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अपराध शास्त्र के सम्प्रदायों के बारे में आलोचनात्मक विवेचना कीजिए?

समन क्या होता है? इसके कितने प्रकार हैं बताओ?What is summons? How many types are there?

कानूनी भाषा में समन :- समन एक (आधिकारिक दस्तावेज है जो किसी व्यक्ति को अदालत में गवाह के रुप में हाजिर होने या प्रतिवादी के रुप में मुकदमें का सामना करने का आदेश देता है। यह अदालत या अन्य कानूनी प्राधिकरण द्वारा जारी किया जाता है।   उद्देश्य:- समन का मुख्य उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया को सुचाक रूप से चलाना है। यह सुनिश्चित करता है कि :-  • गवाह अदालत में उपस्थित हों और गवाही दें।  • प्रतिवादी को मुकदमें की सूचना मिल सके और वह अपनी रक्षा कर सके।  समन कितने प्रकार के होते हैं?  समन के मुख्य रूप से दो प्रकार होते हैं-  • सिविल समन :- इसका उपयोग सिविल मामलों में किया जाता है जैसे कि विवाद, तलाक, सम्पत्ति विवाद आदि।  • आपराधिक समन : इसका उपयोग आपराधिक मामलों में किया जाता है। जैसे कि चोरी, हत्या बलात्कार आदि।  समन में शामिल कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु :-  • अदालत का जाम और पता।  मुकदमें का क्रमांक प्रतिवादी ।  गवाह का नाम और पता  • हाजिर होने की तारीख, समय और स्थान  • अदालत द्वारा जारी किये जाने की तारीख  • हस्ताक्षर और मुहर अनुपालन न करने पर परिणाम :-  यदि कोई व्यक्ति समन का पालन नहीं

बाल अपराध क्या होता है? बाल अपराधी की जमानत और अभिरक्षा की विवेचना क्या होती है?( define Juvenile Delinquency)

बाल अपराध की परिभाषा( definition of Juvenile Delinquencies ) भारत में बाल अधिनियम, 1960 के अंतर्गत, " वह बालक जो किसी अपराध का दोषी पाया गया है, बाल अपराध कहते हैं। " बालक से अभिप्राय 16 साल से कम आयु के लड़के तथा 18 साल से कम आयु की लड़कियों से है।         विलियम हीले के मतानुसार," व्यवहार के सामाजिक आदर्शों से विचलित होने वाले बाल को बालक अपराधी या ऐसे अपराध को बाल अपराध कहते हैं।         मार्टिन न्यूमेयर के शब्दों में बाल अपराध का तात्पर्य समाज विरोधी व्यवहार का कोई प्रकार है, जो वैयक्तिक तथा सामाजिक विघटन उत्पन्न करता है।"       एम.जे.सेथना के  मतानुसार " बाल अपराध के अंतर्गत एक राज्य विशेष में कानून द्वारा निर्धारित एक निश्चित आयु से कम आयु के बच्चों या युवकों  द्वारा किया गया अनुचित कार्यों का समावेश होता है।         न्यूमेयर ने सामाजिक दृष्टिकोण के अतिरिक्त कानूनी दृष्टिकोण से भी बाल अपराध को परिभाषित किया है इस परिभाषा की व्याख्या करने पर स्पष्ट है कि बाल अपराध का संबंध समाज विरोधी कार्यो से है। समाज विरोधी कार्य करने में व्यक्ति जिस अनुचित आचरण को अप

बाल देखभाल संरक्षण अधिनियम 2000 के पारित होने के कारण एवं मुख्य उद्देश्य (silent features child care Protection Act 2000

