खतौनी सही होने की अवधारणा पर संक्षेप में लिखिए. Write in bring presumption of correctness of Khatauni
भू राजस्व अधिनियम के अंतर्गत नामांतरण संबंधी विधि
( mutation of names laid down under up land revenue act)
यह विदित है कि वार्षिक रजिस्टर मे सभी प्रकार के जोतदारों का नाम और उनका भौमिक अधिकार अंकित किया जाता है जो भौमिक स्वामित्व और स्वरूप का प्रमाणित साक्ष्य होता है जब उसमे उल्लेखित जोतदार का अधिकार और कब्जा परिवर्तित किया जाता है तो प्रक्रिया को दाखिल खारिज कहते हैं इस प्रक्रिया में उल्लेखित जोतदार का नाम जब खारिज हो जाता है तो उसके स्थान पर दूसरे का नाम दाखिल या दर्ज हो जाता है अर्थात जब भूमि के कब्जे में परिवर्तन होता है तो दाखिल खारिज का कार्य आवश्यक हो जाता है ताकि वर्तमान स्वामित्व और कब्जा का अधिकृत जोतदार अभिज्ञात हो सके.
भू राजस्व अधिनियम की धारा 34 के अंतर्गत उत्तराधिकार व कब्जा अंतरण से संबध्द प्रक्रिया द्वारा दाखिल खारिज की कार्यवाही संपन्न करने का प्रावधान उप बंधित है.
दाखिल खारिज की प्रक्रिया की प्रकृति
( nature of procedure of mutation)
राजस्व विभाग के प्रशासनिक अधिकारी और न्यायिक अधिकारी की भूमिका में तहसीलदार से लेकर कमिश्नर तक उभयनिष्ठ होते हैं परंतु जब प्रशासनिक कार्य करते हैं तो अधिकारी और जब न्यायिक कार्य करते हैं तो न्यायालय के रूप में माने जाते हैं. इस संदर्भ में दाखिल खारिज की प्रक्रिया की प्राकृतिक (1) प्रशासनिक और (2) न्याय दोनों प्रकार में समझी जाती है. रेवेन्यू मैनुअल के अनुच्छेद 11 के अनुसार दाखिल खारिज की प्रकृति न्यायिक मानी गई है किंतु विधि वेत्ताओं और न्यायालयों के मतानुसार उसकी प्रकृति प्रशासनिक प्रतीत होती है दाखिल खारिज का आदेश पारित करने वाला न्यायालय संक्षिप्त विचारण द्वारा कार्यवाही करता है इसके अतिरिक्त इसका मुख्य काम मालगुजारी देने वाले को चिन्हित करना है.
माननीय न्यायमूर्ति बी एल यादव ने श्रीमती लखपति बनाम रेवेन्यू बोर्ड के वाद में यह विचार व्यक्त किया कि दाखिल खारिज की प्रक्रिया का क्षेत्र यह नहीं है कि किसी व्यक्ति के किसी अधिकार का प्राप्त का निर्णय किया जाए उन्होंने उसी वाद में यह कहां की दाखिल खारिज की प्रक्रिया का उद्देश्य यह है कि सरकार भूमि की मालगुजारी किससे वसूल करें.
इस प्रकार दाखिल खारिज की प्रक्रिया का प्रशासनिक दाखिल खारिज की प्रक्रिया में पारित आदेश निधि में सार्वभौमिक नहीं है इस आदेश के क्षुब्ध व्यक्ति नियमित वाद regular suit स्थिति कर सकता है यही बात सर्वोच्च न्यायालय में भी विधि मान्य माना है.
