वाद: - वाद न्यायालय में पेश की जाने वाली वह प्रक्रिया है जो वादी के अधिकारों की सुरक्षा या किसी व्यक्ति के हक को क्रियान्वित करने के लिये हो या किसी भी गलती या दोष के निवारण के लिये हो। यहाँ पर वाद दायर करने वाला पक्ष वादी एवं जिसके खिलाफ वाद दायर किया गया है वह प्रतिवादी कहलाता है।
वाद का न्यायालय में प्रारम्भ होना : → कोई भी वाद किसी न्यायालय अथवा न्यायालय द्वारा नियुक्त अधिकारी के समक्ष दो प्रतियों में वाद पत्र द्वारा पेश किया जाता है।
यदि वाद पत्र पेश किये जाने की आखिरी तारिख है तो वाद पत्र न्यायाधीश के समक्ष न्यायालय समय के पश्चात उसके निवास पर भी पेश किया जा सकता है।
वाद पत्र के साथ उतनी अतिरिक्त कापियां भी पेश की जानी आवश्यक हैं. जितने प्रतिवादियों का उल्लेख वाद पत्र में किया गया है। ताकि प्रत्येक प्रतिवादी को सम्मन के साथ में वाद पत्र की प्रति भेजी जा सके।
पीठासीन अधिकारी के कार्य :-
पीठासीन अधिकारी के समक्ष जब वाद प्रस्तुत किया जाये तो उसे निम्नांकित कार्यवाही करनी चाहिए:-
वादपत्र प्रस्तुत होते ही पीठासीन अधिकारी द्वारा वादपत्र के पृष्ठ पर उसे पेश करने वाले व्यक्ति का नाम एवं पेश करने की तिथि स्पष्ट अंकित की जानी चाहिये। साथ में उसके हस्ताक्षर भी होने चाहिये।
वादपत्र पेश करने वाले व्यक्ति को निर्देश देगा कि वह पीठासीन अधिकारी द्वारा किये गये पृष्ठांकन के नीचे अपने हस्ताक्षर करे।
वाद पत्र का परीक्षण:
[१] वाद की प्रस्तुति के अन्दर क्या मियाद है।
[h] वाद की सुनवाई क्या उस न्यायालय के क्षेत्राधिकार में है ।
[0] क्या कोर्ट फीस का भुगतान पर्याप्त है।
[४] वाद पत्र की प्रतियां पर्याप्त संख्या में संलग्न की गयी है तथा प्रोसेस फीस भी जमा कराई गयी है या नहीं।
[e] अचल सम्पत्ति के विषय जो जानकारी है। उसको वाद पत्र में बताया गया है या नहीं।
वाद पत्र में उन सभी जानकारियों को स्पष्ट रूप से अंकित कर दिया गया है (अथवा नहीं जिनका होना निर्णय 7 के रुल 1 के अनुसार वाद पत्र के रजिस्ट्रेशन हेतु वाद पत्र में वाद का कारण क्षेत्राधिकार तथा वादी एवं प्रतिवादियों का विवरण अंकित होना आवश्यक है।
पीठासीन अधिकारी द्वारा वाद पत्र को खारिज करने कारण:→
[१] यदि वाद में किसी प्रकार के कारण को स्पष्ट नहीं किया गया हो।
[b] मांगा गया अनुतोष का मूल्य को लिखित या स्पष्ट तरीके से न बताया गया है।
[C] मांगी गयी अनुतोष की राशि सही लिखी गयी है लेकिन स्टाम्प प्रपत्रों की संख्या अपर्याप्त है।
[d] वाद में लिखित कथन के अनुसार वाद पत्र वाद पत्र किसी विधि द्वारा वर्जित है।
[e] यदि वाद दो प्रतियों में दायर नहीं किया 1
4.] यदि वादी द्वारा रुल 9 के प्रावधानों का पालन करने में असफल रहा है।
ऑर्डर 7 निगम 11 में वाद पत्र को खारिज किये जाने सम्बन्धी नियमों का उल्लेख किया गया है। इस नियम के अनुसार वाद पत्र वाद रजिस्टर होने के बाद भी खारिज किया जा सकता है। तथापि यह आवश्यक है कि वाद पत्र को खारिज करने के अधिकार का उपयोग तभी किया जाना चाहिये जब खारिज करने का कारण एकदम स्पष्ट हो। यदि कोई सन्देह हो अथवा वाद में किसी गम्भीर प्रश्न का निर्णय किया जाना हो तो ऐसा वाद खारिज नहीं किया जाना चाहिये। ऐसे मामलों में जवाब दावा प्राप्त हो जाने के बाद प्राथमिकी का निर्धारण किया जाकर उसको पहले निर्णीत किया जाना ठीक होगा।
