आरोप [Charge ]: →
आरोप अभियुक्त के विरुद्ध अपराध की जानकारी का एक ऐसा लिखित कथन होता है। जिसमें आरोप के आधारों के साथ-साथ समय स्थान व्यक्ति एवं वस्तु का भी उल्लेख रहता है। जिसके बारे में अपराध किया गया है।
सरल शब्दों में आरोप [charge] को परिभाषित करने की परिभाषा भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता [CrPC] के तहत " आरोप " [Charge] एक विधिक दस्तावेज होता है जिसमें यह स्पष्ट किया जाता है कि किसी व्यक्ति पर किस अपराध का संदेह है और उस पर किस धारा के अन्तर्गत मुकदमा, चलाया जायेगा। आरोप एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो यह सुनिश्चित करती है कि अभियुक्त को अपने विरुद्ध लगाये गये अपराधों की पूरी जानकारी ही।
आरोप की परिभाषा: →
आरोप वह विधिक कथन है जो किसी अदालत द्वारा यह कहने के लिये तैयार किया जाता है कि अभियुक्त द्वारा किसी विशेष अपराध को अंजाम दिया है। इसका उद्देश्य अभियुक्त को यह बताना होता है कि उसके खिलाफ किस अपराध में ट्रायल होगा।
आरोप आपराधिक कार्यवाहियों का एक महत्वपूर्ण सोपान है। इसकी विरचना तभी की जाती है जब अभियुक्त के विरुद्ध प्रथम दृष्टया मामला बनना पाया जाता है। आरोप की विरचना के साथ जाँच की स्टेज समाप्त हो जाती है। यही से मामले का विचारण प्रारम्भ होता है। या हम यह कह सकते हैं कि charge बनने के बाद ही न्यायालय में केस स्टैण्ड हो जाता है।
भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता 211 के अनुसार आरोप में उन निम्नलिखित बातों का उल्लेख जरूरी है जो अपराध का गठन करती है। जिससे अभियुक्त को पता चले कि उस पर क्या दोषारोपण किया गया है और उससे किस प्रकार प्रतिरक्षा करनी है→
CrPC की धारा 211 से 224 तक आरोप से संम्बन्धित विभिन्न प्रावधान दिये गये हैं।
आरोप के आवश्यक तत्व :→
[1] अपराध का कथन [आरोप स्पष्ट और संक्षिप्त होना चाहिये।
[2] अपराध का नाम [ उसमें अपराध का स्वरूप और समय स्पष्ट होना चाहिये]
[३] अपराध की परिभाषा
[४] विधि अथवा विधि की धारा [ सम्वन्धित भारतीय दण्ड संहिता [IPC] या किसी अन्य कानून की धारा का उल्लेख होना चाहिये]
[5] अपराध के लिये अपेक्षित शर्तें आदि [ यदि एक से अधिक अपराध हैं तो प्रत्येक के लिये अलग आरोप तय होने चाहिये।
'इन सब के अतिरिक्त आरोप में निम्नलिखित बातों का उल्लेख भी आवश्यक है→
(1) अपराध कारित करने का समय
(iⅱ) अपराध का स्थान [घटना - स्थल]
(iii) उस व्यक्ति का नाम जिसके विरुद्ध अपराध कारित किया गया है, और उस वस्तु का विवरण जिसके विषय में अपराध कारित किया गया है। यदि किसी अपराध में भारतीय प्रक्रिया दण्ड संहिता की धारा 212 के अनुसार इन सब बातों का उल्लेख नहीं किया जाता है तो उसे पूर्ण एवं समुचित आरोप नही कहा जा सकता है- विश्वेश्वर राव बनाम स्टेट ए० आई० आर० 1957 मध्य प्रदेश 225 ।
आरोप के प्रकार :→
(ⅰ) एकल आरोप [single charge); एक ही अपराध के लिये ।
[2] बहु आरोप [ multiple charges):→ एक से अधिक अपराधों के लिये ।
[3] संयुक्त आरोप [ Joint charges]: जब एक से अधिक अभियुक्तों पर एक ही अपराध के लिये आरोप लगे हों। ॥
