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IPC की धारा 294 और BNS की धारा 296 सार्वजनिक अश्लीलता पर कानून और सजा का पूरा विवरण

भारत में internet and social media platforms per सरकार द्वारा बनाए गए कुछ कानून

आधुनिकता की ओर बढ़ती हुई दुनिया में इंटरनेट भी हमारे लिए बिजली और पानी की तरह ही बहुत ही जरूरी वस्तुओं में शामिल हो चुका है. अगर महामारी के इस दौर में लोगों के पास इंटरनेट की सुविधा ना होती तो रोजमर्रा के कामकाज में कितनी मुश्किलें होती ऑफिस का काम काज हो या बच्चों की online classes यहां तक कि अब लोग अपनी हर समस्याओं के लिए expert से online consistency ले रहे हैं. आजकल घरों में इंटरनेट का कनेक्शन भी पानी और बिजली की तरह अति आवश्यक हो गया है. Facility misutilisation ( सुविधा का दुरुपयोग ): - internet media के विभिन्न platforms जैसे हैं whatsApp Facebook Instagram Twitter  आदि का लोगो द्वारा दुरुपयोग शुरू कर दिया गया है क्योंकि अभी तक इन whatsApp और Twitter पर नियंत्रण रखने के लिए कोई ठोस नियम नहीं है विदेशी कंपनियां ऐसे डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए बहुत मुनाफा हासिल करती है लेकिन अभी तक इन कंपनियों पर कोई नियंत्रण नहीं था यहां तक कि इन विदेशी कंपनियों ने भारत में अपना ऑफिस या कोई जिम्मेदार अधिकारी भी नियुक्त नहीं किया था स्त्रियों और बच्चों के खिलाफ इंटरनेट पर यौन अपराध के बढ़

मुवक्किल के प्रति अधिवक्ता के कर्तव्य और दायित्व: Duties and obligation of advocate towards his clients

नियम 11से 33 अधिवक्ता के मुवक्किल के प्रति कर्तव्यों के संबंध में प्रावधान करते हैं यह नियम निम्नलिखित हैं -    ( 1) नियम11   के अनुसार अधिवक्ता अपनी स्थिति और वाद की प्रकृति के अनुसार मेहनताना लेकर मुवक्किल या ब्रीफ उसी स्थिति में स्वीकार करने के लिए बाध्य है जबकि वह पक्षकार ऐसे मामले से संबंधित है जो उच्च न्यायालय अधिकरण या अन्य प्राधिकारी में है जिसमें प्रेक्टिस करने का प्रस्ताव करता है पक्षसार से तात्पर्य ऐसे पक्ष सर से या संक्षिप्त नाम से है जो मुवक्किल अधिवक्ता को इस निमित्त देता है कि वह उसके मामले में पैरवी कर सके नियम यह भी स्पष्ट करता है कि कतिपय विशिष्ट परिस्थितियों में अधिवक्ता पक्षसार लेने से मना कर सकता है.         एसजे चौधरी बनाम स्टेट के बाद में उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि यदि कोई अधिवक्ता किसी आपराधिक वाद का पक्ष सार लेता है तो उसे उस मामले की प्रतिदिन देखभाल करनी चाहिए और आवश्यकता होने पर उपस्थित होना चाहिए और युक्तियुक्त ध्यान देना चाहिए यदि अधिवक्ता उचित देखरेख नहीं करता है और आवश्यकता होने पर उपस्थित नहीं होता है तो वह व्यवसायिक और अवचार का

पूर्व सुनवाई का अधिकार: Right of Preaudience

अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 23 पूर्व सुनवाई के अधिकार के संबंध में निम्नलिखित नियम और उपबंधित करती है - ( 1) भारत के महान्यायवादी (attorney General of India) की सुनवाई अन्य सभी अधिवक्ताओं (advocates) से पूर्व होगी. ( 2) भारत के  महा सॉली सीटर जनरल (solicitor General of India) की सुनवाई उपरोक्त महान्यायवादी के पश्चात परंतु अन्य सभी अधिवक्ताओं से पूर्व होगी. ( 3) भारत के अपर महासालीसीटर( upar Solicitor General) की सुनवाई उप धारा (1) उपधारा (2)के अधीन रहते हुए अन्य सभी अधिवक्ताओं से पूर्व होगी।          भारत के द्वितीय महासलीसीटर( second upper Solicitor General) की सुनवाई उप धारा (1) उप धारा (2) उप धारा (3) के अधीन रहते हुए अन्य सभी अधिवक्ताओं के पूर्व होगी. ( 4) किसी राज्य के महाधिवक्ता (advocate general) की सुनवाई उप धारा (1)  उपधारा (2) उपधारा (3) तथा उप धारा(3क) के अधीन रहते हुए सभी अधिवक्ताओं के पूर्व होगी और महाधिवक्ता में परस्पर सुनवाई  का आधिकार उनकी अपनी वरिष्ठता के अनुसार आवधारित किया जाएगा। ( 5) वरिष्ठ अधिवक्ताओं की सुनवाई अन्य अधिवक्ताओं के पूर्व होगी. ( 6) वरिष्

