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अग्रिम जमानत याचिका का क्या अर्थ होता है ? What is the meaning of anticipatory bail petition?

Striving for Equality: The Case for a Uniform Civil Code

Types of Uniform Civil Law: If we talk about the types of Uniform Civil Law, it is divided into five types-  [a] marriage  [b] divorce  [C] Alimony  [d] Succession  [e] Adoption             The types of Uniform Civil Laws: 1. Marriage and Divorce Laws: These laws would standardize the process of marriage and divorce across all communities. This would include regulations regarding marriage ceremonies, age of marriage, conditions for divorce, property division upon divorce, etc. 2. Inheritance and Succession Laws: Uniform laws regarding inheritance and succession would govern how property and assets are distributed after a person's death. This would encompass rules related to wills, intestate succession (when there is no will), and inheritance rights of heirs. 3. Adoption Laws: Uniform adoption laws would regulate the process of adoption, including eligibility criteria for adoptive parents, procedures for adoption, rights of adopted children, and legal recognition of adopted status

Kesavananda Bharathi vs State of Kerala

The Kesavananda Bharati case, which took place in 1973, was a landmark legal battle before the Supreme Court of India. At the heart of the matter was the interpretation of Article 25(2)(b) of the Constitution, which deals with the power of the state to make laws regulating or restricting any economic, financial, political, or other secular activity that may be associated with religious practices.       The case revolved around the Kerala government's attempt to enact a law under Article 25(2)(b) that aimed to impose restrictions on the management of religious institutions, particularly those related to educational institutions. The law mandated that educational institutions should impart education in a single language, among other provisions.                Kesavananda Bharati, the head of a matha (religious institution) in Kerala, challenged the constitutional validity of the law, contending that it violated the fundamental rights guaranteed under Articles 14 (right to equality),

उच्चतम न्यायालय के सिविल तथा डांडिक मामलों में अपीलीय क्षेत्राधिकार का विस्तृत उल्लेख: Describe the appellate jurisdiction of Civil and criminal matter of Supreme Court of India

सिविल मामलों में अपीलीय अधिकारिता अनुच्छेद 133 सिविल मामलों में उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय डिक्री अंतिम आदेश के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील की व्यवस्था करता है. अनिवार्य शर्तें: - इसके लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा होना आवश्यक है - ( 1) विनिश्चय जिसके विरूद्ध अपील की जानी है भारत राज्य क्षेत्र के किसी उच्च न्यायालय का निर्णय डिक्री या अंतिम आदेश होना चाहिए.      “आदेश की अंतिमत्ता” से अभिप्राय ऐसे आदेश से है जिसमें विनिशचय के लिए पीछे कुछ भी ना बचा हो अर्थात समस्त विवादास्पद बिंदुओं को भी वी निश्चित कर दिया गया हो. ( 2) ऐसा निर्णय डिक्री या अंतिम आदेश किसी सिविल कार्रवाई में दिया गया हो.           “सिविल कार्यवाही के अंतर्गत ऐसे मामले आते हैं जिनमें सिविल अधिकारों से संबंधित कोई प्रश्न अंतर ग्रस्त हो धन की वसूली क्षतिपूर्ति प्रतिकार हैसियत की घोषणा आदि सिविल प्रकृति की कार्रवाई या है.                उच्च न्यायालय में अनुच्छेद 226 के अंतर्गत रीट पेश करना सिविल प्रक्रिया एवं कारवाही है. ( 3) इसमें विधि का सार्वजनिक महत्व का कोई सारवान प्रश्न अंतर ग्रस्त होना चा

भारत में उच्चतम न्यायालय की शक्तियां एवं कार्यों का वर्णन: Discuss the power and function of the Supreme Court of India

