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Showing posts with the label U.P. LAND LAW

cheque बाउंस क्या होता है? इससे संबंधित नोटिस की drafting कैसे करते हैं?

राजस्व न्यायालय क्या होते हैं? इनका क्या कार्य होता है। वर्णन करो।What are revenue courts? What is their function? Describe.

राजस्व न्यायालय:-   राजस्व न्यायालय, भारत में भूमि,और कर से संबन्धित  सम्पत्ति मामलों को निपटाने वाली विशेष अदालतें है। इनकी स्थापना राजस्व कानूनों के तहत की जाती है। और इनका अधिकार क्षेत्र विभिन्न राज्यों में भिन्न हो सकता है। राजस्व न्यायालयों के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं।-   [1] भूमि विवादों का समाधान: इसमें जमीन के स्वामित्व, सीमा विवाद पट्टे के अधिकार, और मुआवजे से संबन्धित मामले शामिल हैं।  [ 2] कर निर्धारण और वसूली: इसमें सम्पत्ति कर कृषि आयकर, और अन्य करों का आकलन, निर्धारण और वसूली से सम्बन्धित मामले शामिल है।  [ 3] विरासत और उत्तराधिकार: इसमें राजस्व कानूनों के तहत आने वाले अन्य मामले शामिल है, जैसे कि अवैध कब्जा, भूमि अधिग्रहण, और मुआवजा ।  राजस्व न्यायालयों का पदानुक्रम  राजस्व न्यायालयों का पदानुक्रम राज्य से राज्य में भिन्न होता है। लेकिन, सामान्य तौर पर, इसमें निम्नलिखित  स्तर शामिल होते हैं।  • प्राथमिक राजस्व न्यायालय: यह निचला स्तर का न्यायालय होता है, जो आमतौर पर तहसील या उप- विभागीय स्तर पर होता है।  • अपीलीय राजस्व न्यायालय: यह जिला स्तर का न्यायालय हो

उ प्र जमींदारी एवं भूमि सुधार अधिनियम के अन्तर्गत धारा 172 व धारा 174 क्या होती है कुछ उदाहरण सहित बताओ?What are Section 172 and Section 174 under the UP Zamindari and Land Reforms Act? Tell me with some examples?

वैदिक काल से ही भारत की सामाजिक व्यवस्था पुरुष प्रधान रही है। स्त्रियों के विषय में शुरू में यह विचारधारा बलवती थी कि "पिता रक्षति कौमार्य भरता रक्षित यौवने" तात्यपर्य यह है कि स्त्रियों का सरक्षण हमेशा पुरुषों द्वारा होता रहा है। इसीलिये उनके स्वतंत्र अस्तित्व तथा साम्पत्तिक स्वामित्व के स्वरूप में स्त्रीधन की परिकल्पना की जाती थी। इस प्रकार सयुक्त परिवार की परम्परा में स्त्रियों की सह स्वामित्व या सहभागीदारी की क्षीण परिकल्पना की जाती थी। क्रमशः सामाजिक परिवर्तन और स्त्री वर्चस्व के विकास की गति में स्त्रियों के द्वारा साम्पत्तिक अधिकारों और भौमिक सह-खातेदारी तथा उत्तराधिकार आदि के मामले विचाराधीन हुये। जमींदारी प्रथा के समय भी सीर- खुदकाश्त भूमि में पुरुष जोतदार मध्यवर्ती के रूप में अंकित किया जाता था और मृत जमीदारों की विधवाओं को भरण-पोषण के निमित्त तथा तीर्थ - व्रत करने के लिये सीर-खुदकाश्त की भूमि दे दी जाती थी। संविधानोत्तर काल में पारिवारिक विधि के द्वारा स्त्रियों को विस्तारित किया गया तथा 1956 के हिन्दु उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 14 में स्त्रियों के समूर्ण स्वामित्

उ.प्र जमीदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950 की धारा 157 के तहत अक्षम व्यक्ति : एक विश्लेषण Disabled person under section 157 of U.P. Zamindari Abolition and Land Reforms Act 1950 : An analysis

उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950 भूमि सुधारों के लिये एक महत्वपूर्ण कानून है। इसमें धारा 157 अक्षम व्यक्ति को परिभाषित करती है जो उन लोगों के लिये महत्वपूर्ण अधिकार और सुरक्षा प्रदान करती है जो अपनी सम्पत्ति का प्रबन्धन करने में सक्षम नहीं है।   अल्पवयस्क 18 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति । केवल वही नाबालिग  अपनी भूमि को लगान पर उठा सकता है। जिसका पिता न हो या पिता की मृत्यु हो गयी हो या अगर जीवित हो तो वह पागल या जड हो। या अन्धेंपन आदि किसी शारीरिक दुर्बलता से पीडित हो । यह निरर्थक है किं नाबालिग संयुक्त परिवार में पिता के साथ रह रहा है या पिता से अलग है। नाबालिक द्वारा दिया हुआ पट्टा शून्य होगा, क्योंकि नाबालिक संविदा नहीं कर सकता किन्तु धारा 157[1] एक नाबालिग को आज्ञा प्रदान करती है कि वह अपनी भूमि को लगान पर दे सकता है। लगान पर देने का काम नाबालिक के संरक्षक द्वारा किया जाना चाहिये। पट्टा नाबालिग पर बाधित होने के लिये यह आवश्यक है कि जिला-जज की आज्ञा प्राप्त कर ली गयी हो। क्योंकि धारा 157[1] नाबालिग के संरक्षक को कोई अतिरिक्त कानूनी शक्ति नहीं प्रदान कर

भू राजस्व अधिनियम की धारा 40 के अधीन विवाद के निर्णय में कब्जे का तथ्य प्रमुख तत्व होता है. Possession is the main factor in deciding disputes under section 40 of land revenue act

अधिनियम की धारा 40 में वार्षिक रजिस्टरों की प्रविष्टियों  से संबंधित विवादों के निपटारे के लिए उपबंध दिए गए हैं इस धारा के उपबंधों  के अनुसार वार्षिक रजिस्ट्रो की प्रविष्टियों से संबंधित समस्त विवाद केवल कब्जे के आधार पर निर्णित किए जाएंगे कब्जे से तात्पर्य है वैध  कब्जा किसी अतिचारी व्दारा किया गया कब्जा उसे परिवर्तन के लिए अधिकृत नहीं कर सकता है यदि कोई व्यक्ति बिना किसी भूमि पर काबिज है तो इस प्रकार के आधार पर वह अपने पक्ष में परिवर्तन नहीं करवा सकेगा वैद्य कब्जे के संबंध में उच्चतम न्यायालय का एक नवीनतम वाद( मलखान सिंह बनाम मोहन सिंह एआईआर 1986 सु़. को  500 ) का है इस वाद में यह भी अभीनिश्चित किया गया है कि धारा 34 और 40 की प्रक्रिया के अंतर्गत अधिकार और आगम का निर्धारण नहीं किया जा सकता है इसी प्रकार वाद या दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 145 के अधीन था यदि किसी व्यक्ति को परिवर्तन के लिए अधिकार नहीं प्रदान कर सकता ऐसे मामले के निर्धारण के लिए सक्षम न्यायालय सिविल कोर्ट होता है(  राम चरण बनाम रेवेन्यू बोर्ड तथा अन्य 1977 रे. डी .200 )  के निर्णय अनुसार अतिक्रमण के विरुद्ध वाद लाया

खतौनी सही होने की अवधारणा पर संक्षेप में लिखिए. Write in bring presumption of correctness of Khatauni

भू राजस्व अधिनियम के अंतर्गत नामांतरण संबंधी विधि ( mutation of names laid down under up land revenue act) यह विदित है कि वार्षिक रजिस्टर मे सभी प्रकार के जोतदारों का नाम और उनका भौमिक अधिकार अंकित किया जाता है जो भौमिक स्वामित्व और स्वरूप का प्रमाणित साक्ष्य होता है  जब उसमे उल्लेखित जोतदार का अधिकार और कब्जा परिवर्तित किया जाता है तो प्रक्रिया को दाखिल खारिज कहते हैं इस प्रक्रिया में उल्लेखित जोतदार का नाम जब खारिज हो जाता है तो उसके स्थान पर दूसरे का नाम दाखिल या दर्ज हो जाता है अर्थात जब भूमि के कब्जे में परिवर्तन होता है तो दाखिल खारिज का कार्य आवश्यक हो  जाता  है ताकि वर्तमान स्वामित्व और कब्जा का अधिकृत जोतदार अभिज्ञात हो सके.                  भू राजस्व अधिनियम की धारा 34 के अंतर्गत उत्तराधिकार व कब्जा अंतरण से संबध्द प्रक्रिया द्वारा दाखिल खारिज की कार्यवाही संपन्न करने का प्रावधान उप बंधित है. दाखिल खारिज की प्रक्रिया की प्रकृति ( nature of procedure of mutation)         राजस्व विभाग के प्रशासनिक अधिकारी और न्यायिक अधिकारी की भूमिका में तहसीलदार से लेकर कमिश्नर तक

