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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

किन मामलों में उत्तर प्रदेश जमीदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950 के अंतर्गत दीवानी न्यायालय का क्षेत्राधिकार प्रतिबंधित किया गया है. In what matter is the jurisdiction of Civil Court barred under UPZA LR act 1950

हमारे देश के प्रत्येक राज्य में लगान मालगुजारी और भूमि संबंधी मामलों में राजस्व (माल अदालतों) को एकमात्र क्षेत्राधिकार प्रदान किया गया है वह शायद इस कारण की राजस्व न्यायालयों के अधिकारी इन मामलों में अधिक जानकारी रखते हैं और यह की दीवानी न्यायालय द्वारा निर्णय होने में काफी विलंब होता है और प्रक्रिया भी काफी पेचीदी होती है ऐसा आम तौर पर महसूस किया गया है कि राजस्व न्यायालय सस्ता और शीघ्र मिल जाने वाला अनुतोष (relief) प्रदान कर सकेगा.

            इस प्रकार उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा 331 (1) यह प्रावधानित करती है कि दीवानी प्रक्रिया संहिता (सी. पी. सी) की धारा 158 में किसी बात के रहते हुए भी इस अधिनियम की दूसरी  अनुसूची के खाना 4 में उल्लेखित न्यायालय के अतिरिक्त कोई अन्य न्यायालय उक्त अनुसूची के खाना 3 में वर्णित किसी वाद प्रार्थना पत्र या कार्यवाही पर या ऐसे वाद हेतु पर आधारित  वाद प्रार्थना पत्र या कार्यवाही पर जिस के संबंध में किसी ऐसे वाद या प्रार्थना पत्र द्वारा कोई अनुतोष प्राप्त किया जा सकता था विचार ना करेगा.

            उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम की दूसरी  अनुसूची के खाना4 मे  जो न्यायालय उल्लेखित है वह तहसीलदार सहायक कलेक्टर प्रथम श्रेणी परगना अधिकारी और कलेक्टर के राजस्व न्यायालय विधानमंडल का इरादा यह है कि कुछ किस्म के मुकदमे राजस्व न्यायालय द्वारा ही सुने जाएं जो कि ऐसे अधिकारी की अध्यक्षता में हो जिन्हें राजस्व मामलों की जानकारी और प्रशिक्षण प्राप्त हो उन अधिकारियों के रोजाना के कार्य मालगुजारी भूमि व उपज राजस्व कागजात से संबंधित होते हैं इस कारण से ग्रामीण समुदाय के निकट संपर्क में आते हैं और इस तरह के विशिष्ट अनुभव प्राप्त करके मुकदमों का निपटारा जल्दी और बेहतर तरीके से कर करते हैं.

            यह एक  सुस्थापित सिद्धांत है कि कोई भी अधिनियम जो दीवानी न्यायालय हो (civil court) के क्षेत्राधिकार को बहिष्कृत करें उनका अर्थान्वयन  संकुचित रीति से किया जाना चाहिए और जब भाषा संदेह आत्मक हो तो उसका अर्थ इस प्रकार से किया जाना चाहिए जिससे दीवानी न्यायालय का क्षेत्राधिकार बना रहे यही कारण है कि दीवानी न्यायालय सदैव राजस्व न्यायालय की क्षेत्राधिकारी ता को अर्थान्वयन  द्वारा कम करने का प्रयत्न करते रहे हैं और हमारे राज्य के विधान मंडल ने प्रत्येक बार अधिनियम बनाकर यह संशोधन कर दखलंदाजी की है सन 1961 ईस्वी में अधिनियम की धारा 331 (1) मे  एक स्पष्टीकरण इस प्रकार जोड़ा गया यदि वाद हेतु ऐसा है कि जिस के संबंध में राजस्व न्यायालय द्वारा अनुतोष प्रदान किया जा सकता है तो यह महत्वहीन है कि दीवानी न्यायालय में मांगा गया अनुतोष उसके समान ना हो जिसे राजस्व न्यायालय ने प्रदान किया होता.

