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Showing posts from February, 2021

अग्रिम जमानत याचिका का क्या अर्थ होता है ? What is the meaning of anticipatory bail petition?

उत्तर प्रदेश जमीदार एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950 के अंतर्गत जमीदारों के अधिकार जो शेष रहे (the rights of jamidar that remains under up zamindari abolition and land Reform Act 1950

काश्तकारी अधिकार: - जमीदारों की जमीदारी का उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम में उन्मूलन कर दिया लेकिन उनकी काश्तकारी उनके पास ही रही प्रत्येक जमीदारी अपनी भाग खूनी खुदकाश्त भूमिका एवं बिना उठाई सिर्फ खून का भूमिधर बन गया तथा वे उसी के पास रह गई फर्क सिर्फ इतना पढ़ा कि अभी तक वह भूमियों का जोरदार भी था अब वह सिर्फ एक काश्तकार बन गया. ( 2) चालू खान को जारी रखने का अधिकार: - मिलन के पूर्व जमीदारी संपत्ति में कोई खान चालू हालत में थी एवं मध्यवर्ती के द्वारा सीधे चलाई जा रही हो तो जमीदारी समाप्ति के पश्चात भी जमीदार को हक होगा कि वह खान को चलाता रहे यह सरकार का पत्तेदार हो जाएगा पट्टे की शर्त पारस्परिक संविदा से निश्चित की जाएगी अगर जमीदारी तथा सरकार में कोई बात तय ना हो सके तो खान न्यायाधिकरण द्वारा तय किया जाएगा। ( 3) सुखाधिकार एवं ऐसे ही अन्य अधिकार: -         अगर वह किसी भूमि  का भूमिधर सिरदार या आसामी हो तो भूमि के और अधिक लाभप्रद उपयोग के लिए किसी पूर्व सुखाधिकार या तत्सम अधिकार का उपभोग करता रहेगा                 इस अधिनियम को बनाते समय विधानमंडल का उद्देश्य जमीदारी

मुवक्किल के प्रति अधिवक्ता के कर्तव्य और दायित्व: Duties and obligation of advocate towards his clients

नियम 11से 33 अधिवक्ता के मुवक्किल के प्रति कर्तव्यों के संबंध में प्रावधान करते हैं यह नियम निम्नलिखित हैं -    ( 1) नियम11   के अनुसार अधिवक्ता अपनी स्थिति और वाद की प्रकृति के अनुसार मेहनताना लेकर मुवक्किल या ब्रीफ उसी स्थिति में स्वीकार करने के लिए बाध्य है जबकि वह पक्षकार ऐसे मामले से संबंधित है जो उच्च न्यायालय अधिकरण या अन्य प्राधिकारी में है जिसमें प्रेक्टिस करने का प्रस्ताव करता है पक्षसार से तात्पर्य ऐसे पक्ष सर से या संक्षिप्त नाम से है जो मुवक्किल अधिवक्ता को इस निमित्त देता है कि वह उसके मामले में पैरवी कर सके नियम यह भी स्पष्ट करता है कि कतिपय विशिष्ट परिस्थितियों में अधिवक्ता पक्षसार लेने से मना कर सकता है.         एसजे चौधरी बनाम स्टेट के बाद में उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि यदि कोई अधिवक्ता किसी आपराधिक वाद का पक्ष सार लेता है तो उसे उस मामले की प्रतिदिन देखभाल करनी चाहिए और आवश्यकता होने पर उपस्थित होना चाहिए और युक्तियुक्त ध्यान देना चाहिए यदि अधिवक्ता उचित देखरेख नहीं करता है और आवश्यकता होने पर उपस्थित नहीं होता है तो वह व्यवसायिक और अवचार का