बाल देखभाल संरक्षण अधिनियम 2000 की मुख्य विशेषताएं: - ( 1): - किशोर न्याय सामान्य विधि (common law on juvenile justice): - किशोर न्याय अधिनियम 2000 से पहले किशोर न्याय अधिनियम 1986 लागू था यह विधान अपने उद्देश्यों को पूर्ण रूप से प्रभाव में नहीं ला पा रहा था बाल अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानकों के लिए कोई विधि नहीं थी इसी उद्देश्य की पूर्ति करने के लिए इस अधिनियम को प्रभाव में लाया गया है. ( 2) अधिनियम का उद्देश्य (objects of the act): - अधिनियम की प्रस्तावना में अधिनियम का उद्देश्य बताया गया है अधिनियम का उद्देश्य देखरेख एवं संरक्षण की आवश्यकता वाले बालकों की उचित देखभाल की व्यवस्था करना उनके संरक्षण और उनकी विकास संबंधी आवश्यकताओं के पोषण द्वारा उपचार और न्याय निर्णयन तथा मामलों के निपटारे में बाल मैत्री अवधारणा को अंगीकार करते हुए बालकों के सर्वोत्तम हित में किस अधिनियम के अंतर्गत स्थापित विभिन्न संस्थानों के माध्यम से उनके अंतिम पुनर्वास हेतु विधि विरोधी किशोरों से संबंधित विधि को संशोधित तथा समेकित करना है. ( 3) परिभाषाएं (definition): - अधिनियम की धारा 2 में विभिन्न शब्

अजमानती अपराध की दशा में जमानत bail taken in case of non bailable offence

( 1): - जब कोई व्यक्ति जिस पर  अजमानतीय अपराध में अभियोग है अथवा जिस पर संदेह है कि उसने अजमानतीय अपराध किया है पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के द्वारा वारंट के बिना गिरफ्तार किया जाता है या उच्च न्यायालय के द्वारा या सेशन न्यायालय से भिन्न न्यायालय के सम्मुख हाजिर होता है या लाया जाता है तो वह जमानत पर छोड़ा जा सकता है किंतु (a) यदि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार प्रतीत होता है कि ऐसा व्यक्ति मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अन्य अपराध का दोषी है तो वह इस प्रकार नहीं छोड़ा जाएगा. (b) अगर ऐसा अपराध कोई संज्ञेय (coynizable) अ पराध  है एवं ऐसा व्यक्ति मृत्यु आजीवन कारावास अथवा 7 साल या इससे अधिक से कारावास से दंडनीय किसी अपराध के लिए पहले दोष सिद्ध किया गया है अथवा वह दंड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम 2005 (2005 का 25) की धारा 37 द्वारा किसी अजमानतीय  और संज्ञेय  अपराध के लिए (23 - 06 - 2006) से प्रतिस्थापित (3 साल या इससे अधिक के लिए किंतु 7 साल से अधिक की अवधि के कारणों से दंड से किसी संज्ञेय  अपराध के लिए तो या इससे अधिक अवसरों पर पहले दो सिद्ध किया गया है तो वह इस प्रकार नही

संम्मन के स्थान पर अथवा संम्मन के अलावा वारंट जारी करने की न्यायालय की शक्ति का वर्णन कीजिए? हाजिरी के लिए बंधपत्र लेने की शक्ति को भी समझाइए. Describe the powers of the court to issue warrant in lieu of or in addition to summons.Also explain the powers to take Bond for appearance