भू राजस्व अधिनियम 1901 के अधीन सीमा विवाद संबंधी निपटारे की प्रक्रिया का विस्तार से उल्लेख कीजिए? Describe the procedure of settlement of boundary dispute under up land revenue act 1901

अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक जोतदार का प्रथक खेत होता है दो खेतों को पृथक करने के लिए दोनों खेतों के बीच में एक मेड होती है इसी मेड को सीमा कहा जाता है और इसी  मेड के संबंध में जब दो या दो से अधिक जोतदारों के बीच कोई विवाद उत्पन्न होता है तो उसे सीमा विवाद कहते हैं इस प्रकार जोतदारों के खेतों की मेड़ के संबंध में जो विवाद उत्पन्न होता है वही सीमा विवाद कहलाता है. सीमा विवाद के निपटारे की प्रक्रिया ( proceedure of boundary disputes) अधिनियम के अनुसार सीमा विवादों का निपटारा निम्नलिखित ढंग से किया जाता है - (1) सीमा विवादों के निपटारे के लिए सर्वप्रथम प्रार्थना पत्र दिया जाता है प्रार्थना पत्र कलेक्टर को देना होता है. (2) प्रार्थना पत्र के साथ नक्शा तथा खसरे से  संबंधित हिस्से की प्रमाणित प्रतिलिपि संलग्न होती है (3) जब कलेक्टर को सीमा विवाद के संबंध में प्रार्थना पत्र प्राप्त होता है तो वह उसकी प्रारंभिक जांच कराने के लिए उसे तहसीलदार के माध्यम से संबंधित सुपरवाइजर कानूनगो के पास भेजता है. (4) सुपर वाइजर कानूनगो संबंधित सीमा विवाद के बारे में अपनी रिपोर्ट देता है उसे अपनी रिप

किसी भूमिधर के द्वारा देय भू राजस्व की धन राशि क्या होगी? भू राजस्व की अवधारणा की प्रक्रिया. What will be the amount of land revenue payable by the Bhumi Dhar

भूमिधर द्वारा देय भू राजस्व (Land Revenue Payable by a Bhumidhar) अधिनियम के अनुसार, ( 1) इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए प्रत्येक भूमिधर जुलाई 1 , 1976 को या उसके पश्चात प्रारंभ होने वाले प्रति वर्ष के लिए राज्य सरकार को अपने द्वारा धृति भूमि के लिए धारा 246 की उप धारा 2 और धारा 247 के उप बंधों के अनुसार आधारित राजस्व का देनदार होगा। ( 2) किसी भूमिधर द्वारा देय मालगुजारी उस धनराशि  के बराबर होगी जिसकी गणना उसके खात में सम्मिलित गाटों पर लागू मौरूसी दरों के दोगुने पर की जाएगी। प्रतिबंध यह है कि इस प्रकार गणना की की गई मालगुजारी - (a) असिंचित गाटा के संबंध में रुपए ₹5 प्रति एकड़ से कम और ₹10 प्रति एकड़ से अधिक ना होगी (b) किसी सिंचित गाटा के संबंध में ₹10 प्रति एकड़ से कम और ₹20 प्रति एकड़ से अधिक ना होगी स्पष्टीकरण - (1 ) गाटा से तात्पर्य ऐसी भूमि से है जिसके लिए एक पृथक समान संख्या दी गई हो. ( 2) इस धारा के प्रयोजन अर्थ पद संचित गाटा का तात्पर्य ऐसे गाटा से है जिसके क्षेत्रफल से कम से कम आधे भाग में 1879 फसली से 1383 दोनों को सम्मिलित करते हुए के बीच किसी तीन कृषि वर्ष में प्र

किन मामलों में उत्तर प्रदेश जमीदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950 के अंतर्गत दीवानी न्यायालय का क्षेत्राधिकार प्रतिबंधित किया गया है. In what matter is the jurisdiction of Civil Court barred under UPZA LR act 1950

