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उच्चतम न्यायालय के सिविल तथा डांडिक मामलों में अपीलीय क्षेत्राधिकार का विस्तृत उल्लेख: Describe the appellate jurisdiction of Civil and criminal matter of Supreme Court of India

सिविल मामलों में अपीलीय अधिकारिता अनुच्छेद 133 सिविल मामलों में उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय डिक्री अंतिम आदेश के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील की व्यवस्था करता है. अनिवार्य शर्तें: - इसके लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा होना आवश्यक है - ( 1) विनिश्चय जिसके विरूद्ध अपील की जानी है भारत राज्य क्षेत्र के किसी उच्च न्यायालय का निर्णय डिक्री या अंतिम आदेश होना चाहिए.      “आदेश की अंतिमत्ता” से अभिप्राय ऐसे आदेश से है जिसमें विनिशचय के लिए पीछे कुछ भी ना बचा हो अर्थात समस्त विवादास्पद बिंदुओं को भी वी निश्चित कर दिया गया हो. ( 2) ऐसा निर्णय डिक्री या अंतिम आदेश किसी सिविल कार्रवाई में दिया गया हो.           “सिविल कार्यवाही के अंतर्गत ऐसे मामले आते हैं जिनमें सिविल अधिकारों से संबंधित कोई प्रश्न अंतर ग्रस्त हो धन की वसूली क्षतिपूर्ति प्रतिकार हैसियत की घोषणा आदि सिविल प्रकृति की कार्रवाई या है.                उच्च न्यायालय में अनुच्छेद 226 के अंतर्गत रीट पेश करना सिविल प्रक्रिया एवं कारवाही है. ( 3) इसमें विधि का सार्वजनिक महत्व का कोई सारवान प्रश्न अंतर ग्रस्त होना चा

भारत में उच्चतम न्यायालय की शक्तियां एवं कार्यों का वर्णन: Discuss the power and function of the Supreme Court of India

उच्चतम न्यायालय की शक्तियां एवं कार्य  (power and function of Supreme Court) सुप्रीम कोर्ट की निम्नलिखित शक्तियां एवं कार्य है - ( 1) न्यायालय के पदाधिकारियों और सेवकों की नियुक्ति की शक्ति है - अनुच्छेद 146 के अंतर्गत - (A) उच्चतम  न्यायालय के पदाधिकारियों और सेवकों की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके निर्देश पर कोई अन्य न्यायाधीश  करेगा किंतु राष्ट्रपति नियम बनाकर यह अपेक्षा कर सकेगा कि ऐसे नियम में निर्दिष्ट मामलों में ऐसा कोई व्यक्ति जो पहले से न्यायालय में कार्यरत ना हो न्यायालय से संबंधित किसी भी पद पर बिना संघ लोक सेवा आयोग के परामर्श के नियुक्त नहीं किया जाएगा. (B) संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के अधीन रहते हुए उच्चतम न्यायालय के पदाधिकारियों और सेवकों की सेवा शर्ते भारत के मुख्य न्यायाधीश या उसके द्वारा प्राधिकृत किसी अन्य न्यायाधीश के द्वारा बनाए गए नियमों में विहित किए गए अनुसार होंगी किंतु जहां तक यह नियम वेतन भत्तों छुट्टि यां पेंशन से संबंधित है उन्हें राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित होना चाहिए. (C) उच्चतम न्यायालय के प्रशासनिक व्यय जिसमें न्यायालय के पदा

भारतीय राज्य क्षेत्र में सर्वत्र व्यापार वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता: Freedom of trade commerce and intercourse throughout the territory of India

समस्त भारत क्षेत्र में मुक्त परिवहन एवं मालों के आगमन को कायम रखना देश की आर्थिक एकता के लिए परम आवश्यक है भारतीय संविधान में ऐसी व्यवस्था दी गई है कि जिससे सभी राज्यों के बीच स्वतंत्र वाणिज्य पनप सके अनुच्छेद 301से लेकर अनुच्छेद 307 के तहत अंतर्राज्यिक  व्यापार व वाणिज्य को स्वतंत्र बनाया गया है यह व्यवस्था आस्ट्रेलिया के संविधान की धारा 92 से ली गई है भारतीय संविधान के अनुच्छेद 301 में व्यापार वाणिज्य तथा समागम के बारे में उपबंधित  किया गया है कि इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए भारत राज्य क्षेत्र में सर्वत्र व्यापार वाणिज्य और समागम आबाध होगा.            भारतीय संविधान के अनुच्छेद 301 के अनुसार भारत राज्य क्षेत्र में सभी व्यापार वाणिज्य एवं समागम बिना किसी अवरोध के होंगे यह स्वतंत्रता केवल अंतर्राज्यिक व्यापार के लिए ही नहीं बल्कि राज्य के अंदर होने वाले वाणिज्य के लिए भी है ऐसी स्वतंत्रता संपूर्ण नहीं है अनुच्छेद 302 से 305 के तहत कुछ निबंधन लगाए जा सकते हैं किंतु यह निरबंधन केवल अनुच्छेद को विनियमित करने के लिए लगाए जा सकते हैं वाहनों के लिए लाइसेंस ट्रैफिक न

समान नागरिक संहिता क्या होती है. इसको अगर भारत में लागू किया जाए तो इसके क्या-क्या प्रभाव हो सकते हैं? Define the Uniform Civil Code?

