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IPC की धारा 294 और BNS की धारा 296 सार्वजनिक अश्लीलता पर कानून और सजा का पूरा विवरण

भरण पोषण शब्द से आप क्या समझते हैं? What do you understand by the terms maintenance? What are the circumstances under colich a Hindu wife is entitled to live separately from her husband profecting her right to claim maintenance?

भरण पोषण क्या है: - समान्यतःहिंदू विधि में भरण-पोषण को वृहद रूप से लिया गया है और उसके अंतर्गत भोजन वस्त्र आवास शिक्षा और चिकित्सा परिचर्या के लिए उपलब्ध खर्चे आते हैं. अविवाहित पुत्री की दशा में उसके विवाह के युक्ति युक्त और प्रसांगिक व्यय भी आते हैं. Maintenance is a right to necessities which are responsible e.g. food, clothing and shelter by a person from another.           भरण पोषण का अधिकार संयुक्त परिवार के सिद्धांत से उत्पन्न होता है. परिवार का सिद्धांत यह है कि परिवार का मुखिया परिवार के सभी सदस्यों के भरण-पोषण संस्कारों की पूर्ति तथा विवाह के  व्ययों की पूर्ति करने के लिए उत्तरदाई होता है. संयुक्त परिवार के सदस्यों को संयुक्त परिवार के कोष में से भरण-पोषण पाने का अधिकार है चाहे उनकी कुछ भी आयु या संस्थिति क्यों ना हो. पोषण के अधिकार में जीवन की वे युक्तियुक्त आवश्यकतायें सम्मिलित है जिसके बिना मनुष्य का समाज में जीवित रहना असंभव है. यह आवश्यकता है रोटी कपड़ा और मकान है. एक प्रकार का आभार है जो कि विधिक संबंध से उत्पन्न होता है.           धर्म शास्त्रों के अनुसार

किन परिस्थितियों में हिंदू विधवा पृथक भरण पोषण की हकदार होती है? Under what circumstances is a Hindu widow entitled to separate maintenance?

विधवा पुत्र वधू: - प्राचीन विधि के अनुसार विधवा पुत्रवधू को भरण-पोषण देना ससुर का ना तो विधिक दायित्व और ना व्यक्तिगत. यह केवल एक नैतिक दायित्व है. अधिनियम की धारा 19 मे  पुत्रवधू के भरण-पोषण के बारे में कहा गया है किंतु वह ससुर के दायित्व को व्यक्तिगत दायित्व नहीं बनाती ।जैसा कि  मु.रूपा बनाम ग्रियावती के वाद में कहा गया है कि पुत्रवधू के भरण-पोषण का ससुर का केवल नैतिक दायित्व है कि वह विधवा पुत्र वधू का भरण पोषण करें किन्तु  ससुर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र से उसकी स्वार्जित संपत्ति को प्राप्त करता है वह कानूनी रूप से विधवा पुत्रवधू के भरण पोषण देने के लिए बाध्य रहता है. हिंदू दत्तक ग्रहण तथा भरण पोषण अधिनियम की धारा 19 यह  उपबंधित  करती है - ( 1) कोई हिंदू पत्नी चाहे वह इस अधिनियम के प्रारंभ से पूर्व या पश्चात विवाहित हो अपने पति की मृत्यु के पश्चात अपने ससुर से भरण-पोषण प्राप्त करने की हकदार होगी.               परंतु यह सब अब तक और उस विस्तार तक जहां कि वह स्वयं अर्जन से या अन्य संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो या उस दशा में जहां उसके पास अपनी स्वयं की कोई भ

क्या हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण पोषण अधिनियम के अंतर्गत एक बच्चे तथा वृद्ध माता-पिता को पोषण पाने का अधिकार है तथा विशुद्ध हिंदू विधि के अंतर्गत क्या अधिकार प्राप्त थे? What is the right of maintenance of children and parents under the Hindu adoption and maintenance act and under the pure Hindu law?