हमारे देश के प्रत्येक राज्य में लगान मालगुजारी और भूमि संबंधी मामलों में राजस्व (माल अदालतों) को एकमात्र क्षेत्राधिकार प्रदान किया गया है वह शायद इस कारण की राजस्व न्यायालयों के अधिकारी इन मामलों में अधिक जानकारी रखते हैं और यह की दीवानी न्यायालय द्वारा निर्णय होने में काफी विलंब होता है और प्रक्रिया भी काफी पेचीदी होती है ऐसा आम तौर पर महसूस किया गया है कि राजस्व न्यायालय सस्ता और शीघ्र मिल जाने वाला अनुतोष (relief) प्रदान कर सकेगा.             इस प्रकार उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा 331 (1) यह प्रावधानित करती है कि दीवानी प्रक्रिया संहिता (सी. पी. सी) की धारा 158 में किसी बात के रहते हुए भी इस अधिनियम की दूसरी  अनुसूची के खाना 4 में उल्लेखित न्यायालय के अतिरिक्त कोई अन्य न्यायालय उक्त अनुसूची के खाना 3 में वर्णित किसी वाद प्रार्थना पत्र या कार्यवाही पर या ऐसे वाद हेतु पर आधारित  वाद प्रार्थना पत्र या कार्यवाही पर जिस के संबंध में किसी ऐसे वाद या प्रार्थना पत्र द्वारा कोई अनुतोष प्राप्त किया जा सकता था विचार ना करेगा.             उत्तर प्रद

उत्तर प्रदेश भू अधिनियम के अंतर्गत किन आधारों पर पुनरीक्षण हो सकता है? On what grounds a revision line under up land revenue court

अधिनियम के अनुसार न्यायालय अपने अधीनस्थ किसी राजस्व  न्यायालय द्वारा पारित आदेश या की गई कार्यवाही की वैधता या औचित्य के बारे में अपना समाधान करने के प्रयोजन से उसके द्वारा निर्णीत किसी ऐसे मामले या ऐसी कार्रवाई का अभिलेख मंगा सकता है जिसमें ( 1) कोई अपील ना होती हो या ( 2) अपील होती है किंतु ना की गई हो और ( 3) यदि ऐसा प्रतीत हो उसे ऐसे राजस्व  न्यायालय ने (a) ऐसी अधिकारिता का प्रयोग किया है तो उसमें विधि द्वारा  निहीत नहीं है या  (b) ऐसी अधिकारिता का प्रयोग करने में असफल रहा है जो इस प्रकार निहित है या (c) अपनी अधिकारिता का प्रयोग करने में अवैध रूप से या तात्विक अनियमितता से कार्य किया है जहां अधीनस्थ न्यायालय ने अपनी अधिकारिता का प्रयोग करने में अनियमितता या अवैध ढंग एवं निष्क्रियता से कार्य किया और विधि या तथ्य  के निष्कर्ष पर प्रश्न निहित हो तो धारा 219 लागू नहीं  होगी  पुनरीक्षण कौन दायर कर सकता है(who may file Revision) पुनरीक्षण की याचिका के लिए यह जरुरी नहीं कि दायर करने वाला क्षुब्ध पक्षकार हो पुनरीक्षण की याचिका राज्य सरकार भी दायर कर सकती है अंततः वह निचले कोर्ट

दाखिल खारिज से क्या समझते ह ै? उत्तराधिकार के मामले में दाखिल खारिज की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए what do you mean by mutation ? describe the process of mutation on the ground of succession

दाखिल खारिज का अर्थ: - दाखिल खारिज का अर्थ होता है वार्षिक रजिस्टर में जोतदार के नाम का परिवर्तन. एक व्यक्ति का नाम खारिज होना (निकाल दिया जाना) एवं दूसरे का नाम उसके स्थान पर दाखिल (प्रविष्ट) किया जाना जब कभी भूमि के कब्जे में परिवर्तन होता है तो दाखिल खारिज की प्रक्रिया की जाती है. दाखिल खारिज पक्रमी की प्रकृति  रेवेन्यू मैनुअल के अनुच्छेद 911 के अंतर्गत दाखिल खारिज की प्रक्रिया न्यायिक प्रक्रिया(judicial proceeding)मानी गयी है। किंतु न्यायिक निर्णय और राजस्व विधिशास्त्रियों के विचार इसके विपरीत है पृवी काउंसिल में निर्मल सिंह बनाम रुद्र प्रताप नारायण सिंह के  वाद में यह निर्णय किया कि दाखिल खारिज  न्यायिक प्रकृति की नहीं होती है किंतु मालगुजारी के भुगतान की जांच से संबंधित है राजस्व विधिशास्त्रीयों थॉमसन ने लिखा है कि एक तथ्य है यह  स्वामियों के रजिस्टर में इन्दराज है ताकि दर्ज व्यक्तियों से कलेक्टर मालगुजारी वसूल करें.         दाखिल खारिज करने वाला न्यायालय एक संक्षिप्त विचारण न्यायालय होता है और इसका मुख्य ध्येय  हैं कि खतौनी मे बिना प्रविष्ट के किसी भी कृषि भूमि को न