जहां वाद का कोई भी विशेष कारण की पेश न किया गया हो :-
वाद हेतुक अर्थात् वह एक या अनेक तथ्यात्मक तथ्यों का समूह जिनसे दावा दायर करने का कारण स्पष्ट होता है। वे सभी आवश्यक तथ्य या तथ्यों का समूह जिसे वादी को वाद में सफल होने के लिये न्यायालय में सिद्ध करना होगा। (वाद हेतुक का वाद दायर होने से पहते प्रकट होना आवश्यक है अन्यथा वादी का वाद न्यायालय में चलने योग्य नहीं माना जा सकता ।। कोई भी वाद हेतुक के बिना आगे नहीं बढ़ सकता। यदि वादी अपने वाद में वाद हेतुक को प्रकट करने में असफल रहता है तो उसका वाद खारिज कर दिया जायेगा।
वाद खारिज किये जाने की प्रक्रिया :- यदि वाद खारिज किया जाता है तो पीठासीन अधिकारी ऐसा आदेश देने के कारणों को आदेश में अंकित करेगा। ऑर्डर 7 नियम 11 के अन्तर्गत वाद को खारिज करने का ऐसा आदेश डिक्री की संज्ञा से आता है अत: उसकी अपील की जा सकती है।
न्यायालय क्षेत्राधिकार के अनुसार यदि वाद सिविल जज के स्तर पर सुने जाने योग्य है तो उसकी प्रथम अपील धारा 97 सीपीपी के अनुसार (जहां मूल डिक्रियों से अपील किये जाने सम्बन्धी प्रावधानों का उल्लेख है ।) होगी और यदि वाद जिला अतिरिक्त जिला जज के स्तर पर सुना जाता है तो उसकी प्रथम अपील हाईकोर्ट में होगी तथा एकल बेंच द्वारा सुनी जायेगी किन्तु एकल बैंच द्वारा निर्णय किया जाकर डिक्री पास कर दी जाती है तो हाई कोर्ट में इसकी अगली कोई अपील नहीं होगी।
वाद पत्र के खारिज हो जाने का प्रभाव : • यद्यपि इस तरह वाद पत्र के खारिज होने को वाद का अपास्त होना माना जायेगा किन्तु इसके पश्चात भी वादी द्वारा नया वाद उसी वाद हेतुक के आधार पर प्रस्तुत किया जा सकता है।
क्षेत्राधिकार : किसी वाद को दाखिल किये जाने के लिये निर्देश देने से पहले न्यायालय को यह देखना चाहिये कि वाद न्यायालय के क्षेत्राधिकार में है अथवा नहीं। क्षेत्राधिकार निम्नांकित मामलों में से किसी भी सम्बन्ध में हो सकता है।
[a] स्थान
[b] वित्तीय अधिकार
[c] विषय वस्तु
[d] कानूनी वर्जन
वाद पत्र को लौटाना: यदि वाद को सुनने का न्यायालय का क्षेत्राधिकार न हो तो वाद को खारिज नहीं किया जाना चाहिये और न ही किसी तरह के संशोधन की अनुमति देनी चाहिये बल्कि उसे वादी को वापस कर देना चाहिये ताकि वह समुचित न्यायालय में अपना वाद प्रस्तुत कर सके ।
वाद पत्र लौटाये जाने की प्रक्रिया : → -: वाद पत्र को लौटाने पर पीठासीन अधिकारी द्वारा. निम्नांकित पृष्ठांकन किया जायेगा :-
[a] वाद प्रस्तुत करने एवं लौटाये जाने की तिथि
[6] वाद प्रस्तुत करने वाले पक्ष का नाम
[c] वाद पत्र के लौटाने के कारणों का संक्षिप्त विवरण ।
वाद पत्र को वादी के वकील अथवा उसके द्वारा अधिकृत अभिकर्ता को लौटाने पर न्यायालय द्वारा वकालतनामा भी लौटा दिया जायेगा । न्यायालय द्वारा वादी को यह आदेश दिया जा सकता है कि न्यायालय के अभिलेख में रखने के लिये लौटाये गये वाद पत्र की प्रति न्यायालय में प्रस्तुत करेगा।
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