Right of maintenance of children and aged parents under the Hindu adoption and maintenance act ( वृद्ध माता-पिता तथा संतान के भरण पोषण का अधिकार) : - हिंदू दत्तक एवं भरण पोषण अधिनियम की धारा 20 के अंतर्गत वृद्ध माता-पिता तथा संतानों के भरण पोषण का अधिकार प्रदान किया गया है. यह धारा उपबंधित करती है कि - ( 1) इस धारा के उपबंधों  के अधीन रहते हुए कोई हिंदू अपने जीवनकाल के दौरान अपने धर्मज अवयस्को और वृद्ध तथा शिथिलांग माता-पिता का भरण पोषण करने के लिए बाध्य है. ( 2) जब कोई धर्मज अवयस्क  अप्राप्तवय रहे वह अपने माता या पिता से भरण-पोषण का दावा कर सकेगा. ( 3) किसी व्यक्ति को अपने वृध्द या शिथिलांग  माता-पिता का किसी स्त्री का जो अविवाहित हो भरण पोषण करने की बाध्यता का विस्तार वहां तक होगा जहां तक माता-पिता या अविवाहित पुत्री यथास्थिति स्वयं उपार्जन हो या अन्य संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो.             इस धारा में माता के अंतर्गत निसंतान सौतेली मां भी आती है इस प्रकार सौतेली मां भी भरण पोषण की अधिकारी है.             इस प्रकार धारा 20 के अंतर्गत वृद्ध तथा निर्बल माता

हिंदू दत्तक ग्रहण तथा भरण पोषण अधिनियम के अंतर्गत भरण पोषण के प्रयोजन के लिए कौन व्यक्ति आश्रित है तथा इनके पोषण संबंधी नियम की व्याख्या कीजिए. Who are dependents for the purpose of maintenance under the Hindu adoption and maintenance act and also discuss the provision of maintenance of these person.

हिंदू दत्तक ग्रहण तथा भरण पोषण अधिनियम 1956 की धारा 21 में उन व्यक्तियों की सूची दी गई है जो भरण-पोषण के प्रयोजन के लिए आश्रित है इस धारा के अंतर्गत भरण पोषण के प्रयोजन के लिए मृतक व्यक्ति को निम्नलिखित संबंधी उनके आश्रित माने गए हैं - ( 1) उसका पिता ( 2) उसकी माता ( 3) उसकी विधवा जब तक कि वह पुनर्विवाह नहीं करती ( 4) उसका पुत्र या उसके पूर्व मृत पुत्र का पुत्र या उसके पूर्व मृत पुत्र के पूर्व मृत पुत्र का पुत्र जब तक कि वह अवयस्क है किंतु यह उस दशा में और वहां तक कि होगा जब तक कि वह और जहां तक कि वह यदि पौत्र है तो अपने पिता या माता की संपदा से और यदि प्रपौत्र है तो अपने पिता या माता की या पितामही या पिता माही की संपदा से भरण-पोषण करने में असमर्थ है. ( 5) उसकी अविवाहित पुत्री या पुत्र की अविवाहित पुत्री या उसके पूर्व मृत पुत्र के पूर्व मृत पुत्र की अविवाहित पुत्री जब तक कि वह अविवाहित रहती है यह भरण-पोषण उस दशा में सीमा तक ही प्राप्त होगा जब और जहां तक वह यदि पोत्री है तो पिता या माता की संपदा से और प्रा पुत्री है तो अपने पिता या पिता या माता या माता महि या पितामह की संपदा से भरण पोषण

भरण पोषण की धनराशि कौन निश्चित करता है और किन सिद्धांतों के आधार पर यह निर्धारित की जाती है. Who determines the amount of maintenance and on what principles is it determined?

भरण पोषण की धनराशि (amount of maintenance): - हिंदू दत्तक ग्रहण तथा भरण पोषण अधिनियम 1956 की धारा 23 में पोषण की धनराशि निर्धारित करने का सर्वोपरि अधिकार न्यायालय को दे रखा है. प्रत्येक मामले के तथ्यों पर विचार करके और उसकी विशेष परिस्थितियों का अध्ययन करके भरण-पोषण दिलाने का निश्चय करना और उसकी राशि निर्धारित करना न्यायालय का कर्तव्य है भरण पोषण अधिनियम द्वारा भरण पोषण के हकदार घोषित किए गए व्यक्ति को भी न्यायालय भरण-पोषण दिलवाना अस्वीकार कर सकता है यदि ऐसा करना उसके सम्मुख उचित कारण है. न्यायालय पोषण की धनराशि का निर्धारण अपने विवेक के आधार पर करेगा. इस संबंध में अधिनियम की धारा 23 उप बंधित है - ( 1) इस बात को आधारित करना न्यायालय के विवेकाधिकार में होगा कि क्या कोई भरण पोषण इस अधिनियम के उप बंधुओं के अधीन दिलाया जाए और दिलाया जाए तो कितना और ऐसा करने में न्यायालय यथास्थिति उप धारा (2) या उप धारा (3)  ऊपर ने तो बातों को जहां तक वह लागू है सम्यक रूप से ध्यान में रखेगा. ( 2) बालाकिया वृद्ध माता-पिता के पोषण की धनराशि निर्धारित करते समय न्यायालय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखेगा - a)

