Skip to main content

भारत में दहेज हत्या में क्या सजा का प्रावधान है ? विस्तार से चर्चा करो।

कंपनी के संगम ज्ञापन से क्या आशय है? What is memorandum of association? What are the contents of the memorandum of association? When memorandum can be modified. Explain fully.

संगम ज्ञापन से आशय
 meaning of memorandum of association

 संगम ज्ञापन को सीमा नियम भी कहा जाता है यह कंपनी का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। हम कंपनी के नींव  का पत्थर भी कह सकते हैं। यही वह दस्तावेज है जिस पर संपूर्ण कंपनी का ढांचा टिका रहता है। यह कह दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह कंपनी की संपूर्ण जानकारी देने वाला एक दर्पण है।

          संगम  ज्ञापन में कंपनी का नाम, उसका रजिस्ट्री कृत कार्यालय, उसके उद्देश्य, उनमें  विनियोजित पूंजी, कम्पनी  की शक्तियाँ  आदि का उल्लेख समाविष्ट रहता है।

        पामर ने ज्ञापन को ही कंपनी का संगम ज्ञापन कहा है। उसके अनुसार संगम ज्ञापन प्रस्तावित कंपनी के संदर्भ में बहुत ही महत्वपूर्ण अभिलेख है।

काटमेन बनाम बाथम,1918 ए.सी.514  लार्डपार्कर  के मामले में लार्डपार्कर द्वारा यह कहा गया है कि "संगम ज्ञापन का मुख्य उद्देश्य अंश धारियों, ऋणदाताओं तथा कंपनी से संव्यवहार करने वाले अन्य व्यक्तियों को कंपनी के उद्देश्य और इसके कार्य क्षेत्र की परिधि के संबंध में अवगत कराना है।"

          कुछ विधिवेक्ताओं की दृष्टि में कंपनी का संगम ज्ञापन उसका चार्ट(Charter ) अर्थात आज्ञा पत्र है।

            कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(56) में संगम ज्ञापन की परिभाषा दी गई है। उसके अनुसार ज्ञापन से किसी पूर्व कंपनी विधि या इस अधिनियम के अनुसरण में किसी कंपनी का मूल रूप से वितरित या समय-समय पर यथा परिवर्तित संगम ज्ञापन अभिप्रेत है।

             एशवरी कम्पनी बनाम रिचे,1875 L.R.7H.L. 653 के मामले में लॉर्ड केयर्न द्वारा यह कहा गया है कि: ज्ञापन कंपनी की शक्तियों की सीमाओं को परिभाषित करता है। इसमें शक्तियों के सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों पहलुओं का उल्लेख रहता है। अर्थात शक्तियों से परे नहीं जा सकती हैं।

लार्ड मैकमिलन(Lard Macmillon ) के अनुसार: संगम ज्ञापन कंपनी की चार्टर है। यह वह ढाँचा  प्रदान करता है जिस पर कंपनी का निर्माण होता है। यह कंपनी के गठन व्यवस्थित करता है। इसका महत्व इस बात में है कि यह कंपनी के कार्यकलापों के क्षेत्र को परिभाषित करता है और बाहरी दुनिया से संबंधों को भी। इसका मुख्य उद्देश्य अंश धारियों, लेनदारों तथा कंपनी से व्यवहार करने वाले व्यक्तियों को कंपनी की शक्तियों की सीमा से अवगत कराना है।"


नाम खंड: कंपनी अधिनियम 2013 की धारा4(2) में यह प्रावधान किया गया है कि कंपनी के संगम ज्ञापन में उस कंपनी का नाम उल्लेखित किया जाएगा। कंपनी के प्रवर्तक अपनी इच्छा अनुसार नाम रख सकेंगे, लेकिन ऐसा नाम

(1) पूर्व में रजिस्ट्री कृत किसी कंपनी के सदस्य अर्थात उस से मिलता जुलता नहीं होगा तथा

(2) केंद्रीय सरकार की राय में अवांछनीय (undesirable) नहीं होगा। कंपनी के नामकरण के लिए कंपनी रजिस्ट्रार को आवेदन करना होगा तथा उसकी पूर्व  अनुमति प्राप्त करनी होगी।

          कंपनी के नामकरण के संबंध में मुख्य रूप से दो बातें ध्यान में रखनी होंगी:

(1) ऐसा नाम पूर्व में रजिस्ट्री कृत किसी कंपनी के सदृश्य अर्थात मिलता जुलता नहीं होगा तथा

