कंपनी विवरण पत्रिका से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of company prospectus):-
कंपनी अधिनियम की धारा 2(70)2013 के अनुसार प्रविवरण पत्रिका का आशय ऐसे प्रपत्र से है जो प्रविवरण की तरह वर्णित या निर्गमित किया जाता है और ऐसे नोटिस परिपत्र विज्ञापन या अन्य प्रपत्रों को शामिल करता है जो जनता से निक्षेप आमंत्रित करते हैं या जो एक समामेलित संस्था के अंशों तथा ऋण पत्रों के क्रय करने के लिए जनता से प्रस्ताव आमंत्रित करता है।
इस प्रकार का विवरण या विवरण पत्र एक प्रकार की जनता के प्रति कंपनी के अंश या डिवेंचर खरीदने की अपील है। ऐसा विज्ञापन जिससे जनता के प्रति एनसीआर डिवेंचर प्रस्तावित किए जाते हैं प्रोस्पेक्टस माना जाता है। अंशों और डिबेन्चरों के लिए प्रार्थना पत्र बांटे नहीं जा सकते जब तक कि उनके साथ ऐसा एक दस्तावेज ना दिया जाए जिसमें प्रोस्पेक्टस कि वे मुख्य मुख्य बातें बताई गई हो जो सरकार द्वारा निर्धारित हो। इसका प्रभाव यह है कि अब तो केवल एक ऐसा दस्तावेज प्रार्थना पत्रों के साथ देना होगा जो प्रोस्पेक्टस के मुख्य लक्ष्य दर्शाया करे।कोलकता उच्च न्यायालय के समक्ष एक मामले में अखबारों में दिए गए विज्ञापन में कहा गया था अपनी प्रोस्पेक्टर्स में जिस से प्रार्थना पत्र पर प्राप्त किया जा सकता है बताई गई शर्तों के अनुसार कुछ अंश अब भी विक्रय हेतु उपलब्ध हैं। इस विज्ञापन को प्रोस्पेक्टस माना गया क्योंकि इसके द्वारा जनता को अंश खरीदने के लिए आमंत्रित किया गया था।
कंपनी की विवरण पत्रिका( prospectus) के विषय में एक उल्लेखनीय बात यह है कि जब तक इसका जनता में निर्गमन नहीं किया जाता है तब तक विवरण पत्रिका से संबंधित कंपनी अधिनियम के उपबंध उस कंपनी के प्रति लागू नहीं किए जा सकते। विवरण पत्रिका का निर्गमन हुआ अथवा नहीं यह प्रत्येक तथ्यों के प्रकरण पर निर्भर रहता है तथा इसकी निश्चित व्याख्या करना संभव नहीं है।
भारतीय कंपनी अधिनियम 2013 के अनुसार प्रविवरण में अनुसूची 11 में निर्धारित विषयों का उल्लेख होना चाहिए। उस अनुसूची को तीन भागों में बांटा जाए। पहला भाग जिसमें वह विषय वस्तु हो जिसका उल्लेख करना हो। दूसरा भाग वे प्रतिवेदन हो जो की प्रकाशित करने हो और तीसरा भाग जिसमें पहले और दूसरे भाग की विषय वस्तुओं की व्याख्या हो। कंपनी अधिनियम के अनुसार प्रविवरण या विवरण पत्रिका में निम्नलिखित विषयों का उल्लेख होना अनिवार्य है
(1) कंपनी के प्रविवरण में कंपनी के उद्देश्यों का उल्लेख होना चाहिए। यह वह उद्देश्य है जो कंपनी के पार्षद सीमा नियम में उल्लेखित होते हैं।
(2) कंपनी के अंश कई प्रकार के होते हैं। अतः अधिनियम में यह व्यवस्था की गई है कि कंपनी को विविध प्रकार के अंशों का उल्लेख भी विवरण पत्रिका में कर देना चाहिए।
(3) यदि कंपनी ने ऋण पत्रों को बेचने के हेतु विवरण पत्रिका जारी की है तो ऋण पत्रों के प्रकार का उल्लेख होना चाहिए।
(4) कंपनी की विवरण पत्रिका प्रविवरण में कंपनी के अंश धारियों( shareholders) तथा ऋण पत्र धारियों के हितों का भी उल्लेख होना चाहिए।
(5) कंपनी ने मोचन योग्य वरीयता पूर्ण अंश जारी किए हो तो उनका पूरा विवरण कंपनी की विवरण तालिका में होना चाहिए।
(6) यदि संचालकों हेतु योग्यता के अंशों की आवश्यकता हो तो उसका भी उल्लेख प्रविवरण में किया जाना चाहिए।
(7) कंपनी का विवरण पत्रिका जारी करते समय कंपनी के संचालकों का नाम उनके पते के साथ उल्लेख होना चाहिए।
(8) कंपनी की विवरण पत्रिका या प्रविवरण में न्यूनतम उस धनराशि( minimum subscription) का उल्लेख होना चाहिए जो कंपनी के दायित्वों को पूरा करने में समर्थ हो यह स्थिति बहुदा तब होती है जब कंपनी प्रथम बार अपनी विवरण पत्रिका जनसामान्य के सम्मुख प्रस्तुत करती है.