               इस स्पष्टीकरण को बनाने का उद्देश्य यह  निश्चित करना था कि राजस्व न्यायालयों के क्षेत्राधिकार को अप्रत्यक्ष तरीके से बहिष्कृत ना कर दिया जाए या हड़प ना लिया जाए.

                 इस प्रकार दीवानी न्यायालय का क्षेत्राधिकार ना केवल उन मामलों में बहिष्कृत है जिनका की उल्लेख अनुसूची द्वितीय के खाना 4में है वरन उस वाद हेतु (causes of action) जिस के संबंध में राजस्व न्यायालय अनुतोष प्रदान कर सकता है पर उसी प्रकार का कोई अनुतोष दीवानी न्यायालय द्वारा प्रदान नहीं किया जाएगा.

क्षेत्राधिकार विनिश्चय करने की कसौटी: -

(a) वाद हेतु (causes of action): - किसी न्यायालय का क्षेत्राधिकारी तावाद हेतु से भी निश्चित की जाती है शब्दावली वाद हेतु की परिभाषा यद्यपि कहीं भी नहीं गई है यद्यपि यह भली-भांति समझी जा चुकी है वाद हेतु से अभिप्राय ऐसे आवश्यक तत्व के समूह से है जिन्हें वादी द्वारा मुकदमे में सफलता पाने के लिए साबित करना आवश्यक है शब्दों में वादी उन तथ्यों की प्रकृति की आवश्यक जांच करें जिसके आधार पर वह मुकदमा दायर करने के लिए बाध्य हुआ है जहां कोई भूमिधर यह  लाछन लगाता है कि प्रतिवादी ने उसकी भूमि धरी जमीन पर अनाधिकृत निर्माण कर लिया है और इस कारण उसकी जमीन पर अतिक्रमण किया है तो मुकदमा के लिए वाद हेतु होगा वादी को उसकी भूमि से गलत ढंग से  कब्जाविहीन किया जाना और इस कारण अधिनियम की धारा 209 के अंतर्गत मुकदमा राजस्व न्यायालय में दायर होगा किसी भूमि के रजिस्ट्री सुधा विक्रय होने पर जब वादी विक्रय पत्र को इस आधार पर निरस्त करना चाहता है कि उक्त भूमि उसकी भूमि धरी है और वह उस पर  काबिज है तो विक्रेता को बेचने को कोई हक नहीं था तो वाद सिविल न्यायालय में दायर किया जाएगा.

(b) मुख्य अनुतोष (main relief): - जिन मामलों में किसी निश्चित वाद हेतु पर दो अनुतोषों की मांग की जा सकती है वहां मुख्य विचारणीय बात यह है कि दोनों अनुदेशकों में कौन सा अनुतोष प्रमुख है और कौन अनुतोष अनुषांगिक है यदि किसी मामले के तथ्य और परिस्थिति के अनुसार किसी निर्माण को ढहा ना और व्यादेश मुख्य अनुतोष हेतु कोई कारण नहीं है कि दीवानी न्यायालय के क्षेत्राधिकार को बहिष्कृत किया जाए इसके विपरीत यदि कहा जाए कि उस वाद हेतु पर मुख्य अनुतोष केवल कब्जा प्राप्ति का ही हो सकता है तो मुकदमा अवश्य ही राजस्व न्यायालय में दायर होगा जब कोई मुकदमा अतिक्रमण के विरुद्ध दायर किया जाता है तो यह कहना बड़ा मुश्किल है कि वादी  अनुतोष की मांग करें वह है कब्जा प्राप्ति का और उसे व्यादेश के लिए प्रयत्न नहीं करना चाहिए और ना ही अतिक्रमण के निर्माण को ढहाने का यहां ध्यान देने की बात यह है कि राजस्व न्यायालयों को भी आदेश देने और निर्माण गिराने के अनुतोष प्रदान करने की शक्ति नहीं है यदि अतिक्रमण के विरुद्ध कब्जा प्राप्ति की  डिक्री वादी के पक्ष में पास हो जाती है और तब भी प्रतिवादी निर्माण सामग्री को वादी की भूमि से नहीं हटाता है तो वादी के पक्ष में पारित बिक्री का मुख्य उद्देश्य निष्फल हो जाएगा.

