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प्रॉपर्टी विवाद में धारा 164 और 165 का महत्व जानिए एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट की भूमिका और प्रक्रिया

प्रॉपर्टी डिस्प्यूट और एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट की भूमिका: धारा 164 और 165 का महत्व→

हमारे समाज में संपत्ति से जुड़ी विवादों का होना कोई नई बात नहीं है। इन विवादों से न केवल व्यक्तिगत रिश्तों में दरार आती है, बल्कि कभी-कभी समाज में अशांति भी फैल सकती है। इन विवादों को सुलझाने के लिए कई कानूनी रास्ते होते हैं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण रास्ता भारतीय दंड संहिता की धारा 164 और 165 के तहत एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट की भूमिका है। इन धाराओं के माध्यम से संपत्ति से जुड़ी समस्याओं का त्वरित समाधान किया जा सकता है, जिससे समाज में शांति बनी रहती है।

धारा 164: एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट की भूमिका→

धारा 164 के तहत एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट को यह अधिकार प्राप्त है कि वह किसी विवादित संपत्ति से संबंधित मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है, जब यह खतरा हो कि विवाद से लोक शांति भंग हो सकती है। उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए कि दो लोग एक ही जमीन पर कब्जा करने के लिए आपस में झगड़ रहे हैं और इससे हिंसा होने का डर है। ऐसे में एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट को यह अधिकार होता है कि वह तुरंत उस संपत्ति पर स्टे (अस्थायी रोक) लगा दे ताकि विवाद बढ़ने से पहले शांति बनी रहे।

उद्देश्य:→
धारा 164 का मुख्य उद्देश्य किसी विवाद के कारण उत्पन्न होने वाली अशांति और हिंसा को रोकना है, न कि संपत्ति के मालिकाना हक (टाइटल) का निर्णय करना। मजिस्ट्रेट का आदेश अस्थायी होता है और इस आदेश से किसी भी पार्टी के अधिकारों का स्थायी निपटारा नहीं होता। यदि विवाद का निपटारा सिविल कोर्ट में चल रहा है, तो मजिस्ट्रेट को धारा 164 का उपयोग नहीं करना चाहिए।

धारा 164 का उपयोग:→

1. विवाद से लोक शांति का खतरा:→ यदि किसी भूमि या जल से संबंधित विवाद से लोक शांति भंग होने की संभावना है, तो एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट को यह अधिकार है कि वह तुरंत कार्रवाई करे।
2. अस्थायी आदेश:→ यह आदेश स्थायी नहीं होते। ये केवल उस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए होते हैं, जब तक कि कोर्ट में मामला न सुलझ जाए।

मामला उदाहरण:→
मान लीजिए, दो पक्ष एक खेत पर कब्जे को लेकर आपस में झगड़ रहे हैं, और विवाद के कारण गांव में तनाव और हिंसा का माहौल बन सकता है। ऐसे में एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट इस विवाद को शांत करने के लिए उस भूमि पर अस्थायी रोक लगा सकता है। इस आदेश का उद्देश्य केवल शांति बनाए रखना है, न कि भूमि के वास्तविक मालिक का फैसला करना।

धारा 164 की सीमा→

धारा 164 के तहत एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट का कार्य केवल अस्थायी शांति व्यवस्था बनाए रखना है। यदि मामला पहले से ही सिविल कोर्ट में लंबित है, तो मजिस्ट्रेट को इस धारा के तहत कोई कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है। उदाहरण के लिए, यदि दो पक्ष एक ही भूमि के मालिक होने का दावा कर रहे हैं और मामला पहले से सिविल कोर्ट में चल रहा है, तो मजिस्ट्रेट को धारा 164 के तहत हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं है। 
धारा 165: रिसीवर की नियुक्ति→

अगर एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट को यह लगता है कि वह विवाद में किसी पक्ष का कब्जा तय नहीं कर पा रहा है या किसी पक्ष के कब्जे का अधिकार स्पष्ट नहीं है, तो वह धारा 165 का उपयोग कर सकता है। इस धारा के तहत मजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति को "रिसीवर" नियुक्त करता है, जो संपत्ति की देखरेख करता है। रिसीवर को वही अधिकार प्राप्त होते हैं जो सिविल कोर्ट द्वारा नियुक्त किए गए रिसीवर को मिलते हैं।

उदाहरण:→ 
मान लीजिए, एक व्यक्ति अपनी ज़मीन पर कब्जा करना चाहता है, लेकिन दूसरा व्यक्ति भी उसी पर दावा करता है। मजिस्ट्रेट यह तय नहीं कर पा रहा है कि असल में कब्जा किसका है। ऐसे में वह एक रिसीवर नियुक्त कर सकता है, जो जमीन की देखरेख करेगा और कोर्ट के फैसले तक संपत्ति को सही तरीके से संभालेगा।

जब मामले में सिविल कोर्ट की भूमिका होती है→

यदि किसी संपत्ति के कब्जे या अधिकार के बारे में मामला सिविल कोर्ट में लंबित हो, तो धारा 164 और 165 का उपयोग तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि कोई आपात स्थिति न हो। उदाहरण के लिए, यदि किसी विवादित भूमि के कब्जे को लेकर पहले से सिविल कोर्ट में मुकदमा चल रहा है, तो एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट को उस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। 

 निष्कर्ष:→

धारा 164 और 165 का उद्देश्य केवल तत्काल शांति बनाए रखना है, न कि संपत्ति के मालिकाना हक का निपटारा करना। एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट इन धाराओं का उपयोग केवल उस स्थिति में कर सकता है जब विवाद से लोक शांति भंग होने का खतरा हो। यदि मामला पहले से सिविल कोर्ट में लंबित है, तो इन धाराओं का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। इस प्रकार, इन धाराओं के तहत जारी किए गए आदेश केवल अस्थायी होते हैं और इनका उद्देश्य केवल शांति बनाए रखना होता है, न कि विवाद के वास्तविक समाधान का निर्धारण करना।

इससे यह स्पष्ट होता है कि एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट की शक्तियां सीमित होती हैं, और उनका मुख्य कार्य विवाद को बढ़ने से रोकना है, ताकि समाज में शांति बनी रहे।

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