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने देश में नागरिकों के लिए उत्तराधिकार और विरासत के लैंगिक एवं धार्मिक दृष्टि से तटस्थ आधार की मांग करने वाली एक जनहित याचिका (public Interest Litigation: PIL) पर केंद्र से उत्तर की मांग की है. इस जनहित याचिका के बारे में:-     यह विगत 3 महीनों में समान नागरिक संहिता के तहत शामिल किए जाने वाले विभिन्न विषयों में से कुछ को समाहित करने वाले मुद्दों पर दायर चौथी जनहित याचिका है.           पूर्व में तीन जनहित याचिकाएं समान दत्तक ग्रहण कानूनों ,समान विवाह विच्छेद, भरण पोषण और गुजारा भत्ता कानूनों तथा विवाह के लिए एक समान अलैंगिक रूप से निरपेक्ष न्यूनतम आयु से संबंधित मुद्दों से संबंधित  थी.  समान नागरिक संहिता के बारे में:-(ABOUT U.C.C)        समान नागरिक संहिता ऐसे एकल कानून को संदर्भित करती है जो भारत के सभी नागरिकों पर उनके व्यक्तिगत मामलों जैसे विवाह ,विवाह विच्छेद ,अभिरक्षा दत्तक ग्रहण और विरासत के संदर्भ में लागू होता है.        समान नागरिक संहिता का उद्देश्य वर्तमान में विभिन्न धार्मिक समुदायों के भीतर पारस्परिक संबंधों और संबंधित मामलों को सू

भारत में राजद्रोह कानून (sedition law in India)

सुर्खियों में क्यों? हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने राजद्रोह से संबंधित भारतीय दंड संहिता (indian Penal Code: IPC) की धारा 124A की संवैधानिक वैधता के पुनर परीक्षण की याचिका को अस्वीकार कर दिया है. पृष्ठभूमि इस कानून का मसौदा मूल रूप से वर्ष 1837 में ब्रिटिश इतिहासकार और राजनीतिज्ञ थामस बैबिंगटन मैकाले( लॉर्ड मैकाले के नाम से विख्यात) द्वारा तैयार किया गया था हालांकि वर्ष 1860भारतीय दंड संहिता( आईपीसी) के क्रियान्वयन के दौरान इसे आईपीसी में शामिल नहीं किया गया था. वर्ष 1870 में भारतीय दंड संहिता में संशोधन कर धारा 124A को समाविष्ट किया गया था यह संशोधन सर जेम्स स्टीफन द्वारा प्रस्तावित किया गया था जिन्होंने भारत में स्वतंत्रता के विचारों का दमन करने के लिए एक विशिष्ट कानून की आवश्यकता पर बल दिया था. ध्यान देने वाली बात यह है कि यह कानून उस समय उत्पन्न किसी भी प्रकार के असंतोष को दबाने के लिए अधिनियमित किए गए विभिन्न कठोर कानूनों में से एक था. भारत में राष्ट्रद्रोह का पहला मामला वर्ष 1891 में दर्ज किया गया था जब समाचार पत्र बंगवासी के संपादक जोगेंद्र चंद्र बोस पर एज ऑफ कंसेंट

राज्य के विधान मंडल एवं उसके सदस्यों की शक्तियां तथा विशेषाधिकार: Describe the power and privilege rights of state and their members

विधायिका के सदस्यों का मुख्य कार्य राज्य की जनता की समस्याओं को सदन के समक्ष रखना उन पर चर्चाएं करना संबंधित मंत्रियों अधिकारियों से प्रश्न करना उनका समाधान एवं तक संबंधी समुचित विधि का निर्माण करनाहै कार्य इतना आसान नहीं है जितना लगता है इसके लिए सदस्यों में निरंतर निर्भीकता एवं निष्पक्षता का होना आवश्यक है। यही कारण है कि विधान मंडल के सदस्यों को विधानमंडल के साधनों की चारदीवारी में  विशेष अधिकार प्रदान किए गए हैं जो अधिकार उन्हें सदन की चारदीवारी में है वह उन्हें सदन के बाहर को उपबंध  नहीं है यही कारण है कि हम उन्हें अधिकार नहीं विशेषाधिकार कहते हैं। अनुच्छेद 194 में इन्हीं विशेषाधिकार और शक्तियों एवं उन्मुक्त क्यों का उल्लेख किया गया है. ( 1)वाक् स्वातन्त्र इसे हम भाषण अथवा बोलने की स्वतंत्रता भी कह सकते हैं विधान मंडल के सदस्यों को अपने मन की बात सदन में रखने का पूर्ण अधिकार है वह जन समस्याओं को निर्भीकता से सदन में रख सकते हैं एवं संबंधित मंत्रियों एवं अधिकारियों से इस संबंध में प्रश्न कर सकते हैं उनका मुंह बंद नहीं किया जा सकता है उन्हें वॉक स्वतंत्र पर जो कुछ भी प्

धन विधेयक क्या है? जिस प्रक्रिया से संसद धन विधेयक को पास करती है उसकी विवेचना कीजिए? यह साधारण विधेयक से कैसे भिन्न है? What is money bill? Describe the procedure or by the which Parliament passes money bill how does it differ from ordinary bill?

