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एक अधिवक्ता के न्यायालय के प्रति कर्तव्य: Duties of advocate towards court

न्यायालय के प्रति अधिवक्ता के कर्तव्य: - अधिवक्ताओं का व्यवसाय कर्तव्य परायणता व निष्ठा का माना गया है इसलिए इस व्यवसाय में वही व्यक्ति सफल हो सकता है जो अपने कर्तव्य के प्रति समुचित रूप से जागरूक व समर्पित है अधिवक्ताओं के निम्नलिखित कर्तव्य होते हैं -

Duties of an advocate towards the court: - The business of advocates has been considered to be duty-oriented and loyalty, therefore only a person who is properly aware and dedicated towards his duty can be successful in this business. Advocates have the following duties -


(1) An advocate should behave with dignity and respect while presenting his case and performing all other functions of the court. The rule also makes it clear that an advocate will not be a slave if there is a reasonable basis for a serious complaint against a judicial officer.  Then it is the right and duty of the advocate to present the complaint before the appropriate authority.


 (2) The advocate shall adopt an attitude of respect towards the court as the dignity of the judicial officers would at least pose a serious threat to the existence of an independent community.


 (3) No advocate shall influence the decision of the court by using illegal or unfair means.


 (4) The advocate will prevent his client from doing wrong and inappropriate acts, if the client decides to do such inappropriate act, then the advocate will not represent him.  He will not be aggressive during speech and will not use angry language during debate.

( 1) अपने वाद को प्रस्तुत करने एवं न्यायालय के समस्त अन्य कार्य करते समय अधिवक्ता को मर्यादा और सम्मान के साथ आचरण करना चाहिए नियम यह भी स्पष्ट कर देता है कि अधिवक्ता दास नहीं होगा यदि किसी न्यायिक अधिकारी के विरुद्ध गंभीर शिकायत का उचित आधार है तब अधिवक्ता का यह अधिकार व कर्तव्य है कि वह उचित प्राधिकारी के समक्ष शिकायत प्रस्तुत करें.

( 2) अधिवक्ता न्यायालय के प्रति आदर की दृष्टि कोण अपना आएगा क्योंकि न्यायिक अधिकारियों की मर्यादा को न्यूनतम ना स्वतंत्र समुदाय के अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा होगा.

( 3) कोई भी अधिवक्ता गैरकानूनी या अनुचित साधनों का प्रयोग करके न्यायालय के निर्णय को प्रभावित नहीं करेगा.

( 4) अधिवक्ता अपने मुवक्किल को गलत और अनुचित कार्य करने से रोकेगा जो मुवक्किल ऐसी अनुचित कार्य करने की हट करता है तो उसका प्रतिनिधित्व अधिवक्ता नहीं करेगा अधिवक्ता अपने मुवक्किल का प्रवक्ता नहीं और पत्राचार में स्वयं अपना निर्णय लेगा तथा अपने विवेक से कार्य करेगा अभी वचन के दौरान कटुभासी आक्रमक नहीं करेगा तथा बहस के दौरान क्रोध भरी भाषा का प्रयोग नहीं करेगा.

( 5) अधिवक्ता सदैव पोशाक में ही न्यायालय में उपस्थित होगा और उसकी दिखावटी उपस्थित होने योग्य होगी.

( 6) अधिवक्ता अधिनियम की धारा 30 में उल्लेखित किसी न्यायालय में प्राधिकारी अथवा अधिकरण के समक्ष उस स्थिति में उपस्थित कार्य अभिवचन अथवा प्रैक्टिस नहीं कर सकेगा जबकि उसका एकाकी सदस्य या किसी सदस्य के साथ पिता दादा पुत्र प्रपत्र चाचा भतीजा भतीजी सास-ससुर पति-पत्नी मां बहन भाभी पुत्रवधू आदि का संबंध है.