इस कारण वहां वादी द्वारा या चित्र मुख्य अनुतोष व्यादेश और निर्माण गिराना है उसे दीवानी न्यायालय की अनुतोष प्रदान कर सकता है और इसी कारण से वह दीवानी न्यायालय में दायर किया जाएगा कब्जा प्राप्ति का अनुतोष तो केवल अनुषांगिक अनुतोष होता है जिसे दीवानी न्यायालय के आदेश और निर्माण गिराने के अनुतोष से संबंधित वाद को चलने योग्य माल लेने पर दे सकेगा एक बार मुख्य अनुतोष के लिए यदि दीवानी न्यायालय में वाद हो गया तो दीवानी न्यायालय के ऊपर उसी वाद हेतु के परिणाम स्वरूप सभी संभाव्य अनुतोष प्रदान करने में कोई रुकावट ना होगी.

                   उसी वाद हेतु से उठने वाले अनु दोस्तों में कौन अनुतोष मुख्य अनुतोष है इस प्रश्न का विनिश्चय प्रत्येक मुकदमे के सभी तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है जहां वाद हेतु के आधार पर (a) मुख्य अनुतोष का प्रधान राजस्व न्यायालय द्वारा होता है वहां मुकदमा केवल राजस्व न्यायालय में ही दायर किया जा सकता है यह तथ्य की अनुषांगिक अनुतोष दीवानी न्यायालय के अधिकार में है मुकदमा दायर करने के स्थान (न्यायालय) के संदर्भ में सार हीन  है. (b)  जहाँ मुख्य अनुतोष का प्रदान दीवानी न्यायालय द्वारा होना है वह मुकदमा केवल दीवानी अदालत में दायर किया जा सकता है और अनुषांगिक अनुतोष जो राजस्व न्यायालय के अधिकार में है उसे भी   दीवानी न्यायालय प्रदान कर सकता है.

               किसी अतिक्रमण के विरुद्ध किसी  जोतगत भूमि के सिलसिले में दायर व्यादेश और निर्माण ध्वंस के अनुरोध के मामले में भी उक्त नियम लागू होगा जिन मामलों में राजस्व न्यायालय को एक ही वाद हेतु से उठने वाली सभी अंतरों को प्रदान करने की शक्ति नहीं है और मुख्य अनुतोष भी आदेश और निर्माण ध्वंस का है मुकदमा दीवानी न्यायालय में दायर होगा राम पदारथ बनाम द्वितीय अतिरिक्त जिला जज सुल्तानपुर के बाद में न्यायमूर्ति उमेश चंद्र ने निर्णय किया कि जहां विक्रय पत्र को निरस्त करने का और अस्थाई व्यादेश का अनुतोष इस कारण मांगा जाए कि विक्रय पत्र का निष्पादन किसी अन्य व्यक्ति ने उसके नाम से कर दिया और प्रार्थी अभी भूमि पर काबिज है तो मुकदमा दीवानी न्यायालय द्वारा ग्रहण किया जाएगा क्योंकि राजस्व न्यायालय केवल मौजूदा काल के लिए अनुतोष प्रदान कर सकती है किंतु जहां तक भविष्य काल के अनुतोष का संबंध है उसे राज्य उच्च न्यायालय प्रदान करने की स्थिति में नहीं होती हीरालाल बनाम गज्जन के बाद में गज्जन नामक एक जोरदार ने हीरालाल तथा अन्य के विरुद्ध अस्थाई व्यादेश के लिए दीवानी न्यायालय में वाद दायर किया अनुषांगिक तौर पर हक का प्रश्न भी उठा और इस कारण प्रतिवादी पी के बाद उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा 299 खा के अंतर्गत केवल राजस्व न्यायालय में चलाया जा सकता है किंतु उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति फातिमा बीवी ने इस आपत्ति को स्वीकार नहीं किया और यह निर्णय किया कि ऐसे मामलों में दीवानी न्यायालय का क्षेत्राधिकार बहिष्कृत कर दिया गया.

