अंतर नियम में परिवर्तन का आशय है उसमें कोई नया नियम जोड़ना या किसी भी विद्यमान नियम को प्रतिस्थापित करना या निरस्त करना. कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 14 के अनुसार कंपनी अपने अंतर नियम में किसी समय विशेष प्रस्ताव द्वारा परिवर्तन कर सकती है. कोई भी ऐसा नियम जो अंतर नियमों में परिवर्तन को वर्जित करता हो अवैध होगा. कंपनी के अंतर नियमों में परिवर्तन के कारण कभी-कभी यह स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि कंपनी की बाहरी व्यक्ति के साथ संविदा भंग हो जाती है. उदाहरण स्वरूप चिदंबरम चेट्टियार बनाम कृष्णयन कर आई आई आर 33 मेड 36 के केस में कंपनी के अंतर नियम में यह उपबंध था कि कंपनी के सचिव को ₹250 मासिक वेतन दिया जाएगा. वादी ने इस शर्त के साथ कंपनी के सचिव का पद ग्रहण किया परंतु कुछ समय पश्चात कंपनी ने अपने अंतर नियमों में परिवर्तन करके सचिव का वेतन घटाकर कम कर दिया. वादी ने इसके विरुद्ध वाद दायर किया. न्यायालय के समक्ष इंडिया प्रश्न था कि क्या कंपनी द्वारा अंतर नियमों में किया गया परिवर्तन वैद्य है. न्यायालय ने अपना निर्णय देते हुए कहा कि यदि वादी द्वारा कंपनी से की गई संविदा पूर्णतया अंतर नियमों पर आधारित है जैसा कि प्रस्तुत वाद में था परिवर्तन आवश्यक रूप से प्रभावी होंगे. अंतर नियमों के सभी नियम कंपनी के अंतर्गत परिवर्तनीय होते हैं.
राष्ट्रीय कंपनी अधिकरण के आदेश पर परिवर्तन( alteration of the order of the National Company Law Tribunal):-
कंपनी में को प्रबंध की स्थिति में यदि सदस्यों यह इससे पीड़ित व्यक्तियों ने कंपनी के विरुद्ध कंपनी अधिनियम की धारा 241 या 242 के अंतर्गत राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण के समक्ष शिकायत प्रस्तुत की हो तथा जांच करने पर राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण ने शिकायत को न्यायोचित पाया हो तो राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण ऐसी कंपनी को अपने अंतर नियमों में तदनुसार परिवर्तन या संशोधन करने का निर्देश दे सकता है. कंपनी द्वारा ऐसे आदेश के अधीन अंतर नियमों में किया गया परिवर्तन वही प्रभाव रखेगा जैसा कि कंपनी अधिनियम के अंतर्गत किया गया परिवर्तन रखता है. कंपनी के लिए यह अनिवार्य है कि वह इस प्रकार किए गए परिवर्तन की सूचना 30 दिन की अवधि के भीतर कंपनी रजिस्ट्रार को भेज दे.
कोई कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 242(5) के उप बंधुओं का उल्लंघन करती है तो कंपनी को कम से कम ₹100000 तथा अधिक से अधिक 2500000 रुपए तक के अर्थदंड से दंडित किया जा सकता है तथा इस व्यतिक्रम के लिए दोषी कंपनी के प्रत्येक अधिकारी को 6 माह तक की कारावास तथा अर्थदंड जो कि कम से कम ₹25000 तथा अधिक से अधिक ₹100000 तक हो सकेगा या दोनों से दंडित किया जाएगा.
परिवर्तन की प्रक्रिया( proceedure of alteration):-
यदि कोई कंपनी अपने अंतर नियम में परिवर्तन करना चाहती है तो उसे निम्नलिखित प्रक्रिया का अनुसरण करना होगा-
(a) परिवर्तन के प्रस्ताव को निर्देशक मंडल के प्रस्ताव द्वारा स्वीकृति प्राप्त कर दी होगी.
(b) परिवर्तन कंपनी के सदस्यों द्वारा अधिकांश लेने के संबंध मे हो तो संबंधित सदस्यों की सहमति भी आवश्यक होगी।
(c) अंतर नियमों में परिवर्तन का अनुमोदन विशेष प्रस्ताव द्वारा किया गया हो
(d) विशेष प्रस्ताव पारित होने की तिथि से 30 दिनों की अवधि में कंपनी द्वारा अंतर नियमों में प्रस्तावित परिवर्तन या संशोधन या परिवर्तन की प्रतिलिपि सहित विहित शुल्क के साथ कंपनी रजिस्ट्रार को आवेदन प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
(e) परिवर्तन किसी लोग कंपनी के प्राइवेट कंपनी में परिवर्तन के संबंध में हो तो प्रारूप'ब' पर आवेदन क्षेत्रीय निर्देशक को प्रस्ताव के दिनांक से 3 माह में प्रेषित किया जाना चाहिए.
(f) परिवर्तन की छपी हुई प्रतियां अनुमोदन की तिथि से 15 दिनों के भीतर कंपनी रजिस्ट्रार को भेजी जानी चाहिए.
(g) कंपनी के अंश स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हो तो परिवर्तन की प्रतिलिपि स्टॉक एक्सचेंज को भी भेजी जानी चाहिए.
