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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

असामी कौन है ?असामी के क्या अधिकार है और दायित्व who is Asami ?discuss the right and liabilities of Assami

अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए

  • (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार 

  • (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि 

  • (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार 

  • (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार 

  • (5)काशतकार भोग बंधकी 

  • (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।

          वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता है या ग्राम पंचायत का ग्राम सभा या राज्य सरकार द्वारा पट्टे पर दी जाने वाली भूमि का असामी अधिकतम 5 साल तक के लिए 176( क) के अंतर्गत चुना जाता है .नियम अवधि के समाप्त हो जाने के उपरांत किसी भी समय आसामी को पट्टे की भूमि से हटाया जा सकता है भूमिधर या ग्राम सभा के मर्जी काल तक वह भूमि को धारण नहीं करता है और ना ही वह असल काश्तकार या गांव सभा की ओर से भूमि को धारण करता है वरन् वह अपने अधिकार में भूमि को धारण करता है ।िधि प्रक्रिया के बिना पूरा किए असल काश्तकार भी उसे बेदखल नहीं कर सकते हैं यदि आसामी को असल काश्तकार की मर्जी पर छोड़ दिया गया होता तो असल काश्तकार उससे उस समय भूमि ले लेता जब वह श्रम लगा चुका हो। तथा कटाई के लिए फसल तैयार हो गया हो इस प्रकार अधिनियम ने आसामी के साथ होने वाले अन्याय के लिए  सावधानी बरती है.


असामी के पृमुख आधिकार (Main Rights of Asami)

(1)भूमि का उपयोग (धारा 146): इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन रहते हुए आसामी को अपनी जोतगत भूमि पर अकेले कब्जे का अधिकार है वह अपनी जोत अगर भूमि को कृषि बागवानी पशुपालन जिसमें मत्स्य पालन और कुकुट पालन भी है से संबंधित किसी भी प्रयोजन आर्थ हेतु उपयोग कर सकता है.

  •              किंतु शर्त यह है कि जिस भूमि के विषय में राज्य सरकार ने बजट में विज्ञप्ति द्वारा यह घोषित कर दिया है कि उसमें टोंगिया रीति से  वन लगाने पर विचार किया जा रहा है या उसके लिए अलग कर दी गई है तो उस भूमि का उपयोग आसामी केवल कृषि की फसल लगाने के प्रयोजन नार्थ ही कर सकता है.

  •                     आसामी अपनी भूमि का उपयोग जानवर बांधने घूर लगाने खाद एकत्र करने चारा रखने उपले पाथने भिटहुर लगाने खलिहान रखने और कोल्हू गाड़ने के उपयोग में ला सकता है क्योंकि यह कृषि से संबंधित कार्य है।