श्रीमती भगवती देवी बनाम राधेश्याम के बाद में अपी लार्थी एक खेत की भूमिका घि थी उसने अपने खेत में एक मकान बनवाया किंतु अधिनियम की धारा 143 के अंतर्गत मकान बनवाने के लिए घोषणा प्राप्त नहीं किया राधेश्याम ने अवैध तरीके से श्रीमती भगवती देवी को कब जमीन कर दिया आते हो श्रीमती भगवती देवी ने कब्जा के लिए प्रतिवादी राधेश्याम के ऊपर सिविल न्यायालय में वाद चलाया.

          वादी ने प्रारंभिक आपत्ति है कि के बाद सिविल न्यायालय में संधारित चलाने योग्य नहीं है विचारण न्यायालय ने आपत्ति को स्वीकार नहीं किया तब प्रतिवादी ने जिला जज के यहां निगरानी जी दिन का प्रार्थना पत्र दिया जिला जज ने यह अवधारणा किया कि वाद सिविल न्यायालय की अधिकारिता में नहीं आता है जिला जज के निर्णय से शुद्ध होकर श्रीमती भगवती देवी ने उच्च न्यायालय में अपील की.

            अपील  श्रीमती भगवती देवी की ओर से यह दलील दी गई कि वह वाद भूमि के कब्जे से संबंधित नहीं है वरन उसके द्वारा बनाए गए उस निर्माण से संबंध है जिसे उस उसे विद्यार्थी राधेश्याम ने अवैध तरीके से कब्जा बीन कर दिया है न्यायाधीश सतीश चंद्र ने तर्क को स्वीकार करते हुए निर्मित किया कि वाद राजस्व न्यायालय की अधिकारिता में आता है न्यायाधीश ने कहा कि यह निर्माण हवा में नहीं थे वे भूमि में बने थे और भूमि के साथ ही दूसरे को चले गए जब वादिनी निर्माण से कब्जा बीन कर दी गई तो उसे निर्माण के स्थल से भी कब्जा बीन समझा जाना चाहिए मकान और सहन दोस्त प्रभावी तौर पर तभी दिया जा सकता है जब प्रतिवादी को स्थल से बेदखल कर दिया जाए और उसका कब्जा निर्माण के साथ वादिनी को दे दिया जाए यह वाद विधि में निर्माण के साथ भूमि के कब्जे के विषय में था आता यह राजस्व न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है.

              किसी मुकदमे की सुनवाई का क्षेत्राधिकार जो वाद दायर करने की तिथि पर सिविल न्यायालय को था वाद दायर होने के पश्चात घटित किसी अनित या प्रभावित ना होगा जिस घटना से वादी के लिए यह आवश्यक हो जाए कि वह ऐसे अनुतोष की मांग करें जो कि राजस्व न्यायालय द्वारा भी दिया जा सके श्रीमती सोनावती बनाम श्रीराम के बाद में मुकदमा पहले पहल घोषणा भव्या देश के अंत उसके लिए सिविल न्यायालय में दायर हुआ मुकदमा दायर होने के पश्चात प्रतिवादी श्रीमती सोनावती ने भूमि का कब्जा डांडिक न्यायालय जिसकी अभिरक्षा में भूमि किसे प्राप्त कर लिया इस कारण यह आवश्यक हुआ कि वादी भूमि के कब्जा प्राप्ति के अनुरोध का भी दावा करें और जिसे वादी ने किया है प्रतिवादी ने यह तर्क दिया कि कब्जा प्राप्त ज्ञान तो उसकी मांग जिसे देने के लिए राजस्व न्यायालय शिक्षा में के कारण मुकदमे के विचारण को जारी रखने का सिविल न्यायालय का क्षेत्राधिकार समाप्त हो गया नाले के क्षेत्राधिकार को विकसित करने संबंधी अपील आरती को दलील को ठुकराते हुए यह निर्णय किया कि पश्चात वर्ती घटना के होने से सिविल न्यायालय के अधिकार क्षेत्र समाप्त नहीं हो जाता.