(9) विवरण पत्रिका या प्रविवरण में प्रारंभिक संविदों का उल्लेख होना चाहिए।
(10) subscription सूची के खुलने की तिथि तथा समय
(11) प्रार्थना पत्र पर देय धनराशि
(12) कंपनी को अपनी विवरण पत्रिका में उस धनराशि का उल्लेख करना चाहिए जो कमीशन के रूप में देय हो।
(13) यदि अभिगोपन की व्यवस्था हो तो कंपनी की विवरण पत्रिका में अभिगोपन के साधनों का उल्लेख होना चाहिए तथा उससे संबंधित संचालकों की राय कि उक्त प्रकार के व्यक्ति सक्षम है.
(14) कंपनी की विवरण पत्रिका में उन व्यक्तियों के नाम तथा पत्ते होने चाहिए जिन्होंने कंपनी को अपनी संपत्ति बेची हो अथवा जिनसे कंपनी ने संपत्ति प्राप्त की हो वह विवरण कंपनी की स्थिति में धोतक होता है।
(16) कंपनी के द्वारा किया गया प्रारंभिक खर्चे
(17) कंपनी ने विवरण पत्रिका जारी करने के समय से 2 वर्ष पूर्व जो धनराशि कंपनी के प्रवर्तक ओं को विभिन्न प्रकार के भुगतान हेतु दी हो उसका उल्लेख.
(18) कंपनी के विवरण पत्रिका में ऑडिटर का नाम तथा पता उल्लेखित होना चाहिए.
(19) यदि कंपनी ने विभिन्न प्रकार के अंश जारी किए हैं तो वैसे प्रत्येक अंश धारियों के अधिकार.
(20) यदि कंपनी विवरण पत्रिका जारी करने के पूर्व कई वर्षों से व्यापार कर रही हो तो उसका विवरण तथा लेखे जोखे का हिसाब ऑडिटर की रिपोर्ट इत्यादि.
(21) कंपनी के विवरण पत्रिका या प्रविवरण में विभिन्न प्रकार के अंश धारियों को विगत वर्षों में क्या लाभ मिला है अथवा कंपनी ने कितनी अचल संपत्ति खरीदी है इत्यादि का भी उल्लेख होना चाहिए। कंपनी के अकाउंटेंट की रिपोर्ट भी संलग्न होनी चाहिए ।इस रिपोर्ट में कंपनी के लाभ हानि खाते की स्थिति का वर्णन होना चाहिए ।
(22) यदि कंपनी के सुरक्षित कोषों से अथवा लाभों से पूंजी जुटाई गई हो तो उसका विवरण
(23) अंश के हस्तांतरण पर प्रतिबंध
(24) अन्य सूचनाएं जिन्हें कंपनी जनता को आकर्षित करने के लिए प्रकाशित करना आवश्यक समझे.
