपनी पत्नी बच्चों और माता-पिता का भरण पोषण करें जब तक कि वह स्वयं अपने भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं इस अध्याय के अंतर्गत  वृद्ध माता-पिता पत्नी एवं अवयस्क बच्चों के बारे में पोषण की व्यवस्था करने का मुख्य आशय एक सामाजिक प्रयोजन को पूरा करना है इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति को दंडित करना कभी नहीं रहा है और ना ही यह दंड की श्रेणी में आता है अहमद अली बनाम बेगम ए आई आर 1952 हैदराबाद 76 संहिता की धारा 125 के अनुसार - अगर पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति - अगर पत्नी का जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है या अपनी धर्मज या अधर्मज अवयस्क संतान का चाहें  विवाहित हो या ना हो जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है या धर्म अधर्म संतान का जो विवाहित पुत्री नहीं है जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है जहां ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक सा असमान्यता या क्षति के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है या  अपने पिता या माता का जो अपना भरण-पोषण करने

दंड न्यायालयों के वर्ग (classes of various criminal courts)

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 6 के अनुसार उच्च न्यायालयों और इस संहिता से भिन्न किसी विधि के अधीन गठित न्यायालय के अतिरिक्त प्रत्येक राज्य में निम्नलिखित वर्गों के दंड न्यायालय होंगे  अर्थात - ( 1) सत्र न्यायालय ( 2) प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट और किसी महानगर क्षेत्र में महानगर मजिस्ट्रेट ( 3) द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट ( 4) कार्यपालक मजिस्ट्रेट          भारतीय संविधान के अनुसार उच्चतम न्यायालय को कुछ अपराधिक मामलों से व्यवहार करने की शक्ति प्राप्त है अनुच्छेद 134 में वर्णित अपराधिक मामलों के संबंध में उच्चतम न्यायालय को अपीलीय क्षेत्राधिकार प्रदान किया गया है.          सत्र न्यायालय भारतीय दंड संहिता की धारा 9 के अनुसार - ( 1) राज्य सरकार प्रत्येक सेशन खंड के लिए एक सत्र न्यायालय स्थापित करेंगे ( 2) प्रत्येक सत्र न्यायालय में एक न्यायाधीश पीठासीन होगा जो उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त किया जाएगा ( 3) उच्च न्यायालय अपर सत्र न्यायधीश और सहायक सत्र न्यायाधीशों को भी सत्र न्यायालय में अधिकारिता का प्रयोग करने के लिए नियुक्त कर सकता है ( 4) हाई कोर्ट द्वारा एक सेशन ख

तलाशी संबंधी साधारण उपबंध: General provision relating to searches

तलाशी वारंटों का निर्देशन आदि : - दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 38 ,70,72,74,77,78, एवं 79 के उपबंद जहां तक हो सके उन सभी तलाशी वारंटों को लागू  होंगे जो धारा 93,94, या 97 के अधीन किए जाते हैं. बंद स्थान की भारसाधक व्यक्ति  तलाशी लेंगे           जब कभी इसके अधीन तलाशी लिए जाने का निरीक्षण किया जाने वाला कोई स्थान बंद है तब उस जगह में निवास करने वाला या उसका भार साधक व्यक्ति उस अधिकारी या अन्य व्यक्ति की जो वारंट का निष्पादन कर रहा है मांग पर एवं वारंट के पेश किए जाने पर उनमें अबाध प्रवेश करने देगा व एवं वहां तलाशी लेने के लिए समुचित सुविधाएं देगा।              अगर उस जगह में इस तरह प्रवेश प्राप्त नहीं हो सकता है तो वह अधिकारी या अन्य व्यक्ति जो वारंट का निष्पादन कर रहा है धारा 47 की उप धारा ( 2) के द्वारा उपबंध इस नीति से कार्यवाही कर सकेगा.              जहां किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में जो ऐसे स्थान में या उसके आसपास है उचित रूप से वह संदेह किया जाता है कि वह अपने शरीर पर कोई ऐसी वस्तु छुपाए हुए हैं जिसके लिए तलाशी ली जानी चाहिए तो उस व्यक्ति की तलाशी ली जा सकती है और

क्या पुलिस किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है जो अपना नाम एवं पता बताने से इंकार करता है?can POLICE ARREST ANY SUCH PERSON WHO REFUSES TO TELL HIS NAME AND ADDRESS?