एक अधिवक्ता के न्यायालय के प्रति कर्तव्य: Duties of advocate towards court

न्यायालय के प्रति अधिवक्ता के कर्तव्य: - अधिवक्ताओं का व्यवसाय कर्तव्य परायणता व निष्ठा का माना गया है इसलिए इस व्यवसाय में वही व्यक्ति सफल हो सकता है जो अपने कर्तव्य के प्रति समुचित रूप से जागरूक व समर्पित है अधिवक्ताओं के निम्नलिखित कर्तव्य होते हैं - Duties of an advocate towards the court: - The business of advocates has been considered to be duty-oriented and loyalty, therefore only a person who is properly aware and dedicated towards his duty can be successful in this business. Advocates have the following duties - (1) An advocate should behave with dignity and respect while presenting his case and performing all other functions of the court. The rule also makes it clear that an advocate will not be a slave if there is a reasonable basis for a serious complaint against a judicial officer.  Then it is the right and duty of the advocate to present the complaint before the appropriate authority.  (2) The advocate shall adopt an attitude of respect towards the court as t

व्यवसायिक आचार अधिवक्ता की जवाबदेही एवं बार बेंच संबंध: Professional ethics accountability of lawyers and bar bench relation

आज विधि का व्यवसाय अधिवक्ताओं के लिए जीवन यापन का माध्यम है अन्य व्यवसायों की भांति या व्यवसाय भी कार्य कर रहा है प्रत्येक व्यवसाय के अपने-अपने मापदंड होते हैं प्रत्येक प्रत्येक व्यवसाय के अपने अलग-अलग स्वरूप होते हैं. ठीक उसी प्रकार विधि व्यवसाय के भी अपने मापदंड है . विधि व्यवसाय का संबंध अधिवक्ता के जीवन यापन से इसलिए आर्थिक महत्व का इससे जोड़ना अनिवार्य है. आज अन्य व्यवसाय की तरह विधि व्यवसाय में भी पतन हुआ है आज के दौर में कोई भी व्यवसाय आदर्श नहीं रह गया है. विधि व्यवसाय में भी आदर्श की कमी आई है यदि आज हम विधि व्यवसाय का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि यह व्यवसाय अन्य व्यवसाय की अपेक्षा अधिक महत्व का है इसका महत्व तब और बढ़ जाता है जब यह व्यवसाय उस देश में कार्य कर रहा हूं जिस देश में विधि का शासन हो. विधि का व्यवसाय और भी महत्व का होता है जबकि देश का प्रशासन लिखित संविधान ओं के अंतर्गत कार्य कर रहा हो. विधि का व्यवसाय लिखित संविधान के अंतर्गत जहां विधि का शासन है अन्य सभी व्यवसाय को पीछे छोड़ देता है परंतु भारत में ऐसा नहीं हो सकता है इसका मूल कारण है व्यवसायिक नीति का अभाव। अधिवक्त

एक आदर्श अधिवक्ता के गुण: The qualities of Ideal lawyer

विधि व्यवसाय अर्थात वकालत का व्यवसाय एक बौद्धिक एवं नेता व्यवसाय माना जाता है. न्याय प्रशासन में अधिवक्ताओं का महत्वपूर्ण योगदान रहता है लेकिन यह तभी संभव है जब कि अधिवक्ता अपने व्यवसाय में सफल रहे इस व्यवसाय में सफलता के लिए अधिवक्ता का सभी दृष्टि से कुशल एवं निपुण होना आवश्यक है. ( 1) ईमानदारी (honesty): - अधिवक्ता का पहला गुण यह है कि वह अपने व्यवसाय के प्रति पूर्ण रूप से ईमानदार रहे ईमानदारी केवल व्यवसाय के प्रति नहीं वरन न्यायालयों  तथा पक्षकारों के प्रति भी होना आवश्यक है। ( 2) साहस (Courage): - अधिवक्ताओं को न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अदम्य साहस होना चाहिए वह अपने पक्ष को निडरता एवं निर्भीकता से प्रस्तुत करें साहसी अधिवक्ता ही विधि व्यवसाय में सफलता की सीढ़ियां तय कर सकता है। ( 3) परिश्रम (Deligence): - अधिवक्ता को अपने मामले के संबंध में बहुत परिश्रम करना पड़ता है वह जितना अधिक परिश्रम करेगा उसे उतना अधिक सफलता प्राप्त होगी विधि व्यवसाय में अधिवक्ताओं को वाद तथा परिवाद तैयार करने से लेकर निर्णय तक अनेक स्तरों से गुजर ना होता है हर स्तर पर उसके ज्ञ