आरोप तय करने की प्रक्रिया : →
(ⅰ) पुलिस द्वारा first information Report [FIR] और विवेचना के आधार पर अभियोजन सामग्री अदालत को दी जाती है।
[2] अदालत उस सामग्री की समीक्षा करती है।
[3] यदि प्रथम दृष्टया अपराध बनता है तो अदालत आरोप तय करती है।
[५] अभियुक्त को आरोप पढ़कर सुनाया जाता है और वह दोषी मानता है या नहीं यह पूछा जाता है।
लेकिन यदि धारा 211, 212. से. (अभियुक्त पर दोषारोपण सिद्ध नहीं होता है तो भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 213 के अनुसार आरोप में अपराध कारित करने की रीति का उल्लेख किया जाना आवश्यक है।
आरोप का प्रमुख उद्देश्य अभियुक्त पर लगाये गये आरोप या दोषारोपण से अवगत कराना है। उसे यह बताना है कि तुम्हारे ऊपर किन-किन दोषारोपण को लगाया गया है। सामान्य गलतियों एवं त्रुटियों का कोई महत्व नहीं है। जब तक ऐसा न हो कि अभियुक्त भुलावे में पड जाय अथवा उसके साथ न्याय न हो सके। अगर ऐसा होता है तो आरोप का उद्देश्य व्यर्थ हो जाता है। ऐसे आरोप को तात्विक गलती अथवा त्रुटिपूर्ण माना जाता है। [CrPc का section 215
भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 216 आरोप के सम्बन्ध में दो प्रकार की व्यवस्था आरोप में परिवर्तन एवं परिवर्धन प्रदान करती है जिससे अभियुक्त को प्रतिरक्षा का समुचित अवसर प्रदान किया जा सके।
आरोप में परिवर्तन या परिवर्धन के पश्चात अभियोजक एवं अभियुक्त की इच्छा पर इन साक्षियों को पुनः बलाया जा सकेगा। समन किया जा सकेगा एवं परिवर्तित एवं परिवर्तित आरोप पर उसे पुनः परीक्षा का आदेश दिया जा सकेगा ।
आरोप अभियुक्त की न्यायिक प्रक्रिया में एक निष्पक्ष (अवसर देने का आधार है। यह दण्ड प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करता है। यदि आरोप विधिवत तय नहीं किया गया हो। तो पूरा ट्रायल अमान्य हो सकता है। इसलिये यह संवेदनशील और महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।
लेकिन प्रश्न है उन नये वकीलों को लेकर की नये वकील वकालत के दौरान कैसे जाने कि मुवक्किल पर आरोप बन चुका है और यह आरोप कौन बनाता है?
आरोप क्या होता है ?जिसकी हम पहले विस्तृत चर्चा कर चुके हैं, जिसको लेकर संक्षेप में बात करते है " आरोप एक (आधिकारिक विधिक घोषणा है जिसमें अदालत यह तय करती है, कि अभियुक्त (अर्थात मुवक्किल) ने किसी विशेष (अपराध को अन्जाम दिया है। यह भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 211 से 224 के अन्तर्गत आता है।
Question: आरोप कौन बनाता है?
आरोप तय करने का अधिकार अदालत [Magistrate या sessions Court) के पास होता है। यह तभी होता है जब→ •पुलिस रिपोर्ट दाखिल की जा चुकी हो (चार्जशीट) final Report - धारा 173 Crpc के तहत
• अदालत को यह प्रथम दृष्टया प्रतीत हो कि अभियुक्त के खिलाफ मुकदमा चलाने का आधार है।
Note:→ पुलिस आरोप नहीं बनाती - पुलिस जांच रिपोर्ट [FIR और चार्जशीट देती है। न्यायालय द्वारा यह तय किया जाता है कि आरोप लगेगा। या नहीं।
Quiestion → नये वकील कैसे जाने कि आरोप बन चुका है या नहीं ?