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की प्रमुख विशेषताएं: The main features of Hindu Succession Act 1956

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 ने उत्तराधिकारी के संबंध में एक क्रांतिकारी विचारधारा को जन्म दिया है. यद्यपि इससे पूर्व न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से पूर्व हिंदू विधि में परिवर्तन होते रहे हैं फिर भी हिंदू उत्तराधिकार की वर्तमान विधि को संहिताबध्द करने की आवश्यकता बनी ही रही. सन 1937 में हिंदू नारी की संपत्ति संबंधी अधिकार अधिनियम पारित हो जाने पर सरकार ने हिंदू उत्तराधिकार विधि में संशोधन करने के लिए राव कमेटी नियुक्त किए. राव कमेटी द्वारा स्वीकृत नीति के आधार पर अनेक अधिनियम पारित किए गए जिनमें से हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 सबसे महत्वपूर्ण है. वास्तव में इस अधिनियम द्वारा हिंदुओं के उत्तराधिकार संबंधी विधि में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाए गए यह महत्वपूर्ण परिवर्तन निम्नलिखित हैं - ( 1) मिताक्षरा और दायभाग शाखाएं दाय संबंधी नियमों की दृष्टि से समाप्त हो गई है अब समस्त देश के हिंदुओं के लिए दाय की एक रूप विधि है. ( 2) वर्ण के आधार पर अर्थात द्विज और शूद्र के आधार पर विधि के कतिपय उपबंधों में जो कठिनाई थी वह समाप्त हो गई हैं. ( 3) दक्षिण भारत में प्रचलित मातृप्रधान प्रणा

प्राकृतिक अथवा नैसर्गिक संरक्षक की शक्तियां (powers of a natural guardian):

प्राकृतिक अथवा नैसर्गिक  संरक्षक की शक्तियां (powers of a natural guardian): - अधिनियम की धारा 8 में अवयस्क  के शरीर तथा संपत्ति के संबंध में प्राकृतिक संरक्षक की शक्तियों की विवेचना की गई है धारा 8 इस प्रकार है - ( 1) हिंदू अवयस्क  का प्राकृतिक संरक्षक इस धारा के प्रावधानों के अधीन रहते हुए ऐसे समस्त कार्यों को कर सकता है जो उस अवयस्क के लाभ के लिए अथवा उसकी संपदा के उगाहने संरक्षण या फायदे के लिए आवश्यक या युक्ति युक्त और उचित हो किंतु संरक्षक किसी भी दशा में अवयस्क  को व्यक्तिगत संविदा के द्वारा बाध्य नहीं कर सकता है. ( 2) प्राकृतिक संरक्षक न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना - (क ) अवयस्क  की अचल संपत्ति के किसी भाग को बंधक या भारित (charge) या विक्रय दान विनिमय या अन्य किसी प्रकार से हस्तांतरित नहीं करेगा या (  ख ) ऐसी संपत्ति के किसी भाग को 5 से अधिक होने वाली अवधि के लिए तथा जिस तारीख को अवयस्क वयस्कता प्राप्त करेगा उस तारीख से 1 वर्ष से अधिक होने वाली अवधि के लिए पट्टे पर नहीं देगा. ( 3) प्राकृतिक संरक्षक के उप धारा (1) या  उपधारा (2) के उपबंधों के विरुद्ध संपत्ति का

हिंदू अवयस्कता और संरक्षक अधिनियम के अंतर्गत वसीयती संरक्षक की नियुक्ति के संबंध में क्या प्रावधान किए गए हैं. What are the provisions of Hindu minority and guardianship act for the appointment of Guardian under a will.

