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Showing posts from December, 2023

भारतीय जेलों में जाति आधारित भेदभाव: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और इसके प्रभाव

भारतीय साक्ष्य अधिनियम में विवाधक तथ्य क्या मतलब होता है?

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-3 विवाधक तथ्य को परिभाषित करती है। धारा-3 के अनुसार विवादद्यक तथ्य से तात्पर्य ऐसे तथ्य से है जिस पर दो पक्षकारों के बीच में मतभेद हो और उसी तथ्य पर पक्षकार का अधिकार दायित्व एवं निर्योग्यता निर्भर करता है। जिसमें एक पक्षकार अभिकथन करता है और दूसरा पक्षकार उसको स्वीकार या इन्कार करता है।      विवाद्यक तथ्य ऐसा तथ्य है जिसके सिद्ध हो जाने पर न्यायालय निर्णय दे सकता है इसीलिये विवाधक तथ्य को वाद एवं कार्यवाही का केन्द्र बिन्दु भी कहा जाता है।      उदाहारणर्थ: माना A द्वारा B को 10%. वार्षिक ब्याज की दर से एक प्रोनोट पर 1000₹ का कर्ज दिया है। A इस प्रोनोट के आधार पर ब्याज सहित कर्ज की मांग करता है। B कर्ज देने से इन्कार करता है। यहाँ यह तथ्य कि क्या Aने B की 1000 र उधार दिये थे या नहीं दिये थे विवाधक तथ्य होगा। इस तथ्य के सिद्ध  हो जाने पर न्यायालय  निर्णय दे सकता है।   सुसंगत तथ्य : भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा - 8 सुसंगत तथ्य की परिभाषित करती है। धारा-3 के अनुसार दो या दो से अधिक सम्बद्ध तथ्य ही सुसंगत तथ्य...

वाद पत्र को दाखिल करने की क्या प्रक्रिया होती है?

वाद: - वाद न्यायालय में पेश की जाने वाली वह प्रक्रिया है जो वादी के अधिकारों की सुरक्षा या  किसी व्यक्ति  के हक को क्रियान्वित करने के लिये हो या किसी भी गलती या दोष के निवारण के लिये हो। यहाँ पर वाद दायर करने वाला पक्ष वादी एवं जिसके खिलाफ वाद दायर किया गया है वह प्रतिवादी कहलाता है।  वाद का न्यायालय में प्रारम्भ होना : → कोई भी वाद किसी न्यायालय अथवा न्यायालय द्वारा नियुक्त अधिकारी के समक्ष दो प्रतियों में वाद पत्र द्वारा पेश किया जाता है।            यदि वाद पत्र पेश किये जाने की आखिरी तारिख है तो वाद पत्र न्यायाधीश के समक्ष न्यायालय समय के पश्चात उसके निवास पर भी पेश किया जा सकता है।      वाद पत्र के साथ उतनी अतिरिक्त कापियां भी पेश की जानी आवश्यक हैं. जितने प्रतिवादियों का उल्लेख वाद पत्र में किया गया है। ताकि प्रत्येक प्रतिवादी को सम्मन के साथ में वाद पत्र की प्रति भेजी जा सके। पीठासीन अधिकारी के कार्य :-  पीठासीन अधिकारी के समक्ष जब वाद प्रस्तुत किया जाये तो उसे निम्नांकित कार्यवाही करनी चाहिए:-  वाद...

धारा 511 में अपराध को कैसे परिभाषित किया गया है ?

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 511 में आपराधिक प्रयत्न के अपराध का वर्णन किया गया है। जिसका मतलब है कि किसी अपराध करने का प्रयास करना अपराध की श्रेणी में जब तक नहीं आयेगा । परन्तु भारतीय दण्ड संहिता के अनुसार आजीवन कारावास या कारावास के दण्डनीय अपराध की करने या करवाने की चेष्टा करना और उसके फलस्वरूप उस अपराध दशा में कोई कार्य किये जाने पर यदि इस संहिता में उसके लिये कोई दण्ड की अवस्था न हो तो आजीवन कारावास के दण्ड वाले मामले में अधिकतम कारावास की अवधि के आधे तक के लिगे या दोनो से दण्डित किया जा सकता है।       धारा 511 को समझने के लिये एक उदाहरण के हम समझते है कि जिसमें किसी अभियुक्त द्वारा एक लड़की को पकड़ा और उसे बलपूर्वक झाडियो के पास ले गया उसे जमीन पर गिराकर उसके अंदरुनी कपडे हटाये, उसके ऊपर चढ़ गया और घुसाने का प्रयास किया लेकिन वह सफल होता इससे पहले ही लड़की को रक्तस्राव होने लगा। यहाँ पर अभियुक्त धारा 511 के अधीन बलात्कार के प्रयास का दोषी होगा । यहाँ पर अभियुक्त ने धारा 376 के अपराध की कारित करने का प्रयत्न किया है।        इसीप्रका...