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विदेशों में भारतीय कानून: IPC, UAPA, और अंतरराष्ट्रीय संधियों के तहत भारतीय अधिकार क्षेत्र की समझ

क्या सिर्फ अखबार में मात्र यह सूचना छपवाने से कि मैं अपना नाम बदल रहा हूं .नाम को परिवर्तित किया जा सकता है क्या?

कई बार जीवन में ऐसे हालात आते हैं जब हमें अपना नाम बदलने की जरूरत पड़ जाती है। कभी दस्तावेज़ों में नाम गलत लिखा जाता है, कभी शादी के बाद उपनाम बदलना होता है, या फिर किसी व्यक्तिगत कारण से नाम में बदलाव करना चाहते हैं। हालांकि, हमारे देश में नाम बदलने की प्रक्रिया थोड़ी जटिल होती है, लेकिन इसे सही तरीके से किया जाए तो यह आसान भी हो सकता है। नाम बदलने की प्रक्रिया की जरूरत क्यों पड़ती है? 1 . गलत नाम दर्ज हो जाना: → अक्सर सरकारी दस्तावेज़ों या प्रमाणपत्रों में नाम गलत लिख जाता है। 2. शादी या तलाक के बाद:→ विवाह के बाद महिलाएं अपने उपनाम में बदलाव चाहती हैं, या तलाक के बाद पुराना उपनाम वापस लेना चाहती हैं। 3. धार्मिक या व्यक्तिगत कारण:→ कभी-कभी लोग अपने धार्मिक विश्वासों या व्यक्तिगत कारणों से अपना नाम बदलना चाहते हैं। 4. सार्वजनिक पहचान:→ कुछ लोग अपनी पहचान में बदलाव के लिए या करियर के लिए भी नाम बदलते हैं, जैसे अभिनेता या लेखक। नाम बदलने की कानूनी प्रक्रिया→ भारत में कानूनी रूप से नाम बदलने के लिए गजट नोटिफिकेशन की प्रक्रिया अनिवार्य होती है। यह एक सरकारी अधिसूचना होती है, ज

धारा 125 के तहत एक पति द्वारा भरण पोषण की drafting करो?Drafting of maintenance by a husband under section 125?

[1] यदि कोई व्यक्ति जो किसी स्त्री, पुरुष या बच्चे का पति या पत्नी, पुत्र या पुत्री, पिता या माता, दादा या दादी, नाती या पोता, या पराश्रयी हो और जो उस व्यक्ति के साथ रहने का हकदार हो, भरण-पोषण प्राप्त करने में असमर्थ हो, तो वह व्यक्ति, जिसके साथ रहने का हकदार है से भरण-पोषण के लिये आवेदन कर सकता है।  [2] उपधारा [1] के तहत आवेदन, न्यायालय में दायर किया जायेगा, जिसके क्षेत्राधिकार में वह व्यक्ति रहता है  जिससे भरण-पोषण का दावा किया जा रहा है।  [3] न्यायालय, आवेदन पर विचार करने के बाद यदि यह पाता है कि आवेदक भरण-पोषण प्राप्त करने में असमर्थ है और प्रतिवादी भरण-पोषण देने में सक्षम है तो न्यायालय  प्रतिवादी को आवेदक की भरण-पोषण के लिये एक उचित राशि का भुगतान करने का आदेश दे सकता है।  [4] न्यायालय, आदेश में भरण-पोषण की राशि, भुगतान की विधि और समय और अन्य आवश्यक शर्ते निर्धारित करेगा।  [5] न्यायालय समय-समय पर आदेश की समीक्षा कर सकता है और यदि आवश्यक हो तो इसमें संशोधन कर सकता है।   स्पष्टीकरण :  [a] "स्त्री शब्द में विधवा स्त्री भी भरण-पोषण प्राप्त करने की अधिकारी है।  [b] पुरुष शब्द में

किशोर जमानत प्रार्थना पत्र कैसे लिखें यदि व्यक्ति जेल में है?How to write a juvenile bail application if the person is in jail?