( 7) कोई भी अधिवक्ता न्यायालय में और न्यायालय के अतिरिक्त ऐसे समारोहों में वह अवसरों पर तथा इसे स्थानों पर जहां भारतीय विधिक परिषद न्यायालय भी हितकर के अतिरिक्त अन्य कहीं भी पट्टियां अथवा गाऊन नहीं पहने गा

( 8) यदि कोई अधिवक्ता किसी संगठन संस्था समाज अथवा निगम की कार्यकारिणी समिति का सदस्य है तो वह ऐसे संगठन संस्था समाज अथवा निगम के पक्ष या विरोध में किसी न्यायालय अथवा अधिकरण अथवा अन्य अधिकारी के समक्ष उपस्थित नहीं होगा कार्यकारिणी समिति के अंतर्गत व समिति अथवा व्यक्तियों का निकाय सम्मिलित है जिसमें संगठन संस्था समाज या निगम के कार्य कलाप का प्रबंधन हित है यह उल्लेखनीय है कि यह नियम न्याय मित्र के रुप में उपस्थित होने वाले सदस्य के संबंध में लागू नहीं होगा इसके साथ ही विधिक परिषद में थी सोसायटी अथवा विधिक संगम की ओर से निशुल्क उपस्थित होने वाले सदस्य के संबंध में लागू नहीं होगा.


( 9) किसी अधिवक्ता को किसी ऐसे मामले में जिसमें वह स्वयं आर्थिक रूप से हित बंद है कार्य अथवा अभिवचन नहीं करना चाहिए जैसे यदि दिवालियापन से संबंधित याचिका है और अधिवक्ता स्वयं दिवालिया व्यक्ति का लेनदार है तो उसे ऐसी याचिका के संबंध में कार्य नहीं करना चाहिए.


          इस प्रकार अधिवक्ता के आचरण और शिष्टाचार के लिए व्यापक उपबंध बनाए गए हैं नियम एक वाद दो यह उपबंध  करता है कि अधिवक्ता अपने मुवक्किल के वाद को भाव रहित होकर प्रस्तुत करें उचित आधार होने पर न्यायिक अधिकारी के विरूद्ध शिकायत करें.

                                परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि अधिवक्ता न्यायालय की अवमानना करे उसे सदैव न्यायालय का सम्मान करना चाहिए उसे विधिक व्यवसाय की मर्यादा के साथ ही न्यायालय की मर्यादा भी बनाए रखनी चाहिए.

(5) The advocate shall always appear in the court in proper dress and his appearance shall be presentable.


 (6) An advocate shall not appear before any court, authority or tribunal mentioned in Section 30 of the Act, plead or practice in that case, when his sole member or with any member, father, grandfather, son, uncle, nephew, niece, mother-in-law, father-in-law, husband-  There is relation of wife, mother, sister-in-law, daughter-in-law etc.


 (7) No advocate shall wear bandages or gowns in the Court and on such occasions and places other than the Court, except in the interest of the Bar Council of India.


 (8) If an advocate is a member of the executive committee of any organization, institution, society or corporation, then he shall not appear before any court or tribunal or other officer in favor of or against such organization, institution, society or corporation.  It includes a body of persons in which the organization has interest in managing the affairs of the society or corporation. It is to be noted that this rule will not apply in relation to a member appearing as an amicus curiae, as well as a society or a legal association in the legal council.  shall not be applicable in respect of a member appearing on behalf of



 (9) An advocate shall not act or plead in any matter in which he is pecuniarily interested, such as if there is a petition relating to bankruptcy and the advocate himself is a creditor of the insolvent person, he shall not act in connection with such petition.  Needed.



 In this way, comprehensive provisions have been made for the conduct and etiquette of the advocate. Rule one litigant two, it provides that the advocate should present his client's case without emotion, complain against the judicial officer on proper grounds.


 But this does not mean that the advocate should disrespect the court, he should always respect the court, he should maintain the dignity of the court along with the dignity of the legal profession.

              ललित मोहन बनाम एडवोकेट जनरल के मामले में अधिवक्ता को मुंसिफ के विरुद्ध पक्षपात का आरोप लगाया और मुंशी ने अपने आदेश में किसी सिद्धांत का अनुसरण नहीं किया अधिवक्ता को व्यवसायिक और 4 का दोषी ठहराया गया.

         नियम 3 और 4 अधिवक्ता से अपेक्षा करते हैं कि वह अपने पक्ष में निर्णय हेतु अवैध और अनुचित साधनों का प्रयोग ना करें स्वच्छ न्यायिक प्रशासन में अधिवक्ता का अत्यंत महत्व है उसे स्वच्छ न्याय प्रशासन में न्यायाधीश की सहायता करनी चाहिए.