भोलानाथ बनाम बाबा दामोदर दास के  वाद में 1965 में भोलानाथ ने वादग्रस्त भूमि स्थित व्रत राय नामक एक भूमिधर से रजिस्ट्री के विक्रय पत्र द्वारा खरीदी श्वेता को कब्जा भी मिल गया और उसका नाम भी रेवेन्यू कागजात में दाखिल खारिज हो गया बाबा दामोदरदास से उसके कब्जे में दखलअंदाजी किया अतः भोलानाथ ने सिविल न्यायालय में एक दायर किया जिसमें यह अंकुश मांगा कि प्रतिवादी के विरुद्ध स्थाई भी आदेश जारी किया जाए कि वह वादी की भूमि के कब्जे में बाधा ना उपस्थित करें मुकदमे के दौरान प्रतिवादी ने वादी की भूमि के कुछ भाग पर अतिक्रमण कर इमारत खड़ी कर ली इसके पश्चात वाद पत्र में संशोधन के द्वारा वादी ने कब्जा प्राप्ति का अनुतोष इस आधार पर मांगा कि मुकदमे के दौरान प्रतिवादी ने भूमि के कुछ भाग पर अतिक्रमण कर लिया.

         इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्णय किया कि वादी द्वारा व्यादेश का अनुतोष केवल सिविल न्यायालय से प्राप्त किया जा सकता है यह तथ्य की वादी के लिए यह आवश्यक हो गया कि वह कब्जा प्राप्ति के अनुतोष जैसे कि राज्यों से न्यायालय द्वारा प्रदान किया जा सकता है की मांग करें सिविल न्यायालय को मुकदमा सुनने के संबंध में क्षेत्राधिकार से हटा नहीं सकता.


दीवानी (सिविल) न्यायालय के क्षेत्राधिकार का अपवर्जन: -

अधिनियम की धारा 354 राजस्व न्यायालय के अकेले क्षेत्राधिकार का प्रावधान करती है किंतु धारा 330 कुछ मामलों में दीवानी न्यायालय के क्षेत्राधिकार से पूर्णतया बहिष्कृत है यह धारा 330 इस प्रकार है कि सिवाय उन बातों के जहां इसके विपरीत किस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन प्रावधान नित्य कोई भी वाद या अन्य कार्यवाही किसी दीवानी न्यायालय में निम्नलिखित मामलों में दायर नहीं की जा सकेगी प्रति कर अवधारणा तालिका में वर्णित किसी प्रविष्ट के लिए या किसी चुप के लिए या दशम के दशम के अंतर्गत मालगुजार निर्धारण आया उसकी निर्धारण आया उसकी वसूली या माल की बकाया की की बकाया की तरह वसूल पाली किसी धनराशि की वसूली.

अध्याय 10 के अंतर्गत मालगुजारी की किसी बकाया धनराशि वसूली जब भी किसी जब भी किसी व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही की जाए तो वह तो वह वसूली अधिकार को आपत्ती पूर्वक उस धनराशि का भुगतान कर सकता है और ऐसे भुगतान किए जाने पर कार्यवाही रोक दी जाएगी  वह व्यक्ति जिसके विरुद्ध ऐसी जिसके विरुद्ध ऐसी कार्रवाई की गई है इस प्रकार जबरन भुगतान की गई कर जबरन भुगतान की गई धनराशि के लिए न्यायालय में न्यायालय में राज्य सरकार के वाद ला सकता है वाद ला सकता है ऐसे  वाद में धारा278 में  किसी बात के रहते हुए  ऐसे धनराशि का कोई हो जिसे वह देय अभिकथन करता हो  साक्ष्य दे सकता है.

                    इस धारा के अधीन कोई आपत्ति आपत्ति कर्ता को दीवानी ने वाद लाने के लिए वाद लाने के लिए समर्थ नहीं बनाई जब तक कि वह भुगतान जब तक कि वह भुगतान करने के समय ना की जाए और ना की जाए और उस आपत्ति कर्ता या उसके किसी अधिकृत या उसके किसी अधिकृत अभी कर्ता के द्वारा हस्ताक्षर किए गए हो

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