                                      न्यायालय श्रीमान किशोर न्याय बोर्ड महोदय  मु० अ० सं० XXX/2024                                                                                    थाना XXXX                                                                                सरकार बनाम XXXX                                                                   धारा 354, 323, 504, 506 आई०पी०सी. व 3(2) 5क एस० सी० एस० टी० एक्ट                    किशोर जमानत प्रार्थना पत्र द्वारा xxxx पुत्र XXXX निवासी xxxx थाना xxxx जिला xxxx निम्नलिखित है: - [1] यह कि प्रार्थी निर्दोष है उक्त प्रकरण में झूठा फसाया गया है।  [२] यह कि एफ० आई० आर० बिलम्ब से है । बिलम्ब का कोई स्पष्टीकरण नहीं है।  [३] यह कि प्रथम सूचना रिपोर्ट बनावटी व मनगढन्त तथा पेशबन्दी में फर्जी पड़ोस की रंजिश के कारण फर्जी व झूठी की गयी है।  [4] यह कि प्रार्थी की साइकिल चोरी गयी थी जिसकी चौकी में दरख्वास्त दी थी और उसकी खोज में पुलिस ने वादिया के पति को पकड़कर पूछ ताछ की थी क्योंकि वह अपराधिक प्रवृत्ति का व्यक्ति है जिससे बुराई मानकर पेशबन्दी में

आवेदन पत्र अन्तर्गत आदेश 22 नियम 3 सहपठित धारा 151 सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत एक drafting Drafting an application under Order 22 Rule 3 read with Section 151 Code of Civil Procedure

 CPC आदेश २२ नियम 3 (Order 22 Rule3); का आवेदन पत्र न्यायालय में कब पेश किया जाता है? आसान भाषा में कहा जाये तो जब किसी सिविल केस में वादी की मृत्यु हो जाती है और उसके कानूनी प्रतिनिधि या उत्तराधिकारियों को उस मृत वादी ने, स्थान पर उस केस में पार्टी बनाने के लिये जिस प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है, वह आदेश 22 नियम 3 के तहत किया जाता है।          दूसरे शब्दों में कहे तो जब वादी या प्रतिवादी मे से किसी एक मृत्यु हो जाती है। इस आवेदन का उद्देश्य न्यायालय को यह बताना है कि मृतक पक्ष के कानूनी प्रतिनिधि को मुकदमें में शामिल किया जाये ।  आवेदन  कब पेश किया जा सकता है:  मृत्यु के बाद 90दिनों के भीतर  • यदि 90 दिनों की अवधि समाप्त हो गयी है तो न्यायालय को उचित कारण बताते हुये विलम्ब के लिये माफी मांगनी होगी।   आवेदन में क्या शामिल होना चाहिये:-  • मृतक पक्ष का नाम  और मृत्यु की तारीख  कानूनी प्रतिनिधि का नाम और पता  • मुकदमें का विवरण  • अन्य आवश्यक दस्तावेज   न्यायालय द्वारा आवेदन  पर विचार करते समय:- न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि आवेदन समय पर पेश किया गया है।  न्यायालय  यह भी

