कंपनी के नियमन के लिए दूसरा आवश्यक दस्तावेज( document) इसके पार्षद अंतर नियम( article of association) होते हैं. कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को ही अंतर नियम( articles of association) कहा जाता है. यह नियम कंपनी तथा उसके साथियों दोनों के लिए ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी की संपूर्ण प्रबंध व्यवस्था उसके अंतर नियम के अनुसार होती है. दूसरे शब्दों में अंतर नियमों में उल्लेख रहता है कि कंपनी कौन-कौन से कार्य किस प्रकार किए जाएंगे तथा उसके विभिन्न पदाधिकारियों या प्रबंधकों के क्या अधिकार होंगे?
कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(5) के अनुसार पार्षद अंतर नियम( article of association) का आशय किसी कंपनी की ऐसी नियमावली से है कि पुरानी कंपनी विधियां मूल रूप से बनाई गई हो अथवा संशोधित की गई हो.
लार्ड केयन्स(Lord Cairns) के अनुसार अंतर नियम पार्षद सीमा नियम के अधीन कार्य करते हैं और वे सीमा नियम को चार्टर के रूप में स्वीकार करते हैं. वे उन नीतियों तथा स्वरूपों को स्पष्ट करते हैं जिनके अनुसार कंपनी का व्यवसाय चलाया जाता है और जिनमें समय-समय पर कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए परिवर्तन किए जाते हैं.
" पार्षद अंतर नियम कंपनी और इसके सदस्यों के बीच अनुबंध है जो अनुबंध के अंतर्गत सदस्यों के आपसी अधिकारों को प्रकट करता है."
( the articles of association is a contract between the company and its member outright of members inter under the contract)
पा अंतर नियम वास्तव में कंपनी के आंतरिक नियम है इन अंतर नियमों को मानने के लिए कंपनी तथा उसके सदस्य आबध्य हैं. कंपनी के पार्षद अंतर नियम कंपनी के पार्षद सीमा नियम का उल्लंघन नहीं कर सकते हैं क्योंकि पार्षद सीमा नियम किसी कंपनी के प्रारंभिक शर्तों को निर्धारित करता है तथा पार्षद अंतर नियम कंपनी की आंतरिक नियमावली है. यदि कोई कंपनी चाहे तो अधिनियम की सूची "अ" में दी गई तालिका को स्वीकार कर सकती है. कुछ कंपनियों को अनिवार्य रूप से अंतर नियम रखने होते हैं. पार्षद अंतर नियमों को छपा हुआ होना चाहिए तथा विभिन्न खंडों में विभाजित होना चाहिए. जिन व्यक्तियों ने कंपनी के पार्षद सीमा नियम पर हस्ताक्षर किए हैं उन्हें के हस्ताक्षर पार्षद अंतर नियमों पर भी होना चाहिए. इन पर हस्ताक्षर दो गवाहों के सम्मुख होने चाहिए. कंपनी के सदस्य का वैधानिक अधिकार है कि वह कंपनी से पार्षद अंतर नियमों की मांग कर सकता है.
पार्षद अंतर नियम की विषय वस्तु( subject matter of articles of association):
कंपनी के पार्षद अंतर नियमों में उन नियमों का उल्लेख होता है जो कंपनी के आंतरिक संचालन के लिए आवश्यक होते हैं. इस प्रकार इस पार्षद अंतर नियम( articles of association) में निम्नलिखित विषयों से संबंधित नियम होते हैं
(1) कंपनी के संचालकों के अधिकार एवं शक्तियां
(2) कंपनी की सभा हेतु गणपूर्ति
(3) कंपनी द्वारा ऋण लेने की शक्ति
(4) कंपनी के अंश धारियों की शक्ति एवं अधिकार
(5) विभिन्न प्रकार के अंश धारियों के अधिकार
(6) प्रस्तावों से संबंधित नियम
(7) कंपनी के मैनेजर ऑडिटर सचिव तथा कोषाध्यक्ष के अधिकार
(8) लाभांश तथा उसके वितरण की व्यवस्था
(9) शेयर वारंट( share warrant) की व्यवस्था
(10) अंशों के हस्तांतरण से संबंधित नियम
(11) मैनेजिंग एजेंट की व्यवस्था
(12) संचालकों के वेतन एवं भक्तों की व्यवस्था
(13) कंपनी के अंशों को जप्त करने के अधिकार की प्रक्रिया
(14) कंपनी के लेनदार के अधिकार एवं शक्तियां
(15) कंपनी की संचित निधि यों की व्यवस्था तथा उपाय
(16) कंपनी के समापन से संबंधित नियम
(17) कंपनी के विभिन्न प्रकार के अंश धारियों के मताधिकार संबंधी व्यवस्था है
(18) कंपनी के अंश पूंजी के परिवर्तन के नियम
(19) कंपनी के संचालकों की मीटिंग की प्रक्रिया
(20) प्रबंधक सचिव की शक्तियां एवं अधिकार
(21) कंपनी के लिखे जो खो से संबंधित व्यवस्थाएं
(22) कंपनी के लाभ का पूंजीकरण तथा उससे संबंधित व्यवस्थाएं
इस प्रकार एक कंपनी अपने आंतरिक संचालन के नियम स्वयं निर्मित कर सकती है.
पार्षद अंत: नियम की प्रकृति उद्देश्य एवं महत्व: पार्षद अतः नियम पार्षद सीमा नियम के सहायक माने जाते हैं.
उद्देश्य: कंपनी के आंतरिक प्रबंध को नियंत्रित करना और कंपनी के अधिकारी को परिभाषित करना सदस्यों के अधिकारी एवं दायित्वों का निगमन करना पार्षद सीमा नियम में वर्णित उद्देश्यों को प्राप्त करना है.
पार्षद अतः नियम का महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि इसमें कंपनी के आंतरिक प्रबंध एवं संगठन संबंधी नियमों एवं उप नियमों का उल्लेख रहता है कंपनी आंतरिक व्यवस्था के संबंध में पूर्ण जानकारी पार्षद अता नियम के द्वारा प्रदान की जाती है इसलिए पार्षद अतः नियमों को कंपनी के आंतरिक प्रबंध का प्रमुख प्रलेख माना जाता है.
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