              यहाँ धारा 146 के प्रावधान किसी संविदा के समाश्रित नहीं है यदि भूमिधर आसामी को केवल कृषि फसल उगाने के लिए ही भूमि को उठाता है और आसामी उस भूमि का उपयोग बागवानी या पशुपालन के लिए करता है तो इस संविदा की शर्तों के उल्लंघन पर भूमिधर को आसानी के खिलाफ भी निवारण प्राप्त नहीं है कारण है कि धारा 146 में वर्णित अधिकार विधान मंडल द्वारा प्रदान किए हैं उन्हें संविदा द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है इस प्रकार यदि तालाब को ग्राम पंचायत सिंघाड़ा उगाने के लिए किसी व्यक्ति को लगाने पर देती है तो ऐसा व्यक्ति धारा 132 के अंतर्गत आसामी कहलाएगा लाल बिहारी बनाम ग्राम सभा के वाद में ग्राम सभा द्वारा जीउत उगाने हेतु 1362 फसली वर्ष में ₹15 वार्षिक दर पर विवादित पोखरी दी गई थी उस को सिंघाड़ा ने 1363 से 1368 फसली तक लगान का भुगतान किया और उसके बाद लगान देना बंद कर दिया इसके उपरांत चकबंदी प्रक्रिया प्रारंभ हो गई और जीउत ने धारा धारा 9(क)(2) चकबंदी अधिनियम  1953 के अंतर्गत सीरदारी प्राप्त करना चाहा उप निर्देशक चकबंदी ने यह फैसला दिया कि जीउत भूमि का आसामी है तत्पश्चात ग्राम सभा की तरफ से पुनः धारा 202 के अंतर्गत पोखरी से बेदखल किए जाने हेतु धारा 80 सिविल प्रक्रिया संहिता की नोटिस जीउत  को दे दी गई जिसे परीक्षण न्यायालय ने निरस्त कर दिया परंतु आयुक्त न्यायालय ने ग्राम सभा प्रार्थी की अपील मंजूर करते हुए जीउत मृतक के उत्तराधिकारी लाल बिहारी को आसामी मानते हुए विवादित पोखरी से बेदखल करने एवं बाकी लगान वसूल करने का आदेश किया उक्त आदेश के विरुद्ध लाल बिहारी द्वारा द्वितीय अपील राजस्व परिषद में चुनौती दी गई जिसे न्यायालय ने निरस्त कर दिया यदि वह आसामी तालाब का उपयोग मछली पालने में करता या उसके कुल भाग में ध्यान लगा था तो उसे इस आधार पर गांव सभा में दखल नहीं कर सकेगी कारण यह है कि यह उपयोग अधिनियम द्वारा प्रदान है.


उल्लघन का परिणाम : इस धारा के उल्लंघन का परिणाम बहुत गंभीर बताया गया है वह हैं -

  •  बेदखली ( धारा 206,  207) - यदि असामी भूमि का उपयोग कृषि बागवानी पशुपालन जिसमें मत्स्य पालन एवं कुक्कुट पालन भी आता है के अलावा किसी अन्य प्रयोजन के लिए करता है तो यह क्षेत्रपति भूमिधर के वाद पर बेदखल हो जाएगा और उक्त असामी को क्षतिपूर्ति भी देना होगा जिससे उस भूमि को फिर उपयुक्त बनाया जा सके किंतु यदि डिक्री की तिथि से 3 माह के अंदर आसामी क्षति ठीक कर दे डिक्की मुकदमे के खर्च के अतिरिक्त के लिए निष्पादित नहीं की जाएगी.

  • (2)परित्याग (Abandoment)(धारा 186): - यदि कोई असामी जोतगत भूमि का उपयोग निरंतर दो फसली वर्षों तक कृषि बागवानी पशुपालन जिसमें मत्स्य पालन और कुकुट पालन भी सम्मिलित हैं के प्रयोजन हेतु नहीं करता है तो गांव सभा के या असल काश्तकार के आवेदन पर या और किसी तरह से पता चलने पर तहसीलदार नोटिस देंगे कि उसको जो भूमि उसको प्रदान की गई है उसको परित्याग करने के क्यों ना मान लिया जाए.

            अगर असामी उपस्थित होता है और नोटिस का प्रतिवाद करता है तो तहसीलदार नोटिस को तत्काल रद्द कर देंगे यदि वह उपस्थित नहीं होता है या उपस्थित होता है किंतु प्रतिवाद नहीं करता है तो तहसीलदार भूमि को परित्याग  घोषित कर देंगे परित्यक्त घोषित होने पर यदि असामी का अधिकार अजीवन स्वता धारा 172 के अंतर्गत है तो वह भूमि उत्तर भोगी को चली जाएगी यदि असामी धारा 172 में नहीं आता है तो भूमि खाली मानी जाएगी अर्थात यदि वह ग्राम पंचायत या असामी था तो वह भूमि ग्राम सभा को चली जाएगी यदि वह किसी अक्षम भूमिधर का असामी था तो अक्षम भूमिधर को प्राप्त हो जाएगी.

