राजस्व न्यायालय क्या होते हैं? इनका क्या कार्य होता है। वर्णन करो।What are revenue courts? What is their function? Describe.
राजस्व न्यायालय:- राजस्व न्यायालय, भारत में भूमि,और कर से संबन्धित सम्पत्ति मामलों को निपटाने वाली विशेष अदालतें है। इनकी स्थापना राजस्व कानूनों के तहत की जाती है। और इनका अधिकार क्षेत्र विभिन्न राज्यों में भिन्न हो सकता है। राजस्व न्यायालयों के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं।-
[1] भूमि विवादों का समाधान: इसमें जमीन के स्वामित्व, सीमा विवाद पट्टे के अधिकार, और मुआवजे से संबन्धित मामले शामिल हैं।
[2] कर निर्धारण और वसूली: इसमें सम्पत्ति कर कृषि आयकर, और अन्य करों का आकलन, निर्धारण और वसूली से सम्बन्धित मामले शामिल है।
[3] विरासत और उत्तराधिकार: इसमें राजस्व कानूनों के तहत आने वाले अन्य मामले शामिल है, जैसे कि अवैध कब्जा, भूमि अधिग्रहण, और मुआवजा ।
राजस्व न्यायालयों का पदानुक्रम
राजस्व न्यायालयों का पदानुक्रम राज्य से राज्य में भिन्न होता है। लेकिन, सामान्य तौर पर, इसमें निम्नलिखित स्तर शामिल होते हैं।
• प्राथमिक राजस्व न्यायालय: यह निचला स्तर का न्यायालय होता है, जो आमतौर पर तहसील या उप- विभागीय स्तर पर होता है।
• अपीलीय राजस्व न्यायालय: यह जिला स्तर का न्यायालय होता है, जो प्राथमिक राजस्व न्यायालयों के फैसलों के खिलाफ अपीलों की सुनवाई सुनवाई करता है।
• राजस्व मण्डल : यह राज्य स्तर का न्यायालय होता है, जो अपीलीय राजस्व न्यायालयों के फैसलों के खिलाफ अपीलों की सुनवाई करता है।
उच्च न्यायालय:- कुछ राज्यों में राजस्व मामलों से सम्बन्धित अपीलें उच्च न्यायालय में भी सुनी जा सकती हैं।
राजस्व न्यायालयों में प्रक्रिया: राजस्व न्यायालयों में प्रक्रिया आमतौर पर राजस्व कानूनों और नियमों द्वारा निर्धारित की जाती है। मामले आमतौर पर लिखित या मौखिक आवेदन के साथ शुरु होते हैं। इसके बाद न्यायालय दोनों पक्षों को सुनवाई का अवसर देता है और साक्ष्य इकठ्ठा करता है। अंत में न्यायालय - अपना फैसला सुनाता है।
राजस्व न्यायालयों का महत्व:
राजस्व न्यायालय भूमि, सम्पत्ति और कर से सम्बन्धित मामलों में न्याय प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये न्यायालय ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहाँ जमीन और सम्पत्ति से सम्बन्धित विवाद आम है।
उत्तर प्रदेश में मालगुजारी से सम्बन्धित न्यायिक कार्यों की सबसे बड़ी सत्ता बोर्ड ऑफ रेवेन्यू है। यह राजस्व सर्वोपरि राजस्व न्यायालय है। रेवेन्यू बोर्ड के निर्णय हाई कोर्ट के निर्णय की तरह सारे न्यायालयों पर बाध्यकारी है। रेवेन्यू बोर्ड के निर्णयों की अपील उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश तथा भूमि व्यवस्था, अधिनियम एवं भूराजस्व अधिनियम अन्तर्गत हाई कोर्ट को नहीं जाती है। रेवेन्यू बोर्ड अंतिम कोर्ट, है लेकिन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के अन्तर्गत हाईकोर्ट को शक्ति दी गयी है कि वह किसी भी न्यायालय के खिलाफ रिट इत्यादि जारी कर सकता है। इसलिये हाई कोर्ट के समक्ष रेवेन्यू बोर्ड के मुकदमें संविधान के अनुच्छेद 226 के अन्तर्गत लाये जाते है।
