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Showing posts from December, 2021

IPC की धारा 294 और BNS की धारा 296 सार्वजनिक अश्लीलता पर कानून और सजा का पूरा विवरण

Pravivaran को परिभाषित कीजिए give the definition of prospectus

कंपनी विवरण पत्रिका से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of company prospectus): - कंपनी अधिनियम की धारा 2(70)2013 के अनुसार प्रविवरण पत्रिका का आशय ऐसे प्रपत्र से है जो  प्रविवरण की तरह वर्णित या निर्गमित किया जाता है और ऐसे नोटिस  परिपत्र विज्ञापन या अन्य प्रपत्रों को शामिल करता है जो जनता से निक्षेप आमंत्रित करते हैं या जो एक समामेलित  संस्था के अंशों  तथा ऋण पत्रों के क्रय करने के लिए जनता से प्रस्ताव आमंत्रित करता है।                इस प्रकार का विवरण या विवरण पत्र एक प्रकार की जनता के प्रति कंपनी के अंश या डिवेंचर खरीदने की अपील है। ऐसा विज्ञापन जिससे जनता के प्रति एनसीआर डिवेंचर प्रस्तावित किए जाते हैं प्रोस्पेक्टस माना जाता है। अंशों  और डिबेन्चरों के लिए प्रार्थना पत्र बांटे नहीं जा सकते जब तक कि उनके साथ ऐसा एक दस्तावेज ना दिया जाए जिसमें प्रोस्पेक्टस कि वे मुख्य मुख्य बातें बताई गई हो जो सरकार द्वारा निर्धारित हो। इसका प्रभाव यह है कि अब तो केवल एक ऐसा दस्तावेज प्रार्थना पत्रों के साथ देना होगा जो प्रोस्पेक्टस के मुख्य लक्ष्य दर्शाया करे।कोलकता उच्च न्यायाल

कंपनी के निगमन से आपका क्या तात्पर्य है? निगमन की प्रक्रिया को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए. निगमन के प्रमाण पत्र एवं इसमें विधिक महत्व को भी समझाइए.( what is meant by incorporation of the company? Explain Its process. Explain also certificate of incorporation and its legal significance)

कंपनी का निगमन( incorporation of a company):- कंपनी के विषय में कंपनी के निगमन का महत्वपूर्ण स्थान है. अतः यह कंपनी के निर्माण का दूसरा चरण है इसे कंपनी का रजिस्ट्रीकरण भी कह सकते हैं अतः यह निगमन ही है जिससे कंपनी को विधिक व्यक्ति तथा चिरस्थाई अस्तित्व प्राप्त होता है. सामान्यतः  निगमन के बाद ही कंपनी अपना बिजनेस करती है।          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 7 के अनुसार कंपनी के निगमन अर्थात रजिस्ट्रीकरण के लिए उस कंपनी रजिस्ट्रार को जिस की अधिकारिता के अंतर्गत उस कंपनी का रजिस्टर्ड कार्यालय स्थित किया जाना प्रस्तावित है आवेदन करना होगा। एवं आवेदन के समय निम्नलिखित दस्तावेज तथा जानकारियां फाइल की जाएंगे (1) संगम ज्ञापन:- कंपनी के निगमन से संबंधित यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है. संगम ज्ञापन में नीचे लिखी बातों का उल्लेख किया जाएगा: (a) मेंबरों के नाम एवं पते(b) उनका कारोबार(c) उनके द्वारा धारित अंशों की संख्या एवं(d) प्रस्तावित रजिस्टर्ड कार्यालय का विवरण           संगम ज्ञापन पर अब सभी सदस्यों द्वारा हस्ताक्षर किए जाएंगे तथा उस पर कंपनी की मोहर( seal) अंकित की जाएगी.        

पार्षद अंतर नियम से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of article of association)

कंपनी के नियमन के लिए दूसरा आवश्यक दस्तावेज( document) इसके पार्षद अंतर नियम( article of association) होते हैं. कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को ही अंतर नियम( articles of association) कहा जाता है. यह नियम कंपनी तथा उसके साथियों दोनों के लिए ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी की संपूर्ण प्रबंध व्यवस्था उसके अंतर नियम के अनुसार होती है. दूसरे शब्दों में अंतर नियमों में उल्लेख रहता है कि कंपनी कौन-कौन से कार्य किस प्रकार किए जाएंगे तथा उसके विभिन्न पदाधिकारियों या प्रबंधकों के क्या अधिकार होंगे?          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(5) के अनुसार पार्षद अंतर नियम( article of association) का आशय किसी कंपनी की ऐसी नियमावली से है कि पुरानी कंपनी विधियां मूल रूप से बनाई गई हो अथवा संशोधित की गई हो.              लार्ड केयन्स(Lord Cairns) के अनुसार अंतर नियम पार्षद सीमा नियम के अधीन कार्य करते हैं और वे सीमा नियम को चार्टर के रूप में स्वीकार करते हैं. वे उन नीतियों तथा स्वरूपों को स्पष्ट करते हैं जिनके अनुसार कंपनी का व्यवसाय चलाया जाता है और जिनमें समय-समय पर कंपनी के आंत

