मुवक्किल के प्रति अधिवक्ता के कर्तव्य और दायित्व: Duties and obligation of advocate towards his clients
नियम 11से 33 अधिवक्ता के मुवक्किल के प्रति कर्तव्यों के संबंध में प्रावधान करते हैं यह नियम निम्नलिखित हैं -
( 1) नियम11 के अनुसार अधिवक्ता अपनी स्थिति और वाद की प्रकृति के अनुसार मेहनताना लेकर मुवक्किल या ब्रीफ उसी स्थिति में स्वीकार करने के लिए बाध्य है जबकि वह पक्षकार ऐसे मामले से संबंधित है जो उच्च न्यायालय अधिकरण या अन्य प्राधिकारी में है जिसमें प्रेक्टिस करने का प्रस्ताव करता है पक्षसार से तात्पर्य ऐसे पक्ष सर से या संक्षिप्त नाम से है जो मुवक्किल अधिवक्ता को इस निमित्त देता है कि वह उसके मामले में पैरवी कर सके नियम यह भी स्पष्ट करता है कि कतिपय विशिष्ट परिस्थितियों में अधिवक्ता पक्षसार लेने से मना कर सकता है.
एसजे चौधरी बनाम स्टेट के बाद में उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि यदि कोई अधिवक्ता किसी आपराधिक वाद का पक्ष सार लेता है तो उसे उस मामले की प्रतिदिन देखभाल करनी चाहिए और आवश्यकता होने पर उपस्थित होना चाहिए और युक्तियुक्त ध्यान देना चाहिए यदि अधिवक्ता उचित देखरेख नहीं करता है और आवश्यकता होने पर उपस्थित नहीं होता है तो वह व्यवसायिक और अवचार का दोषी माना जाएगा
( 2) नियम 12 के अनुसार यदि कोई अधिवक्ता मामले की पैरवी करना स्वीकार करता है तो समानता बिना पर्याप्त कारण के और मुवक्किल को बिना युक्तियुक्त और पर्याप्त सूचना दिए पैरवी करने से इनकार नहीं कर सकता है यदि युक्तियुक्त और पर्याप्त कारण से सूचना देकर अधिवक्ता मामले से अलग होता है तो वह फीस के उस भाग को वापिस करने के लिए बाध्य होगा जो उसने उपार्जित नहीं किया है.
( 3) नियम 13 के अनुसार अधिवक्ता को ऐसे मामलों का पक्षसार स्वीकार नहीं करना चाहिए अथवा ऐसे मामले में उपस्थित नहीं होना चाहिए जिसमें कि उसके पास विश्वास का कारण है कि वह गवाह हो सकता है यदि वह किसी मामले में अधिवक्ता बन जाता है और तत्पश्चात यह स्पष्ट हो जाता है कि वह तथ्य संबंधित तांत्रिक प्रश्न के संबंध में गवाह है तो ऐसी स्थिति में उसे अधिवक्ता के रूप में उपस्थित नहीं होना चाहिए.
( 4) नियम14 के अनुसार कोई भी अधिवक्ता अपनी नियुक्ति पर या नियुक्ति के दौरान अपने मुवक्किल को पत्रकारों के साथ अपने संबंध और विवाद में अपने हित जो कि उसकी नियुक्ति या उसकी नियुक्ति को जारी रखने में मुवक्किल के निर्णय को प्रभावित करने के लिए संभावित है या पूर्ण और सत्य प्रकृति करण करेगा.
( 5) नियम 15 के अनुसार प्रत्येक अधिवक्ता का यह कर्तव्य है कि अपने मुवक्किल के हितों की रक्षा निर्भय होकर उचित और सम्मानजनक तरीके से करें उसका कर्तव्य है कि उसे ऐसा स्वयं को या अन्य किसी को होने वाले अप्रिय प्रणाम को ध्यान ना देते हुए करना चाहिए अधिवक्ता का यह कर्तव्य है कि अभियुक्त के दोषों के प्रति अपने व्यक्तिगत राय पर ध्यान दिए बिना उसकी प्रतिरक्षा इस बात को मस्तिष्क में रखकर करनी चाहिए कि उसकी वफादारी विधि के प्रति उसके अनुसार बिना पर्याप्त सबूतों के किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है
( 6) नियम 16 के अनुसार अभियोजन के आपराधिक विचारण के लिए प्रस्तुत होने वाला अधिवक्ता इस ढंग से अभियोजन करेगा कि कोई निर्दोष व्यक्ति सिद्ध दोष ना हो जाए अभियुक्त को निर्दोष सिद्ध करने योग्य तथ्यों को छिपाने का कार्य निष्ठा पूर्वक डाला जाएगा इस प्रकार अभियुक्त को निर्दोष सिद्ध करने वाले तथ्यों को दबाने या छिपाने का प्रयास नहीं करना चाहिए.
