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Showing posts with the label U.P. LAND LAW

अग्रिम जमानत याचिका का क्या अर्थ होता है ? What is the meaning of anticipatory bail petition?

भू राजस्व अधिनियम की धारा 40 के अधीन विवाद के निर्णय में कब्जे का तथ्य प्रमुख तत्व होता है. Possession is the main factor in deciding disputes under section 40 of land revenue act

अधिनियम की धारा 40 में वार्षिक रजिस्टरों की प्रविष्टियों  से संबंधित विवादों के निपटारे के लिए उपबंध दिए गए हैं इस धारा के उपबंधों  के अनुसार वार्षिक रजिस्ट्रो की प्रविष्टियों से संबंधित समस्त विवाद केवल कब्जे के आधार पर निर्णित किए जाएंगे कब्जे से तात्पर्य है वैध  कब्जा किसी अतिचारी व्दारा किया गया कब्जा उसे परिवर्तन के लिए अधिकृत नहीं कर सकता है यदि कोई व्यक्ति बिना किसी भूमि पर काबिज है तो इस प्रकार के आधार पर वह अपने पक्ष में परिवर्तन नहीं करवा सकेगा वैद्य कब्जे के संबंध में उच्चतम न्यायालय का एक नवीनतम वाद( मलखान सिंह बनाम मोहन सिंह एआईआर 1986 सु़. को  500 ) का है इस वाद में यह भी अभीनिश्चित किया गया है कि धारा 34 और 40 की प्रक्रिया के अंतर्गत अधिकार और आगम का निर्धारण नहीं किया जा सकता है इसी प्रकार वाद या दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 145 के अधीन था यदि किसी व्यक्ति को परिवर्तन के लिए अधिकार नहीं प्रदान कर सकता ऐसे मामले के निर्धारण के लिए सक्षम न्यायालय सिविल कोर्ट होता है(  राम चरण बनाम रेवेन्यू बोर्ड तथा अन्य 1977 रे. डी .200 )  के निर्णय अनुसार अतिक्रमण के विरुद्ध वाद लाया

खतौनी सही होने की अवधारणा पर संक्षेप में लिखिए. Write in bring presumption of correctness of Khatauni

भू राजस्व अधिनियम के अंतर्गत नामांतरण संबंधी विधि ( mutation of names laid down under up land revenue act) यह विदित है कि वार्षिक रजिस्टर मे सभी प्रकार के जोतदारों का नाम और उनका भौमिक अधिकार अंकित किया जाता है जो भौमिक स्वामित्व और स्वरूप का प्रमाणित साक्ष्य होता है  जब उसमे उल्लेखित जोतदार का अधिकार और कब्जा परिवर्तित किया जाता है तो प्रक्रिया को दाखिल खारिज कहते हैं इस प्रक्रिया में उल्लेखित जोतदार का नाम जब खारिज हो जाता है तो उसके स्थान पर दूसरे का नाम दाखिल या दर्ज हो जाता है अर्थात जब भूमि के कब्जे में परिवर्तन होता है तो दाखिल खारिज का कार्य आवश्यक हो  जाता  है ताकि वर्तमान स्वामित्व और कब्जा का अधिकृत जोतदार अभिज्ञात हो सके.                  भू राजस्व अधिनियम की धारा 34 के अंतर्गत उत्तराधिकार व कब्जा अंतरण से संबध्द प्रक्रिया द्वारा दाखिल खारिज की कार्यवाही संपन्न करने का प्रावधान उप बंधित है. दाखिल खारिज की प्रक्रिया की प्रकृति ( nature of procedure of mutation)         राजस्व विभाग के प्रशासनिक अधिकारी और न्यायिक अधिकारी की भूमिका में तहसीलदार से लेकर कमिश्नर तक

भू राजस्व अधिनियम 1901 के अधीन सीमा विवाद संबंधी निपटारे की प्रक्रिया का विस्तार से उल्लेख कीजिए? Describe the procedure of settlement of boundary dispute under up land revenue act 1901

अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक जोतदार का प्रथक खेत होता है दो खेतों को पृथक करने के लिए दोनों खेतों के बीच में एक मेड होती है इसी मेड को सीमा कहा जाता है और इसी  मेड के संबंध में जब दो या दो से अधिक जोतदारों के बीच कोई विवाद उत्पन्न होता है तो उसे सीमा विवाद कहते हैं इस प्रकार जोतदारों के खेतों की मेड़ के संबंध में जो विवाद उत्पन्न होता है वही सीमा विवाद कहलाता है. सीमा विवाद के निपटारे की प्रक्रिया ( proceedure of boundary disputes) अधिनियम के अनुसार सीमा विवादों का निपटारा निम्नलिखित ढंग से किया जाता है - (1) सीमा विवादों के निपटारे के लिए सर्वप्रथम प्रार्थना पत्र दिया जाता है प्रार्थना पत्र कलेक्टर को देना होता है. (2) प्रार्थना पत्र के साथ नक्शा तथा खसरे से  संबंधित हिस्से की प्रमाणित प्रतिलिपि संलग्न होती है (3) जब कलेक्टर को सीमा विवाद के संबंध में प्रार्थना पत्र प्राप्त होता है तो वह उसकी प्रारंभिक जांच कराने के लिए उसे तहसीलदार के माध्यम से संबंधित सुपरवाइजर कानूनगो के पास भेजता है. (4) सुपर वाइजर कानूनगो संबंधित सीमा विवाद के बारे में अपनी रिपोर्ट देता है उसे अपनी रिप

किसी भूमिधर के द्वारा देय भू राजस्व की धन राशि क्या होगी? भू राजस्व की अवधारणा की प्रक्रिया. What will be the amount of land revenue payable by the Bhumi Dhar

भूमिधर द्वारा देय भू राजस्व (Land Revenue Payable by a Bhumidhar) अधिनियम के अनुसार, ( 1) इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए प्रत्येक भूमिधर जुलाई 1 , 1976 को या उसके पश्चात प्रारंभ होने वाले प्रति वर्ष के लिए राज्य सरकार को अपने द्वारा धृति भूमि के लिए धारा 246 की उप धारा 2 और धारा 247 के उप बंधों के अनुसार आधारित राजस्व का देनदार होगा। ( 2) किसी भूमिधर द्वारा देय मालगुजारी उस धनराशि  के बराबर होगी जिसकी गणना उसके खात में सम्मिलित गाटों पर लागू मौरूसी दरों के दोगुने पर की जाएगी। प्रतिबंध यह है कि इस प्रकार गणना की की गई मालगुजारी - (a) असिंचित गाटा के संबंध में रुपए ₹5 प्रति एकड़ से कम और ₹10 प्रति एकड़ से अधिक ना होगी (b) किसी सिंचित गाटा के संबंध में ₹10 प्रति एकड़ से कम और ₹20 प्रति एकड़ से अधिक ना होगी स्पष्टीकरण - (1 ) गाटा से तात्पर्य ऐसी भूमि से है जिसके लिए एक पृथक समान संख्या दी गई हो. ( 2) इस धारा के प्रयोजन अर्थ पद संचित गाटा का तात्पर्य ऐसे गाटा से है जिसके क्षेत्रफल से कम से कम आधे भाग में 1879 फसली से 1383 दोनों को सम्मिलित करते हुए के बीच किसी तीन कृषि वर्ष में प्र

किन मामलों में उत्तर प्रदेश जमीदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950 के अंतर्गत दीवानी न्यायालय का क्षेत्राधिकार प्रतिबंधित किया गया है. In what matter is the jurisdiction of Civil Court barred under UPZA LR act 1950