पार्षद अंतर नियमों को बदलने के नियम( rules of alteration of articles of association)

अंतर नियम में परिवर्तन का आशय है उसमें कोई नया नियम जोड़ना या किसी भी विद्यमान नियम को प्रतिस्थापित करना या निरस्त करना. कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 14 के अनुसार कंपनी अपने अंतर नियम में किसी समय विशेष प्रस्ताव द्वारा परिवर्तन कर सकती है. कोई भी ऐसा नियम जो अंतर नियमों में परिवर्तन को वर्जित करता हो अवैध होगा. कंपनी के अंतर नियमों में परिवर्तन के कारण कभी-कभी यह स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि कंपनी की बाहरी व्यक्ति के साथ संविदा भंग हो जाती है. उदाहरण स्वरूप चिदंबरम चेट्टियार बनाम कृष्णयन कर आई आई आर 33 मेड 36 के केस में कंपनी के अंतर नियम में यह उपबंध था कि कंपनी के सचिव को ₹250 मासिक वेतन दिया जाएगा. वादी ने इस शर्त के साथ कंपनी के सचिव का पद ग्रहण किया परंतु कुछ समय पश्चात कंपनी ने अपने अंतर नियमों में परिवर्तन करके सचिव का वेतन घटाकर कम कर दिया. वादी ने इसके विरुद्ध वाद दायर किया. न्यायालय के समक्ष इंडिया प्रश्न था कि क्या कंपनी द्वारा अंतर नियमों में किया गया परिवर्तन वैद्य है. न्यायालय ने अपना निर्णय देते हुए कहा कि यदि वादी द्वारा कंपनी से की गई संविदा पूर्णतया अंतर नियमों पर आधारि

कम्पनी के पार्षद अन्तर्नियमों का वैधानिक महत्व (Legal importance of company Articles of Association )

कंपनी के पार्षद अंतर नियमों द्वारा कंपनी तथा उसके सदस्यों के मध्य परस्पर संबंध निश्चित किए जाते हैं तथा उनमें निर्धारित नियम एक दूसरे के प्रति लागू होते हैं. कंपनी अपने अंश धारियों( shareholders) के प्रति कोई भी ऐसा कार्य नहीं कर सकती जो उसके अंदर नियमों में उल्लेखित ना हो. की तरह अंश धारी भी कंपनी के विरुद्ध ऐसा कोई कार्य नहीं कर सकते जिसे करने का अधिकार उन्हें अंतर नियमों में प्राप्त नहीं है. इस नियम का उल्लंघन करने पर एक पक्ष दूसरे के विरुद्ध कोर्ट में वाद चला सकता है. तो यह उल्लेखनीय है कि समानता अंतर देवों के नियम जो के बाद किसी प्रकार का अनुबंध स्थापित नहीं करते हैं फिर भी यदि कंपनी चाहे तो अपने अंतर नियमों द्वारा सदस्यों के परस्पर संबंधों को नियंत्रित कर सकती है.          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 10(1) मे उप बंधित किया गया है कि सीमा नियम एवं अंतर नियम दोनों  ही कंपनी तथा उसके सभी सदस्यों पर बंधन कारी प्रभाव रखते हैं। इस धारा के अनुसार कंपनी अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी सीमा नियम तथा अंतर नियम का पंजीकरण हो जाने के पश्चात उनका कंपनी तथा उसके सदस्यों पर ठीक व

कंपनी के आंतरिक प्रबंध का सिद्धांत( doctrine of Indoor Management)

