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Showing posts from August, 2023

भारतीय जेलों में जाति आधारित भेदभाव: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और इसके प्रभाव

आई.पी.सी. की धारा 383 क्या है? विस्तार से बताइए।IPC What is section 383 of IPC? Explain in detail.

भारतीय दंड संहिता की धारा 383 में उद्दीपन की परिभाषा दी गई है। जो इस प्रकार है- कोई किसी व्यक्ति को या किसी अन्य व्यक्ति को जानबूझकर क्षति पहुंचाने का भय उत्पन्न करता है और इस प्रकार भय में डाले गए व्यक्ति को कोई मूल्यवान संपत्ति या प्रतिभूति में परिवर्तित किया जा सके किसी व्यक्ति को प्रदत्त करने के लिए बेईमानी से उत्प्रेरित करता है वह उद्दापन करता है।      यदि हम उद्दापन को आम बोलचाल की भाषा में बात करें तो यह अलग-अलग रूप से हमें समझ में आती है अगर हम यूपी और बिहार स्टेट में बात करें तो यहां पर इस प्रकार के कृत्य को रंगदारी के नाम से जाना जाता है रंगदारी एक प्रकार से दबंगों गुंडों द्वारा किसी व्यक्ति को जान से मारने की धमकी और उस धमकी की एवज में उनसे एक मोटी रकम या किसी भी प्रकार की प्रॉपर्टी की मांग करना भी उद्यापन की श्रेणी में आता है। अगर हम अन्य राज्यों में बात करते हैं तो मुंबई मैं जिस प्रकार अंडरवर्ल्ड का दौर था वहां पर उद्यापन को या रंगदारी वसूलने के या धन उगाही करने का तरीका अंडरवर्ल्ड का प्रमुख व्यवसाय था। ऐसी परिस्थितियों में अगर हम बात करें तो आईपीसी की सेक्शन...

भारतीय दंड संहिता में धारा 100 क्या होती है? धारा 100- शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने पर कब होता है ? What is section 100 in the Indian Penal Code? Section 100- When does the right of private defense of the body extend to causing death?

धारा 100 में उन छ: परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है जिनमें अभियुक्त को व्यक्तिगत प्रति रक्षा के अधिकार या शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, पूर्ववर्ती अन्तिम  धारा में वर्णित निर्बन्धनों के अधीन रहते हुये हमलावर की मृत्युकारित करने पर भी अपराध नही माना जाता है क्योंकि उसका कृत्य निजी प्रतिरक्षा के अधिकार तक नही किया गया होता है। यदि अभियुक्त की धारा 100 में उपबन्धित किसी क्षति की युक्ति युक्त, आंशका हो  तो  वह हमलावर की मृत्युकारित कर सकेगा और ऐसी दशा में यह नही माना  जायेगा कि उसने निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का उल्लघंन किया है।  निम्नलिखित अवस्थाओं में निजी सुरक्षा का अधिकार किसी की मृत्यु कारित कर दिये जाने तक विस्तृत हो जाता है। ये अवस्थाये  निम्नलिखित हैं-   (i) ऐसा हमला जिसका परिणाम मृत्यु होने की आंशका से→ ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कार्य हो जाएगी अन्यथा हमले का परिणाम मृत्यु होगी।                                       ...