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Showing posts with the label The Indian Penal Code

भारतीय दंड संहिता की धारा 499 क्या कहती है ? इसका मानहानि के दावा करने से क्यों सम्बंधित है?

मानहानि (Defamation) - "मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।" उसका समाज में अपना अस्तित्व होता है और हर प्राणी अपने अस्तित्व को बनाये रखता है। मनुष्य को अनेक सामाजिक कर्तव्यों का निर्वाह करना होता है रोज उसके लिए अनेक संघर्षों का सामना भी करना पड़ता है। उसे सामाजिक आर्थिक एवं व्यक्तिगत सुरक्षा के अनेक कार्यकार उपलब्ध हैं। वह इन अधिकारों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप या अवरोध पसन्द नहीं करता। खासतौर से वह  किसी प्रकार का विघ्न नहीं चाहता, क्योंकि सभी अधिकारों में प्रतिष्ठा का कार्यकार एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यदि कोई व्यक्ति उसके प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाता है, तो वह दण्डनीय माना जाता है। अतः व्यक्ति की प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए भारतीय दण्ड संहिता की धारा, धारा 499 से 502 तक के मानहानि के बारे में प्रावधान किया गया है। इस संहिता की धारा 499 में 'मानहानि' अपराध की परिभाषा इस प्रकार दी गई है कि जो कोई या तो बोले गये या पढ़े जाने के लिए आशयित शब्दों द्वारा संकेतों द्वारा या दृश्य रूपेण द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन स

भारतीय दंड संहिता की धारा 141 क्या है ?What is Section 141 of the Indian Penal Code?

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 141 में दी गई विधि विरुद्ध जमाव की परिभाषा अनुसार, “पाँच या पाँच से अधिक व्यक्तियों के ऐसे जमाव को जिसका सामान्य उद्देश्य के इस धारा में प्रमाणित किसी उद्देश्य के लिये हुआ हो, विधि विरुद्ध जमाव कहा जायेगा। इस धारा के स्पष्टीकरण के अनुसार कोई जमाव, जो इकट्ठा होते समय विधि विरुद्ध न हो बाद में विधि-विरुद्ध जमाव हो सकेगा।   विधि विरुद्ध जमाव के निम्नलिखित आवश्यक तत्व हैं-  (1) विधि विरुद्ध जमाव में पाँच या इससे अधिक व्यक्ति होने चाहिए ।  (2) विधि विरुद्ध जमाव के अपराध के लिये सदस्यों का सामान्य उद्देश्य होना चाहिए।  (3) ऐसा सामान्य उद्देश्य विधि विरुद्ध होना चाहिये ।   विधि विरुद्ध जमाव का सदस्य होना— जब कोई व्यक्ति उन तथ्यों से जिनके लिये कानून के विरुद्ध जमाव हुआ हो, परिचित होने के बाद उस जमाव में साशय सम्मिलित होता है, बना रहता है तो यह कहा जाता है कि वह उस विधि विरुद्ध जमाव का सदस्य है।  दण्ड — “जो कोई विधि विरुद्ध जमाव का सदस्य होगा, वह तीनों में से किसी भाँति के कारावास से जिसकी अवधि 6 मास भी हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जा सकेगा।&qu

भारतीय दंड संहिता में धारा 375 क्या बताती है?What does Section 375 in the Indian Penal Code tell?

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 375 के बलात्कार के अपराध का वर्णन किया गया है । इस अपराध के निम्नलिखित आवश्यक तत्व हैं-  (1) किसी पुरुष के द्वारा किसी स्त्री के साथ लैंगिक सम्भोग (Sexual intercourse) किया जाना, एवं   (2) ऐसे लैंगिक सम्भोग का निम्नलिखित परिस्थियों में से किसी के अन्तर्गत किया जाना  (i) उस स्त्री की इच्छा के विरुद्ध,  (ii) उस स्त्री की सम्मति (Consent) के बिना,  (iii) उस स्त्री की मृत्यु या चोट का भय बताकर सम्मति प्राप्त करके ।  (iv) उसे अपने को पति बनाकर जबकि वास्तव में वह उसका पति नहीं है।  (v) उसकी सम्मति या. बिना सम्मति के, जबकि उसकी आयु 16 वर्ष से कम है।  (vi) उस स्त्री की सम्मति से, जबकि सम्मति देने के समय वह मन की विकृत चिन्तन मदत्त अथवा किसी मादक या अस्वास्थ्यकर पदार्थ के सेवन के कारण कार्य की प्रकृति एवं  परिणाम जान सकने में असमर्थ रही हो । The crime of rape is described in Section 375 of the Indian Penal Code.  Following are the essential elements of this offence:  (1) Sexual intercourse by a man with a woman, and  (2) Such sexual intercourse taking pla

डकैती और लूट में क्या अंतर होता है? डकैती और लूट में कितनी सजा का प्रावधान है?