कंपनी के प्रविवरण या विवरण पत्रिका( prospectus) मे उक्त बातों का समावेश इसलिए आवश्यक है कि जो व्यक्ति कंपनी के अंश तथा ऋण पत्र खरीदने जा रहा है उसे कंपनी को आर्थिक स्थिति का ज्ञान हो। उनकी प्रत्येक विवरण पत्रिका जारी करने वाले व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह यथासंभव उन सभी विवरणों का उल्लेख कर दे जो अंशों के प्रस्तावित क्रेता को कंपनी की स्पष्ट स्थिति का ज्ञान करा दे कंपनी की विवरण पति क्या में मिथ्या भाषण नहीं होने चाहिए तथा तथ्यों का उल्लेख भी बढ़ा चढ़ाकर नहीं किया जाना चाहिए अन्यथा संचालक उत्तरदाई होंगे।
प्रविवरण का पंजीकरण: कंपनी द्वारा अथवा कंपनी की ओर से उस समय तक विवरण का जारी नहीं की जा सकती जबकि उसके प्रकाशित किए जाने की तिथि के पूर्व कंपनियों के रजिस्ट्रार को पंजीयन के विवरणिका की एक प्रति ना दे दी जाए। उस पर ऐसे व्यक्तियों के द्वारा हस्ताक्षर किया होना चाहिए जिनका नाम विवरणिका में कंपनी के निर्देशक के रूप में लिखा गया हो अथवा कंपनी के प्रस्तावित निर्देशक द्वारा अथवा लिखित रूप से प्राधिकृत उसके अभिकर्ता के द्वारा हस्ताक्षर किया जाना चाहिए।
पंजीकरण की तिथि के 90 दिनों के भीतर विवरणिका प्रकाशित की जानी चाहिए बिना पंजीकरण के विवरणिका प्रकाशित करना दंडनीय है विवरणिका के मुख्य पृष्ठ पर यह अंतरित होना चाहिए कि उसका पंजीकरण हो चुका है।
मिथ्या व्यपदेशन के प्रति अनुतोष प्रदान किए जाने संबंधी प्रावधान:- कंपनी विवरण पत्रिका जारी करके कंपनी सामान्य जनता को अंश खरीदने के लिए आमंत्रित करती है जो व्यक्ति कंपनी का प्रोस्पेक्टस जारी करते हैं इनका यह कर्तव्य है कि उन्हें विवरण पत्रिका में उन्हीं सत्य तत्वों का उल्लेख करें जो विश्वसनीय हो. सामान्य व्यक्ति कंपनी की विवरण पत्रिका के आधार पर अंश खरीदता है अतः इसका और भी महत्व बढ़ जाता है. कंपनी अधिनियम में यह स्पष्ट व्यवस्था की गई है कि विवरण पत्रिका में गलत तथ्यों का उल्लेख नहीं होना चाहिए जिससे सामान व्यक्तियों को कपट से बचाया जा सके.
यदि किसी कंपनी के विवरण पत्रिका में मिथ्या कथन किया गया है तथा उसी कथन को सत्य मानते हुए किसी व्यक्ति ने कंपनी का अंश खरीदा है तो उस अंश धारी को कंपनी अधिनियम के अनुसार कुछ अनुतोष प्रदान किए गए हैं जो निम्नलिखित है-
यदि कोई व्यक्ति मिथ्या कथन के आधार पर किसी कंपनी का अंश खरीदता है तो उसे यह अधिकार है कि वह कंपनी के साथ अंश खरीदने पर हुई संविदा को समाप्त कर दें. यदि अंश धारी को मिथ्या कथन का ज्ञान था परंतु इसके बावजूद भी खरीदता है तो फिर संविदा को समाप्त नहीं कर सकता. अतः मिथ्या कथन के आधार पर अंश धारी को ज्ञान होते ही संविदा को समाप्ति हेतु कदम उठाना चाहिए. यदि अंश धारी अति विलंब से न्यायालय जाता है तो उसे कंपनी विधि के अंतर्गत दिए गए प्रावधानों का लाभ प्राप्त नहीं हो सकता. निम्नलिखित परिस्थितियों में अंश धारी को संविदा भंग का लाभ प्राप्त नहीं होता-
(1) यदि अंश धारी ने आयुक्त आयुक्त विलंब किया है अथवा
(2) कंपनी के समापन की प्रक्रिया चालू हो गई है या
(3) अंश धारी ने संविदा को स्वीकार कर लिया है
यदि अंश धारी ने कंपनी की पूरण पत्रिका के अंतर्गत किए गए मिथ्या कथन के आधार पर संविदा को भंग कर दिया है तो कानून यह मानेगा कि जैसे वह कभी भी अंश धारी ना रहा था अर्थात जिस दिन से अंश धारी बना था उसके बाद से ही कोई उसका उत्तर दायित्व नहीं रहेगा.
(1) मिथ्या कथन स्वेच्छा से हुआ या
(2) सत्यता में विश्वास की कमी के कारण हुआ या
(3) असावधानी से हुआ था
कंपनी अधिनियम के अनुसार यदि किसी व्यक्ति ने मिथ्या कथन के आधार पर कंपनी का अंश खरीदा है तो उस विवरण पत्रिका को जारी करने वाला प्रत्येक प्रवर्तक संचालक क्षतिग्रस्त पक्ष को क्षतिपूर्ति देने के लिए उत्तरदाई होगा परंतु एक संचालक निम्नलिखित परिस्थितियों में क्षतिपूर्ति देने के लिए उत्तरदाई नहीं होगा-
(1) यदि वह युक्त आयुक्त आधार पर उस कथन की सत्यता पर विश्वास करता था
(2) संचालक ने उस प्राधिकारी के आधार पर कथन को सत्य माना जिसके कथन पर वह विश्वास कर सकता था या
(3) यह कथन किसी अधिकृत प्रलेख की सत्यापित प्रतिलिपि थी या
(4) बिना संचालक के ज्ञान के विवरण पत्रिका जारी कर दी गई थी तथा जब उसे मिथ्या कथन का ज्ञान हुआ तो उसने सामान्य सूचना इस आशय की दे दी.
