Skip to main content

Posts

Showing posts with the label Mohammedan law

अनुसूचित जाति के व्यक्ति पर हमला करने वाले व्यक्तियों को सजा कैसे दिलायें। दलित व्यक्ति को न्याय प्राप्त करने के लिए कौन-कौन कानूनी प्रक्रियाएं होती हैं।

मुस्लिम विवाह और अंतरधार्मिक विवाह: भारतीय कानून, अधिकार और महत्वपूर्ण अदालती फैसले

ब्लॉग पोस्ट का शीर्षक: "मुस्लिम विवाह, अंतरधार्मिक विवाह, और भारतीय कानून: एक व्यापक समझ" परिचय विवाह एक ऐसा सामाजिक और कानूनी बंधन है, जो न केवल दो व्यक्तियों को जोड़ता है, बल्कि उनके परिवारों और समाज को भी एकजुट करता है। मुस्लिम पर्सनल लॉ में विवाह को निकाह कहा जाता है, जो एक सिविल अनुबंध के रूप में माना जाता है। लेकिन जब बात अंतरधार्मिक विवाह की आती है, तो इसमें कई कानूनी और सामाजिक जटिलताएं उत्पन्न होती हैं। यह ब्लॉग मुस्लिम विवाह के सिद्धांतों, अंतरधार्मिक विवाह की वैधता, और इससे संबंधित कानूनों तथा अदालती निर्णयों की सरल भाषा में व्याख्या करेगा। ड्राफ्टिंग का प्रारूप परिचय विवाह का महत्व मुस्लिम विवाह की परिभाषा मुस्लिम विवाह के प्रकार वैध (सहीह) अनियमित (फ़ासीद) शून्य (बतिल) मुस्लिम पर्सनल लॉ के सिद्धांत निकाह के लिए आवश्यक शर्तें मेहर का महत्व विवाह अनुबंध अंतरधार्मिक विवाह और विशेष विवाह अधिनियम विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की भूमिका हिंदू-मुस्लिम विवाह की कानूनी स्थिति महत्वपूर्ण अदालती निर्णय सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के महत्वपूर्ण ...

महर (Dower) क्या है?इस्लामी विवाह में इसका महत्व और उद्देश्य क्या- क्या है?

महर (Dower) इस्लामी विवाह का एक महत्वपूर्ण घटक है जो पत्नी के अधिकारों और सम्मान की रक्षा के लिए होता है। महर उस धनराशि या संपत्ति को कहते हैं जिसे विवाह के बदले पति अपनी पत्नी को प्रदान करता है। यह पत्नी का हक होता है और विवाह के समय ही इसके बारे में बात की जाती है। कई इस्लामी देशों और शरियत कानून के तहत, महर को विवाह का एक अनिवार्य तत्व माना जाता है। महर का उद्देश्य (Object of Mehar)→ 1. पत्नी के सम्मान का प्रतीक:→ महर पत्नी के प्रति सम्मान और उसकी सुरक्षा का प्रतीक है। यह पति पर एक जिम्मेदारी डालता है कि वह अपनी पत्नी का ख्याल रखे।     2. तलाक के मनमाने अधिकार पर अंकुश:→ महर पति के तलाक देने के मनमाने अधिकार पर भी अंकुश लगाता है क्योंकि तलाक के बाद महर का भुगतान करना अनिवार्य होता है। उदाहरण के तौर पर, अगर एक पति बिना किसी उचित कारण के तलाक देता है, तो उसे तत्काल महर चुकाना पड़ेगा, जिससे वह इस अधिकार का दुरुपयोग नहीं कर सकता। 3. आर्थिक सुरक्षा:→ महर का एक और प्रमुख उद्देश्य तलाक या पति की मृत्यु के बाद पत्नी को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है। यह एक प्रकार की वित्...

शुफा के अधिकार के लिए क्या औपचारिकताएँ हैं ? हक शुफा की मांग What are the formalities to create the right of pre - emption ? Who can claim the right of premption ?

शुफा के लिए औपचारिकताएँ ( Formalitics for premption ):- शुफा का अधिकार दूसरे व्यक्ति की सम्पत्ति की बिक्री के अधिकार पर हस्तक्षेप करता है । अतः हिदाया और निर्णय विधि के अनुसार यह कमजोर अधिकार है । शुफा की मुस्लिम विधि तकनीकी  विधि है और सभी औपचारिकताओं का पूर्ण होना आवश्यक है । औपचारिकताओं के पूर्ण न होने पर या दोषपूर्ण होने पर शुफा का अधिकार प्रवर्तित नहीं हो सकता है । अतः कानून  की दृष्टि से कुछ औपचारिकताओं को बाध्यकारी समझा जाता है ।  शुफा के लिए निम्न तीन माँगे की जाती हैं  ( 1 ) पहली माँग अर्थात् तलब - ए - मुबासियत ।  ( 2 ) दूसरी माँग अर्थात् तलब - ए - ईशाद ।  ( 3 ) तीसरी माँग अर्थात् तलब - ए - तायलीक या तलब - ए - युसयत ।  ( 1 ) तलव - ए - मोवासियत ( पहली माँग ) - शुफी को विक्रय का पता लगते ही तुरन्त अपना हक मांगना चाहिए परन्तु उससे पहले नहीं । इसके लिए किसी गवाह की या औपचारिकता की आवश्यकता नहीं होती । न्यायालय इस बात पर विशेष ध्यान देता है कि पहली माँग तुरन्त होनी चाहिए अन्यथा वह शुफा व चाहने की इच्छा मानी जायेगी । एक मामले में शुफी के दावे को सि...