(2) कंपनी के नाम के आगे पब्लिक कंपनी की दशा में लिमिटेड(Limited ) शब्द जोड़ना होगा. इसी प्रकार प्राइवेट कंपनी की दशा में अपने नाम के आगे प्राइवेट लिमिटेड(pvt.Ltd.) शब्द जोड़ना होगा।

      कंपनी का नाम उसके कार्यालय एवं व्यवसाय स्थल के बाहर सुस्पष्ट शब्दों में संकेत पटेल(Sign Board ) पर पेंट किया जाएगा।

      सोसायटी आफ मोटर मैन्युफैक्चरर्स एंड ट्रेडर्स लिमिटेड बनाम मोटर मैन्युफैक्चरर्स एंड ट्रेडर्स म्युचुअल इंश्योरेंस कंपनी(1925)1 चांसरी675 के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया कि कंपनी अधिनियम के अंतर्गत किसी कंपनी द्वारा अपने नाम का रजिस्ट्रीकरण करा लिए जाने पर उससे उस कंपनी का एकाधिकार प्राप्त हो जाता है और उसी के समान या उस से मिलता जुलता नाम धारण करके कोई अन्य कंपनी स्वयं को सम्मिलित नहीं करा सकती है क्योंकि इससे उस नाम का उपयोग धोखा देने के लिए किया जा सकता है।

डनलप न्यूमेटिक टायर कम्पनी बनाम डनलप मोटर कम्पनी ,1907 ए.सी.430 के मामले में भी प्रतिपादित किया गया है कि: किसी कंपनी का नाम ऐसा नहीं हो सकता है जिससे लोग भ्रमित हो जाए और यह विश्वास करने की नई कंपनी पहले से विद्यमान कंपनी से संबंधित है।

एक्साॅन कारपोरेशन बनाम एक्साॅन इंश्योरेंस कंसलटेंट लि.,(1981)2 ऑल ई. रि.495 के मामले में न्यायालय द्वारा व्यादेश जारी करते हुए यह कहा गया है कि प्रतिपादी कंपनी एक्साॅन शब्द का प्रयोग नहीं कर सकेगी क्योंकि यह शब्द प्रथमतः  वादी कंपनी द्वारा प्रयुक्त एवं निर्मित किया गया है अतः उसका इस पर अनन्य प्रयोग करने का एकाधिकार है।
हेण्ट्रिक्स बनाम माटेग्यू(1881)17 चांसरी डिवीजन 38 के मामले में यह विनिश्चित किया गया है कि किसी कंपनी को समान नाम रखने से रोकने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि ऐसा नाम रखने का आशय जनता को भ्रमित करने अथवा धोखा देने का रहा हो। अभिप्राय हुआ कि भ्रम पैदा करने वाला धोखा देने का आशय नहीं होने पर भी समान नाम नहीं रखा जा सकता है।


नाम में परिवर्तन

नाम में परिवर्तन: कभी-कभी परिस्थिति वश कंपनी के नाम में परिवर्तन करने की आवश्यकता पड़ सकती है। समान्यतः ऐसा दो परिस्थितियों में हो सकता है

(1) जब कंपनी का नाम अनुचित अथवा अवांछनीय  हो या
(2) वह किसी अन्य कंपनी से मिलता जुलता अर्थात उसके सदृश्य हो।

        इन परिस्थितियों में केंद्रीय सरकार की अनुमति से नाम  में परिवर्तन किया जा सकता है।

कंपनी अधिनियम 2013 की धारा13(2) में इस संबंध में प्रावधान किया गया है। साथ ही धारा16 में यह कहा गया है कि उपरोक्त परिस्थितियों में केंद्रीय सरकार कंपनी को अपना नाम परिवर्तित करने का निर्देश दे सकेगी और ऐसा निर्देश देने की तारीख से 3 माह के भीतर कंपनी को अपना नाम परिवर्तित करना होगा।

              ऐसा नाम परिवर्तित किए जाने की तारीख से 15 दिन के भीतर कंपनी रजिस्ट्रार को सूचना देनी होगी।

             ऐसा सूचना मिलने पर कंपनी रजिस्ट्रार द्वारा तदनुसार निगमन प्रमाण पत्र में संशोधन कर दिया जाएगा।

ऐसा नाम परिवर्तन से

(1) कंपनी के अधिकारों एवं दायित्वों  पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा तथा