बोर्ड की नियंत्रणकारी शक्तियाँ : उत्तर प्रदेश भूमि- विधि(संशोधन] अधिनियम, 1975 के लागू होने के पूर्व बन्दोबस्त [ Settlement] को छोड़कर मालगुजारी से सम्बन्धित सभी न्यायिकेत्तर [non-judicial] मामलों के नियंत्रित करने की शक्ति राज्य - सरकार की थी और बन्दोबस्त तथा सभी न्यायिक मामलों में नियन्त्रण करने की शक्ति रेवेन्यू बोर्ड की। राज्य सरकार ने इस नियन्त्रण शक्ति द्वारा रेवेन्यू मैन्युअल की संरचना की, और रेवेन्यू बोर्ड ने रेवेन्यू कोर्ट मैनुअल की।
उत्तर प्रदेश रेवेन्यू बोर्ड (प्रक्रिया का विनियम] अधिनियम 1966 के लागू होने के पहले न्यायिक मामले में निचले न्यायालय की डिक्री या आदेश को बोर्ड के सदस्यों की परस्पर सहमति के बिना उलटा या बदला नहीं जा सकता है।
रेवेना बोर्ड के कार्य [ function of Revenue Board]
रेवेन्यू बोर्ड के कार्यों की हम सामान्य रूप से दो श्रेणियों में विभाजित कर सकते है-
[a] प्रशासनिक
(b ) न्यायिक
[a] प्रशासनिक भाग: इस भाग में ऐसे कार्य आते हैं, जैसे - बन्दोवस्त, भूमि अभिलेखों का रख-रखाव, माल- गुजारी और अन्य देयों की वसूली, भूमि अर्जन इत्यादि । इस प्रकार का कार्य नियुक्त प्रशासनिक सदस्यों द्वारा किया जाता है। और वे प्रशासनिक सदस्य इस मामले में राज्य सरकार के अधीन होते हैं। जहाँ तक न्यायिक कार्यों की बात की जागे उसे तीन भागों में बांटा जाता है -
[1] अपीलीय
[2] निगरानी
[3] पुनर्विलोकन
निगरानी की शक्ति (धारा 219]:- राजस्व अधिकारियों एवं राजस्व न्यायालयों के ऊपर रेवेन्यू बोर्ड की अधीक्षक और निर्देशक के रुप में रखा गया है। उत्तर प्रदेश भू-राजस्व अधिनियम की धारा 19 बोर्ड को यह शक्ति प्रदान करती है कि वह किसी अधीनस्थ न्यायालय द्वारा निर्णीत किसी मामले के अभिलेख की माँग को सकती है और यदि यह प्रतीत हो कि -
[1] अधीनस्थ न्यायालयों ने ऐसे क्षेत्राधिकार का प्रयोग किया है जो विधि द्वारा उसमें निहित नहीं है या
[2] अधीनस्थ न्यायालय इस प्रकार निहित क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने में असफल रहा है। या
[3] अधीनस्थ न्यायालय ने क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने में अवैध रुप से या सारवान अनियमितता के साथ कार्य किया है तो रेवेन्यू बोर्ड ऐसा आदेश दे सकती है जो वह उचित समझे।
मुकदमें का अन्तरण( धारा 191):- इस अधिनियम के अन्तर्गत उठने वाले किसी मुकदमें या कार्यवाही की जिसमें बँटवारे का मुकदमा भी शामिल है, किसी अधीनस्थ राजस्व न्यायालय या राजस्व अधिकारी के यहाँ से किसी अन्य ऐसे न्यायालय या अधिकारी को अन्तरित किया जा सकता हैं जो उसका निपटारा करने में सक्षम हो।
पुनर्विलोकन की शक्ति [ धारा 220] विधि का यह सुस्थापित सिद्धान्त है कि प्रत्येक न्यायालय को अन्तर्विष्ट क्षेत्राधिकार होता है कि वह अपनी किसी गलती को दुरुस्त कर ले। वह शक्ति एक विधि सूत्र पर आधारित है कि कोई भी पक्षकार न्यायालय या न्यायाधिकार की गलती के परिणाम का शिकार न बने । किन्तु भूमि-विधि में इस सिद्धान्त को सीमित रुप में ही लागू किया गया है । उ०प्र० भू-राजस्व अधिनियम के अन्तर्गत केवल रेवेन्यू बोर्ड को ही यह शक्ति है कि वह अपने आदेश या निर्णय का पुनर्विलोकन कर सकें। अन्य राजस्व न्यायालय या राजस्व अधिकारी को पुनर्विलोकन की शक्ति प्रदान नहीं की गयी है।