  • (2)पट्टा  पर भूमि उठाने का अधिकार :

सामान्यतः असामी अपनी भूमि का पट्टा नहीं कर सकता है किंतु अगर असामी ऐसा व्यक्ति है जिसे जमीदार ने अपनी सीर या खुदकाश्त भूमि जीवन निर्वाह वृत्ति (maintenance allowance) के एवज में उसे दिया था और वह व्यक्ति धारा 157 (1) मे वर्णित अक्षम व्यक्ति है तो वह अपनी जोतगत भूमि का पट्टा कर सकता है जो व्यक्ति भूमि पट्टे पर लेगा वह इस असामी का असामी अर्थात दर असामी होगा.

                धारा 156 अधिकार प्रदान करती है कि कोई भी असानी किसी भी अवधि के लिए किसी स्वीकृति शिक्षा संस्थान को कृषि बागवानी पशुपालन के प्रयोग हेतु अपनी जोतगत भूमि का पट्टा कर सकता है किंतु ध्यान देना होगा कि असामी का अधिकार अस्थाई होता है भूमिधर ने उसे कुछ समय के लिए भूमि दी है वह भूमिका स्वामी नहीं आता असामी अपनी जोतगत  भूमि को शिक्षा संस्थान को केवल उस अवधि के लिए ही दे सकता है जिस अवधि तक के लिए उसके क्षत्रपति (landlord) ने उसे भूमि दी है.

( 3) समर्पण करने इस्तीफा देने का अधिकार: - असामी अपनी जोतगत भूमि का इस्तीफा दे सकता है समर्पण संपूर्ण जोत का होना चाहिए किसी अंश का समर्पण प्रभावशाली नहीं होगा समर्पण का तरीका लगभग वही है जो  असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधर का है अर्थात यदि वह ग्राम पंचायत की भूमि का असामी है तो भूमि प्रबंधक समिति को और यदि भूमिधर का असामी है तो उस भूमिधर को इस विचार की लिखित नोटिस देकर और कब्जा छोड़कर भूमि का समर्पण कर सकता है अगर आवेदन पत्र या नोटिस 1 अप्रैल के पहले नहीं दी जाती है तो असामी को समर्पण तिथि के ठीक अगले वर्ष के लगान से उसका छुटकारा नहीं होगा उदाहरण के रूप में अ उसका क्षेत्र पति है बा भूमि का समर्पण करने की इच्छा 3 अप्रैल 1994 को बा को लिखित नोटिस देता है जो उसे 4 अप्रैल को मिल जाती है 3 मई 1994 को आप होने का कब्जा छोड़ देता और भूमि से इस्तीफा दे देता है क्या अगले वित्तीय कृषि वर्ष 1402 फसली 1 जुलाई 1994 से 30 जून 1995 तक के लगान के लिए इस्तीफा प्रभावशाली रहेगा उत्तर नाम में होगा क्योंकि समर्पण की नोटिस 1 अप्रैल के पहले नहीं दी गई है तथा 1 अप्रैल से नया वित्तीय वर्ष प्रारंभ हो चुका था इसलिए लगान देना पड़ेगा.

(4)स्वत्व समाप्ति या बेदखली पर मौजूदा फसल आदि को हटा लेने का अधिकार (धारा 193): जब कोई असामी अपनी जोत से बेदखल हो जाएगा या उसके स्वत्व समाप्त हो जाएंगे तो उसे अधिकार है कि वह अपनी जोतगत में विद्यमान खड़ी फसल वृक्ष तथा निर्माणों को हटा ले इस धारा के प्रावधान धारा 203 के अधीन है धारा 203 बेदखली के तरीके और उसके प्रभाव को बताती है अगर कोई खड़ी फसल और पेड़ है तो उसका क्या होगा डिक्री का निष्पादन करने वाले अदालत खड़ी फसल और पेड़ों का मूल्यांकन करेगी जो मुआवजा दे होगा उसमें से वाद  ऋणी के बकाया लगान मुकदमा खर्चों इत्यादि का मुजरा दिया जाएगा मुजरा करने पर यदि कुछ धनराशि बचती है तो गांव सभा या क्षेत्रपति जैसी भी दशा हो को विकल्प होगा कि वह धनराशि को वाद ऋणी को दे या न दे यदि ग्राम सभा क्षेत्रपति बची धनराशि उस असामी को नहीं देती है तो बेदखल किए गए व्यक्ति को यह अधिकार होगा कि वह फसल को एकत्र करें और समय पर कटे या पेड़ को और उसके फलों को तब तक लेता रहे जब तक गिर ना जाए सुख ना जाए या काट ना लिए जाएं इन हालातों में वाद लेने की भूमिका के उपयोग और कब्जे के लिए न्यायालय द्वारा निश्चित किया गया मुआवजे को देना पड़ेगा.