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 87 न्यायालय को संम्मन के स्थान पर या उसके अतिरिक्त वारंट जारी करने की शक्ति प्रदान करती है इस धारा के अनुसार न्यायालय किसी भी ऐसे मामले में जिसमें यह किसी व्यक्ति की हाजरी के लिए सम्मन जारी करने के लिए इस संहिता द्वारा सशक्त किया गया है अपने कारणों को अंकित करने के पश्चात उसकी गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी कर सकता है - (a) अगर या तो ऐसा सम्मन जारी किए जाने के पहले या बाद में किंतु उसकी हाजिरी के लिए नियम समय के पूर्व न्यायालय को यह विश्वास करने का कारण दिखाई पड़ता है कि वह फरार हो गया है या संम्मन का पालन नहीं करेगा अथवा (b) अगर वह ऐसे समय पर हाजिर होने में असफल रहता है और यह साबित कर दिया जाता है कि उस पर समन की तामील सम्यक  से ऐसे समय में कर दी गई थी जिसके अनुसार हाजिर होने के लिए अवसर था ऐसी असफलता के लिए कोई उचित प्रतिहेतु नहीं दिया जाता है परंतु इस शक्ति का प्रयोग वही न्यायालय कर सकता है जिसे इस संहिता द्वारा किसी व्यक्ति की हाजरी के लिए सशक्त किया जाता है ऐसे व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए न्यायालय का कर्तव्य है कि वह वारंट जारी करने के

अपील न्यायालय के प्रमुख शक्तियां क्या है ? क्या अपील न्यायालय अतिरिक्त साक्ष्य ले सकता है) what are the main power of appellate court.?

अपील न्यायालय की शक्तियां (powers of appellate court)      अपीलीय न्यायालय की शक्तियों का वर्णन दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 385 में किया गया है दोषी युक्ति के आदेश के खिलाफ अपील किए जाने पर अपील न्यायालय - (a) अपराधी को दोषी पा सकेगा एवं उसे विधि के अनुसार दंड आदेश दे सकेगा. (b) अतिरिक्त जांच (investigation) दे सकेगा (c) विचारण  के लिए सुपुर्दगी का आदेश दे सकेगा (d) साक्ष्य  का पुनर्मूल्यांकन कर सकेगा यथा मुकेरिया बनाम स्टेट A.I.R 2013 SC 321) दोष सिद्धि के आदेश के खिलाफ अपील किए जाने पर अपील न्यायालय (a) निष्कर्ष के उलट सकेगा एवं अपराधी को दोषमुक्त या उन्मोचित कर सकेगा (b) उसका पुनर्विचारण किए जाने अथवा विचारण के लिए सुपुर्द किए जाने के लिए आदेश दे सकेगा या (c)दंडादेश को बनाए रखते हुए निष्कर्ष में परिवर्तन कर सकेगा किंतु इस प्रकार नहीं की उससे दंड में वृद्धि की जाए (d) निष्कर्ष में दंड की प्राकृतिक एवं परिमाण में परिवर्तन कर सकेगा परंतु इस प्रकार नहीं की उससे दंड में वृद्धि की जाए दंडादेश मे बढ़ोतरी के खिलाफ अपील किए जाने पर अपीलीय न्यायालय (a) निष्कर्ष को उलट सकेगा एवं

तलाशी का वारंट किन परिस्थितियों में दंड न्यायालय द्वारा जारी किया जा सकता है? वारंट जारी किए जाने की पूर्ववर्ती शर्तों को समझाइए. Under what situation the search warrant can be issued by a criminal court

तलाशी वारंट का तात्पर्य एक लिखित प्राधिकार है जो किसी सक्षम मजिस्ट्रेट अथवा न्यायालय द्वारा किसी पुलिस अधिकारी अथवा व्यक्ति को निर्दिष्ट करता है. इस प्राधिकार के बल पर ऐसा पुलिस अधिकारी अथवा व्यक्ति सामान्य रूप से किसी स्थान को अथवा विनिर्दिष्ट किसी दस्तावेज या वस्तु की या सदोष परिरुध्द व्यक्ति की तलाश करता है। किसी स्थान व्यक्ति दस्तावेज अथवा वस्तु की तलाशी एक बल प्रवृत्ति गोपनीयता अथवा पवित्रता का अतिक्रमण अंता वर्णित होता है. न्यायालय द्वारा इस निमित्त यह सम प्रतीक्षित किया गया है की तलाशी वारंट जारी करने की शक्ति का प्रयोग संपूर्ण सतर्कता और चौकशी के साथ किया जाना चाहिए. तलाशी वारंट कब जारी किया जा सकता है (when search warrant may be issued): - भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 93 के अनुसार निम्नलिखित परिस्थितियों में तलाशी वारंट जारी किया जा सकता है - ( 1) धारा 93 (1) (A) के अनुसार तलाशी वारंट तब जारी किया जा सकता है जब न्यायालय के पास यह विश्वास करने का पर्याप्त कारण है कि वह व्यक्ति जिसको धारा 91 के अधीन सम्मन आदेश या धारा 92 की उप धारा (1) के अधीन अपेक्षा संबोधि