उत्तर प्रदेश में राजस्व न्यायालय से सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण केस
भूमि अधिग्रहण से सम्बन्धित :-
• राज्य सरकार बनाम राजेन्द्र सिंह :- इस मामले में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि मुआवजे का निर्धारण करते समय, भूस्वामी द्वारा की गयी किसी भी फसल का मूल्य भी consider किया जाना चाहिये।
[2] रामगोपाल बनाम राज्य सरकार :- इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि यदि भूमि अधिग्रहण का उद्देश्य सार्वजनिक हित के लिये नहीं है तो अधिग्रहण को रद्द किया जा सकता है।
मालिकी विवाद से सम्बन्धित :-
शिवदयाल सिंह बनाम रामलाल : इस मामले मे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि ३० साल का कब्जा मालिकाना हक का प्रमाण माना जाता है।
• बृजमोहन सिंह बनाम रामअवतार सिंह: इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि मौखिक विभाजन भी मान्य है। बर्शर्ते कि उसका साक्ष्य मौजूद हो।
कर से संबन्धित :-
राज्य सरकार बनाम लक्ष्मी चंदः-
इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि कर निर्धारण करते समय नियमों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिये।
राजकुमार बनाम राज्य सरकार :- इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि अनुचित कर लगाना अवैध है।
उत्तर प्रदेश में राजस्व न्यायालय से सम्बन्धित कुछ अन्य महत्वपूर्ण केस :-
[L]. बटवारा से सम्बन्धित :-
अमर सिंह बनाम राम सिंह :- इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि बटवारे के मामले में, सभी सह-वारिसों को समान अधिकार प्राप्त होते हैं चाहे वे पुरुष हो या स्त्री ।
[2] उत्तराधिकार से सम्बन्धित :-
• शान्ति देवी बनाम राम प्रकाश : 'इस मामले सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि हिंन्दु उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत एक विधवा को उसके पति के सम्पत्ति में समान अधिकार प्राप्त होते हैं। चाहे वह सम्पत्ति संयुक्त परिवार की हो या पति की स्वंय की।
(3) दायित्व से संबन्धियतः
राजकुमार सिंह बनाम बलवीर सिंह: इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में फैसला सुनाया कि यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की भूमि पर अनाधिकार रूप से कब्जा करता है तो उसे उस भूमि के उपयोग के लिये मुआवजा देना होगा।
[५] क्षतिपूर्ति से संबन्धित :-
रामगोपाल वर्मा बनाम राज्य सरकार इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि यदि सरकार किसी व्यक्ति की भूमि का अधिग्रहण करती है तो उसे इस भूमि के उचित मुआवजे का भुगतान करना होगा।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह केवल कुछ उदाहरण है। राजस्व न्यायालयों द्वारा कई अन्य महत्वपूर्ण मामले निपटाये गये हैं। यह जानकारी केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्यों के लिये है। कानूनी सलाह के लिये आपको हमेशा किसी वकील से सलाह लेनी चाहिए।
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