लूट : भारतीय दण्ड संहिता की धारा 390 में लूट शब्द की कोई परिभाषा नहीं दी गयी है बल्कि केवल इतना वर्णन किया गया है कि सब प्रकार की लूट में चोरी या उद्दापन होता है। [In all Robbery there is either theft or extortion) ((धारा 390) | ( सब प्रकार की लूट में या तो चोरी या उद्यापन होता है।)   चोरी कब लूट है→ चोरी लूट है  यदि उस चोरी को करने के लिये या उस चोरी के 'करने में या उस चोरी द्वारा अभिप्राप्त सम्पति को ले जाने या ले जाने का प्रयत्न करने में अपराधी उस उदेश्य से स्वेच्छया किसी व्यक्ति की मृत्यु या उपहति या उसका सदोष अवरोध या तत्काल मृत्यु का  सदोष अवरोध भय कारित करता है, या कारित करने का प्रयत्न करता है।   जब लूट चोरी होती है (when theft is Robbery) चोरी उस समय लूट होती है जब चोरी करने के लिये चोरी प्राप्त सम्पत्ति को ले जाने या ले जाने की चेष्टा करने में अभियुक्त उस कार्य के लिये स्वेच्छा से किसी व्यक्ति की मृत्यु करता  या उसे चोट पहुंचाता है,  • उसका दोषपूर्ण अवरोध करता है, या  • तत्काल मृत्युकारित करने का भय उत्पन्न करता है, या  ● तत्काल चोट पहुंचाने का दोषपूर्ण अवरोध

चार्जशीट क्या होती है? यह कब और कहां दाखिल की जाती है ?

Crpc की धारा 173 में चार्जशीट की के बारे में उल्लेख किया गया है। जिसमें बताया गया है कि पुलिस द्वारा किसी केस की जांच की अंतिम रिपोर्ट Crpc की धारा 173(2) के अन्तर्गत चार्जशीट कहलाती है। चार्जशीट को किसी आरोपी के खिलाफ 60 से 90 दिनों के अंदर जांच अधिकारी द्वारा  कोर्ट के समक्ष पेश किया जाता है। अगर पुलिस द्वारा चार्जशीट कोर्ट में नही पेश की जाती है तो गिरफ्तारी को अवैध माना जाता है और आरोपी जमानत पाने का हकदार बन जाता है।  के .वीरास्वामी बनाम भारत सरकार और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि CrPC की धारा 173(2) के तहत चार्जशीट अतिम रिपोर्ट है।  Section 173 of CrPC mentions about charge sheet.  In which it is said that the final report of investigation of a case by the police is called charge sheet under section 173(2) of CrPC.  The charge sheet against an accused is presented before the court by the investigating officer within 60 to 90 days.  If the charge sheet is not presented in the court by the police then the arrest is considered illegal and the accused becomes entitled

section 498A IPC सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला २०२३।

धारा 498A IPC का अनुच्छेद विवाहित पुरुषों के खिलाफ दहेज के अत्यधिक शिकायत करने की प्रक्रिया को विवरणित करता है। यह धारा विवाहित महिलाओं को दहेज और उनका उनके प्रति की गई मानसिक, शारीरिक या किसी प्रकार के क्रूर व्यवहार के खिलाफ रक्षा प्रदान करती है।  या  सरल शब्दों में हम कहे की धारा 498A आई.पी.सी का वह सेक्शन है जिसमें किसी शादीशुदा महिला पर उसके पति या उसके पति के घरवाले या उसके  रिश्तेदार जो उसके खिलाफ किसी प्रकार की क्रूरता करने के लिये कहते हैं। ऐसे लोग धारा 498A के तहत अपराध के दायरे में आते हैं। क्रूरता, शारीरिक और मानसिक दोनो ही प्रकार की हो सकती है। शारीरिक  क्रूरता में महिला के साथ मारपीट जबकि मानसिक क्रूरता  के अन्तर्गत गाली-गलौज, ताने मारना या बात-बात पर किसी भी तरह मानसिक रूप से प्रताडित करना शामिल है ।  Section 498A of the IPC details the procedure for filing complaints of excessive dowry against married men.  This section protects married women against dowry and any kind of mental, physical or cruel treatment done to them.   Or  In simple words, we say that Section 498A of

आई.पी.सी. की धारा 383 क्या है? विस्तार से बताइए।IPC What is section 383 of IPC? Explain in detail.

भारतीय दंड संहिता की धारा 383 में उद्दीपन की परिभाषा दी गई है। जो इस प्रकार है- कोई किसी व्यक्ति को या किसी अन्य व्यक्ति को जानबूझकर क्षति पहुंचाने का भय उत्पन्न करता है और इस प्रकार भय में डाले गए व्यक्ति को कोई मूल्यवान संपत्ति या प्रतिभूति में परिवर्तित किया जा सके किसी व्यक्ति को प्रदत्त करने के लिए बेईमानी से उत्प्रेरित करता है वह उद्दापन करता है।      यदि हम उद्दापन को आम बोलचाल की भाषा में बात करें तो यह अलग-अलग रूप से हमें समझ में आती है अगर हम यूपी और बिहार स्टेट में बात करें तो यहां पर इस प्रकार के कृत्य को रंगदारी के नाम से जाना जाता है रंगदारी एक प्रकार से दबंगों गुंडों द्वारा किसी व्यक्ति को जान से मारने की धमकी और उस धमकी की एवज में उनसे एक मोटी रकम या किसी भी प्रकार की प्रॉपर्टी की मांग करना भी उद्यापन की श्रेणी में आता है। अगर हम अन्य राज्यों में बात करते हैं तो मुंबई मैं जिस प्रकार अंडरवर्ल्ड का दौर था वहां पर उद्यापन को या रंगदारी वसूलने के या धन उगाही करने का तरीका अंडरवर्ल्ड का प्रमुख व्यवसाय था। ऐसी परिस्थितियों में अगर हम बात करें तो आईपीसी की सेक्शन 386 यहां पर ल