पूर्व सुनवाई का अधिकार: Right of Preaudience

अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 23 पूर्व सुनवाई के अधिकार के संबंध में निम्नलिखित नियम और उपबंधित करती है - ( 1) भारत के महान्यायवादी (attorney General of India) की सुनवाई अन्य सभी अधिवक्ताओं (advocates) से पूर्व होगी. ( 2) भारत के  महा सॉली सीटर जनरल (solicitor General of India) की सुनवाई उपरोक्त महान्यायवादी के पश्चात परंतु अन्य सभी अधिवक्ताओं से पूर्व होगी. ( 3) भारत के अपर महासालीसीटर( upar Solicitor General) की सुनवाई उप धारा (1) उपधारा (2)के अधीन रहते हुए अन्य सभी अधिवक्ताओं से पूर्व होगी।          भारत के द्वितीय महासलीसीटर( second upper Solicitor General) की सुनवाई उप धारा (1) उप धारा (2) उप धारा (3) के अधीन रहते हुए अन्य सभी अधिवक्ताओं के पूर्व होगी. ( 4) किसी राज्य के महाधिवक्ता (advocate general) की सुनवाई उप धारा (1)  उपधारा (2) उपधारा (3) तथा उप धारा(3क) के अधीन रहते हुए सभी अधिवक्ताओं के पूर्व होगी और महाधिवक्ता में परस्पर सुनवाई  का आधिकार उनकी अपनी वरिष्ठता के अनुसार आवधारित किया जाएगा। ( 5) वरिष्ठ अधिवक्ताओं की सुनवाई अन्य अधिवक्ताओं के पूर्व होगी. ( 6) वरिष्

एक अधिवक्ता के न्यायालय के प्रति कर्तव्य: Duties of advocate towards court

न्यायालय के प्रति अधिवक्ता के कर्तव्य: - अधिवक्ताओं का व्यवसाय कर्तव्य परायणता व निष्ठा का माना गया है इसलिए इस व्यवसाय में वही व्यक्ति सफल हो सकता है जो अपने कर्तव्य के प्रति समुचित रूप से जागरूक व समर्पित है अधिवक्ताओं के निम्नलिखित कर्तव्य होते हैं - Duties of an advocate towards the court: - The business of advocates has been considered to be duty-oriented and loyalty, therefore only a person who is properly aware and dedicated towards his duty can be successful in this business. Advocates have the following duties - (1) An advocate should behave with dignity and respect while presenting his case and performing all other functions of the court. The rule also makes it clear that an advocate will not be a slave if there is a reasonable basis for a serious complaint against a judicial officer.  Then it is the right and duty of the advocate to present the complaint before the appropriate authority.  (2) The advocate shall adopt an attitude of respect towards the court as t

व्यवसायिक आचार अधिवक्ता की जवाबदेही एवं बार बेंच संबंध: Professional ethics accountability of lawyers and bar bench relation

आज विधि का व्यवसाय अधिवक्ताओं के लिए जीवन यापन का माध्यम है अन्य व्यवसायों की भांति या व्यवसाय भी कार्य कर रहा है प्रत्येक व्यवसाय के अपने-अपने मापदंड होते हैं प्रत्येक प्रत्येक व्यवसाय के अपने अलग-अलग स्वरूप होते हैं. ठीक उसी प्रकार विधि व्यवसाय के भी अपने मापदंड है . विधि व्यवसाय का संबंध अधिवक्ता के जीवन यापन से इसलिए आर्थिक महत्व का इससे जोड़ना अनिवार्य है. आज अन्य व्यवसाय की तरह विधि व्यवसाय में भी पतन हुआ है आज के दौर में कोई भी व्यवसाय आदर्श नहीं रह गया है. विधि व्यवसाय में भी आदर्श की कमी आई है यदि आज हम विधि व्यवसाय का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि यह व्यवसाय अन्य व्यवसाय की अपेक्षा अधिक महत्व का है इसका महत्व तब और बढ़ जाता है जब यह व्यवसाय उस देश में कार्य कर रहा हूं जिस देश में विधि का शासन हो. विधि का व्यवसाय और भी महत्व का होता है जबकि देश का प्रशासन लिखित संविधान ओं के अंतर्गत कार्य कर रहा हो. विधि का व्यवसाय लिखित संविधान के अंतर्गत जहां विधि का शासन है अन्य सभी व्यवसाय को पीछे छोड़ देता है परंतु भारत में ऐसा नहीं हो सकता है इसका मूल कारण है व्यवसायिक नीति का अभाव। अधिवक्त

What do you mean by advocate ?