नये वकीलों के लिये यह जानना आवश्यक है कि उनका मुवक्किल ट्रायल के किस चरण में है। उसके लिये कुछ तरीके बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।
[A] न्यायालय की Case dairy / मजिस्ट्रेट के समक्ष केस रिकॉड देखना:→
• हर केस की order Sheet [ आदेश पत्रक) होती है। जिसमें लिखा होता है कि किस दिन क्या कार्यवाही हुई । यदि उसमें लिखा है:→
"Charge framed Under Section 420 IPC तो साफ है कि आरोप तय हो चुका है।
[B] संबन्धित वकील का केस फाइल पढ़ना :→ वकील को मुवक्किल की केस फाइल में यह देखना चाहिये कि क्या:-→
•चार्जशीट दाखिल हो चुकी है
•अदालत ने आरोप तय करने की तारीख दी है या आरोप तय कर दिये है।
•यदि आरोप तय नहीं हुये हैं, तो शायद मामला अभी pre-Charge Evidence Discharge Application के स्तर पर हो।
• न्यायालय की वेबसाइट [ यदि उपलब्ध हो]:- जैसे कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र (आदि में e Courts पोर्टल या District Court की वेबसाइट पर कैस स्टेटस देखने पर यह लिखा होता है।
"Stage: - Charge framed" या
"stage:- Arguements on charge"
उदाहरण: →
केस:→ धारा 420 IPC - धोखाधड़ी का आरोप: →
आपके मुवक्किल रमेश पर यह आरोप है कि उसने किसी व्यक्ति की नौकरी दिलवाने के नाम पर 200000/-रु लिये (और बाद में उसको धोखा दे दिया।
first step→पुलिस द्वारा जांच की और चार्जशीट दाखिल कर दी। ।।
second step: →Court ने दस्तावेजों की जांच के बाद पाया कि प्रथम दृष्ट्या अपराध बनता है।
Court written that:→
"charge Under Section 420 IPC is framed. Accused pleads not guilty and claims to be tried
इसका आसान भाषा में मतलब है कि मुवक्किल पर आरोप बन चुका है। अब उसका ट्रायल यानि गवाहों से जिरह इत्यादि शुरू होगा।
Question: → charge तय होने का क्या मतलब होता है? या कहे कि आरोप तय होने के बाद क्या होता है.
Answer. आरोप तय होते ही केस ट्रायल स्टेज में प्रवेश करता है।. अभियुक्त के पास यह अवसर होता है कि वह गुनाह कबूल करे या इनकार करे। ओरोप तय होने के बाद ही गवाहों की पेशी होती है।
Question:→ अगर आरोप तय नहीं हुये हैं तो क्या हो सकता है?