उच्चतम न्यायालय की शक्तियां एवं कार्य  (power and function of Supreme Court) सुप्रीम कोर्ट की निम्नलिखित शक्तियां एवं कार्य है - ( 1) न्यायालय के पदाधिकारियों और सेवकों की नियुक्ति की शक्ति है - अनुच्छेद 146 के अंतर्गत - (A) उच्चतम  न्यायालय के पदाधिकारियों और सेवकों की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके निर्देश पर कोई अन्य न्यायाधीश  करेगा किंतु राष्ट्रपति नियम बनाकर यह अपेक्षा कर सकेगा कि ऐसे नियम में निर्दिष्ट मामलों में ऐसा कोई व्यक्ति जो पहले से न्यायालय में कार्यरत ना हो न्यायालय से संबंधित किसी भी पद पर बिना संघ लोक सेवा आयोग के परामर्श के नियुक्त नहीं किया जाएगा. (B) संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के अधीन रहते हुए उच्चतम न्यायालय के पदाधिकारियों और सेवकों की सेवा शर्ते भारत के मुख्य न्यायाधीश या उसके द्वारा प्राधिकृत किसी अन्य न्यायाधीश के द्वारा बनाए गए नियमों में विहित किए गए अनुसार होंगी किंतु जहां तक यह नियम वेतन भत्तों छुट्टि यां पेंशन से संबंधित है उन्हें राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित होना चाहिए. (C) उच्चतम न्यायालय के प्रशासनिक व्यय जिसमें न्यायालय के पदा

भारतीय राज्य क्षेत्र में सर्वत्र व्यापार वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता: Freedom of trade commerce and intercourse throughout the territory of India

समस्त भारत क्षेत्र में मुक्त परिवहन एवं मालों के आगमन को कायम रखना देश की आर्थिक एकता के लिए परम आवश्यक है भारतीय संविधान में ऐसी व्यवस्था दी गई है कि जिससे सभी राज्यों के बीच स्वतंत्र वाणिज्य पनप सके अनुच्छेद 301से लेकर अनुच्छेद 307 के तहत अंतर्राज्यिक  व्यापार व वाणिज्य को स्वतंत्र बनाया गया है यह व्यवस्था आस्ट्रेलिया के संविधान की धारा 92 से ली गई है भारतीय संविधान के अनुच्छेद 301 में व्यापार वाणिज्य तथा समागम के बारे में उपबंधित  किया गया है कि इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए भारत राज्य क्षेत्र में सर्वत्र व्यापार वाणिज्य और समागम आबाध होगा.            भारतीय संविधान के अनुच्छेद 301 के अनुसार भारत राज्य क्षेत्र में सभी व्यापार वाणिज्य एवं समागम बिना किसी अवरोध के होंगे यह स्वतंत्रता केवल अंतर्राज्यिक व्यापार के लिए ही नहीं बल्कि राज्य के अंदर होने वाले वाणिज्य के लिए भी है ऐसी स्वतंत्रता संपूर्ण नहीं है अनुच्छेद 302 से 305 के तहत कुछ निबंधन लगाए जा सकते हैं किंतु यह निरबंधन केवल अनुच्छेद को विनियमित करने के लिए लगाए जा सकते हैं वाहनों के लिए लाइसेंस ट्रैफिक न

समान नागरिक संहिता क्या होती है. इसको अगर भारत में लागू किया जाए तो इसके क्या-क्या प्रभाव हो सकते हैं? Define the Uniform Civil Code?

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने देश में नागरिकों के लिए उत्तराधिकार और विरासत के लैंगिक एवं धार्मिक दृष्टि से तटस्थ आधार की मांग करने वाली एक जनहित याचिका (public Interest Litigation: PIL) पर केंद्र से उत्तर की मांग की है. इस जनहित याचिका के बारे में:-     यह विगत 3 महीनों में समान नागरिक संहिता के तहत शामिल किए जाने वाले विभिन्न विषयों में से कुछ को समाहित करने वाले मुद्दों पर दायर चौथी जनहित याचिका है.           पूर्व में तीन जनहित याचिकाएं समान दत्तक ग्रहण कानूनों ,समान विवाह विच्छेद, भरण पोषण और गुजारा भत्ता कानूनों तथा विवाह के लिए एक समान अलैंगिक रूप से निरपेक्ष न्यूनतम आयु से संबंधित मुद्दों से संबंधित  थी.  समान नागरिक संहिता के बारे में:-(ABOUT U.C.C)        समान नागरिक संहिता ऐसे एकल कानून को संदर्भित करती है जो भारत के सभी नागरिकों पर उनके व्यक्तिगत मामलों जैसे विवाह ,विवाह विच्छेद ,अभिरक्षा दत्तक ग्रहण और विरासत के संदर्भ में लागू होता है.        समान नागरिक संहिता का उद्देश्य वर्तमान में विभिन्न धार्मिक समुदायों के भीतर पारस्परिक संबंधों और संबंधित मामलों को सू