रचनात्मक सूचना( constructive notice) के अनुसार किसी भी बाहरी व्यक्ति को कंपनी के साथ व्यवहार करते समय कंपनी के पार्षद सीमा नियम तथा पार्षद अंतर नियम का ज्ञान होना आवश्यक है, लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि उसे कंपनी की आंतरिक कार्यवाही हो की भी जानकारी हो क्योंकि व्यक्तियों का कंपनी के आंतरिक प्रबंध से कोई संबंध नहीं होता अर्थात बाहरी व्यक्ति कंपनी के आंतरिक प्रबंध से कोई संबंध नहीं रखते. बाहरी व्यक्तियों को यह माल लेने का अधिकार होता है कि कंपनी का आंतरिक प्रबंध नियमित रूप से चल रहा है अर्थात कंपनी के प्रबंध के शंका करना बाहरी व्यक्तियों का कार्य नहीं है. इस मान्यता को ही आंतरिक प्रबंध का सिद्धांत कहते हैं.                  आंतरिक प्रबंध के सिद्धांत का प्रतिपादन सन 1856 में रॉयल ब्रिटिश बैंक बनाम टरक्वैंड के संदर्भ में हुआ। इस मामले में एक कंपनी के संचालकों को पार्षद अंतर नियम के अधीन बांड को निर्मित करने का अधिकार था यदि एक उचित प्रस्ताव के द्वारा कंपनी उन्हें ऐसा करने का अधिकार दे देती है। उन्होंने एक बाण्ड टरक्वैंड को दिया परंतु इस बांड के निर्गमन के पूर्व कोई भी प्रस्ताव

कंपनी के अंतर नियम क्या है? इसकी विषय वस्तु एवं प्रारूप का उल्लेख कीजिए क्या कंपनी के अंतर नियमों को रजिस्टर्ड करना जरूरी है? What is article of association? Describe the pro forma and subjects matter of article of association.

किसी भी कंपनी के सीमा नियमों के अलावा कंपनी के निगमन के लिए एक अन्य आवश्यक दस्तावेज कंपनी के अंतर नियम हैं. किसी कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को अंतर नियम कहते हैं. यह नियम केवल कंपनी तथा उसके सदस्यों पर ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2 (5) के अनुसार अंतर नियम का आशय ऐसे नियमों से है जो कंपनी के निर्माण के प्रारंभ में बनाए गए हो या जिन्हें पूर्व पारित कंपनी अधिनियम या इस अधिनियम के अंतर्गत मूल रूप से निर्मित किया गया हो या समय-समय पर परिवर्तित किया गया हो अंतर नियमों के द्वारा कंपनी तथा उसके सदस्यों के बीच उसके पारस्परिक संबंध तथा दायित्व निर्धारित किए जाते हैं. ऐसे नियम कंपनी अधिनियम के प्रावधानों के अनुकूल होने चाहिए. अंतर नियम कंपनी की आंतरिक व्यवस्था के लिए होते हैं.               कंपनी अधिनियम 2013 की धारा10(1) के अनुसार अधिनियम में अन्य व्यवस्था ना हो तो कंपनी के सीमा नियम व अंतर नियम का रजिस्ट्रेशन हो जाने पर भी अंश धारियों व  कंपनी के मध्य पारस्परिक संविदात्मक संबंध स्थापित कर देते हैं जिससे दोनों एक दूसरे के प्रति ठीक उसी प्रकार उत्तरदाई रहत

Memorandum of association of a company (कंपनी का पार्षद सीमा नियम):

Memorandum of association of a company (कंपनी का पार्षद सीमा नियम): कंपनी के पहले खोया दस्तावेजों में पार्षद सीमा नियम सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है जो कि किसी भी कंपनी के निगमन के लिए उसके प्रवृत्तियों द्वारा तैयार किया जाता है यह पहले क्षेत्र स्टॉक कंपनी का सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है जिसमें कंपनी की मर्यादाओं और सीमाओं शक्तियों और अधिकारों व लक्षणों और उद्देश्यों का सविस्तार उल्लेख किया जाता है।        पामर के अनुसार पार्षद सीमा नियम प्रस्तावित कंपनी से संबंधित एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। लार्ड केयन्सर् के अनुसार किसी कंपनी का पार्षद सीमा नियम उसका चार्टर है और वह अधिनियम के अंतर्गत कंपनी के अधिकारों की सीमाओं को परिभाषित करता है। सीमा नियम में कंपनी से संबंधित आधारभूत सिद्धांतों तथा बातों का उल्लेख रहता है और केवल उन्हीं के आधार पर कंपनी के निगमन की आज्ञा दी जाती है ।इस प्रकार पार्षद सीमा नियम कंपनी की आधारशिला के समान है जिस पर कंपनी का निर्माण होता है।               लार्ड मैकमिलन के अनुसार पार्षद सीमा नियम का कार्य अंश धारियों ऋण दाताओं तथा अन्य व्यक्तियों को जो कंपनी के