Answer: वकील Discharge Application दे सकता है [crpc की धारा 239 या 227 के तहत] यदि कोर्ट माने कि कोई मामला नहीं बनता तो 'मुवक्किल को आरोपमुक्त किया जा सकता है।
Junior Lawyers को Case Study में Case की stage का अच्छी तरह से knowledge करना चाहिये | charge बना है कि नही यह जानने के लिये court की order sheet, fille records और ecourts portals सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। सबसे महत्वपूर्ण या most Important जोकि नये वकील थोडी देर से समझ पाते हैं कि Charge Courts द्वारा बनाया जाता है नाकि Police द्वारा।
कुछ राज्यों के उदाहरणों को आधार बनाके हम आरोप कि प्रक्रिया की practically रूप से समझते हैं-
प्रक्रिया कि पृष्ठभूमि : →
उत्तर प्रदेश और बिहार में आरोप तय करने की प्रक्रिया भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता [crpc] के (अनुसार ही होती है, लेकिन व्यवहारिक रूप से इसका पालन स्थानीय अदालतों [District Court) में वकील, मजिस्ट्रेट और अभियोजन अधिकारी की उपस्थिति में होता है।
Step I: पीडित द्वारा Police में FIR दर्ज→
[1] किसी व्यक्ति है (जैसे पीडित ) द्वारा पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई जाती है ।
[2] Police जांच करती है और यदि मामला बनता है तो Crpc की धारा 173 के अंतर्गत त Charge sheet दायर करती है।
•इसमें सभी साक्ष्य गवाहों की सूची मेडिकल रिपोर्ट आदि संलग्न होती है।
Example:- Raju पर आरोप है कि उसने अपने पड़ोसी को जान से मारने की कोशिश की (धारा 307 I PC] | Police जाँच के बाद तीन गवाही और एक मेडिकल रिपोर्ट के साथ Chargesheet दायर करती है।
Step 2: मजिस्ट्रेट के समक्ष Chargesheet प्रस्तुत करना:→ Chargesheet दाखिल होने पर कोर्ट प्रथम बार केस की सुनवाई करता है।
[2] Court तय करता है कि मामला Sessions court में जाना है, या मजिस्ट्रेट court में ही चलेगा [offence की गंभीरता पर निर्भर करता है।
[3] यदि मामला गंभीर है। जैसे हत्या, हत्या का प्रयास आदि) तो magistrate case को Sessions court में भेज देता है।
[५] कम गंभीर अपराध [ जैसे IPC 323, 504 (आदि) magistate के पास ही रहते हैं।
Step3: Taking Congniza Congnizance यानि कि संज्ञान लेना :→ Court द्वारा यह देखा जाता है कि Changsheet में दिये गये तथ्यों से कोई (अपराध बनता है या नहीं।
•यदि अपराध बनता है - Court संज्ञान लेता है, और अभियुक्त को बुलावा [ summon / Warrant ] भेजता है।
Step4: अभियुक्त की उपस्थिति और दस्तावेजों की आपूर्ति : →
[1] अभियुक्त [ मुवक्किल) court में उपस्थित होता है।
[2] Court Crpc का Section 207 के तहत अभियुक्त की→
•FIR की copy.
•Changsheet.
• गवाहों के बयान
अन्य दस्तावेज निःशुल्क प्रदान करती है।
Step5: आरोप तय करने से पहले सुनवाई : →
[1] अभियोजन (सरकारी वकील ) अदालत को समझाता है कि क्यों आरोप बनते हैं?
[2] बचाव पक्ष [ डिफेंस वकील ] court को बता सकता है कि आरोप नहीं बनते- इसके लिये Discharge Application दी जा सकती है।
Related section'. →
•Section 239 Crpc: मजिस्ट्रेट ट्रायल डिस्चार्ज
• Section 227crpc सत्र ट्रायल में डिस्चार्ज
Question: →Discharge Application क्या होती है?
Answer: → डिस्चार्ज एप्लिकेशन वह कानूनी Application. होता है जोकि Accused [अभियुक्त] Court से यह कहने को देता है कि उसके खिलाफ कोई ठोस सबूत नही इसलिये उसे Case से बरी [Discharge) कर दिया जाये और मुकदमा आगे न चलाया जाये।
यानि की इस Application का आशय यह है कि Accused पर झूठा केस डाला गया है। court मुझे आरोप मुक्त कर दे।
Question: → Discharge Application कब दी जाती है, Answer: →Discharge Application Chargesheet दाखिल होने के बाद और Change तय होने से पहले दी जाती है।
Question: Discharge Application किस कानून में आता है, ?
