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दलित व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार की अमानवीय घटना कारित करने वाले व्यक्तियों को सजा कैसे दिलायें ?

भू राजस्व अधिनियम 1901 के अधीन सीमा विवाद संबंधी निपटारे की प्रक्रिया का विस्तार से उल्लेख कीजिए? Describe the procedure of settlement of boundary dispute under up land revenue act 1901

अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक जोतदार का प्रथक खेत होता है दो खेतों को पृथक करने के लिए दोनों खेतों के बीच में एक मेड होती है इसी मेड को सीमा कहा जाता है और इसी  मेड के संबंध में जब दो या दो से अधिक जोतदारों के बीच कोई विवाद उत्पन्न होता है तो उसे सीमा विवाद कहते हैं इस प्रकार जोतदारों के खेतों की मेड़ के संबंध में जो विवाद उत्पन्न होता है वही सीमा विवाद कहलाता है.

सीमा विवाद के निपटारे की प्रक्रिया
( proceedure of boundary disputes)

अधिनियम के अनुसार सीमा विवादों का निपटारा निम्नलिखित ढंग से किया जाता है -

(1) सीमा विवादों के निपटारे के लिए सर्वप्रथम प्रार्थना पत्र दिया जाता है प्रार्थना पत्र कलेक्टर को देना होता है.

(2) प्रार्थना पत्र के साथ नक्शा तथा खसरे से  संबंधित हिस्से की प्रमाणित प्रतिलिपि संलग्न होती है

(3) जब कलेक्टर को सीमा विवाद के संबंध में प्रार्थना पत्र प्राप्त होता है तो वह उसकी प्रारंभिक जांच कराने के लिए उसे तहसीलदार के माध्यम से संबंधित सुपरवाइजर कानूनगो के पास भेजता है.

(4) सुपर वाइजर कानूनगो संबंधित सीमा विवाद के बारे में अपनी रिपोर्ट देता है उसे अपनी रिपोर्ट में दो बातें स्पष्ट रुप से प्रदर्शित करनी होती है पहली यह कि सीमा विवाद किस प्रकार का है और दूसरी यह कि सीमा विवाद का प्रश्न कैसे उत्पन्न हुआ है.

(5) जब कलेक्टर को सुपरवाइजर कानूनगो की रिपोर्ट प्राप्त हो जाती है तो उसे निम्नलिखित दो बातों को निश्चित करना होता है -

(a) क्या संबंधित सीमा विवाद की पैमाइश के साथ के बिना विधिक जांच कराई जानी आवश्यक है और

(b) पैमाइश कराई जाए तो वह न्यायालय द्वारा कराई जाए तो कानून गो लेखपाल या किसी अन्य अधिकारी से

              उचित प्रक्रिया के पश्चात कलेक्टर सीमा विवाद का उचित निपटारा करेगा.

                यहां यह उल्लेखनीय है कि कलेक्टर जब पैमाइश का आदेश देता है तो वह पैमाइश करने वाले अधिकारी को सीमा चिन्ह लगाने के लिए पत्थर के खंभे भी प्रदान करता है और उसका विवाह संबंधित पक्षकारों से वसूल किया जाता है सीमांकन केवल पत्थर के खंभे से ही किया जा सकता है पक्की मेड बनाकर नहीं.

           सीमा विवादों का निपटारा करने के लिए कलेक्टर ही सक्षम प्राधिकारी है परंतु वह हक या स्वामित्व का फैसला नहीं कर सकता है कलेक्टर को सीमा विवादों का निपटारा पिछले बंदोबस्त के आधार पर ही करना होता है जैसा कि भू राजस्व अधिनियम की धारा 41 करती है -

( 1) सीमा संबंधी सभी विवादों का निपटारा यथासंभव वर्तमान सर्वेक्षण मानचित्र ओं के आधार पर किया जाएगा लेकिन यदि ऐसा संभव ना हो तो सीमाएं वास्तविक कब्जे के आधार पर निश्चित की जाएंगी.

( 2) इस धारा के अंतर्गत विवाद की जांच के दौरान कलेक्टर अपने को इस बात पर संतुष्ट करने में असमर्थ पाता है कि कौन पक्ष कार काबीज है या यदि यह दिखाया जाता है कि जांच प्रारंभ होने के पहले 3 महीने के भीतर वैध कब्जा धारकों को गलत तरीके से बेदखल करके कब्जा प्राप्त किया गया है तो कलेक्टर -

(a) पहले सूरत ने में संक्षेप जांच द्वारा पता लगाएगा की संपत्ति का उत्तराधिकारी कौन व्यक्ति था है तथा ऐसे व्यक्ति को कब्जा दिलाएगा.

(b) दूसरी सूरत में इस प्रकार बेदखल किए गए व्यक्ति को कब्जा दिलाएगा और तदनुसार सीमा निर्धारित करेगा.