वसीयती संरक्षक (testamentary Guardians): - पिता अथवा माता द्वारा अपनी अवयस्क  संतान के शरीर अथवा  संपत्ति अथवा दोनों के लिए वसीयत में नियुक्त किए गए संरक्षक को वसीयती संरक्षक कहते हैं वसीयती  संरक्षक से तात्पर्य उन संरक्षकों  से है जो अवयस्क के प्राकृतिक संरक्षक की इच्छा से नियुक्त किए जाते हैं तथा अवयस्क  के संरक्षक के रूप में कार्य करने के अधिकारी होते हैं इस प्रकार के संरक्षक प्राकृतिक संरक्षकों की मृत्यु के बाद ही क्रियाशील होते हैं. संरक्षक कौन नियुक्त कर सकता है हिंदू अवयस्क  और संरक्षकता कि धारा 9 के अनुसार निम्नलिखित व्यक्ति किसी को अवयस्क के शरीर के साथ संपत्ति के लिए संरक्षक नियुक्त कर सकते हैं - ( 1) पिता नैसर्गिक  अथवा  दत्तक ग्रहीता ( 2) माता नैसर्गिक अथवा दत्तक ग्रहीता   ( 3) विधवा माता नैसर्गिक अथवा दत्तक ग्रहीता पिता: - कोई भी हिंदू पिता जो नैसर्गिक   संरक्षक के रूप में कार्य करने का अधिकारी है तथा जो अधिनियम द्वारा अवयस्क  का नैसर्गिक  संरक्षक होने के अयोग्य नहीं हो गया है अपनी इच्छा द्वारा अवयस्क के शरीर अथवा उसकी विभक्त संपदा अथवा दोनों के लिए संरक्षक निय

वस्तुतः संरक्षक (de facto guardian):तदर्थ संरक्षक ( Adhoc Guardian ):

वस्तुतः संरक्षक (de facto guardian): - वस्तुतः  संरक्षक स्वयं द्वारा नियुक्त संरक्षक होता है जब कोई व्यक्ति बिना किसी विधि की आवश्यकता के अवयस्क के शरीर या संपत्ति की देखभाल करता है और यह देखभाल कुछ दिन की अस्थाई देखभाल होकर स्थाई देखभाल है तो हिंदू विधि ऐसे व्यक्ति की स्थिति को स्वीकार करती है इस प्रकार अवयस्क  का वस्तुतः संरक्षक ना कोई विधिक संरक्षक है ना कोई वसीयती  संरक्षक तथा ना किसी न्यायालय द्वारा नियुक्त संरक्षण है  वरन  वह इस प्रकार का व्यक्ति होता है जिसने स्वयं अवयस्क  की संपदा तथा मामलों की देखभाल का प्रबंध अपने हाथों में ले लिया है तथा प्राकृतिक संरक्षक की तरह आचरण करने लगा है.                    वस्तु का संरक्षक का नाम हिंदू धर्म शास्त्रों में कहीं उल्लेखित नहीं है परंतु उसके अस्तित्व को कहीं भी नकारा नहीं गया है श्री मूलू के वाद में न्यायाधीश ने कहा है कि हिंदू विधि शास्त्र ने दो विपरीत और कठिन परिस्थितियों में समाधान ढूंढने का प्रयास किया है एक जब अवयस्क  को कोई वैध संरक्षक नहीं है तो फिर उसकी संपत्ति का कोई प्रबंध न होने के कारण उसे (अवयस्क ) को अपने भरण-पो

What are the essential of a valid adoption under Hindu law? What provision have been given by the Hindu adoption and maintenance act 1956 in this regard? हिंदू दत्तक ग्रहण तथा भरण पोषण अधिनियम 1956 के अंतर्गत अवैध दत्तक ग्रहण के आवश्यक तत्वों की विवेचना कीजिए.