When any  private person   and magistrate arrest any person   ? कब कोई प्राइवेट व्यक्ति तथा मजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है ? भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 42 के अंतर्गत पुलिस अधिकारी किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है -         जिसने उस अधिकारी की उपस्थिति में कोई  असंज्ञेय अपराध कारित  किया है        जिस पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में असंज्ञेय अपराध करने का अभियोग लगाया गया है         जो उस अधिकारी की मांग पर अपना नाम और निवास बताने से इंकार करता है या ऐसे नाम या निवास बताता है जिसके बारे में विश्वास करने का कारण है कि वह मिथ्या है (गोपाल नायडू बनाम एम्परर आर ए आई आर 1923 यात्रा 522)          ऐसी गिरफ्तारी का मुख्य उद्देश्य से व्यक्ति का नाम और निवास अभी निश्चित करना है ( किंग बनाम थांग एआईआर 1938 रंगून  161) लेकिन यदि पुलिस अधिकारी को ऐसे व्यक्ति का नाम और निवास ज्ञात है तो वह उसे बिना वारंट  के गिरफ्तार नहीं कर सकेगा( मायकू    बनाम एम्परर  ए आई आर 41इलाहाबाद 483) गिरफ्तारी पर प्रक्रिया: -  जब ऐसे गिरफ्तार व्यक्ति का सही नाम और निवास अभी निश्चि

गिरफ्तारी संबंधी उन प्रावधानों का वर्णन कीजिए जहां पुलिस किसी व्यक्तिगत गिरफ्तारी के वारंट के बिना गिरफ्तार कर सकती है? Discuss the provisions under CrPC where the police can arrest a person without warrant?

क्या मजिस्ट्रेट किसी अपराधी को स्वयं गिरफ्तार कर सकता है? पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति को बिना वारंट के Cr.P.C. मे किन उपबन्धो के अंतर्गत गिरफ्तार कर सकता है? दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 44 मजिस्ट्रेट को किसी अपराधी को स्वयं गिरफ्तार करने का उपबंध करता है . धारा44 में मजिस्ट्रेट शब्द के अंतर्गत कार्यपालक मजिस्ट्रेट एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट सम्मिलित हैं धारा 44 में अपराधियों की गिरफ्तारी के लिए कार्यपालक मजिस्ट्रेट एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट को विशेष रूप से अधिकृत किया गया है.              धारा44(1) के अनुसार कार्यपालक मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट या तो अपराधी को स्वयं गिरफ्तार कर सकते हैं या किसी अन्य व्यक्ति को उसे गिरफ्तार करने का निर्देश दे सकते हैं            उक्त मजिस्ट्रेट ऐसा आदेश तभी दे सकता है जब अपराधी ने अपराध उसकी उपस्थिति में या उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंतर्गत किया हो.          कार्यपालक एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी ऐसे व्यक्ति को भी गिरफ्तार कर सकता है या गिरफ्तार करने के लिए निर्देश दे सकता है जिसकी गिरफ्तारी के लिए वह गिरफ्तारी वारंट जारी करने के लिए प्रा

कुछ महत्वपूर्ण कानूनी फैसले: Some important judgements of law

जब भी किसी स्त्री ने इंसाफ के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया तो न्यायालय द्वारा कुछ ऐसे ऐतिहासिक निर्णय लिए गए हैं जिनके बारे में सभी को जानना चाहिए.          कुछ ऐसे खास फैसले के बारे में जो इस बात का संकेत देते हैं कि हमारा कानून इसकी हितों की रक्षा के लिए हमेशा से ही  प्रतिबंध्य रहा है विशाखा बनाम स्टेट आफ राजस्थान: - वर्ष  2013 बनाया गया (protection of women from sexual harassment at workplace act) प्रोटक्शन आफ हुमन फॉर्म सेक्सुअल हैरेसमेंट अट वर्कप्लेस एक्ट कार्यस्थल पर स्त्रियों को सुरक्षा देने वाला महत्वपूर्ण कानून है जिसे पारित करवाने के लिए स्त्रियों की लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी. दरअसल 1997 में भंवरी देवी नाम की एक सामाजिक कार्यकर्ता के साथ गैंगरेप की जघन्य  घटना हुई क्योंकि वह अपने गांव से बाल विवाह के खिलाफ मुहिम चला रही थी इस कुकृत्य में गांव के पांच पुरुष शामिल थे लेकिन राजस्थान हाई कोर्ट ने उन्हें बाइज्जत बरी  कर दिया उसके बाद किसी स्वयंसेवी संस्था में काम करने वाली विशाखा नामक महिला ने   सर्वोच्च न्यायालय में इस निर्णय के खिलाफ जनहित याचिका दायर की जिसे देखत