संक्षिप्त विचारण के बारे में संहिता में विहित प्रक्रिया का उल्लेख विस्तार से कीजिए. (describe in detail proceedure of summary trial under Criminal Procedure Code)

हमारी न्याय प्रक्रिया की सबसे बड़ी कमी इस की जटिलता एवं लंबाई होती है. जितना ही न्याय में विलंब होगा उतना ही अधिक में न्याय को विफल कर देगा आता स्वास्थ्य एवं सफल न्याय प्रशासन के लिए न्यायिक प्रक्रिया का सीक्रेट एवं संक्षिप्त होना आवश्यक है फिर छोटे एवं सामान्य प्रकृति के मामलों के लिए तो यह एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है. भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय 21 की धारा 230 से लेकर 265 तक में संक्षिप्त विचारण के बारे में प्रावधान किया गया है संक्षिप्त विचारण से संबंधित प्रक्रिया निम्न प्रकार से है - ( 1) संक्षिप्त विचारण करने की शक्ति (power to try summary) - धारा 260 के अनुसार (1) इस संहिता में किसी बात के होते हुए भी यदि (a) कोई मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (b) कोई महानगर मजिस्ट्रेट (c) कोई प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट जो उच्च न्यायालय द्वारा इस निमित्त विशेषता या सशक्त किया गया हो.            ठीक समझता है जो वह निम्नलिखित अपराधों का या उनमें से किसी का सापेक्षता कारावास से दंडनीय  नहीं है. ( 2) भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (1860 का 45) की धारा 379 धारा 380 धारा 381 के अधीन चोरी जहां

आरोप में गलतियों का क्या प्रभाव होता है? क्या न्यायालय आरोप में परिवर्तन कर सकता है? यदि हां तो कैसे और कब?( what is effect of error in charge?)

धारा 215 के अनुसार - अपराध के या उन विशिष्टयो  के जिन का आरोप में कथन होगा अपेक्षित है कथन करने में किसी गलती को और उस अपराध या उन विशिष्टयो के कथन  करने में किसी लोप के मामले के किसी प्रक्रम में तब ही तात्विक माना जाएगा जब ऐसी गलतियां लोप से अभियुक्त वास्तव में भुलावे क में पड़ गया है और उसके कारण न्याय नहीं हो पाया है अन्यथा नहीं. ( 1) क पर भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 242 के अधीन का आरोप है कि उसके कब्जे में ऐसा कुटकृत्य सिक्का पाया गया है जिससे वह उस समय जब वह सिक्का उसके कब्जे में आया था जानता था कि वह कूट कृत है और आरोप में कपट पूर्वक शब्द छूट गया जब तक यह प्रतीत नहीं होता है कि वास्तव में का इस लोप से भुलावे में पड़ गया इस गलती को तांत्विक नहीं समझा जाएगा. ( 2) क पर ख से छल करने का आरोप है और जिस रीति से उसने ख के साथ छल किया है वह आरोप में उपवर्णित नहीं  है अशुद्ध रूप से उपवर्णित है।क अपनी प्रति रक्षा करता है साक्षियों को पेश करता है और संव्यवहार का स्वयं अपना विवरण देता न्यायालय इससे अनुमान कर सकता है कि छल करने की रीति के अपवर्जन का लोप तांत्विक नहीं है. (