हमारे देश के प्रत्येक राज्य में लगान मालगुजारी और भूमि संबंधी मामलों में राजस्व (माल अदालतों) को एकमात्र क्षेत्राधिकार प्रदान किया गया है वह शायद इस कारण की राजस्व न्यायालयों के अधिकारी इन मामलों में अधिक जानकारी रखते हैं और यह की दीवानी न्यायालय द्वारा निर्णय होने में काफी विलंब होता है और प्रक्रिया भी काफी पेचीदी होती है ऐसा आम तौर पर महसूस किया गया है कि राजस्व न्यायालय सस्ता और शीघ्र मिल जाने वाला अनुतोष (relief) प्रदान कर सकेगा.             इस प्रकार उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा 331 (1) यह प्रावधानित करती है कि दीवानी प्रक्रिया संहिता (सी. पी. सी) की धारा 158 में किसी बात के रहते हुए भी इस अधिनियम की दूसरी  अनुसूची के खाना 4 में उल्लेखित न्यायालय के अतिरिक्त कोई अन्य न्यायालय उक्त अनुसूची के खाना 3 में वर्णित किसी वाद प्रार्थना पत्र या कार्यवाही पर या ऐसे वाद हेतु पर आधारित  वाद प्रार्थना पत्र या कार्यवाही पर जिस के संबंध में किसी ऐसे वाद या प्रार्थना पत्र द्वारा कोई अनुतोष प्राप्त किया जा सकता था विचार ना करेगा.             उत्तर प्रद

उत्तर प्रदेश भू अधिनियम के अंतर्गत किन आधारों पर पुनरीक्षण हो सकता है? On what grounds a revision line under up land revenue court

अधिनियम के अनुसार न्यायालय अपने अधीनस्थ किसी राजस्व  न्यायालय द्वारा पारित आदेश या की गई कार्यवाही की वैधता या औचित्य के बारे में अपना समाधान करने के प्रयोजन से उसके द्वारा निर्णीत किसी ऐसे मामले या ऐसी कार्रवाई का अभिलेख मंगा सकता है जिसमें ( 1) कोई अपील ना होती हो या ( 2) अपील होती है किंतु ना की गई हो और ( 3) यदि ऐसा प्रतीत हो उसे ऐसे राजस्व  न्यायालय ने (a) ऐसी अधिकारिता का प्रयोग किया है तो उसमें विधि द्वारा  निहीत नहीं है या  (b) ऐसी अधिकारिता का प्रयोग करने में असफल रहा है जो इस प्रकार निहित है या (c) अपनी अधिकारिता का प्रयोग करने में अवैध रूप से या तात्विक अनियमितता से कार्य किया है जहां अधीनस्थ न्यायालय ने अपनी अधिकारिता का प्रयोग करने में अनियमितता या अवैध ढंग एवं निष्क्रियता से कार्य किया और विधि या तथ्य  के निष्कर्ष पर प्रश्न निहित हो तो धारा 219 लागू नहीं  होगी  पुनरीक्षण कौन दायर कर सकता है(who may file Revision) पुनरीक्षण की याचिका के लिए यह जरुरी नहीं कि दायर करने वाला क्षुब्ध पक्षकार हो पुनरीक्षण की याचिका राज्य सरकार भी दायर कर सकती है अंततः वह निचले कोर्ट

दाखिल खारिज से क्या समझते ह ै? उत्तराधिकार के मामले में दाखिल खारिज की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए what do you mean by mutation ? describe the process of mutation on the ground of succession

दाखिल खारिज का अर्थ: - दाखिल खारिज का अर्थ होता है वार्षिक रजिस्टर में जोतदार के नाम का परिवर्तन. एक व्यक्ति का नाम खारिज होना (निकाल दिया जाना) एवं दूसरे का नाम उसके स्थान पर दाखिल (प्रविष्ट) किया जाना जब कभी भूमि के कब्जे में परिवर्तन होता है तो दाखिल खारिज की प्रक्रिया की जाती है. दाखिल खारिज पक्रमी की प्रकृति  रेवेन्यू मैनुअल के अनुच्छेद 911 के अंतर्गत दाखिल खारिज की प्रक्रिया न्यायिक प्रक्रिया(judicial proceeding)मानी गयी है। किंतु न्यायिक निर्णय और राजस्व विधिशास्त्रियों के विचार इसके विपरीत है पृवी काउंसिल में निर्मल सिंह बनाम रुद्र प्रताप नारायण सिंह के  वाद में यह निर्णय किया कि दाखिल खारिज  न्यायिक प्रकृति की नहीं होती है किंतु मालगुजारी के भुगतान की जांच से संबंधित है राजस्व विधिशास्त्रीयों थॉमसन ने लिखा है कि एक तथ्य है यह  स्वामियों के रजिस्टर में इन्दराज है ताकि दर्ज व्यक्तियों से कलेक्टर मालगुजारी वसूल करें.         दाखिल खारिज करने वाला न्यायालय एक संक्षिप्त विचारण न्यायालय होता है और इसका मुख्य ध्येय  हैं कि खतौनी मे बिना प्रविष्ट के किसी भी कृषि भूमि को न