मुस्लिम विधि के अनुसार वसीयत कौन कर सकता है? क्या धर्म त्याग किये व्यक्ति अथवा दिवालिया द्वारा की गयी वसीयत मान्य होती है? क्या वसीयत को रद्द किया जा सकता है ?

  वसीयत(will)– ' वसीयत ' शब्द की उत्पत्ति वसीया से हुई है जिसका तात्पर्य है इच्छा - पत्र । अतः जब किसी व्यक्ति द्वारा अपनी चल या अचल सम्पत्ति के बंटवारे या निपटारे की मौखिक अथवा लिखित रूप से इच्छा अभिव्यक्ति की जाय तो उसे इच्छा पत्र या वसीयत कहा जाता है । उस इच्छा - पत्र को लिखित रूप दिये जाने पर वसीयतनामा कहा जाता है । अतः यह कहा जाता है कि वसीयत एक ऐसा अभिलेख है जिसके माध्यम से कोई व्यक्ति अपनी मृत्यु के पश्चात् अपनी सम्पदा के बारे में इच्छा व्यक्त करता है कि उस सम्पत्ति का प्रबन्ध किस प्रकार किया जाय ।  फतवा - ए - आलमगीरी वसीयत की परिभाषा इस प्रकार करता है- " वसीयतकर्ता की मृत्यु हो जाने पर प्रभाव में आने वाले किसी विशेष वस्तु के मुनाफे , लाभ या वृत्ति ( Gratuity ) में सम्पत्ति के अधिकार का दान । " इस प्रकार वसीयत किसी व्यक्ति की अपनी सम्पत्ति सम्बन्धी इरादे की कानूनी घोषणा है जिसे वह अपनी मृत्यु के बाद कार्यान्वित करना चाहता है ।  भारतीय उत्तराधिकारी अधिनियम की धारा 2 के अनुसार वसीयत की निम्न परिभाषा है  " वसीयत का तात्पर्य उस घोषणा से है जिससे कि व्यक्ति अप...

मुस्लिम विधि मे मुतवल्ली कौन होते हैं और यह किसके द्वारा नियुक्त किये जाते हैं इनके क्या अधिकार होते हैं?

मुतवल्ली (mutwalli): वक्फ के प्रबंधक या अधीक्षक को मुतवल्ली कहते हैं। दूसरे शब्दों में किसी सम्पत्ति का ईश्वर के प्रति धार्मिक  और दानार्थ कार्यों के लिये समर्पित  होने पर उसकी व्यवस्था करने वाले को प्रबन्धक या मुतवल्ली ( Mutwalli ) कहा जाता है । मुतवल्ली ऐसी वक्फ सम्पत्ति का स्वामी नहीं होता बल्कि ईश्वर का ऐसा सेवक होता है जो उसके ( ईश्वर ) प्राणियों की भलाई के लिए सम्पत्ति का प्रबन्ध करता है । मुतवल्ली वक्फ सम्पत्ति का न्यायधारी ( Trustee ) भी नहीं होता । वह सम्पत्ति का मात्र अधीक्षक या प्रबन्धक ही होता है । वक्फ की सम्पत्ति के संचालन और कार्यों के लिए उसकी स्थिति और दायित्व ट्रस्टी ( Trustee ) के समान हो । वक्फ सम्पत्ति का आधार नैतिक और आध्यात्मिक होता है । अतः उसके प्रबन्धक को ठीक से ट्रस्टी भी नहीं कहा जा सकता ।  निम्नलिखित में से कोई भी मुतवल्ली हो सकता है-  ( 1 ) स्वयं वाकिफ ।  ( 2 ) वाकिफ की सन्तान और उसके उत्तराधिकारी ।  ( 3 ) कोई अन्य व्यक्ति ( जिसमें स्त्रिया ) भी शामिल है किन्तु स्त्रियाँ धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यों के उद्देश्यों के लिये मुतवल...

मुस्लिम विधि मे वक्फ क्या होता है? वक्फ की स्थापना कब की जाती है और इसका मुस्लिम धर्म मे क्या उपयोग होता है?

वक्फ : वक्फ का शाब्दिक अर्थ है निरोध या रोक या प्रतिबन्धित करना अर्थात समर्पित ,सम्पत्ति के स्वामित्व को समर्पणकर्ता से दूर करने को सर्वशक्तिमान में निरुद्ध कर देना। अबू हनीफा के अनुसार " यह किसी विशेष वस्तु को वाकिफ के स्वामित्व में रोक रखना और उसके लाभ या फलोपभोग की खैरात में गरीबों पर या दूसरे नेक प्रयोजनों से अरियत या बिना सूद के ऋण के रूप में विनियोग करना ( लगाना ) है । " इस परिभाषा में दो तथ्य निहित है -   ( 1 ) वक्फ की जाने वाली सम्पत्ति पर उसके मूल स्वामी का स्वामित्व वक्फ स्थापित हो जाने पर समाप्त हो जाता है ।   ( 2 ) उस सम्पत्ति के लाभों का उपयोग दानार्थ और पवित्र उद्देश्य के लिए किया जाता है ।     अबू हनीफा के दो शिष्य काजी अबू युसूफ और इमाम मुहम्मद ने वक्फ की परिभाषा  इस प्रकार दी है कि " वक्फ किसी विशेष वस्तु का इस रीति से विनियोग व्यक्त करता है जिससे कि वह खुदाई सम्पत्ति के नियमों के अधीन हो जाती है और उस वस्तु में वाकिफ का अधिकार समाप्त हो जाता है और उसका लाभ खुदा के जीवों तक पहुंचाता है जिससे वह अल्लाह की सम्पत्ति हो जाती है । ...