             धारा 193 और 203 का सयुक्त  परिणाम यह है कि बेदखल किए जाने वाला व्यक्ति जोतगत भूमि से खड़ी फसल और वृक्ष के लिए तभी मुआवजा पा सकता है जब ग्राम पंचायत या क्षेत्रपति का हिसाब मुकदमे का खर्चा लेकर मुआवजा की धनराशि से कम हो यदि मुआवजा की धनराशि उसके बराबर है या उससे कम है तो वह सब हिसाब में मुजरा कर दिया जाएगा और बेदखल किए जाने वाले व्यक्ति को कुछ भी नहीं मिलेगा.

( 5) असंक्रम्य अधिकार वाला भूमिधर हो जाना: - धारा 204 के अनुसार जब किसी असामी का असामी बने रहने का हक या अवधि काल समाप्त हो जाता है और उसके मियाद काल में बेदखली का वाद दायर नहीं किया गया या बेदखली हो गई किंतु उस को निष्पादित नहीं किया गया तो मियाद याद काल के बाद ऐसा असामी  असंक्रम्य के अधिकार वाला भूमिधर हो जाएगा और असंक्रामक अधिकार वाले भूमिधर के रूप में भूमि धारण करने वाला जोतदार उत्तर प्रदेश जमीदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार संशोधन अधिनियम 1995 की धारा 131 ख के लागू होने की तिथि से वे सभी असंक्रम्य  में अधिकार वाले भूमिधर जिन्हे   10 वर्ष या उससे अधिक भी बीत  चुका है संक्रम्य में अधिकार वाला भूमिधर बन जाएगा तथा भूमि को अंतरण कर सकेगा.

( 6) लगान संबंधी अधिकार: -
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जोतगत भूमि के क्षेत्रफल रकबा घटाने या बढ़ाने के अलावा किसी दशा में उसके लगान में कोई परिवर्तन नहीं होगा किसी संविदा के अभाव में लगान दो किस्तों में देय  होगा.

लगान निश्चित करने का वाद: - जहां असामी का लगान निश्चित नहीं है या जींस (अनाज) में है या जींस और पैसे दोनों में है वहां असामी लगान निश्चित करने का वाद प्रस्तुत कर सकता है लगान मौरूसी दर से निकाली गई धनराशि के दूने के बराबर निश्चित किया जाएगा

( 3) कृषि संबंधी विपत्ति पर लगान में छूट: - जब कभी सूखा बाढ़ ओला इत्यादि कृषि आपत्ति हो जाती है और राज्य सरकार धारा 268 के मुताबिक भूमिधकायद ारी में छूट देती है तो भूमि पर काबिजअसामी को भी लगान पर छूट दे दी जाए सकती है.

( 4) बकाया लगान  डिक्री  देते समय न्यायालय द्वारा छूट: - यदि लगान के मुकदमे को सुनते समय न्यायालय को यह संतोष हो जाएगी बकाया लगानमें जोत का क्षेत्रफल जल प्लावन के कारण घट गया है या उसकी सूखा ओला बालू पर जाने आदि विपत्ति से कम हो गई है तो न्यायालय लगान में ऐसी छूट दे सकता है जो उससे न्याय संगत मालूम हो.

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