( 7) नियम 17 के अनुसार कोई भी अधिवक्ता भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 126 द्वारा आरोपित आभा रो का नहीं करेगा धारा 126 के अनुसार मुवक्किल द्वारा अपने अधिवक्ता को उसके नियोजन के लिए दी गई जन सूचना उस अधिवक्ता द्वारा प्रकट नहीं की जा सकती है वकील अपने अधिवक्ता को पूरा और सत्य बात बताएं और उन्हें इस बात का भय ना हो कि इस प्रकार उनके द्वारा दी गई सूचनाएं न्यायालय को अथवा उसके प्रतिपक्षी को दे दी जाएंगी
धारा 126 के अंतर्गत निम्नलिखित संरक्षण के कतिपय दशाओं में लागू नहीं होता है
(अ) किसी अवैध प्रयोजन को अग्रसर करने के लिए दी गई सूचना
उदाहरण के लिए मान लेते हैं कि अटॉर्नी से कहता है मैं संपत्ति पर कब्जा कूट रहे थे विलेज के जरिए करना चाहता हूं और आप इस आधार पर वाद स्थित करें यदि सन सूचना आपराधिक प्रयोजन को अग्रसर करने के निमित्त दी गई है और इस कारण यह संरक्षित नहीं की जाएगी
(ब) ऐसा कोई भी तथ्य जो किसी वेरी स्टेप लीडर अटॉर्नी अथवा वकील ने अपनी ऐसी हैसियत के अनुक्रम में प्राप्त किया है जिससे दर्शित होता है कि उसके नियोजन के आरंभ के बाद कोई अपराधी या कपट प्रकट किए जाने से संरक्षित नहीं है अर्थात इसे प्रकट किया जा सकता है यह महत्वहीन है और ऐसे प्लीडर अटॉर्नी अथवा वकील का ध्यान इस तथ्य की ओर उसके मुवक्किल ने या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा आकर्षित किया गया है
(उ) मुवक्किल की अनुमति से भी सूचना का प्रकृति करण किया जा सकता है
(9) नियम 18 के अनुसार अधिवक्ता मुकदमे बाजी उकसाने में किसी भी समय पक्षकार नहीं बनेगा
(10) नियम 20 के अनुसार कोई भी अधिवक्ता मुकदमे के परिणाम पर सिर्फ मेहनताना या फीस का अनुबंध नहीं करेगा इसी प्रकार के मुकदमे या वाद के आगम या प्राप्ति में हिस्सा लेने का अनुबंध भी नहीं करेगा
वाद ग्रह को लोक नीति के विरुद्ध माना जा सकता है और इस निमित्त किया गया अनुबंध लोक नीति के विरुद्ध होने के कारण शून्य हो सकता है
कोथी जै राम बनाम विश्वनाथ के वाद में मुवक्किल और अधिवक्ता के मध्य हुए करार के अंतर्गत अधिवक्ता ने वचन दिया है कि वे अपनी फीस तभी लेगा जब कि मुकदमे का फैसला मुवक्किल के पक्ष में दिलवाने में सफल होगा इसे लोग नीति के विरुद्ध होने के कारण शून्य ठहराया गया है
इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए भारतीय विधिक परिषद ने नियम बनाकर स्पष्ट कर दिया है कि कोई भी अधिवक्ता अपने मुवक्किल से ऐसा करार नहीं करेगा जिसके अंतर्गत पेश किया जाए कि मुकदमों के परिणाम पर निर्भर करेगा तो वह जिसके अनुसार उसे मुकदमे की प्राप्ति में हिस्सा लेना हो.
( 11) नियम 21 के अनुसार कोई भी अधिवक्ता किसी भी अनुयोज्य दावा में ही तो हमेशा प्राप्त करने के लिए क्रय विक्रय और व्यापार या अवैध व्यापार अनुबंध नहीं करेगा यह नियम निम्नलिखित के संबंध में लागू नहीं होगा
- * स्टॉक
- * अंश
- शपथ पत्र
- सरकारी प्रतिभूति
- माल के स्वत्व के वाणिज्य दस्तावेज
( 12) नियम 22 के अनुसार कोई अधिवक्ता कार्यवाही में पारित ऐसी डि क्रि आदेश जिसमें वह व्यवसायिक रूप से नियुक्त या संलग्न था के क्रियान्वयन में बेची जाने वाली संपत्ति को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से अपने नाम में या अन्य किसी के नाम में अपने लाभ के लिए या किसी अन्य व्यक्ति के लाभ के लिए ना तो क्रय करेगा और ना ही नीलामी में बोली लगाएगा
परंतु यह नियम अधिवक्ता को अपने मुवक्किल के लिए क्रय करने या बोली लगाने से रोकता नहीं है यदि मुवक्किल को विधिक रुप से क्रय करने या बोली लगाने का अधिकार है अधिवक्ता ऐसा तभी कर सकता है जबकि वह इस नियमित लिखित रूप से प्राधिकृत किया गया है
( 13) नियम 2 3 के अनुसार कोई भी अधिवक्ता मुवक्किल के प्रति अपने निजी दायित्व जो दायित्व की उसके नियोजन के दौरान उत्पन्न नहीं हुआ है तो उसे अपने मुवक्किल द्वारा दी जाने वाली फीस से समायोजित नहीं करेगा.
