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Showing posts with the label The Indian Penal Code

किशोर अभियुक्त के विचारण के सम्बन्ध में आवेदन पत्र की drafting कैसे की जाती है ?

What is the Bail in Law?

                      Introduction:-  bail is a set of pre trial restrictions that are imposed on a suspect to  ensure that they comply with the judicial process. Bail is the conditional release of a defendant with the promise to appear in court when required .The Code of Criminal procedure 1973 does not defie bail although the terms bailable offence and non- bailable offence have been defined in section 2(a) of the code.   Bailable offence:- A bailable offence is an offence which is shown as  bailable in the first schedule of the code or which is made bailable by any other Law. It is use serious offence.   Non-Bailable offence: It means any other offence. These are serious nature crimes. The police can not grant bails. it can only be granted by a Judicial magestrate / Judge.  Section 436 to 450 Set out the provisions for the grant of bail in criminal cases.   Object of Bail: The provis...

केवल जमानत शर्तों का उल्लंघन जमानत रद्ध करने के लिये पर्याप्त नहीं होगा।

राजिया बनाम हरियाणा राज्य  पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने न्यायमूर्ति जसजीत सिंह बेदी द्वारा जमानत शर्तों की स्वचालित रूप से रद्द करने पर यह कहा गया है कि एक बार जमानत मिलने के बाद उसे रद्द करने के लिये ठोस कारण होने चाहिये। केवल जमानत शर्तों का उल्लंघन जमानत रद्द करने के लिये पर्याप्त नहीं होगा।  सुप्रीम कोर्ट के कथनानुसार जमानत को रद्द किया जा सकता है यदि साक्ष्य अपराध के रहस्य या सामाजिक प्रभाव पर ध्यान नहीं दिया गया हो।         राजिया बनाम हरियाणा राज्य के मामले में जमानत देने के आदेश में एक शर्त शामिल थी जिसमें कहा गया था, "यह स्पष्ट है कि अगर जमानत देने के आदेश  में कोई अन्य मामला शामिल है तो मामले में जमानत दी जायेगी।   धारा 482 CrPC के तहत यदि आवेदक समान प्रकृति के किसी दूसरे मामले में शामिल है तो मौजूदा मामले में दी गयी जमानत को खारिज कर दिया जायेगा। सत्र न्यायाधीश  फरीदाबाद ने पुलिस स्टेशन सुराजकुण्ड फरीदाबाद हरियाणा में एनडीपीएस अधिनियम की धारा 20-61-85 के तहत दर्ज था जिससे याचिकाकर्ता को दी गयी जमानत को रद्द कर दिया गया।...

भारतीय दंड संहिता की धारा 76 क्या कहती है? इसमें प्रयुक्त शब्द तथ्य की भूल क्षम्य है लेकिन कानून की भूल क्षम्य नहीं है क्या संबंध है?What does section 76 of the Indian Penal Code say? The words used in it are excusable mistake of fact but not excusable mistake of law what is the relation?

 भारतीय दण्ड संहिता की धारा 76 में यह उपबन्धित किया गया है कि " कोई बात अपराध नहीं है जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाय जो उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो या जो तथ्य की भूल के कारण न कि विधि की भूल के कारण , सद्भावनापूर्वक विश्वास करता हो कि उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध है ।   उदाहरण 2  ( क ) विधि के समादेशों के अनुवर्तन में अपने वरिष्ठ ऑफिसर के आदेश से एक सैनिक ' क ' भीड़ पर गोली चलाता है । ' क ' ने कोई अपराध नहीं किया ।  ( ख ) न्यायालय का ऑफिसर ' क ' , ' म ' को गिरफ्तार करने के लिए उसे न्यायालय द्वारा अदिष्ट किये जाने पर और सम्यक् जाँच के पश्चात् यह विश्वास करके कि ' य ' , ' म ' है , ' य ' को , गिरफ्तार कर लेता है । ' क ' ने कोई अपराध नहीं किया ।   इस धारा में तथ्य की भूल को आपराधिक दायित्व से बचने के लिए एक उचित आधार के माना गया है । स्टोरी के अनुसार , " भूल से अभिप्राय एक ऐसी निरुद्देश्य कार्य अथवा चूक ( act or omission ) से है जो अज्ञान , विस्मय अथवा गलती से किये गये विश्वास के कारण नि हुई है ।...

