बलवा और दंगा क्या होता है? दोनों में क्या अंतर है? दोनों में सजा का क्या प्रावधान है?( what is the riot and Affray. What is the difference between boths.)
बल्बा(Riot):- भारतीय दंड संहिता की धारा 146 के अनुसार यह विधि विरुद्ध जमाव द्वारा ऐसे जमाव के समान उद्देश्य को अग्रसर करने के लिए बल या हिंसा का प्रयोग किया जाता है तो ऐसे जमाव का हर सदस्य बल्बा करने के लिए दोषी होता है।बल्वे के लिए निम्नलिखित तत्वों का होना आवश्यक है:-
(1) 5 या अधिक व्यक्तियों का विधि विरुद्ध जमाव निर्मित होना चाहिए
(2) वे किसी सामान्य उद्देश्य से प्रेरित हो
(3) उन्होंने आशयित सामान्य उद्देश्य की पूर्ति हेतु कार्यवाही प्रारंभ कर दी हो
(4) उस अवैध जमाव ने या उसके किसी सदस्य द्वारा बल या हिंसा का प्रयोग किया गया हो;
(5) ऐसे बल या हिंसा का प्रयोग सामान्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया गया हो।
अतः बल्वे के लिए आवश्यक है कि जमाव को उद्देश्य विधि विरुद्ध होना चाहिए। यदि जमाव का उद्देश्य विधि विरुद्ध ना हो तो भले ही उसमें बल का प्रयोग किया गया हो वह बलवा नहीं माना जाएगा। किसी विधि विरुद्ध जमाव के सदस्य द्वारा केवल बल का प्रयोग किए जाने मात्र से जमाव के सदस्य अपराधी नहीं माने जाएंगे जब तक यह साबित ना कर दिया जाए कि बल का प्रयोग किसी सामान्य उद्देश्य की पूर्ति हेतु किया गया था। यदि जमाव का सामान्य उद्देश्य विधि विरुद्ध ना हो तो उसके किसी सदस्य द्वारा बल प्रयोग किए जाने पर भी उसे बलवा नहीं माना जाएगा।
न्यायिक निर्णय:- जहां कुछ हिंदूओं ने किसी मुसलमान के कब्जे से एक बैल और दो गाय उसे सदोष हानि कारित करने के आशय से नहीं बल्कि उन पशुओं को वध किए जाने से बचाने के उद्देश्य से ले लीं तो यह अभिनिर्धारित किया गया कि वे हिन्दू बल्वा करने के अपराध के दोषी हैं।
जहाँ 15 में से 14 अभियुक्तों को दोष मुक्त कर दिया गया और दोष सिद्ध किए गए अकेले अपीलार्थी के विरुद्ध अपराध से संबंधित पृथक कोई कार्य करने का आरोप नहीं था और यह भी साबित नहीं हो सका की 5 या अधिक ज्ञात या अज्ञात व्यक्तियों के साथ वह भी विधि विरुद्ध जमाव का एक सदस्य था तो संहिता की धारा 147 और धारा 149 के साथ पढी गई धाराओं 302 और 325 के अधीन उस अकेले व्यक्ति की दोस्त सिद्धि विधि के प्रतिकूल थी ।
मैंकू बनाम राज्य में एक साक्षी किसी शव को बरामद करवाने के लिए पुलिस अन्वेषण दल को ले जा रहा था। जब साक्षी ने वहां से भागने का प्रयत्न किया तो पुलिस ने उस पर लाठियों से हमला कर दिया जिससे कुछ समय पश्चात उसकी मृत्यु हो गई । उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि पुलिस दल को विधि विरुद्ध जमाव नहीं कहा जा सकता और इसलिए उनके द्वारा बलवा करने के अपराध का प्रश्न ही नहीं उठता। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि जब कोई कार्य किसी विधिक उद्देश्य के अनुसरण में किया जाए तो संहिता की धारा 146 लागू नहीं होती।
बल्वा के लिए दंड:- धारा 147 के अनुसार जो कोई बलवा करने का दोषी होगा वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से जिसकी अवधि 2 वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जा सकेगा।
दंगा या हंगामा(Affray): जब दो या दो से अधिक व्यक्ति सार्वजनिक स्थान पर लड़कर सार्वजनिक शांति भंग करे तो यह कहा जाता है कि उन्होंने हंगामा किया है।
( धारा 159)
When two or more person by fighting in a public place disturb public they are said to commit and Affray.