          यूपी सेल्स टैक्स सर्विस एसोसिएशन बनाम टैक्सेशन बार एसोसिएशन के मामले में न्यायालय ने निर्णय दिया कि यदि कोई अधिवक्ता अग्नि यंत्र के साथ न्यायालय में उपस्थित होता है तो यह विधि व्यवसाय के सम्मान के प्रतिकूल होगा.

           वास्तव में अधिवक्ता न्यायालय का अधिकारी होता है और उसका कर्तव्य है कि वह न्याय करने में न्यायालय की सहायता करें अधिवक्ता को न्यायालय को भ्रमित नहीं करना चाहिए.

In the case of Lalit Mohan Vs. Advocate General, the advocate was accused of favoritism against the munsiff and the munshi did not follow any principle in his order. The advocate was held guilty of unprofessionalism and 4.


 Rule 3 and 4 expect the advocate not to use illegal and unfair means to get the decision in his favor. Advocate is of utmost importance in clean judicial administration. He should assist the judge in clean justice administration.


 In the case of UP Sales Tax Service Association vs Taxation Bar Association, the court decided that if an advocate appears in court with a fire extinguisher, it would be against the honor of the legal profession.


 In fact, the advocate is an officer of the court and it is his duty to assist the court in doing justice. The advocate should not mislead the court.

          सीएल आनंद ने मत व्यक्त किया है कि कई कारणों से अधिवक्ता को चाहिए कि वह न्यायालय का सम्मान करें न्यायाधीश की भारतीय अधिवक्ता भी न्यायालय का अधिकारी होता है और न्यायिक मशीनरी का अभिन्न अंग होता है विधिक व्यवसाय बेंच और बाहर से गठित होता है और बेंच और बार दोनों का सामान्य उद्देश्य और आदर्श होता है न्यायाधीश संप्रभु का प्रतिनिधित्व करता है परिणाम स्वरूप न्यायालय का सम्मान संप्रभु का सम्मान होता है न्याय प्रशासन के लिए आवश्यक है कि जनता का उसमें विश्वास हो यदि न्यायाधीशों का सम्मान नहीं होता है तो इसका जनता के विश्वास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा इसके अतिरिक्त व्यवहारिक दृष्टिकोण से भी न्यायाधीशों के साथ दुर्व्यवहार करने से लाभ तो कुछ होगा नहीं वरन हनी अधिक होगी और मुवक्किल के हित पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा न्यायाधीशों की नियुक्ति अधिकांश था अधिवक्ताओं से ही की जाती है इस प्रकार सम्मानजनक और मर्यादा पूर्ण प्रशासन के लिए यह आवश्यक है कि मुकदमा करने वाले और जनता न्यायालय का सम्मान करें.

           जी सक्सेना के वाद में न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने वाला अधिवक्ता उसे अभिवचन में न्यायाधीश को कलंकित करने वाला कथन नहीं लिखना चाहिए । उसी न्यायधीश पर गंदा आरोप लगाने का अधिकार नहीं है यदि वह ऐसा करता है तो वह न्यायालय की अवमानना का दोषी होगा । यदि अभिवचन में न्यायाधीश को कलंकित करने वाले कथन का उल्लेख करना याद कर लिया जाता है तो न्यायालय के प्रति सम्मान और न्यायालय की स्वतंत्रता समाप्त हो जाएगी ।


CL Anand has opined that for many reasons the advocate should respect the court. Judge's Indian advocate is also an officer of the court and an integral part of the judicial machinery. The legal profession is formed from the bench and outside and the bench and  The Bar has a common objective and ideal. The judge represents the sovereign. As a result, the court is respected by the sovereign. It is necessary for the administration of justice that the public has faith in it.  Apart from this, misbehavior with the judges from the practical point of view will not bring any benefit, but honey will be more and the interest of the client will be adversely affected.  It is necessary for the litigants and the public to respect the court.


 In the case of G. Saxena, the court made it clear that the advocate appearing before the court should not write a statement defaming the judge in his plea.  The same judge does not have the right to make dirty allegations, if he does so, he will be guilty of contempt of court.  If the pleading forgets to mention the statement defamatory of the judge, then the respect for the court and the independence of the court will end.

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