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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

कंपनी के निगमन से आपका क्या तात्पर्य है? निगमन की प्रक्रिया को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए. निगमन के प्रमाण पत्र एवं इसमें विधिक महत्व को भी समझाइए.( what is meant by incorporation of the company? Explain Its process. Explain also certificate of incorporation and its legal significance)

कंपनी का निगमन( incorporation of a company):- कंपनी के विषय में कंपनी के निगमन का महत्वपूर्ण स्थान है. अतः यह कंपनी के निर्माण का दूसरा चरण है इसे कंपनी का रजिस्ट्रीकरण भी कह सकते हैं अतः यह निगमन ही है जिससे कंपनी को विधिक व्यक्ति तथा चिरस्थाई अस्तित्व प्राप्त होता है. सामान्यतः  निगमन के बाद ही कंपनी अपना बिजनेस करती है।

         कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 7 के अनुसार कंपनी के निगमन अर्थात रजिस्ट्रीकरण के लिए उस कंपनी रजिस्ट्रार को जिस की अधिकारिता के अंतर्गत उस कंपनी का रजिस्टर्ड कार्यालय स्थित किया जाना प्रस्तावित है आवेदन करना होगा। एवं आवेदन के समय निम्नलिखित दस्तावेज तथा जानकारियां फाइल की जाएंगे

(1) संगम ज्ञापन:- कंपनी के निगमन से संबंधित यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है. संगम ज्ञापन में नीचे लिखी बातों का उल्लेख किया जाएगा:

(a) मेंबरों के नाम एवं पते(b) उनका कारोबार(c) उनके द्वारा धारित अंशों की संख्या एवं(d) प्रस्तावित रजिस्टर्ड कार्यालय का विवरण

          संगम ज्ञापन पर अब सभी सदस्यों द्वारा हस्ताक्षर किए जाएंगे तथा उस पर कंपनी की मोहर( seal) अंकित की जाएगी.

                    कंपनी का निगमन  संगम ज्ञापन के बिना नहीं हो सकेगा। वस्तुतः संगम ज्ञापन कंपनी का चार्टर (Charter ) होता है जो अधिनियम के अंतर्गत कंपनी के अधिकारों को निर्धारित करता है संगम ज्ञापन में उल्लेखित आधारभूत बातों के आधार पर ही कंपनी का निगमन किया जा सकता है अन्यथा नहीं.


               संगम ज्ञापन का आदर्श प्रारूप( model drafts ) मे होना अपेक्षित है साथ ही साथ हुआ है दृत पैराग्राफ ओं में विभक्त क्रमानुसार अंकित और सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित तथा कम से कम 1 साक्षी द्वारा प्रमाणित होना वांछनीय है।


संगम ज्ञापन निर्धारित मूल्य के स्टांप पर होना भी आवश्यक है।

(2) संगम अनुच्छेद: संगम ज्ञापन( सीमा नियम) की तरह संगम अनुच्छेद( articles of association) भी कंपनी के निगमन का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है इसे कंपनी के अंतर नियम भी कहा जाता है.

                        कंपनी के निगमन अर्थात रजिस्ट्रीकरण के लिए प्रस्तुत किए जाने वाले आवेदन पत्र के साथ संगम अनुच्छेद का संलग्न किया जाना भी आवश्यक है.

         संगम अनुच्छेद में कंपनी की आंतरिक व्यवस्था संबंधी नियमों का उप नियमों का उल्लेख रहता है यह अंतर नियम कंपनी के संगम ज्ञापन में वर्णित उद्देश्य एवं कार्यों का क्रियान्वयन सुनिश्चित करते हैं अर्थात उन्हें सुकर बनाते हैं।

          यहां यह उल्लेखनीय है कि अंत सीमित पब्लिक कंपनी के रजिस्ट्रीकरण के लिए संगम अनुच्छेदों को प्रस्तुत किया जाना आवश्यक नहीं है। यह ऐच्छिक  है।

          असीमित तथा अंशों  द्वारा सीमित अथवा गारंटी द्वारा सीमित प्राइवेट कंपनी के निगमन अर्थात रजिस्ट्रीकरण के लिए संगम ज्ञापन के साथ-साथ संगम अनुच्छेदों का रजिस्ट्रीकरण कराया जाना भी अनिवार्य है। उस पर उन व्यक्तियों के हस्ताक्षर होना भी अपेक्षित है जिन्होंने संगम ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।

(3) घोषणा पत्र:- आवेदन पत्र के साथ कंपनी के सम प्रवर्तक ओं की ओर से इस आशय की घोषणा की जाएगी कि कंपनी के प्रस्तावित नाम से मिलती-जुलती और कोई कंपनी अस्तित्व में नहीं है. ऐसा घोषणा पत्र निर्धारित प्रारूप में कंपनी रजिस्ट्रार को भेजना होगा. साथ ही कंपनी के बारे में जानकारी रखने वाले व्यवसाय रत अधिवक्ता चार्टर्ड अकाउंटेंट लागत लेखपाल या कंपनी सचिव द्वारा विहित  प्रारूप में इस आशय की घोषणा भी की जाएगी कि रजिस्ट्रीकरण के लिए अपेक्षित समस्त अपेक्षाओं का पालन  कर दिया गया है।


(4) कार्यालय का नाम व पता:- आवेदन पत्र में प्रस्तावित कंपनी के रजिस्ट्री कृत कार्यालय का नाम व पता( जिला सहित) दिया जाएगा जिस पर पत्र व्यवहार किया जा सके.