दत्तक ग्रहण (adoption): - मनु के अनुसार दत्तक ग्रहण किसी पुत्र के अभाव में एक व्यक्ति द्वारा किया जाता है दत्तक ग्रहण से हमारा अभिप्राय है किसी पुत्र को उसके माता-पिता के घर से दत्तक  ग्रहण करने वाले व्यक्ति के घर में उसके पुत्र के रूप में नियोजित करना जिसके अनुसार यह समझा जाता है कि दत्तक ग्रहण में कि ग्रहित पुत्र का दत्तक ग्रहण करने वाले पिता के घर फिर से जन्म हुआ तथा पूर्व पिता के घर से उसका संबंध विच्छेद हो गया है.               मनु के अनुसार वह पुत्र जिसके माता-पिता किसी ऐसे व्यक्ति को पुत्र के रूप में दान कर देते हैं जो पुत्र हीन है तथा प्रदत्त  पुत्र की जाति का हो तथा विधि  साथ ही स्नेह पूर्वक दिया गया हो तो दत्तक पुत्र माना जाता है.                धार्मिक उद्देश्य गौण  है बौध्दायन के अनुसार दत्तक ग्रहण करने वाला पुत्र को इस प्रकार के शब्दों से ग्रहण करता है मैं तुमको धार्मिक क्रियाओं की पूर्ति के लिए ग्रहण करता हूं मैं तुमको अपने पूर्वजों की श्रंखला को बनाए रखने के लिए ग्रहण करता हूं दत्तक मीमांसा में यह कहा गया है कि पितरों को पिंडदान जल दान देने तथा धार्मिक संस्क

दत्तक ग्रहण के क्या परिणाम है? What are the effect of adoption?

दत्तक ग्रहण के परिणाम (effect of adoption): - प्राचीन विधि के अनुसार दत्तक पुत्र अपने नैसर्गिक परिवार से स्थानांतरित होकर दत्तक ग्रहिता परिवार में आ जाता है वह दत्तक  ग्रहीता परिवार के सदस्यों का सपिण्ड हो जाता है और उसकी दत्तक ग्रहिता  माता के पूर्वज उसके मातृ पक्षीय पुरखे होते हैं पृवी काउंसिल ने प्रताप सिंह बनाम अमर सिंह के मामले में यह मत व्यक्त किया है कि दत्तक पुत्र की स्थिति दत्तक ग्रहता के औरस पुत्र की होती है वह दत्तक ग्रहिता की वंश परंपरा को औरस पुत्र की भांति चलाता है वह अपने पिता की वंशावली को चलाने वाला ठीक वैसा ही है जैसे औरस पुत्र होता है और जहां तक वंशावली चलाने का संबंध है तब तक ग्रहण का मूल उसी प्रभाव में होता है. हिंदू दत्तक तथा भरण पोषण अधिनियम 1956 की धारा 12 के अंतर्गत दत्तक ग्रहण के परिणाम इस प्रकार दिए गए हैं -          दत्तक पुत्र के विषय में यह समझा जायेगा कि दत्तक ग्रहण की तारीख से वह अपने तब तक रहता पिता या माता का सभी प्रयोजनों के लिए पुत्र है तथा यह भी समझा जाएगा कि उस बालक के अपने जन्म के परिवार के साथ समस्त संबंध उस तारीख से विच्छेद हो गए है

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में शून्य और शून्यकरणीय विवाहों से उत्पन्न संतानों की वैधता के संबंध में क्या प्रावधान उत्पन्न किए गए हैं. What provision have been regarding legitimacy of children begotten of void and voidable marriages in Hindu Marriage Act 1955

शून्य और शून्यकरणीय विवाहों से उत्पन्न संतानों की वैधता (legitimacy of children be gotten of void and voidable marriages): - विधि की प्रवृत्ति वैधता के पक्ष में होती है अर्थात विधि यथा सम्मत वैधता प्रदान करने की ओर उन्मुख होती है कि कारण यह है कि समाज में जारजा को बहुत बड़ा कलंक माना गया है इससे उत्पन्न संतान अधर्मज होती है तथा इसको भी सभी अधिकार प्राप्त नहीं होते जो संतान को होते हैं जारज संतान को बिना किसी दोष  के कष्ट सहने पड़ते हैं इसलिए विधि के उप धारणा वैधता के संबंध में होती है अर्थात प्रत्येक व्यक्ति जब तक वह जारज निषिद्ध कर दिया जाए औरस माना जाता है विधि के इस सामान्य सिद्धांतों को ध्यान में रखकर धारा 16 के अंतर्गत शून्यकरणीय  विवाहों  से उत्पन्न संतानों की औरसता के संबंध में प्रावधान और उपबंधित किए गए हैं। (1)  हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16 (1) के अनुसार इस बात के होते हुए भी की विवाह धारा 11 के अधीन अकृत  और शून्य है ऐसे विवाहों से उत्पन्न संतान वैद्य होगी यदि वह उस समय पैदा होती है जब विवाह वैध हुआ होता चाहे वह संतान विवाह विधियां (संशोधन) अधिनियम 1976 के लागू