धारा 323, 506, 504, 3/4DP Act और 308B के तहत जमानत याचिका

जमानत: जमानत एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत किसी आरोपी को जेल से रिहा कर दिया जाता है, जब तक कि उसका मुकदमा पूरा नहीं हो जाता। जमानत के लिए, आरोपी को जमानत राशि जमा करनी होगी और कुछ शर्तों का पालन करना होगा। धारा 323: यह धारा स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के लिए दंड का प्रावधान करती है। यह एक जमानती अपराध है। धारा 506: यह धारा आपराधिक धमकी देने के लिए दंड का प्रावधान करती है। यह एक जमानती अपराध है। धारा 504: यह धारा जानबूझकर अपमान करने के लिए दंड का प्रावधान करती है। यह एक जमानती अपराध है। धारा 3/4 DP Act: यह धारा दहेज उत्पीड़न के लिए दंड का प्रावधान करती है। यह एक गैर-जमानती अपराध है। धारा 308B: यह धारा गैर इरादतन हत्या का प्रयास करने के लिए दंड का प्रावधान करती है। यह एक गैर-जमानती अपराध है। जमानत याचिका कैसे दायर करें: एक वकील से संपर्क करें और उन्हें अपनी स्थिति के बारे में बताएं। वकील आपके लिए जमानत याचिका तैयार करेगा और उसे अदालत में दायर करेगा। अदालत जमानत याचिका पर सुनवाई करेगी और आरोपी को जमानत देने या न देने का फैसला करेगी। जमानत याचिका में क्या शामिल होना चाहिए: आरोपी का नाम और पत

किसी स्त्री का अपहरण अथवा विधि विरुद्ध निरुद्ध किसी स्त्री अथवा बालिका का प्रत्यावर्तन कराने के लिये प्रार्थना पत्र किस तरह लिखे ?How to write an application for the return of a woman or girl who has been abducted or detained unlawfully?

अपहारण स्त्रियों को वापस करने के लिये विवश करने की शक्ति:      किसी से स्त्री या अठारह वर्ष से कम आयु की किसी बालिका के किसी विधिविरुद्ध प्रयोजन के लिये अपहरण किये जाने या विधि विरुद्ध निरूद्ध  रखे जाने का शपथ पर परिवाद किये जाने की दशा में जिला मजिस्ट्रेट, उपरखण्ड मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट यह आदेश कर सकता है कि उस स्त्री को तुरन्त स्वतंन्त्र किया जाये। या वह बालिका उसके पति माता-पिता संरक्षक या अन्य व्यक्ति को जो उस बालिका का विधिपूर्ण भार साधक है तुरन्त वापस कर दी जाये और ऐसे आदेश का अनुपालन ऐसे बल के प्रयोग द्वारा जैसा आवश्यक हो करा सकता है।   न्यायालय श्रीमान जिला / उपरखण्ड मजिस्ट्रेट, मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी  CrimeNo-xxx/2024      अन्तर्गत धारा 98 द. प्र० सं०                                                 थाना XXXX                                                 जिला xxxx  महोदय, प्रार्थी xxxx पुत्र xxxx निवासी xxxx थाना xxx* जिला xxxx निम्नलिखित निवेदन करता है :-  [1] यह कि प्रार्थी की पत्नी / बहन । पुत्री आयु 18 वर्ष से कम XXXX [ नाम ] का दिनांक XX/XX/2024  की xx बजे

शपथपत्र की drafting कैसे करें?How to draft an affidavit?

न्यायालय श्रीमान प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश महोदय  मु०सं० सं० XXX/2023                     थाना......                                    ABCD आदि बनाम सरकार                       धारा 498 A, 304 B, 504 आई०पी सी व 3/4 डी ०पी० एक्ट                 प्रति शपथपत्र मिनजानिब DCBA पुत्र ARDCA निवासी DABN रोड कस्बा BN थाना CN जिला GN निम्नलिखित है : →      शपथकर्ता कसम खाता व हलफ से निम्नलिखित बमान करता है:  [1] यह कि एफ० आई० आर० प्राम्ट है और हरगिज फर्जी नहीं फंसाना गया है।  [२] यह कि अभियुक्तगण का एक्टिव रोल व पार्ट एसाइन है और अभियुक्तगण मुख्य अभियुक्त है।  [३] यह कि शादी के कुछ दिनों बाद दहेज की मांग को लेकर अभियुक्तों द्वारा जघन्य घटना कि गयी है।  [4.] यह कि मृतका द्वारा प्रताड़ना की सूचना दी जाती रही जिस पर शपथकर्ता के पक्ष द्वारा समझाने बुझाने का प्रयास किया गया किन्तु अभियुक्तगण निरंकुश व अत्याचारी है जिन्होने ने किसी तरह की रियायत न करके प्रति शपथकर्ता के पक्ष को भी गाली गलौज " किया जाता रहा। [5.] यह कि रक्षा बन्धन में आने पर भी मृतका द्वारा परेशान व मांग करने की बात बतायी गयी जिससे

भारतीय साक्ष्य अधिनियम में विवाधक तथ्य क्या मतलब होता है?