(5) निर्देशकों का विवरण:- निगमन अर्थात रजिस्ट्रीकरण के आवेदन पत्र में निर्देशक( directors) के बारे में निम्नलिखित जानकारियां देनी होगी-

(a) निर्देशकों के नाम व पते

(b) उनकी सहमति

(c) उनके हस्ताक्षर

(d) साथियों के नाम पते व हस्ताक्षर

(e) निर्धारित योग्यता( अंश ट्राई करने के संबंध में)

(f) निर्देशक पहचान संख्या दी


(6) अन्य जानकारियां:- आवेदन पत्र के साथ निम्नांकित के बारे में भी जानकारियां दी जाएंगे

(a) प्रबंध अभिकर्ता

(b) सचिव

(c) पाल आदि


(7) शुल्क:- उपरोक्त सभी दस्तावेजों पर आलेखों आदि के साथ रजिस्ट्रीकरण के लिए निर्धारित शुल्क( fees) भी रजिस्ट्रार के पास जमा कराना होगा.

निगमन प्रमाण पत्र:-

              समस्त औपचारिकताएं पूरी हो जाने पर रजिस्ट्रार द्वारा यह प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा जो इस बात का प्रमाण होगा कि कंपनी का निगमन कर दिया गया है. ऐसा प्रमाण पत्र निगमन का प्रमाण पत्र( certificate of Incorporation) कहलायेगा. धारा 7(2) प्रमाण पत्र में रजिस्ट्रार के हस्ताक्षर एवं रजिस्ट्रार कार्यालय के मोहर अंकित की जाएगी. सीमित कंपनी की दशा में रजिस्ट्रार द्वारा प्रमाण पत्र में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया जाएगा कि वह एक लिमिटेड कंपनी है.

                      कंपनी का रजिस्ट्रीकरण हो जाने पर उसे निगमित निकाय( incorporated body) का स्वरूप प्राप्त हो जाएगा. वह एक आभूषण संस्था बन जाएगी. निगमन के पश्चात कंपनी को वैधानिक व्यक्तित्व प्राप्त हो जाएगा जो उसके सदस्यों से पूर्णतया भिन्न होगा.


         अशोक मार्केटिंग लिमिटेड बनाम पंजाब नेशनल बैंक(1990)4 यस सी सी406) मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह भी निर्धारित किया गया है कि निगमन का प्रमाण पत्र जारी हो जाने पर कंपनी के संगम ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वाले व्यक्तियों तथा समय-समय पर कंपनी की सदस्यता धारण करने वाले व्यक्ति एक निगमित निकाय( body corporate) का रूप धारण कर लेते हैं जो नियमित कार्य के रूप में कार्य करते हैं तथा जिनका सास्वत अस्तित्व होता है.

         निगमन प्रमाण पत्र का विधिक महत्व:- कंपनी के निगमन प्रमाण पत्र अपना एक वैज्ञानिक महत्व होता है. इस बात का निश्चायक प्रमाण पत्र होता है कि कंपनी का रजिस्ट्रीकरण किए जाने में समस्त विधिक औपचारिकताओं को कर लिया गया है और वह कंपनी अब एक नियमित कंपनी हो गई है।

मूसा गुलाम आरिफ बनाम अब्राहम गुलाम आरिफ (आई एल आर (1913)40 कोलकता 1 पी ) के मामले में प्रीवी काउंसिल द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है कि रजिस्ट्रार द्वारा कंपनी के निगमन का प्रमाण पत्र जारी कर दिए जाने पर इस बात पर विचार किए जाने की आवश्यकता नहीं रह जाती की रजिस्ट्रीकरण में अनियमितताएं रह गई हैं निगमन का प्रमाण पत्र इस बात का निश्चय एक सबूत होता है कि कंपनी द्वारा रजिस्ट्रीकरण संबंधित समस्त औपचारिकताओं को पूरा कर लिया गया है तथा वह कंपनी अब एक नियमित कंपनी बन गई है।


ओक्स बनाम टरकाण्ड(1867)1 एल आर 2एच एल 325) पत्र प्राप्त हो जाने के पश्चात उसके रजिस्ट्रीकरण से संबंधित किसी भी औपचारिकता की अनियमितता के विषयों में वाद संस्थिति नहीं किया जा सकता क्योंकि निगमन का प्रमाण पत्र इस बात का निश्चायक सबूत होता है कि कंपनी द्वारा रजिस्ट्रीकरण की समस्त औपचारिकताओं को पूरा कर दिया गया है।