कुंती बनाम श्रीमती चमेली के वाद में अवधारित है कि इसकी कार्यवाही एक संक्षिप्त कार्रवाई है न्यायिक नहीं की इस कार्रवाई में हक या स्वत्व संबंधी प्रश्न का निस्तारण नहीं किया जा सकता धारा 34 के अंतर्गत विवाहित उत्तराधिकार की दशा में जब तहसीलदार दाखिल खारिज करने का निर्णय करता है तो उस प्रक्रिया में न्यायिक प्रणाली के अधिकांश लक्षण विद्यमान होते हैं किंतु जब सुपरवाइजर कानूनगो धारा 33 ए के अविवादित उत्तराधिकार की दशा में विरासत दर्ज करता है तो उस समय यह आदेश प्रशासनिक ही कहा जाएगा.
श्रीमती लखपति बनाम राजस्व परिषद के वाद में भी यह अभिनिर्णीत है कि नामांतरण की कार्यवाही मात्र राजकोषीय कार्रवाई है इससे अधिकार व स्वत्व का निर्णय नहीं होता है.
दाखिल खारिज कब होता है
यह तो स्पष्ट है कि दाखिल खारिज की कार्रवाई तब होती है जब दोनों के कब्जे में कोई परिवर्तन होता है तथा यह परिवर्तन द दो प्रकार से संभव है
(1)उत्ताराधिकार की दशा मे
(2)अंतरण की दशा मे
रामचरण बनाम राजस्व परिषद (1977 आर. डी .2000) के अनुसार अगर अतिक्रमण द्वारा कब्जा में परिवर्तन विधि द्वारा मान्य नहीं है और उस दशा में दाखिल खारिज का कोई सवाल नहीं है पारिवारिक व्यवस्था में कभी-कभी दाखिल खारिज की समस्या उत्पन्न होती है.
खतौनी सही होने की अवधारणा
(Presumption correctness of Khatauni)
लैंड रिकॉर्ड्स मैन्युअल के पैरा ग्राम संख्या - 80 तथा ए - 81 के अधीन अवधारणा की जाती है कि यदि दर्ज संख्या सही है तो खसरा भी सही माना जाएगा कब्जा को साबित करने का मुख्य आधार खसरा होता है खतरा सही साबित है तो विवादित भूमि उपपक्षकार का कब्जा खतौनी के अनुसार सही साबित होता है जब तक कि किसी अन्य तौर पर गलत ना साबित किया जाए.
ग्राम के किसानों के संबंध में सूचना व सहायता के लिए लेखपाल द्वारा विभिन्न प्रकार के प्रपत्र तैयार कराए जाते हैं लैंड रिकॉर्ड मैनुअल के अनुच्छेद 25 के निर्देशानुसार इस समय नक्शा खसरा और खतौनी के अतिरिक्त सीमा धोतक चिन्हों की सूची दिनचर्या बही और आज्ञा बही आदि भी बनाने पड़ते हैं.
किसान बही भू राजस्व अधिनियम की धारा 33 के अंतर्गत प्रत्येक जिले में राजस्व विभाग द्वारा किसान बही तैयार करके निवारण करने का निर्देश दिया गया है किसान वही की व्यवस्था से किसानों के लेखपाल के पास इंतखाब मिलने के लिए भागदौड़ नहीं करनी पड़ेगी किसान बही स्वयं विधि सम्मत प्रपत्र है जिसमें किसानों के भूमि का ब्यारा श्रेणी उल्लेखित किया गया है इस पुस्तिका में खातेदार का नाम पिता का नाम निवासी जोत की संख्या क्षेत्रफल तथा मालगुजारी का उल्लेख अभिलेख निरीक्षक लेखपाल तथा राजस्व अधिकारी (तहसीलदार )का मुहर रहता है खातेदार द्वारा धारित भूमि का विवरण कुल 18 कालम में विस्तार पूर्वक सूचनाओं को संहत करके अभिव्यक्त रहता है जोतदार अपने जोत के साक्ष्य के रूप में प्रदर्शित कर सकता है जिसका शुल्क ₹10 निर्धारित किया गया है जिससे जमा करके कोई भी जोरदार अपनी किसान बही प्राप्त कर सकता है.
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