अधिवक्ता शब्द से अभिप्राय (meaning of  advocate) : अधिवक्ता से अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से  है जो किसी अन्य व्यक्ति की ओर से वक्तव्य देता है अथवा बोलता है अथवा पैरवी करता है अन्य व्यक्ति की ओर से पैरवी करने हेतु अधिकृत व्यक्ति को अधिवक्ता कहा जाता है न्यायालय में पक्षकारों की ओर से पैरवी अधिवक्ताओं द्वारा की जाती है.              अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 2 (1)a अधिवक्ता की परिभाषा इस प्रकार दी है अधिवक्ता से अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से है जिसका नाम इस अधिनियम के उप बंधुओं के अधीन अधिवक्ता नामावली में प्रविष्ट है. धारा 2(1)(झ) के अंतर्गत विधि व्यवसाय की परिभाषा दी गई है इसके अनुसार विधि व्यवसाई से अभिप्राय उच्च न्यायालय के किसी अधिवक्ता एवं वकील तथा प्लीडर मुख्तार अथवा राजस्व अभिकर्ता से है।              अधिवक्ता अपने परिवार की ओर से उसके बच्चों को सर्वोत्तम तथा अत्यंत प्रभावी ढंग से निष्पक्ष न्यायालय या अभिकरण के समक्ष प्रस्तुत करता है विवाद से संबंधित समस्त तथ्यात्मक वह भी देख सामग्री को एकत्रित करके न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करता है जिसके आधार पर न्यायालय इस मामले को निर्मि

एक आदर्श अधिवक्ता के गुण: The qualities of Ideal lawyer

विधि व्यवसाय अर्थात वकालत का व्यवसाय एक बौद्धिक एवं नेता व्यवसाय माना जाता है. न्याय प्रशासन में अधिवक्ताओं का महत्वपूर्ण योगदान रहता है लेकिन यह तभी संभव है जब कि अधिवक्ता अपने व्यवसाय में सफल रहे इस व्यवसाय में सफलता के लिए अधिवक्ता का सभी दृष्टि से कुशल एवं निपुण होना आवश्यक है. ( 1) ईमानदारी (honesty): - अधिवक्ता का पहला गुण यह है कि वह अपने व्यवसाय के प्रति पूर्ण रूप से ईमानदार रहे ईमानदारी केवल व्यवसाय के प्रति नहीं वरन न्यायालयों  तथा पक्षकारों के प्रति भी होना आवश्यक है। ( 2) साहस (Courage): - अधिवक्ताओं को न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अदम्य साहस होना चाहिए वह अपने पक्ष को निडरता एवं निर्भीकता से प्रस्तुत करें साहसी अधिवक्ता ही विधि व्यवसाय में सफलता की सीढ़ियां तय कर सकता है। ( 3) परिश्रम (Deligence): - अधिवक्ता को अपने मामले के संबंध में बहुत परिश्रम करना पड़ता है वह जितना अधिक परिश्रम करेगा उसे उतना अधिक सफलता प्राप्त होगी विधि व्यवसाय में अधिवक्ताओं को वाद तथा परिवाद तैयार करने से लेकर निर्णय तक अनेक स्तरों से गुजर ना होता है हर स्तर पर उसके ज्ञ

मजदूरी अधिनियम payment of Wage act

श्रमिकों के लिए न केवल मजदूरी की मात्रा में होती है बल्कि मजदूरी की अदायगी के तरीके भुगतान का अंतराल कटौती आदि से संबंधित बातें भी महत्वपूर्ण होती हैं भारतवर्ष में कामगारों से संबंधित संविधान का अस्तित्व 1996 तक नहीं था.1925 में सर्वप्रथम एक गैर सरकारी विधेयक प्रस्तुत किया गया जो बाद में वापस ले लिया गया. परिणाम स्वरूप मजदूरी भुगतान की कोई तिथि निश्चित नहीं थी और नियोजक अपनी इच्छा से लंबी अवधि के बीत जाने के बाद भुगतान करते थे. मनमाने ढंग से कठौतिया भी करते थ कटौती  के परिणाम स्वरूप मजदूरों े को कभी-कभी पूरी राशि से भी हाथ धोना पड़ता था. इन समस्याओं के निदान के लिए शाही श्रम आयोग की रचना की गई आयोग की संतुष्टि के पश्चात आयोग की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने मजदूरी भुगतान अधिनियम बनाया. मजदूरी भुगतान का मुख्य उद्देश्य - ( 1) मजदूरी के भुगतान की नियमित व्यवस्था करना. ( 2) वैद्य मुद्रा में मजदूरी भुगतान की व्यवस्था करना ( 3) मजदूरी से अनधिकृत कटौती यों को रोकना ( 4) मजदूरी भुगतान से संबंध अना चारों के विरुद्ध श्रमिकों को राहत दिलाना था.              मजदूरी भुग

मजदूरी से आशय (Meaning of wages)