Answer:→ Section 227 crpc →
sessions court (गम्भीर मामले जैसे हत्या, बलात्कार इत्यादि ।
→ Section 239 CrPc magistrate Court [सामान्य मामले
Question:- Discharge Application क्यों दी जाती है? Answer:- Police गलत व्यक्ति पर case बना देती है। गवाह झूठ बोलते हैं। कोई बदले की भावना से झूठा केस कर देता है। ऐसे में यदि आरोपी को लगे कि उसके खिलाफ कोई ठोस सबूत नही है तो वह अदालत से कह सकता है 一 " कोई ऐसा प्रमाण नहीं है जिससे मुझे दोषी ठहराया जा सके - कृपया मुझे मुकदमें से मुक्त कर दे। इसको उदाहरण के साथ समझते है ताकि यह पूरी बात आप भलिभाँति समझ सके ।
उदाहरण. →
एक झूठा मारपीट का केस Section 323 IPC Rajesh पर उसके पडोसी ने आरोप लगाया कि उसने झगडे में थप्पड़ मारा | Police ने Changesheet लगा दी। लेकिन यहाँ पर →
•न तो कोई Medical Report है और
• न ही कोई चश्मदीद गवाह
•FIR और बयानों में भी पूरी तरह से विरोधाभास है।
Rajesh का वकील क्या करता है?
Crpc. की धारा 239 के तहत Discharge Application दायर करता है।
Advocate said to the court→
"महोदय इस केस में कोई सबूत नहीं है कि Rajesh ने मारपीट की। यह केवल झूठे आरोप हैं। कृपया राजेश की आरोप मुक्त किया जाये। अगर court को लगे कि मामला कमज़ोर है Rajesh को Discharge कर दिया जाता है।
Example:-2 हत्या का झूठा प्रयास [ धारा 307 [IPC] Sunita पर आरोप है कि उसने अपनी पड़ोसन को जहर देने की कोशिश की लेकिन
• मेडिकल Report में कोई जहर नहीं मिला।
• कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं ।
• केवल संदेह के आधार पर मामला दर्ज है।
Sunita Advocate crpc की धारा 227 के तहत Sessions court में Discharge Application दायर करता है। अगर Court माने की प्रथम दृष्ट्या अपराध नहीं बनता - Court Sunita को Discharge कर सकती है।
write a discharge application in a Example
माननीय श्रीमान न्यायालय महोदय
विषय : अभियुक्त की आरोपमुक्त करने हेतु आवेदन (Discharge Application Under section 239 crpc]
अभियुक्त ABCD सादर निवेदन करता है किः
1. उसके विरुद्ध दर्ज किया गया मामला पूर्णतः झूठा है।
2. Changesheet चार्जशीट में कोई ऐसा ठोस सबूत नहीं है जो उसे दोषी साबित करे।
3. यह मुकदमा दुर्भावना से प्रेरित है।
अतः निवेदन है कि अभियुक्त को आरोपमुक्त किया जाये।
दिनांक......................
अधिवक्ता का नाम .....................
हस्ताक्षर.....…........…......…...........
Court Discharge Application पर क्या करती है? →
•अगर court को लगता है कि आरोप सिर्फ शक के आधार पर हैं और सबूत नहीं है तो वह Discharge कर देती है।
• यदि कोर्ट को लगता है कि ट्रायल जरूरी है तो Discharge Application खारिज कर देती है और आरोप तय कर दिये जाते हैं।
Discharge Application के फायदे: →
1. बिना ट्रायल के ही आरोप से मुक्त हो सकते हैं।
१. समय और पैसे की बचत होती है।
3. झूठे केस से राहत मिलती है।
Note: Discharge Application केवल तभी सफल होती है जब case कमजोर हो।
•यह सबूतों की कमी पर आधारित होती है न कि भावनात्मक अपील पर ।
Discharge Application एक कानूनी हथियार है जिससे एक निर्दोष व्यक्ति Court में कह सकता है - "मेरे खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं है मुझे केस से बरी किया जाय ।"
यह प्रक्रिया कानूनी रूप से सुस्पष्ट है और अगर समय रहते उपयोग कि जाये तो एक व्यक्ति ट्रायल कि लम्बी प्रक्रिया से बच सकता है।
Discharge Application Drafting:→
In The Court of Id. Judicial Magistrate, District................