             अधिनियम की धारा 40 ( क ) यह उपबंध  करती है कि धारा 41 के अधीन पारित कोई आदेश किस व्यक्ति को सक्षम न्यायालय में जोत में अधिकार के आधार पर वाद दायर करने से नहीं रोकता है.

               सीमा विवाद के संदर्भ में नवीनतम मुकदमा अवध सिंह बनाम प्रेमचंद्र 1990 रे. डी. रेवेन्यू बोर्ड का है. आवाज सिंह ने भू राजस्व अधिनियम की धारा 411 के अंतर्गत मेड़बंदी का आवेदन दिनांक 18.1. 1984 को परगना अधिकारी को प्रस्तुत किया कि जिस में अवश्य ने आरोप लगाया कि गाटा संख्या 385 जिसमें वह भूमिधर है के चारों ओर की मेड़ों को पढ़ो कारों ने तोड़ दिया और उन लोगों ने मेरे खेत का कुछ हिस्सा अपने खेतों में मिला लिया परगना अधिकारी ने मेड़बंदी अमीन से पैरा 402 रेवेन्यू कोर्ट मैनुअल के अधीन रिपोर्ट मांगी मेड़बंदी अमीन ने पैमाइश करके 2 2. 12. 1 985 को रिपोर्ट पेश की. इस रिपोर्ट के हेमचंद्र ने एतराज दाखिल किया की सुनवाई के बाद परगना अधिकारी के आदेश से नाराज खेमचंद ने एडिशनल कमिश्नर के यहां अपील की परगना अधिकारी के आदेश को खंडित कर दिया आदेश से त्रस्त अवस्थी ने भू राजस्व अधिनियम की धारा 219 के अंतर्गत रिवीजन पेश की टीम की ओर से यह तर्क दिया गया कि अपीलेट कोर्ट में मेड़बंदी का प्रार्थना पत्र होने के आधार पर खारिज करने में भूल की है प्रार्थना पत्र में निगरानी करता ने पाते उसके आधार पर पैमाइश की कार्यवाही कराए जाने में कोई अड़चन ना थी विपक्षी खेल चंद्र की तरफ से तर्क दिया गया कि मेड़बंदी प्रार्थना पत्र में जो दलीले दी गई है उसके अनुसार पैमाइश की कार्रवाई संभव नहीं है क्योंकि प्रार्थना पत्र में जो आरोप लगाए गए हैं उनसे अनाधिकृत कब्जा का आभास मिलता है इसलिए जमीदारी विनाश तथा भूमि व्यवस्था अधिनियम 1956 की धारा 209 के अंतर्गत उन्हें संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ बेदखली तथा कब्जा प्राप्त की कार्रवाई करनी थी ना कि भू राजस्व अधिनियम की धारा 41 के अंतर्गत मेड़बंदी की कार्यवाही.

               रेवेन्यू बोर्ड के सदस्य रामलाल ने निम्न निर्णय लिया कि मेड़बंदी के प्रार्थना पत्र के अवलोकन से विदित होता है कि निगरानी कर्ता ने गाटा संख्या 835 पर अपना स्वामित्व दर्शाया है और प्रार्थना पत्र के साथ खसरा खतौनी के अभी दाखिल किए हैं यह स्पष्ट है कि निगरानी करता गाटा संख्या 835 के स्थाई है और उक्त ज्योत के चारों तरफ की मेड़ों आसपास के काश्तकारों ने तोड़कर अपने खेत में मिला लिया है ऐसी स्थिति में गाटा संख्या 18 35 की पैमाइश के अलावा दूसरा विकल्प नहीं रह जाता इस प्रार्थना पत्र के अवलोकन से यह नहीं कहा जा सकता है कि निगरानी कर्ता ने बेदखली की कार्रवाई करके कब्जा दिलाने हेतु कहा ऐसी स्थिति में इस प्रार्थना पत्र के आधार पर भू राजस्व अधिनियम की धारा 41 के अंतर्गत की गई कार्यवाही की जा सकती है.

         धारा  41 की कार्रवाई का उद्देश्य मौके पर स्पष्ट तथा त्रुटिपूर्ण नियमों को स्पष्ट करना तथा बंदोबस्त मानचित्र के आधार पर निर्धारित करना है जैसा कि इस प्रकरण में उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा 209 की कार्रवाई के लिए यह आवश्यक है कि विपक्षी द्वारा जोरदार की सहमति के बिना और जबरदस्ती एक निश्चित क्षेत्रफल पर कब्जा कर लिया गया हो प्रार्थना पत्र के आवे यह कहीं भी कथन नहीं है न्यायालय को अपनी ओर से अर्थात बिना पक्षकारों के कथन के कोई नया मुकदमा तैयार करने का अधिकार प्राप्त नहीं है आवेदक का कथन स्पष्ट है कि उसकी खेत की मेड को तोड़कर विपक्षी गढ़ ने अपने खेत में मिला लिया है. किस सीमा ताकि यह ज्ञात नहीं है.

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