पील((1867)2 सी.एच 674) के मामले मे भी लार्ड कार्यन्स द्वारा आ गया है कि कंपनी के निगमन का प्रमाण पत्र कंपनी के रजिस्ट्रीकरण का प्रथम दृष्टया साक्ष्य मात्र ना होकर इस बात का निश्चय प्रमाणित होता है कि कंपनी द्वारा रजिस्ट्रीकरण से संबंधित समस्त औपचारिकताओं को पूरा कर दिया गया है।


निगमन की पूर्व की स्थिति:

    केलर बनाम बाक्सटर((1866)एल आर 2 पी सी 174) के वाद मे निगमन के पूर्व कंपनी को कोई स्वतंत्र वैधानिक स्थिति प्राप्त ना होने के कारण निगमन से पूर्व की गई संविदा ओं के लिए वह दायी नहीं होती है। इसी प्रकार निगमन से पूर्व की गई संविदा ओं के लिए स्वयं कंपनी द्वारा भी किसी व्यक्ति के विरुद्ध वाद नहीं लाया जा सकता है और ना अनु समर्थन द्वारा ऐसी संविदा ओं को विधिक मान्यता प्रदान की जा सकती है। ऐसे मामलों में संविदा करने वाले व्यक्ति( अभिकर्ता आदि)वैयक्तिक  रूप से उत्तरदायी होगे।


           मलिक मोहम्मद बनाम केपिटल स्टाॅक एक्सचेंज  केरल लि.(1991)72 कम्पनी केसेज 333 के वाद मे केरल के मामले मे केरल उच्च  न्यायालय द्वारा यह विनिश्चत किया गया है कि कंपनी अधिनियम के अंतर्गत किसी कंपनी का रजिस्ट्रीकरण निरस्त कराने हेतु रिट याचिका दायर नहीं की जा सकती है।


कंपनी द्वारा व्यापार का प्रारंभ:

कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 11 में यह प्रावधान किया गया है कि प्रत्येक प्राइवेट कंपनी अपने निगमन की तारीख से ही अपना कारोबार अर्थात व्यापार प्रारंभ कर सकती है.


                  लेकिन पब्लिक कंपनी अपने निगमन के पश्चात् भी कारोबार तभी प्रारंभ कर सकेगी जब उसे वांछित  अनुमति पत्र प्राप्त हो जाए. पत्र प्राप्त करने के लिए कतिपय विधिक औपचारिकताओं को पूरा करना होता है। कैसी औपचारिकताएं पूरी हो जाने पर रजिस्ट्रार द्वारा व्यापार प्रारंभ प्रमाण पत्र जारी किया जाता है जो इस बात का निश्चय एक सबूत होता है कि कंपनी अपना व्यापार प्रारंभ करने के लिए अधिकृत कर दी गई है।


इन रि ओट्टो इलेक्ट्रिकल्स कंपनी(1906)2 सी एच 390  के मामले मे यह कहा गया है कि यदि किसी व्यक्ति द्वारा किसी ऐसी कंपनी को माल का प्रदाय है या सेवाएं दी गई है जिसने व्यापार प्रारंभ करने का प्रमाण पत्र प्राप्त नहीं किया है तो सा व्यक्ति कंपनी के विरुद्ध किसी प्रकार का वाद दायर नहीं कर सकेगा।


            आंध्र प्रदेश टूरिज्म डेवलपमेंट कारपोरेशन बनाम में पंपा होटल्स लिमिटेड ए आई आर 2010 एस सी 1806 के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्धारित किया गया कि कंपनी के निगमन के पूर्व किए गए करार का प्रवर्तन नहीं किया जा सकता इस मामले में विद्यार्थी कंपनी का निगमन दिनांक 9- 4 -2003 को हुआ था अपीलार्थी टूरिस्ट कंपनी एक सरकारी कंपनी की अपीलार्थी  ने प्रत्यार्थी कंपनी को गेस्ट हाउस के निर्माण हेतु तिरुपति में 1.08 एकड़ भूमि 33 वर्षों के लिए पट्टे पर दी थी जहां प्रत्याशी को 3 सितारा होटल तारा गेस्ट हाउस बनाना था दोनों पक्षों के बीच यह भी तय हुआ कि विवादों का निपटारा मध्यस्थ द्वारा किया जाएगा पर्यटन निगम द्वारा उक्त करार को दिनांक 21-04-2004 को निरस्त करके भूमि का कब्जा वापस ले लिया गया मध्यस्था करार दिनांक 03-03- 2002 को किया गया था उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया कि तथाकथित मध्यस्था करार प्रवर्तनीय नहीं के पूर्व किया गया था।

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