अनुच्छेद 110 (1) के प्रावधानों के अनुसार ऐसा विधेयक जिसको निम्नलिखित के लिए लाया गया हो धन विधेयक कहलाता है. ( 1) किसी कर को लगाना समाप्त करना उसमें छूट  देना या परिवर्तन करना या  विनियमित करना (2) भारत सरकार के धन उधार लेने या कोई गारंटी देने का विनियमन या भारत सरकार द्वारा स्वीकार किए गए  या किए जाने वाले किसी भी वित्तीय आभार के संबंध में कानून का संशोधन (3) भारत की आकस्मिक निधि (contingency fund) की  या संचित निधि (consolidated fund) की अभिरक्षा या ऐसी किसी निधि से रुपयों का भुगतान करना या उसमें रुपए निकालना (4) भारत की संचित निधि में से धन का विनियोग (appropriation) ( 5) किसी व्यय को भारत की संचित निधि का व्यय होना घोषित करना या ऐसे किसी व्यय की रकम को बढ़ाना (6) भारत की संचित निधि या भारत के लोक लेखा (public account) मद्दे धन प्राप्त करना या ऐसे धन की अभिरक्षा या जारी करना संघ के या किसी राज्य के लेखाओ का ऑडिट (7) उपयुक्त बातों में से किसी भी बात का कोई अनुषांगिक बात.              किसी विधायक को केवल इस कारण से धन विधेयक नहीं माना जाएगा कि वह जुर्माना या अन्य धन संबंधी

संघात्मक संविधान के प्रमुख तत्व: - main elements of Federal constitution

न्यायालय का प्राधिकार  परिषदीय राज्य में संविधान की विधिक सर्वोच्चता परिषद की प्रणाली के लिए आवश्यक है सरकार की समकक्ष शाखाओं के बीच और परी संघीय शासन और संघटक राज्यों के बीच शक्तियों के विभाजन को बनाए रखना अपरिहार्य है। यह सुनिश्चित करने के लिए न्यायालय में संविधान के निर्वाचन की सर्वोच्च शक्ति निहित होती है। न्यायालय को यह शक्ति प्राप्त होती है कि वह परी संघीय और राज्य सरकारों द्वारा किए गए ऐसे कार्यों को शून्य  घोषित कर दे जो संविधान के उपबंध का उल्लंघन करते हैं यह कार्य भारत में उच्चतम न्यायालय को सौंपा गया है।          अत हमारे संविधान द्वारा जिस राजनीतिक प्रणाली को अपनाया गया है उसमें परी संघीय राज व्यवस्था के सभी तत्व विद्यमान है अतः संविधान परिसंघात्मक है। ह्हीयर और जेनिंग्स जैसे कुछ विदेशी संविधानवेत्ताओ मे हमारे संविधान को संघात्मक मानने में आपत्ति की है। प्रोफेसर हीयर के अनुसार संघात्मक संविधान में कुछ अपवाद हो सकते हैं किंतु उसमें परिसंघात्मक तत्वों की प्रधानता होती है। यदि किसी संविधान में ऐसे तत्व हैं जो संघात्मक तत्व को गॉड बना देते हैं तो वह संविधान पर संघात

भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं (silent feature of Indian Constitution)

  विश्व का लिखित संविधान: विश्व के किसी भी देश का संविधान भारत के संविधान जैसा विस्तृत नहीं है सर आई वर जेनिंग्स के मतानुसार भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा एवं विस्तृत संविधान है किंतु हमारे संविधान निर्माताओं को अपने राष्ट्र के की हालातों को ध्यान में रखकर ही इसका निर्माण करना पड़ा था उस वक्त देश के सम्मुख विभिन्न भौगोलिक राजनीतिक सामाजिक एवं ऐतिहासिक परिस्थितियां विद्यमान थी हमारे संविधान को विस्तृत एवं बृहद बनाने की में सबसे बड़ा अधिक योगदान है वह यह है कि इस संविधान में केंद्रीय सरकार के संगठन एवं संरचना के लिए ही उप बंद नहीं किया गया है बल्कि राज्यों की सरकारों के संगठन एवं संरचना के लिए प्रबंध किया गया है भारतीय संविधान राष्ट्र की सर्वोच्च विधि है संविधान की विशालता को लेकर भले ही कुछ आलोचक इसे वकीलों का स्वर्ग कहे परंतु राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक यही चाहता है कि उसमें हर प्रकार की ऐसी नीति संबंधी बातों की व्याख्या की जानी चाहिए जिससे वह यह महसूस कर सके कि भारत में सच अर्थों में प्रजातंत्र विद्यमान है. संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक पंथनिरपेक्ष समाजवादी गणराज्य की स्थाप