मेड विवाद से आप क्या समझते हैं मेड विवाद किन आधारों पर निर्मित होता है? what do you mean by boundary dispute on what basis is boundary dispute is decided?

भूमि संबंधी अभिलेख को तैयार करने और रखरखाव करने के लिए सीमा चिन्हों का होना आवश्यक है . जब कोई क्षेत्र अभिलेख प्रवर्तन में होता है तो अभिलेख अधिकारी घोषणा द्वारा सब गांव -सभाओं तथा भूमिधरों को निर्देश दे सकता है कि 15 दिनों की अवधि में सीमा चिन्हों को बना ले।यदि वे ऐसा करने से चूक जाते हैं तो अभिलेख अधिकारी सीमा चिन्हों का निर्माण और स्थापना कर देगा और कलेक्टर उन  खर्चों को तत्संबंधीत ग्राम पंचायतों या जोतदारों से वसूल करेगा प्रत्येक जोतदार का यह कर्तव्य है कि वह अपनी जोतो पर वैद्य रूप से निर्मित स्थाई सीमा चिन्हों  की देखभाल और रखरखाव करें एवं अपने निजी खर्चे से उसकी मरम्मत कराये।यह कर्तव्य ग्राम पंचायत पर भी आरोपित  है कि वह अपने अधिकार क्षेत्र में स्थित गांव पर वैध रूप से बनाए गए स्थाई सीमा चिन्हों का रखरखाव करे और  अपने निजी खर्चों पर उसकी मरम्मत कराए.            कलेक्टर किसी भी समय ग्राम पंचायत या जोतदार को यह आदेश दे सकता है कि वह अपने गांवों या जोतों पर उचित सीमा चिन्हों को बनाएं तथा अवैध रूप से बने हुए सभी सीमा चिन्हों को इस रुप से मरम्मत कराए कि यह पुनः  नवीन जैसे

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के सदस्य हेतु उत्तर प्रदेश जमीदारी उन्मूलन व भूमि सुधार अधिनियम में प्रावधान: The provisions under Up z a and l r act to protect the interest of member of caste and Scheduled tribe

अनुसूचित जाति का कोई भी भूमिधर अपनी जोतदार भूमि का विक्रय दान बंधन अथवा पट्टा अनुसूचित जाति के अलावा किसी भी व्यक्ति को नहीं कर सकता है.               कलेक्टर की पूर्व आज्ञा के अंतरण अनुसूचित जनजाति के अलावा किसी व्यक्ति को किया जा सकता है.                  अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के हितों की रक्षा हेतु उत्तर पृदेश  जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम में निम्न प्रावधान किए गए हैं.           ( 1) धारा 122 (ग) के अनुसार (according to Section 122( c) ): - जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा 122 (ग) के अंतर्गत भूमि प्रबंधन समिति को परगनाधिकारी की पूर्व आज्ञा से अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों को मकान बनवाने के लिए भूमि का आवंटन किया जाता है अथवा अधिनियम के अनुसार अनुसूचित जाति एवं जनजाति के व्यक्तियों को मकान बनाने के लिए भूमि प्रदान की जाती है. ( 2) धारा 157 क के अनुसार (according to Section 157 a): - अनुसूचित जाति का कोई भी व्यक्ति अपनी भूमि का दान पट्टा वितरण और बंधक अनुसूचित जाति के व्यक्ति के अलावा किसी और व्यक्ति को नह