Case No.: ..............
Application Under section 239 Crpc for discharge
Respected sir/madam ,
That the accused respectfully submits thatno prima facie case is made out under section .... ..........IPC as per the Chargesheet filed by police .The evidence collected is insufficient and lacks credibility . Hence the accused pray for discharge.
Sd/- .........................
(Name of Advocate] .............
Date:- ...............
Quation →आरोप कौन बनाता है? क्या पुलिस आरोप बनाती है?
Answer :- आरोप magistrate/ sessions judge के द्वारा बनाये जाते हैं नाकि पुलिस द्वारा ।
Question:- Court द्वारा किस आधार पर Charge बनाया जाता है ?
Answer: Police की charge-sheet और प्रारम्भिक साक्ष्य के आधार पर। जब court को प्रथम दृष्ट्या अपराध के साक्ष्य प्रतीत होते हैं।
Example: 1- साधारण मारपीट का मामला - धारा 323 IPC→
• अभियुक्त Rakesh पर आरोप है कि उसने खेत में झगडा किया।
•Charge sheet दाखिल Court की पेश।
•Court ने दस्तावेज देखे और पाया कि IPC 323 का मामला बनता है।
Order →
Charge Under Section 323 IPC is framed Accused Pleads not guilty and claims to be tried??
• ट्रायल की तारीख तय गवाह बुलाये गये ।
Example 2. गंभीर अपराध हत्या का प्रयास [307IPC]→ •अभियुक्त Rara ने एक व्यक्ति को चाकू मार दिया।
• मेडिकल Report प्रत्यक्षदर्शी गवाह और 307 IPC की धारायें charge-sheet में दर्ज ।
•Case Cjm से sessions Count भेजा गया।
• Sessions Judge ने crpc 228 के तहत आरोप तय किया।
Order-→
Charge under section 307 IPC is framed Accused denies and optsfor trials l!"
Most Important tips for New Advocates→
•Order sheet पढ़ना सीखें ।
•आरोप तय होने की entry साफ तौर पर लिखी होती है। जैसे :- Charge framed U/S 420 IPC.
→eCourts portals का उपयोग करें ।
→ Case numbers डालें ।"Casestags देखें।Charge Framed या Arguments on charge...
→ Discharge Application की जानकारी रखे अगर मामला झूठा है तो आरोप तय होने से पहले बचाव पक्ष Crpc 239 या 227 के तहत आवेदन दे सकता है।
→ Case Diary की प्रति प्राप्त करें
* इससे आप जान सकते हैं कि साक्ष्यों के आधार पर आरोप बन रहे हैं।
→ Drafting में दक्षता रखें
。 Charge फ्रेमिंग के बाद गवाही का चरण आता है ।
•गवाहों से जिरह के लिये आपको मजबूत प्रश्न तैयार करने होगें।
Question →
Charge बनाने के बाद का क्या process होता है?
Answer:→ Charge बनने के बाद अभियोजन पक्ष सर्व प्रथम साक्ष्य के रूप में गवाह, दस्तावेज Court के समक्ष प्रस्तुत करता है ।
•अभियोजन पक्ष के बाद बचाव पक्ष गवाहों से Cross examination (जिरह) करता है।
•धारा 313 Crpc के तहत अभियुक्त से court सवाल करता है।
•इसके बाद अन्तिम बहस final Argument दोनों पक्षों के वकीलों द्वारा की जाती है।
• Court अपने (अन्तिम step पर निर्णय (Judgement) दोषसिद्धि या बरी का फैसला देती है।
Conclusion: New Advocate किसी भी seniour Advocate के अधीन कार्य किये बिना भी सफल से सकते हैं। यदि वे case की स्टेज की पहचाने Crpc की धाराओं को व्यावहारिक रूप से समझे और कोर्ट की कार्यप्रणाली [ordersheet ,e courts, दस्तावेज समीक्षा आदि) में दक्षता प्राप्त करें।
Comments
Post a Comment