हत्या के लिए आई पी सी की कौन सी धाराएं लगती हैं?

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 हम लोगो ने कभी न कभी जरूर सुना होगा। किसी घटना में प्राय: लोगों द्वारा यह सुना ही गया होगा कि किसी व्यक्ति के खिलाफ पुलिस द्वारा 302 का मुकदमा लिखा गया है। लेकिन क्या IPC के इस act का पूरा मतलब हम लोग सही प्रकार से समझने में थोड़ा सा असहजता जरूर दिखाई देती है कि 302 का मुकदमें से हम यह समझते है कि किसी व्यक्ति द्वारा यदि किसी दूसरे व्यक्ति कि हत्या की जाती है तो वह व्यक्ति भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के तहत अपराधी होगा। लेकिन यहाँ पर धारा 302 के तहत अपराधी नहीं बल्कि धारा 302 में हत्या की सजा का प्रावधान की धारा है।      जो व्यक्ति मृत्यु करने के इरादे से या ऐसा शारीरिक आघात पहुंचाने के उद्देश्य से जिसमे उसकी पूरी मंशा हो कि वह किसी दूसरे व्यक्ति कि मृत्यु किया जाना सम्भव हो और यह जानते हुये कि उस कार्य से मृत्यु होने की सम्भावना है कोई कार्य करके मृत्यु करता है तो वह सदोष मानव वध का अपराध करता है तो वह भारतीय दण्ड संहिता की धारा २११ के अन्तर्गत आता है।     इस श्रेणी में निम्नलिखित सामाज में घटित होने वाली घटनाय...

भारतीय दंड संहिता में धारा 375 क्या बताती है?What does Section 375 in the Indian Penal Code tell?

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 375 के बलात्कार के अपराध का वर्णन किया गया है । इस अपराध के निम्नलिखित आवश्यक तत्व हैं-  (1) किसी पुरुष के द्वारा किसी स्त्री के साथ लैंगिक सम्भोग (Sexual intercourse) किया जाना, एवं   (2) ऐसे लैंगिक सम्भोग का निम्नलिखित परिस्थियों में से किसी के अन्तर्गत किया जाना  (i) उस स्त्री की इच्छा के विरुद्ध,  (ii) उस स्त्री की सम्मति (Consent) के बिना,  (iii) उस स्त्री की मृत्यु या चोट का भय बताकर सम्मति प्राप्त करके ।  (iv) उसे अपने को पति बनाकर जबकि वास्तव में वह उसका पति नहीं है।  (v) उसकी सम्मति या. बिना सम्मति के, जबकि उसकी आयु 16 वर्ष से कम है।  (vi) उस स्त्री की सम्मति से, जबकि सम्मति देने के समय वह मन की विकृत चिन्तन मदत्त अथवा किसी मादक या अस्वास्थ्यकर पदार्थ के सेवन के कारण कार्य की प्रकृति एवं  परिणाम जान सकने में असमर्थ रही हो । The crime of rape is described in Section 375 of the Indian Penal Code.  Following are the essential elements of this offence:  (1) Sexual intercourse by a ma...

धारा 511 में अपराध को कैसे परिभाषित किया गया है ?