संचालकों का आपराधिक स्वरूप का दायित्व:- कंपनी अधिनियम के अनुसार कंपनी की विवरण पत्रिका में जो व्यक्ति मिथ्या खत्म करते हैं दंड के लिए भी दोषी होते हैं जो व्यक्ति कंपनी विवरण पत्रिका को मिथ्या कथन करता है उसे 2 वर्ष की सजा दी जा सकती है या ₹5000 का अर्थदंड दिया जा सकता है और यदि न्यायालय चाहे तो उसे दोनों प्रकार के डंडों से दंडित किया जा सकता है. यदि किसी मामले में संचालक का कथन महत्वपूर्ण नहीं था की युक्त आधार पर वह उस कथन को सत्य मानता था तो उसे दंड से मुक्त किया जा सकता है इस प्रकार कंपनी विधि ने विवरण पत्रिका जारी करने वाले व्यक्तियों को दंडित करने की व्यवस्था कर रखी है-
किसी कंपनी द्वारा विवरण पत्रिका में गलत तथ्य देकर जनता को गुमराह किया जाना और धोखा देना एक ऐसा अपराध है जो कि दुष्कृतम् की श्रेणी में आता है अतः इस कपट पूर्ण कार्य के प्रति अनुतोष मांगने के लिए निम्नलिखित बातों का साबित किया जाना अत्यंत आवश्यक होता है-
(1) वादी यह साबित करें कि विवरण पत्रिका में कपट पूर्ण मिथ्या कथन था और उसे प्रकाशित करने के लिए यह बताएं कि ऐसा मिथ्या कथन:
(क) जानबूझकर
(ख) उसको सत्य ना जानते हुए भी और लापरवाही या अपेक्षा से कि वह सत्य था नहीं किया गया था
(2) मिथ्या कथन का सीधा संबंध अंश की बिक्री के बारे में हो
(3) वादी ने सीधे कंपनी से ही अंश खरीदे हो
कंपनी( संशोधन) अधिनियम 2000 द्वारा निम्नलिखित नवीन धारा प्रा विवरण के संबंध में और जोड़ी गई हैं-
(1) धारा 58(क) क के अंतर्गत लागू नीचे करता हूं को संरक्षण प्रदान किया गया इस धारा के अंतर्गत लगभग नीचे पक्ष से तात्पर्य से नीचे पक्ष है जिसने एक वित्तीय वर्ष company मे 20,000 से अधिक का नहीं किया है लघु नीचे पार्क में उसका उत्तराधिकारी उसका विधिक प्रतिनिधि और नामित व्यक्ति सम्मिलित है।
धारा 58(क)क के अनुसार धारा 58(क) अथवा धारा 58 क के अंतर्गत नीचे स्वीकार करने से संबंधित अथवा उत्पन्न अपराध को दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत संज्ञेय(Cognizable) अपराध होगा परंतु कोई भी न्यायालय इस अपराध का संज्ञान तभी ले सकेगा जबकि केंद्रीय सरकार अथवा उसके द्वारा प्राधिकृत अन्य अधिकारी ने परिवाद किया है.
सेल्फ प्रोस्पेक्टर्स( shelf prospectus)( धारा 60 क) एक नवीन धारा है जिसने कंपनी संशोधन अधिनियम 2000 द्वारा जोड़ा गया है. इसके अनुसार कोई भी लोक वित्तीय संस्था पब्लिक सेक्टर बैंक अथवा अनुसूचित बैंक जिसका मुख्य उद्देश्य वित्त प्रदान करना है सेल्फ प्रोस्पेक्टर( shelf prospectus) दाखिल कर सकता है.
(3) सूचना ज्ञापन( information memorandum)( धारा 60 क) एक नवीन धारा है जिसने कंपनी संशोधन अधिनियम 2000 द्वारा जोड़ा गया है इसके अनुसार पब्लिक कंपनी जो कि प्रतिभूतियों का निर्गमन करती है प्रोस्पेक्टर्स दाखिल करने से पूर्व सूचना ज्ञापन जनता में परिचालित कर सकती है.
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