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-3 विवाधक तथ्य को परिभाषित करती है। धारा-3 के अनुसार विवादद्यक तथ्य से तात्पर्य ऐसे तथ्य से है जिस पर दो पक्षकारों के बीच में मतभेद हो और उसी तथ्य पर पक्षकार का अधिकार दायित्व एवं निर्योग्यता निर्भर करता है। जिसमें एक पक्षकार अभिकथन करता है और दूसरा पक्षकार उसको स्वीकार या इन्कार करता है।      विवाद्यक तथ्य ऐसा तथ्य है जिसके सिद्ध हो जाने पर न्यायालय निर्णय दे सकता है इसीलिये विवाधक तथ्य को वाद एवं कार्यवाही का केन्द्र बिन्दु भी कहा जाता है।      उदाहारणर्थ: माना A द्वारा B को 10%. वार्षिक ब्याज की दर से एक प्रोनोट पर 1000₹ का कर्ज दिया है। A इस प्रोनोट के आधार पर ब्याज सहित कर्ज की मांग करता है। B कर्ज देने से इन्कार करता है। यहाँ यह तथ्य कि क्या Aने B की 1000 र उधार दिये थे या नहीं दिये थे विवाधक तथ्य होगा। इस तथ्य के सिद्ध  हो जाने पर न्यायालय  निर्णय दे सकता है।   सुसंगत तथ्य : भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा - 8 सुसंगत तथ्य की परिभाषित करती है। धारा-3 के अनुसार दो या दो से अधिक सम्बद्ध तथ्य ही सुसंगत तथ्य  कहलाते हैं बशर्ते उनकी पारस्परिक सम्बद्धता धार

वाद पत्र को दाखिल करने की क्या प्रक्रिया होती है?

वाद: - वाद न्यायालय में पेश की जाने वाली वह प्रक्रिया है जो वादी के अधिकारों की सुरक्षा या  किसी व्यक्ति  के हक को क्रियान्वित करने के लिये हो या किसी भी गलती या दोष के निवारण के लिये हो। यहाँ पर वाद दायर करने वाला पक्ष वादी एवं जिसके खिलाफ वाद दायर किया गया है वह प्रतिवादी कहलाता है।  वाद का न्यायालय में प्रारम्भ होना : → कोई भी वाद किसी न्यायालय अथवा न्यायालय द्वारा नियुक्त अधिकारी के समक्ष दो प्रतियों में वाद पत्र द्वारा पेश किया जाता है।            यदि वाद पत्र पेश किये जाने की आखिरी तारिख है तो वाद पत्र न्यायाधीश के समक्ष न्यायालय समय के पश्चात उसके निवास पर भी पेश किया जा सकता है।      वाद पत्र के साथ उतनी अतिरिक्त कापियां भी पेश की जानी आवश्यक हैं. जितने प्रतिवादियों का उल्लेख वाद पत्र में किया गया है। ताकि प्रत्येक प्रतिवादी को सम्मन के साथ में वाद पत्र की प्रति भेजी जा सके। पीठासीन अधिकारी के कार्य :-  पीठासीन अधिकारी के समक्ष जब वाद प्रस्तुत किया जाये तो उसे निम्नांकित कार्यवाही करनी चाहिए:-  वादपत्र प्रस्तुत होते  ही पीठासीन अधिकारी द्वारा वादपत्र के पृष्ठ पर उसे