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 511 में आपराधिक प्रयत्न के अपराध का वर्णन किया गया है। जिसका मतलब है कि किसी अपराध करने का प्रयास करना अपराध की श्रेणी में जब तक नहीं आयेगा । परन्तु भारतीय दण्ड संहिता के अनुसार आजीवन कारावास या कारावास के दण्डनीय अपराध की करने या करवाने की चेष्टा करना और उसके फलस्वरूप उस अपराध दशा में कोई कार्य किये जाने पर यदि इस संहिता में उसके लिये कोई दण्ड की अवस्था न हो तो आजीवन कारावास के दण्ड वाले मामले में अधिकतम कारावास की अवधि के आधे तक के लिगे या दोनो से दण्डित किया जा सकता है।       धारा 511 को समझने के लिये एक उदाहरण के हम समझते है कि जिसमें किसी अभियुक्त द्वारा एक लड़की को पकड़ा और उसे बलपूर्वक झाडियो के पास ले गया उसे जमीन पर गिराकर उसके अंदरुनी कपडे हटाये, उसके ऊपर चढ़ गया और घुसाने का प्रयास किया लेकिन वह सफल होता इससे पहले ही लड़की को रक्तस्राव होने लगा। यहाँ पर अभियुक्त धारा 511 के अधीन बलात्कार के प्रयास का दोषी होगा । यहाँ पर अभियुक्त ने धारा 376 के अपराध की कारित करने का प्रयत्न किया है।        इसीप्रका...

भारतीय दंड संहिता की धारा 499 क्या कहती है ? इसका मानहानि के दावा करने से क्यों सम्बंधित है?

मानहानि (Defamation) - "मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।" उसका समाज में अपना अस्तित्व होता है और हर प्राणी अपने अस्तित्व को बनाये रखता है। मनुष्य को अनेक सामाजिक कर्तव्यों का निर्वाह करना होता है रोज उसके लिए अनेक संघर्षों का सामना भी करना पड़ता है। उसे सामाजिक आर्थिक एवं व्यक्तिगत सुरक्षा के अनेक कार्यकार उपलब्ध हैं। वह इन अधिकारों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप या अवरोध पसन्द नहीं करता। खासतौर से वह  किसी प्रकार का विघ्न नहीं चाहता, क्योंकि सभी अधिकारों में प्रतिष्ठा का कार्यकार एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यदि कोई व्यक्ति उसके प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाता है, तो वह दण्डनीय माना जाता है। अतः व्यक्ति की प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए भारतीय दण्ड संहिता की धारा, धारा 499 से 502 तक के मानहानि के बारे में प्रावधान किया गया है। इस संहिता की धारा 499 में 'मानहानि' अपराध की परिभाषा इस प्रकार दी गई है कि जो कोई या तो बोले गये या पढ़े जाने के लिए आशयित शब्दों द्वारा संकेतों द्वारा या दृश्य रूपेण द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन स...

भारतीय दंड संहिता की धारा 141 क्या है ?What is Section 141 of the Indian Penal Code?

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 141 में दी गई विधि विरुद्ध जमाव की परिभाषा अनुसार, “पाँच या पाँच से अधिक व्यक्तियों के ऐसे जमाव को जिसका सामान्य उद्देश्य के इस धारा में प्रमाणित किसी उद्देश्य के लिये हुआ हो, विधि विरुद्ध जमाव कहा जायेगा। इस धारा के स्पष्टीकरण के अनुसार कोई जमाव, जो इकट्ठा होते समय विधि विरुद्ध न हो बाद में विधि-विरुद्ध जमाव हो सकेगा।   विधि विरुद्ध जमाव के निम्नलिखित आवश्यक तत्व हैं-  (1) विधि विरुद्ध जमाव में पाँच या इससे अधिक व्यक्ति होने चाहिए ।  (2) विधि विरुद्ध जमाव के अपराध के लिये सदस्यों का सामान्य उद्देश्य होना चाहिए।  (3) ऐसा सामान्य उद्देश्य विधि विरुद्ध होना चाहिये ।   विधि विरुद्ध जमाव का सदस्य होना— जब कोई व्यक्ति उन तथ्यों से जिनके लिये कानून के विरुद्ध जमाव हुआ हो, परिचित होने के बाद उस जमाव में साशय सम्मिलित होता है, बना रहता है तो यह कहा जाता है कि वह उस विधि विरुद्ध जमाव का सदस्य है।  दण्ड — “जो कोई विधि विरुद्ध जमाव का सदस्य होगा, वह तीनों में से किसी भाँति के कारावास से जिसकी अवधि 6 मास भी हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनो...