Skip to main content

किशोर अभियुक्त के विचारण के सम्बन्ध में आवेदन पत्र की drafting कैसे की जाती है ?

कंपनी के अंतर नियम क्या है? इसकी विषय वस्तु एवं प्रारूप का उल्लेख कीजिए क्या कंपनी के अंतर नियमों को रजिस्टर्ड करना जरूरी है? What is article of association? Describe the pro forma and subjects matter of article of association.

किसी भी कंपनी के सीमा नियमों के अलावा कंपनी के निगमन के लिए एक अन्य आवश्यक दस्तावेज कंपनी के अंतर नियम हैं. किसी कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को अंतर नियम कहते हैं. यह नियम केवल कंपनी तथा उसके सदस्यों पर ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2 (5) के अनुसार अंतर नियम का आशय ऐसे नियमों से है जो कंपनी के निर्माण के प्रारंभ में बनाए गए हो या जिन्हें पूर्व पारित कंपनी अधिनियम या इस अधिनियम के अंतर्गत मूल रूप से निर्मित किया गया हो या समय-समय पर परिवर्तित किया गया हो अंतर नियमों के द्वारा कंपनी तथा उसके सदस्यों के बीच उसके पारस्परिक संबंध तथा दायित्व निर्धारित किए जाते हैं. ऐसे नियम कंपनी अधिनियम के प्रावधानों के अनुकूल होने चाहिए. अंतर नियम कंपनी की आंतरिक व्यवस्था के लिए होते हैं.

              कंपनी अधिनियम 2013 की धारा10(1) के अनुसार अधिनियम में अन्य व्यवस्था ना हो तो कंपनी के सीमा नियम व अंतर नियम का रजिस्ट्रेशन हो जाने पर भी अंश धारियों व  कंपनी के मध्य पारस्परिक संविदात्मक संबंध स्थापित कर देते हैं जिससे दोनों एक दूसरे के प्रति ठीक उसी प्रकार उत्तरदाई रहते हैं मानो कि उनमें से प्रत्येक ने व्यक्तिगत रूप से कंपनी से संविदा की हो.

             ऐशबरी रेलवे  कैरिज एंड आयरन कंपनी बनाम रिचे(1875)L.R.7H.L.653 के मामले में लॉर्ड केयरन्स ने अंतर नियमों के संबंध में उल्लेख किया है कि अंतर नियम कंपनी के सीमा नियम के अधीनस्थ भूमिका निभाते हैं। वे सीमा नियम को कंपनी के प्रशासी निकाय कि उनके स्वयं के बीच तथा कंपनी के बीच कर्तव्य अधिकारों तथा शक्तियों को परिभाषित करते हैं तथा यह उल्लेख करते हैं कि कंपनी का कारोबार किस तरीके से किस रूप में चलाया जाना है तथा कंपनी के आंतरिक भी नियमों में किस प्रकार तथा किस रूप में परिवर्तन किए जा सकते हैं।

             कंपनी के अंतर नियमों में कंपनी तथा उसके सदस्यों के बीच के अथवा दो या अधिक सदस्यों के बीच के आपसी संबंधों को तथा दायित्वों को निर्धारित किया जा सकता है परंतु वह कंपनी अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत नहीं होने चाहिए। कंपनी के अंतर नियमों में कोई ऐसी व्यवस्था भी नहीं की जा सकती जो तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उप बंधुओं का उल्लंघन करें जैसे कोई कोई कंपनी अपने अंतर नियमों में यह नियम नहीं बना सकती है कि अंश धारियों को निर्गमित एवं अर्जित किए ही लाभांशु का वितरण किया जाएगा यदि कंपनी के सीमा नियम तथा अंतर नियमों के प्रावधानों में कोई विरोधाभास होता है तो सीमा नियम के प्रावधानों के अधिमान्यता दी जाएगी परंतु यदि किसी विषय पर सीमा नियम में कोई प्रावधान ना हो तो अंतर नियमों का सहारा लिया जा सकता है।

           अंतर नियमों द्वारा अधिकृत होने पर कंपनी अपनी निम्नलिखित शक्तियों का प्रयोग कर सकती है

(1) अंशों एवं ऋण पत्रों के निर्गमन पर देय हामीदारी(अभिगोपन)कमीशन (Undertaking Commision)

(2) अंशों पर चुकता राशि के अनुपात में भुगतान किया गया लाभांश

(3) मोचनीय प्राथमिकता प्राप्त अंश जारी करना

(4) धारक वारंट जारी करना

(5) विदेश में प्रयोग किए जाने के लिए मुद्रा रखना

(6) अंश पूंजी संबंधी सीमा नियम की शर्तो में परिवर्तन करना

(7) सीमित कंपनी द्वारा अपनी अंश पूंजी में परिवर्तन या बदलाव करना

अंतर नियमों का प्रारूप( proforma of article of association):

कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 7(क) के अनुसार यदि कंपनी के अंतर नियमों का पंजीकरण किया जाता है तो उन्हें मुद्रित पैराग्राफ्स में विभक्त क्रम से संख्यांकित तथा सीमा नियम के अभिदाताओं द्वारा कम से कम एक साक्षी की उपस्थिति में हस्ताक्षरित होना चाहिए। प्रत्येक हस्ताक्षर करता एवं साक्षी को अपना पूरा नाम व पता तथा व्यवसाय आदि का उल्लेख करना आवश्यक होता है अंतर नियमों पर भारतीय स्टांप अधिनियम 1899 के अनुसार उस राज्य में लागू स्टांप दर से स्टांप लगाना भी धारा 30 के अंतर्गत अनिवार्य होना होता है।


अंतर नियमों की विषय सामग्री( contents of articles):
 कंपनी अधिनियम 2015 के अनुसार कंपनी के अंतर नियमों में निम्नलिखित बातों का विशेष रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए

(a)  तालिका क के अपवर्जन का उल्लेख

(b) प्राथमिक संविदाओं की स्वीकृति

(c) पूंजी का विभाजन तथा इसे बढ़ाने घटाने या बदलने के नियम आदि

(d) अंश या शेयर्स के प्रकार उनकी संख्या और मूल्य आवेदन आवंटन अंतरण एवं परिवर्तन संबंधी नियम इत्यादि

(e) ऋण शक्ति के संबंध में नियम

(f) सभाओं के संबंध में सूचना कार्य विधि मतगणना कार्य विवरण आदि की विधि के नियम

(g) मतदान के अधिकार एवं परोक्षी

(h) कंपनी की आस्तियों से उसके अधिकारियों की क्षतिपूर्ति आदि

(i) निर्देशकों की नियुक्ति संख्या योग्यता अधिकार दायित्व अवकाश ग्रहण योग्यताओं तथा पारिश्रमिक आदि के संबंध में नियम

(j) प्रबंध निदेशक प्रबंध सचिव इत्यादि की नियुक्ति की शर्तें उनके अधिकार कर्तव्य दायित्व पारिश्रमिक निष्कासन आदि संबंधी नियम

(k)खाता पद्धति लेखा पद्धति परीक्षण अन्य सामान्य तथा संविधिक पुस्तकों को तैयार करने और रखने के दायित्व अंकेक्षकों आदि के संबंध में नियम

(L) शेयर प्रमाण पत्र शेयर वारंट बोनस शेयर ऋण पत्र आदि संबंधी नियम

(m) कंपनी के परी समापन की विधि तथा उसके नियम आदि

           कंपनी के अंदर नियमों की विषय वस्तु के विषय में दो प्रमुख प्रतिबंध होते हैं प्रथम यह कि इसका कोई प्रावधान कंपनी विधि या अन्य किसी सामान्य विधि के प्रावधान का उल्लंघन ना करता हो तथा दूसरा यह कि इसके कारण सीमा नियम में उल्लिखित बातों या शर्तो में परिवर्तन ना होता हो उदाहरणार्थ  अंतर नियमों में यह प्रावधान नहीं रखा जा सकता है कि कंपनी अपनी अंश पूंजी में से लाभांश का वितरण करेगी क्योंकि यह कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 123 के द्वारा प्रतिबंधित है।


      भगवती डेवलपर्स बनाम पीयरलेस जनरल फाइनेंस एंड इन्वेस्टमेंट कंपनी ए आई आर 2005 एस सी 3345 के मामले में कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 26 अब( कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 5) के अधीन विद पंजीकरण संबंधी उपबंध की व्याख्या करते हुए आधारित किया गया है कि अंतर नियमों में जहां कहीं भी शब्द लाभांश प्रयुक्त हुआ है उसमें बोनस भी सम्मिलित है। अतः लाभांश के लिए उपलब्ध शब्दावली का अर्थ होगा लाभांश बोनस के लिए उपलब्ध तथा कंपनी बोनस का भुगतान करने के लिए ठीक उसी प्रकार बाध्य होगी जैसे कि लाभांश के वितरण के लिए होती है।


अंतर नियमों का पंजीकरण( registration of articles):

गेम 2013 की धारा 7 के अनुसार अंश सीमित लोग कंपनियों को अपने अंतर नियमों का पंजीकरण कराना अनिवार्य नहीं है परंतु निम्नलिखित कंपनियों को अपनी सीमा नियमों के साथ ही अपने अंतर नियमों का पंजीकरण कराना अनिवार्य होता है(1) असीमित कंपनियां(2) गारंटी द्वारा सीमित कंपनियां(3) अंश सीमित प्राइवेट कंपनियां

               अपनी अधिनियम 2013 की प्रथम अनुसूची में सीमा नियम तथा अंतर नियमों के विभिन्न प्रारूप दिए गए हैं तथा अनेक तालिकाएं दी गई है जिनमें दिए गए नियमों को विभिन्न प्रकार की कंपनियों द्वारा अपनाया जाना आवश्यक होता है। तालिका क में अंश सीमित कंपनी की आंतरिक व्यवस्था संबंधी नियमों तथा उपनियमों की सूची दी गई है। कोई अंश सीमित कंपनी यदि अपने पृथक अंतर नियम नहीं बनाना चाहती है तो उसे तालिका क के नियमों को अपनाना होगा तथा उसका उल्लेख अपने सीमा नियम में करना होगा। यदि कंपनी अपने पृथक अंतर नियम बनाती है तो ऐसे विषयों के संबंध में जिनका उल्लेख उसने अंतर नियमों में नहीं किया है उसे तालिका 'क' के नियमों का पालन करना होता है।

       प्रत्येक प्राइवेट कंपनी को अपने अंतर नियमों में निम्नलिखित प्रतिबंधों का उल्लेख करना होगा

(a) उसके अंशों यदि कोई हो के अंतरण पर प्रतिबंध है

(b) उसकी सदस्य संख्या 200 से अधिक नहीं है( एकल व्यक्ति कंपनी इसका अपवाद है)

(c) उसने जनता को अंश खरीदने के लिए आमंत्रित नहीं किया है

       किसी असीमित कंपनी के अंतर नियम में यह उल्लेख किया जाना आवश्यक है कि वह अपना निगमन कितनी सदस्य संख्या के साथ करा रही है और यदि उसके पास अंश पूंजी है तो उसे अंश पूंजी की कुल राशि( निगमन के समय) का उल्लेख भी करना होगा। गारंटी द्वारा सीमित कंपनी की दशा में भी कंपनी के निगमन के समय उसकी सदस्य संख्या का उल्लेख अंतर नियमों में करना होगा।

Comments

Popular posts from this blog

असामी कौन है ?असामी के क्या अधिकार है और दायित्व who is Asami ?discuss the right and liabilities of Assami

अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार  (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि  (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार  (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार  (5)काशतकार भोग बंधकी  (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।           वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता ह...

पार्षद अंतर नियम से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of article of association)

कंपनी के नियमन के लिए दूसरा आवश्यक दस्तावेज( document) इसके पार्षद अंतर नियम( article of association) होते हैं. कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को ही अंतर नियम( articles of association) कहा जाता है. यह नियम कंपनी तथा उसके साथियों दोनों के लिए ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी की संपूर्ण प्रबंध व्यवस्था उसके अंतर नियम के अनुसार होती है. दूसरे शब्दों में अंतर नियमों में उल्लेख रहता है कि कंपनी कौन-कौन से कार्य किस प्रकार किए जाएंगे तथा उसके विभिन्न पदाधिकारियों या प्रबंधकों के क्या अधिकार होंगे?          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(5) के अनुसार पार्षद अंतर नियम( article of association) का आशय किसी कंपनी की ऐसी नियमावली से है कि पुरानी कंपनी विधियां मूल रूप से बनाई गई हो अथवा संशोधित की गई हो.              लार्ड केयन्स(Lord Cairns) के अनुसार अंतर नियम पार्षद सीमा नियम के अधीन कार्य करते हैं और वे सीमा नियम को चार्टर के रूप में स्वीकार करते हैं. वे उन नीतियों तथा स्वरूपों को स्पष्ट करते हैं जिनके अनुसार कंपनी...

बलवा और दंगा क्या होता है? दोनों में क्या अंतर है? दोनों में सजा का क्या प्रावधान है?( what is the riot and Affray. What is the difference between boths.)

बल्बा(Riot):- भारतीय दंड संहिता की धारा 146 के अनुसार यह विधि विरुद्ध जमाव द्वारा ऐसे जमाव के समान उद्देश्य को अग्रसर करने के लिए बल या हिंसा का प्रयोग किया जाता है तो ऐसे जमाव का हर सदस्य बल्बा करने के लिए दोषी होता है।बल्वे के लिए निम्नलिखित तत्वों का होना आवश्यक है:- (1) 5 या अधिक व्यक्तियों का विधि विरुद्ध जमाव निर्मित होना चाहिए  (2) वे किसी सामान्य  उद्देश्य से प्रेरित हो (3) उन्होंने आशयित सामान्य  उद्देश्य की पूर्ति हेतु कार्यवाही प्रारंभ कर दी हो (4) उस अवैध जमाव ने या उसके किसी सदस्य द्वारा बल या हिंसा का प्रयोग किया गया हो; (5) ऐसे बल या हिंसा का प्रयोग सामान्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया गया हो।         अतः बल्वे के लिए आवश्यक है कि जमाव को उद्देश्य विधि विरुद्ध होना चाहिए। यदि जमाव का उद्देश्य विधि विरुद्ध ना हो तो भले ही उसमें बल का प्रयोग किया गया हो वह बलवा नहीं माना जाएगा। किसी विधि विरुद्ध जमाव के सदस्य द्वारा केवल बल का प्रयोग किए जाने मात्र से जमाव के सदस्य अपराधी नहीं माने जाएंगे जब तक यह साबित ना कर दिया जाए कि बल का प्रयोग कि...