मजदूरी से सभी प्रकार का पारिश्रमिक प्राप्त होता जाएगा वेतन के रूप में हो भत्ते के रूप में हो अन्यथा किसी भी रूप में व्यक्ति हो या इस रूप में अभिव्यक्त किए जाने के योग्य हो और जिसका की भुगतान यदि नियोजन की शर्तों प्रत्यक्ष या विशेष रूप से पूरी कर दी जाती हो तो एक ऐसे व्यक्ति को दे है जो कि उस नियोजन के संबंध में नियोजित है या नियोजन के संबंध में वह कोई कार्य करता है मजदूरी में निम्नलिखित सम्मिलित है - (a) कोई पारिश्रमिक जोकि पक्षकारों के बीच किसी पंचाट या समझौते के अंतर्गत या न्यायालय के आदेश के अंतर्गत दे होगा. (b) कोई ऐसा पारिश्रमिक जिसके प्रति कि नियोजित व्यक्ति किसी अधिकारिक काम या छुट्टियां या छुट्टी की किसी अवधि के संबंध में देय होगा। (c) कोई अतिरिक्त पारिश्रमिक जोकि नियोजन की शर्तों के अधीन देर है चाहे उसे बोनस या किसी अन्य नाम से पुकारा जाता हूं मजदूरी की परिभाषा केवल ऐसे पारिश्रमिक तक सीमित नहीं है जो कि अनुबंध या संविदा के अधीन दे हो. संशोधित परिभाषा सभी प्रकार के पारिश्रमिक पर लागू होगी चाहे वह किसी संविदा द्वारा उत्पन्न हो या पंचाट समझौते या किसी संविदा के अधीन उ

कर दायित्व पर निवास की स्थिति: Impacts of it on residential status

कर दायित्व का आशय है कर की गणना अथवा कर की राशि से नहीं बल्कि उस कुल आय से है जिस पर करदाता आयकर देने को बाध्य है एक करदाता को अनेक प्रकार की आय प्राप्त होती है कुछ तो भारत में प्राप्त अथवा अर्जित होती हैं कुछ भारत के बाहर प्राप्त अथवा अर्जित होती है एक करदाता काकर दायित्व आए के अर्जित होने या आए के प्राप्त होने के आधार पर निर्धारित किया जाता है इसके अंतर्गत यह अध्ययन किया जाता है कि करदाता को किन-किन आयो पर आयकर देना है यदि करदाता कर का दायित्व होता है इसे ही कर का भार या कुल आय का क्षेत्र कहते हैं. कर दायित्व पर निवास की स्थिति का प्रभाव: Impact of residential  status on tax liability किसी भी करदाता का दायित्व उसके निवास स्थान के आधार पर निश्चित किया जाता है आयकर अधिनियम की धारा 5 के अंतर्गत कर दायित्व पर निवासी स्थिति के प्रभाव इस प्रकार हैं - ( 1) साधारण निवासी पर करभर: एक निवासी करदाता की कुल आय में निम्न प्रकार की आय शामिल है कि जाती है         गत वर्ष में उसे भारत में प्राप्त हुई हो अथवा प्राप्त हुई समझी जाए चाहे भले ही कहीं भी उपार्जित या उदित हुई हो.              

आयकर अधिनियम 1961 के निवासियों अनिवासियों साधारण निवासी resident non resident and non ordinary resident in Income Tax Act 1961

भारत में निवासी धारा 6 (2) के अनुसार एक हिंदू अविभाजित परिवार भारत का अनिवासी होगा अगर गत वर्ष में उसका संपूर्ण नियंत्रण तथा प्रबंधन भारत के बाहर से होता है. असाधारण निवासी एक हिंदू अविभाजित परिवार साधारण निवासी होगा अगर उसका करता निम्नलिखित शर्तों (condition) को पूरा नहीं करता है             वह गत वर्ष से तुरंत पूर्व के 10 गत वर्षों में कम से कम 2 साल भारत का निवासी रहा हो               वह गत वर्ष से पहले के 7 सालों में कम से कम 730 दिन भारत में रहा हो. कर भार की गणना (calculation of incidence of tax)           किसी कर दाता के कर भार की गणना के लिए उसकी निवास स्थिति तथा उसके द्वारा अर्जित की गई आए को ध्यान में रखा जाता है आयकर अधिनियम की धारा 5 के विभिन्न उपकरणों में कर भार की गणना से संबंधित विधि का उपबन्धित किया गया है कर भार का निर्धारण निम्न देशों में अलग अलग किया जाता है. ( 1) साधारण निवासी के संदर्भ में आयकर अधिनियम की धारा 5 (1) के उप बंधुओं के अनुसार एक निवासी तथा साधारण निवासी कि गत वर्ष में समस्त संसाधनों से कमाई गई वह आयकर भार के लिए शामिल की जाती है