असामी कौन है ?असामी के क्या अधिकार है और दायित्व who is Asami ?discuss the right and liabilities of Assami

अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार  (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि  (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार  (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार  (5)काशतकार भोग बंधकी  (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।           वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता है या ग्राम पंचायत का ग्राम सभा या राज्य सरकार द्वारा पट्टे पर दी जाने वाली

कोई भूमिधर अपनी जोत को किसी व्यक्ति को किसी भी अवधि हेतु पट्टे पर नहीं दे सकता है. समीक्षा कीजिए तथा यदि अपवाद हो तो उनकी व्याख्या कीजिए?No bhumidhar can let out his holding to any person for any period whatever comments and discuss the exceptions if any

उत्तर प्रदेश जमीदारी उन्मूलन एवं भूमि व्यवस्था किसी भी भूमिधर के द्वारा अपनी ज्योत की भूमि को पट्टे पर उठाने पर प्रतिबंध लगाया गया है इस अधिनियम की धारा 150 में प्रावधान किया गया है इस ध अपने खेत की भूमि लगान पर किसी भी अवधि के लिए नहीं उठाएगा. (a) धारा 157 में व्यवस्थित दशाओं में (b) कृषि बागवानी या पशुपालन की शिक्षा से संबंध किसी स्वीकृत शिक्षा संस्थान को. धारा ( 2) के संबंध में पट्टा सजातीय पदों का वही अर्थ होगा जो संपत्ति अंतर नियम 1882 में शब्द लीज एवं उसके सजातीय पदों को दिया गया है.                 अधिनियम में यह प्रावधान के पीछे प्रमुख उद्देश्य है कि जमीदारी प्रथा या उसके जैसी कोई अन्य प्रथा पुनर्जीवित ना हो अधिनियम सिर्फ ऐसे भूमि धर्म को अपनी जोत वाली भूमि को पट्टे पर देने की अनुमति देता है जो किसी कारणवश स्वयं अपनी जोत वाली भूमि पर कृषि कार्य करने में सक्षम है ऐसी सक्षम व्यक्तियों की सूची धारा 157 में दी गई है इनके अलावा अपनी भूमि घरों के द्वारा अपनी ज्योत की भूमि का पट्टा किसी ऐसे संस्थान को दिए जाने की अनुमति अधिनियम में प्रदान करता है जो कृषि बागवानी एवं पशुपाल

उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम के उद्देश्य: Object of the up zamindari abolition and land Reform Act

7 जुलाई 1949 को उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था विधेयक को विधानसभा में पेश करते हुए पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने कहा था कि इस विधेयक को उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति के कृषि अधिकारों को कायम करने का है चाहे वह जमीदार हो काश्तकार हो या सिकमी काश्तकार. विधेयक का मुख्य उद्देश्य उत्पादन को प्रोत्साहित करना उसके स्तर को बढ़ाना एवं जमीदारों को भी अपने लिए उत्पादन करने के लिए प्रेरित करना जिन्होंने अब तक दूसरों को शोषण किया है या दूसरों का श्रम पर आश्रित रहे हैं.             10 जून में 1949 को सरकारी गजट में इस विधेयक का उद्देश्य तथा कारणों का विवरण प्रकाशित हुआ था उसका सारांश - ( 1) जमीदारी प्रथा का उन्मूलन ( 2) मुआवजा देकर जमीदारों के अधिकार आगम तथा हित का अर्जन  (3) साधारण एवं समरूप जोतदारी व्यवस्था स्थापित करने एवं चालू क्लिफ्ट एवं भ्रामक  जोतदारियो को समाप्त करना (4)शिकमी पर भूमि उठाने पर रोक ( 5) ग्राम स्वायत शासन का विकास ( 6) अलाभकर जोतो को उत्पत्ति को रोकने एवं अधिक भूमि के जमाव पर रोक। (7) सहकारी खेती को प्रोत्साहन देना ( 8) बहुत सभा में समान उपयोगिता की सभी भूमियो