(2) कंपनी के नाम से पहले से चल रही कार्यवाहियां प्रभावित नहीं होंगी।


मल्हाली टी सिण्डीकेट लि. बनाम रेवेन्यू आॅफिसर, जलपाईगुड़ी ,ए.आई.आर. 1973 कलकत्ता 78 के मामले में यह कहा गया है कि कंपनी द्वारा अपना नाम परिवर्तित कर दिए जाने के पश्चात उसके द्वारा अपने पूर्व नाम से कोई विधिक कार्यवाही नहीं की जा सकती। इस मामले में मल्हाली टी सिंडिकेट लि.कं. ने अपना नाम बदलकर मॅल्हाली टी इंडस्ट्रीज कर दिया था। नाम परिवर्तन के पश्चात उसके द्वारा अपने पुराने नाम से याचिका दायर की गई जिसे संधारण योग्य नहीं माना गया।

उद्देश्य खंड: उद्देश्य खंड संगम ज्ञापन का एक महत्वपूर्ण भाग होता है। कंपनी अधिनियम 2013 की धारा4(1)(ग)में उद्देश्य खंड के बारे में प्रावधान किया गया है। उद्देश्य खंड में कंपनी के उद्देश्यों का उल्लेख रहता है तथा यह कंपनी के अधिकार क्षेत्र का निर्धारण करता है।

          प्रत्येक कंपनी अपने उद्देश्य खंड के रूप में कार्य करने के लिए आबद्ध होती है। उद्देश्य खंड से परे किया गया कार्य अधिकारातीत माना जाता है।

लार्ड पार्कर के अनुसार उद्देश्य खंड कंपनी की शक्ति सीमा को स्पष्ट करता है तथा उसे मर्यादित बनाए रखता है।

उद्देश्य खंड में ऐसे किसी उद्देश्य कोई स्थान नहीं दिया जाना चाहिए

(1) जो अनैतिक एवं विधि विरूद्ध हो अथवा

(2) कंपनी अधिनियम के उपबंधों  का उल्लंघन करने वाला हो

ए. लक्ष्मण स्वामी मुदालियर बनाम लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया ए.आई.आर. 1963 एस.सी.1185 के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कंपनी अपने सभी उद्देश्यों को कार्यान्वित  करने के लिए सक्षम है जिनका उल्लेख उद्देश्य खंड में किया गया है, परंतु वह उसके बाहर कार्य नहीं कर सकती है।

उद्देश्य खंड में परिवर्तन: कंपनी के उद्देश्य खंड में परिवर्तन का उल्लेख कंपनी अधिनियम की धारा 13 में किया गया है। इसके अनुसार उद्देश्य खंड में निम्नांकित परिस्थितियों में परिवर्तन किया जा सकता है

(1) यदि कंपनी अपना व्यापार अथवा कारोबार अधिक कुशलता या कम खर्च से चलाना चाहती है तो वह अपने उद्देश्य खंड में परिवर्तन कर सकती है। लेकिन ऐसा परिवर्तन करते समय है ध्यान में रखा जाना आवश्यक है की परिवर्तन से कंपनी के सारभूत स्वरूप में कोई परिवर्तन ना होने पाए।

इन रि साइण्टिफिक पोल्ट्री ब्रिडर्स एसोसिएशन, 1933 चांसरी 277 के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि उद्देश्य खंड में ऐसा परिवर्तन किया जा सकता है जो मुख्य उद्देश्य की सफलतापूर्वक क्रियान्वित के लिए अत्यावश्यक हो तथा उसी से कंपनी के सार भूत स्वरूप में कोई परिवर्तन ना होता हो।

(2) कंपनी अपने मुख्य उद्देश्य में प्रगति करने के लिए अपने उद्देश्यों में परिवर्तन कर के आधुनिक साधनों तथा वैध्ञानिक तरीकों को अपना सकती है।

(3) कंपनी अपने कार्य क्षेत्र में वृद्धि या उसके स्थानीय विस्तार के लिए उद्देश्य में परिवर्तन कर सकती है।(इन रि इंडियन मैकेनिकल गोल्ड एक्सट्रैक्टिंग कंपनी(1891)3 चांसरी 538)

(4) कंपनी ऐसा कोई व्यापार करने के लिए अपने उद्देश्य खंड में परिवर्तन कर सकती है जो मुख्य व्यापार के साथ साथ चलने वाला हो।(इन रि पेटेंट  टायर कंपनी(1923)2 चांसरी 222)