( 14) नियम 24 के अनुसार कोई भी अधिवक्ता मुवक्किल द्वारा उसमें रखे गए विश्वास का दुरुपयोग नहीं करेगा अथवा उससे लाभ नहीं लेगा
( 15) नियम 25 के अनुसार अधिवक्ता अपने मुवक्किल के धन का लेखा-जोखा रखेगा
( 16) नियम 26 के अनुसार यदि मुवक्किल या उसकी ओर से धन प्राप्त होता है तो अधिवक्ता को अपने लेखों में यह उल्लेख करना होगा कि धन फीस के लिए प्राप्त किया गया थोड़ा खर्चों के लिए यह भी स्पष्ट है कि कार्यवाही के दौरान संबंधित वकील की लिखित संपत्ति के बिना कोई अधिवक्ता खर्चों के किसी भाग को फीस के लिए प्रयोग करने के लिए स्वतंत्र नहीं है
( 17) नियम 27 के अनुसार यदि कोई अधिवक्ता अपने मुवक्किल की ओर से कोई धन प्राप्त करता है तो उसे चाहिए कि अतिशीघ्र इसकी सूचना मुवक्किल को दें यदि मुवक्किल उस धन की मांग करता है तो अधिवक्ता को उस धन को दे देना चाहिए
प्रहलाद शरण गुप्ता बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया के मामले में न्यायालय ने मत व्यक्त किया कि यदि कोई अधिवक्ता मुवक्किल की ओर से प्राप्त धन को मांग के उपरांत भी मुवक्किल को नहीं देता है तो वह व्यवसाई अवचार का दोषी होगा
( 18) नियम 28 के अनुसार कार्रवाई की समाप्ति के बाद खर्च के लिए दी गई अथवा भेजी गई अथवा कार्रवाई के दौरान प्राप्त रकम यदि बची है तो उसको अपने को दे निर्धारित फीस में समायोजित कर सकता है
( 19) नियम 29 के अनुसार यदि फीस निर्धारित नहीं है तो कार्रवाई की समाप्ति के बाद बचे हुए धन में से न्यायालय के नियमों के अनुसार घटाकर शेष धन हुए मुवक्किल को वापस दे सकता है
( 20) नियम 30 अनुसार मुवक्किल के लेखे की एक प्रति मांगे जाने पर उसे प्रदान की जाएगी बशर्ते आवश्यक नकल शुल्क का भुगतान किया जाता है
( 21) नियम 31 के अनुसार अधिवक्ता को कोई भी ऐसी व्यवस्था नहीं करनी चाहिए जिससे कि जो कुछ उसके पास है वह लाभ में परिवर्तित हो जाए
( 22) नियम 32 के अनुसार यदि कोई भी अधिवक्ता जिस कार्यवाही में वह मुवक्किल द्वारा नियुक्त किया गया है उसके प्रयोजन हेतु मुवक्किल को धन उधार नहीं देगा अधिवक्ता उस नियम के उल्लंघन का दोषी नहीं होगा जबकि मामले के लंबे काल के दौरान और उसके संबंध में मुवक्किल से किसी व्यवस्था के बिना कार्यवाही की प्रगति के लिए न्यायालय के नियमानुसार भुगतान करना आवश्यक होने पर न्यायालय को मुवक्किल की ओर से भुगतान कर देता है
( 23) नियम 33 के अनुसार अधिवक्ता जिसने कभी किसी संस्था के मुकदमे अपील या अन्य किसी मामले में सलाह दी है अथवा किसी प्रकार के लिए कार्य किया है अथवा अभिवचन किया है वह प्रतिपक्ष पक्षकार के लिए अभिवचन या उपस्थिति का कार्य नहीं करेगा यदि इस प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा तो मूर्ति द्वारा दी गई सूचनाओं के दुरुपयोग की संभावना होगी.
गुरु बसप्पा एआईआर 1 964 एपी 261 के मामले में कए अधिवक्ता ने अपने मुवक्किल का प्रसाद ग्रहण किया और आरंभिक अवस्था में उस मुवक्किल की ओर से उपस्थित भी हुआ किंतु बाद में सरकारी वकील हो गया और राज्य की ओर से उपस्थित हुआ जो कि उस वाद में मुवक्किल का प्रति पक्षी पक्षकार था अधिवक्ता को व्यवसायिक आचार का दोषी ठहराया गया.
इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि अधिवक्ता और मुवक्किल के संबंधों को स्वास्थ्य हुए एवं विश्वसनीय बनाने में यह नियम अत्यंत उपयोगी है अधिवक्ता अपनी स्थिति का दुरुपयोग ना कर पाए इसके लिए नियम पूर्ण प्रतीत होते हैं इन नियमों के पालन से विषय अधिवक्ता तथा मुवक्किल के संबंधों में विश्वास बढ़ेगा और विधिक व्यवसाय का स्तर ऊंचा होगा
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