इस प्रकार दंगा सार्वजनिक स्थान पर लड़ाई द्वारा कारित किया जाने वाला अपराध है । जिसका उद्देश्य लोक शक्ति में विघ्न पैदा करना होता है ।
दंगे के तत्व(ingredients of affray):-दंगे के निम्नलिखित तत्व है
(अ) दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा लड़ाई
(ब) वह लड़ाई किसी सार्वजनिक स्थान पर हो
(स) उससे सार्वजनिक शांति भंग होती हो
ब्लैक स्टोन(Black stone) के अनुसार दंगा दो तरफा लड़ाई का होना आवश्यक है। यदि एक दल आवश्यक है और दूसरा दल निष्क्रिय हो तो विधि की दृष्टि में वह हंगामा नहीं माना जाएगा।
दंगे के लिए लड़ाई का सार्वजनिक स्थान पर होना आवश्यक है। सार्वजनिक स्थान वह है जहां जनता आती जाती रहती है। चाहे उसे वहां आने-जाने का अधिकार हो या ना हो। सार्वजनिक स्थान समय-समय पर बदलता रहता है। बस,रेलवे प्लेटफार्म सार्वजनिक पेशाब घर, रेलवे स्टेशन का माल गोदाम आदि सार्वजनिक स्थान है, दंगे के लिए आवश्यक है कि लड़ाई इस प्रकृति की हो जिसे लोग शांति में विघ्न पैदा हो जाए अथवा जनता में आतंक फैल जाए या आतंक फैलने की संभावना हो जाए।
न्यायालयों ने अभियुक्त लोक स्थान या सार्वजनिक स्थान के निर्वाचित करते हुए उसको ऐसा स्थान भी सम्मिलित किया है जिसमें लोग जाते हैं यद्यपि वहां उन्हें जाने का अधिकार नहीं हो या जहां लोगों को जाने की अनुमति हो चाहे उन्हें वहां जाने का अधिकार हो या ना हो या वही स्थान भी जहाँ लोगों के जाने का एक सीमित अधिकार हो। रेलवे या बस स्टेशन प्लेटफार्म सार्वजनिक शौचालय रंगशाला या सिनेमा हॉल सार्वजनिक पार्क आदि सभी इसी धारा के अंतर्गत सार्वजनिक स्थान है।
जहां सभी साक्ष्यों के आधार पर पाया गया कि कोई स्थान व्यक्तिगत स्थान है तो न्यायालय ने उस स्थान पर लड़ाई करने वालों को दंगा करने के लिए दोष सिद्ध नहीं किया।
धारा 159 के अधीन अपराध के लिए लोक शांति में विघ्न डालना आवश्यक है। लोगों को केवल असुविधा पहुंचाना लोक शांति में विघ्न डालने से बिल्कुल भिन्न है।
इस प्रकार के दंगे के लिए यह आवश्यक है कि दो या अधिक व्यक्तियों में लड़ाई सार्वजनिक स्थान पर लड़ाई होनी चाहिए तथा इसके कारण लोगों की शांति भंग होने का स्पष्ट सबूत होना चाहिए । केवल शाब्दिक वाक युद्ध को झगड़ा नहीं कहा जाएगा और ना इससे किसी प्रकार की लोक शान्ति ही भंग होती है।
बाबूराम बनाम सम्राट के वाद में एक सार्वजनिक स्थान पर दो व्यक्तियों ने किसी तीसरे व्यक्ति पर हमला किया और उसे अपने काबू में कर लिया। न्यायालय ने उन दोनों व्यक्तियों को दंगे के लिए अपराधी माना क्योंकि वह सार्वजनिक स्थान पर लड़ रहे थे भले ही तीसरा व्यक्ति अपनी प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग करते हुए अपने को बचा रहा था।
दंगा करने के लिए दंड:- धारा 160 में दंगा के लिए दंड की व्यवस्था की गई है। इसके अनुसार जो कोई दंगा करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि 1 माह तक की हो सकेगी या जुर्माने से जो कि ₹1000 तक हो सकेगा या दोनों से दंडित किया जाएगा।
बलवा और दंगे में अंतर(difference between riot and affray):- यद्यपि बलवा तथा दंगा दोनों ही लोगों की शांति के विरुद्ध अपराध है परंतु दोनों में निम्नलिखित अंतर है
(1) बलवा प्राइवेट या सार्वजनिक किसी भी स्थान पर हो सकता है लेकिन दंगा केवल सार्वजनिक स्थान पर ही किया जा सकता है कि निजी स्थान पर नहीं।
(2) बलवा के लिए व्यक्तियों की संख्या कम से कम पांच होना आवश्यक है जबकि दंगा दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा किया जा सकता है।
(3) बल्वे में विधि विरुद्ध जमाव का हर सदस्य दंडनीय होता है भले ही उनमें से कुछ लोगों ने व्यक्तिगत रूप से बल या हिंसा का प्रयोग ना किया हो लेकिन दंगे में केवल वे ही व्यक्ति दंडनीय होंगे जिन्होंने वास्तव में उस में भाग लिया।
(4) बल्वा दंगे की अपेक्षा गंभीर स्वभाव का अपराध होने के कारण इसके लिए 2 वर्ष का साधारण या कठोर कारावास या जुर्माने याद दोनों से दंडित किए जाने का प्रावधान है जबकि दंगे के लिए अभियुक्तों को केवल 1 माह तक का कठोर या सादा कारावास या जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जा सकेगा।
(1) मगम चित्रा सुब्बरायादू बनाम राज्य 197 5 आंध्र एल. टी. 332
(2)इन. री. थोरमेनी नाडाइ 1974 क्रि.एल.जे. 1116 (मद्रास)
(3)पोइन बनाम राज्य (1962)1 क्रि. एल. जे. 339 केरल
(4) (1930) 53 इलाहाबाद 229
(5)अच्छेलाल बनाम राज्य ए.आई.आर 1978 एस सी 1233
(6)ए. आई .आर 1989 एस. सी. 67
(7) परमेश्वर सिंह बनाम सम्राट (1899)4 सी .डब्ल्यू .एस 345
(8) क्वीन एम्प. बनाम रघुनाथ राय (1892) 15 इलाहाबाद 22
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