उदाहरणार्थ जूट का व्यापार करने वाली कंपनी को उद्देश्य खंड में परिवर्तन द्वारा रबड़ का व्यापार करने की अनुमति दी जा सकती है।( जुग्गीलाल कमलापत जूट मिल बनाम कंपनी रजिस्टर(1967)37 कंपनी केसेज20)

(5) कंपनी  अपने संगम ज्ञापन में उल्लेखित किसी उद्देश्य को सीमित करने अथवा उसे त्यागने के लिए अपने संगम ज्ञापन के उद्देश्य खंड में परिवर्तन कर सकती है।

(6) कंपनी के किसी आंशिक या संपूर्ण भाग को बेचने अथवा अंतरित करने के लिए उद्देश्य खंड में परिवर्तन किया जा सकता है।

(7) कंपनी अपना समामेलन किसी दूसरी कंपनी में कराने के लिए अपने उद्देश्य खंड में परिवर्तन करा सकती है।

इन रि राजेंद्र इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड(1957)2 कंपनी लॉ ज.144( मद्रास) के मामले में टाइप किया गया है कि कंपनी की वित्तीय स्थिति अच्छी न होने पर व्यापार कार्य में विस्तार हेतु परिवर्तन की अनुमति दी जा सकती है बशर्ते कि अंश धारियों अथवा लेनदारों द्वारा उसका विरोध ना किया जाए।



परिवर्तन की प्रक्रिया: कंपनी के संगम ज्ञापन के उद्देश्य खंड में परिवर्तन के लिए सदस्यों के तीन चौथाई बहुमत से विशेष संकल्प पारित किया जाना आवश्यक है।

             प्रस्ताव अर्थात संकल्प पारित हो जाने के पश्चात भी परिवर्तन के लिए केंद्रीय सरकार द्वारा पुष्टि  किया जाना अपेक्षित है।


            परिवर्तन की स्वीकृति देने से पूर्व केंद्रीय सरकार द्वारा कंपनी रजिस्ट्रार को इस आशय की सूचना भेजी जाएगी ताकि वह परिवर्तन के संबंध में अपने सुझाव दे सके या आपत्तियां प्रस्तुत कर सके।

           कंपनी के आवेदन पर विचार करने के पश्चात केंद्र सरकार द्वारा परिवर्तन की स्वीकृति प्रदान की जाएगी।

रजिस्ट्रीकरण: कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 13(9) में आ गया है कि कंपनी रजिस्ट्रार द्वारा संगम ज्ञापन में किए गए किसी परिवर्तन को रजिस्ट्री कृत किया जाएगा।

              रजिस्ट्रीकरण का प्रमाणन कंपनी के विशेष संकल्प की प्राप्ति के 30 दिन के भीतर किया जाना अपेक्षित है।

            ऐसा रजिस्ट्रीकरण संगम ज्ञापन के उद्देश्य खंड में परिवर्तन का निश्चायक साक्ष्य  माना जाएगा।

Comments

Popular posts from this blog

असामी कौन है ?असामी के क्या अधिकार है और दायित्व who is Asami ?discuss the right and liabilities of Assami

अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार  (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि  (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार  (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार  (5)काशतकार भोग बंधकी  (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।           वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता ह...

पार्षद अंतर नियम से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of article of association)

कंपनी के नियमन के लिए दूसरा आवश्यक दस्तावेज( document) इसके पार्षद अंतर नियम( article of association) होते हैं. कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को ही अंतर नियम( articles of association) कहा जाता है. यह नियम कंपनी तथा उसके साथियों दोनों के लिए ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी की संपूर्ण प्रबंध व्यवस्था उसके अंतर नियम के अनुसार होती है. दूसरे शब्दों में अंतर नियमों में उल्लेख रहता है कि कंपनी कौन-कौन से कार्य किस प्रकार किए जाएंगे तथा उसके विभिन्न पदाधिकारियों या प्रबंधकों के क्या अधिकार होंगे?          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(5) के अनुसार पार्षद अंतर नियम( article of association) का आशय किसी कंपनी की ऐसी नियमावली से है कि पुरानी कंपनी विधियां मूल रूप से बनाई गई हो अथवा संशोधित की गई हो.              लार्ड केयन्स(Lord Cairns) के अनुसार अंतर नियम पार्षद सीमा नियम के अधीन कार्य करते हैं और वे सीमा नियम को चार्टर के रूप में स्वीकार करते हैं. वे उन नीतियों तथा स्वरूपों को स्पष्ट करते हैं जिनके अनुसार कंपनी...