(h) कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 15 के अनुसार परिवर्तन का उल्लेख अंतर नियम की प्रत्येक प्रति में किया जाना अनिवार्य है.
अंतर नियमों में बदलाव संबंधी सीमाएं एवं प्रतिबंध( limitations and restrictions to alteration in the articles of association):
भारतीय कंपनी अधिनियम के अंतर्गत कंपनी के अंतर नियमों में परिवर्तन संबंधी निम्नलिखित प्रतिबंध है
(A) वैधानिक प्रतिबंध: ये वैधानिक प्रतिबंध निम्नलिखित है
(a) अंतर नियम में परिवर्तन के लिए विशेष प्रस्ताव द्वारा स्वीकृति प्राप्त की जानी चाहिए
(b) अन्तर्नियमों मे परिवर्तन के कारण कंपनी अधिनियम की किसी भी धारा का उल्लंघन नहीं होना चाहिए तथा उसके द्वारा कंपनी ने कोई ऐसा प्रयत्न किया हो जो कंपनी अधिनियम द्वारा प्रतिबंधित या निषेद्ध है। माधव रामचंद्र कामत बनाम केंद्रा बैंकिंग कारपोरेशन लिमिटेड air-1 9418 354 के मामले में प्रस्ताव द्वारा कंपनी के सदस्य को बहिष्कृत कर दिया गया था तथा निर्देशकों को यह अधिकार दे दिया गया था कि वे बिना अंतरण विलय के उस सदस्य के अंशों को रजिस्टर में अंतरित दर्ज कर ले परंतु न्यायालय ने इस कार्य को अवैध घोषित कर दिया क्योंकि यह कंपनी अधिनियम के उप बंधुओं के विरुद्ध था.
(c) अंतर नियमों संबंधी परिवर्तन सीमा नियम की व्यवस्थाओं के बाहर नहीं होना चाहिए. यदि अंतर नियमों में किया गया परिवर्तन सीमा नियम की व्यवस्था के बाहर या असंगत है तो वह कंपनी की अधिकार शक्ति के बाहर माना जाएगा तथा 0 प्रभावी होगा.
(d) अंतर नियमों में परिवर्तन सद्भावना पूर्ण होना चाहिए तथा उसमें ऐसा कोई उद्देश्य नहीं होना चाहिए जिस अंश धारियों को अनुचित लाभ प्राप्त हो रहा हो या उनकी सहमति के बिना उन्हें अधिक अंश खरीदने के लिए बाध्य किया जा रहा हो या उनका दायित्व बढ़ा रहा हो.
(e) अंतर नियमों की कुछ व्यवस्था में यदि कोई हो केंद्रीय सरकार की अनुमति के बिना परिवर्तित नहीं की जा सकती है, जैसे निर्देशकों की संख्या में वृद्धि करने के लिए किसी प्रबंध निर्देशक की नियुक्तियां पुनः नियुक्त यह अथवा किसी निर्देशक के पारिश्रमिक में वृद्धि आदि.
(f) अगर किसी कंपनी में अन्याय एवं को प्रबंध के कारण कोर्ट द्वारा कंपनी अधिनियम की धारा 241 तथा 242 के अंतर्गत कंपनी के अंतर नियमों में कुछ परिवर्तन करने का आदेश दिया गया हो तो उस स्थिति में कंपनी ऐसा कोई परिवर्तन नहीं कर सकती जो उक्त न्यायालय आदेश के विपरीत हो अथवा उसे से असंगत हो इसके लिए उसे न्यायालय अथवा कंपनी विधि अधिकरण की अनुमति प्राप्त करनी होगी इस संबंध में राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण को भी अतिरिक्त अधिकार शक्ति प्रदान की गई है.
(B) न्यायिक प्रतिबंध:- न्यायिक प्रतिबंध निम्नलिखित हैं-
(a) अंतर नियम में कोई परिवर्तन ऐसा नहीं होना चाहिए जिससे बहुमत वाले सदस्यों द्वारा अल्पमत वाले सदस्यों का शोषण किया जा रहा हो अथवा उनके प्रति कपट पूर्ण व्यवहार किया जा रहा हो.
(b) परिवर्तन इस प्रकार का नहीं होना चाहिए कि कंपनी को बाहरी व्यक्ति के प्रति अनुबंध खंडन करने का अधिकार प्राप्त हो जाए.
(c) नियमों का परिवर्तन न्याय संगत एवं सम्यक होना चाहिए.
(d) परिवर्तन अवैध व्यापार की आज्ञा देने वाले नहीं होने चाहिए.
(C) अन्य प्रतिबंध:-
(a) अंतर नियम के परिवर्तन के लिए विशेष प्रस्ताव पास करने के लिए 15 दिन के अंदर परिवर्तन की एक छपी हुई है टाइप की हुई प्रतिलिपि कंपनी रजिस्ट्रार के पास भेजी जानी चाहिए.
(b) भर्ती अंतर नियमों की प्रतिलिपि सदस्यों के आवेदन करने पर आवेदन के साथ दिन के अंदर भेजी जानी चाहिए अन्यथा कंपनी और कंपनी के प्रत्येक दोषी अधिकारी पर प्रत्येक दोष के लिए आर्थिक दंड लगाया जा सकता है.
(c) परिवर्तन के बाद प्रत्येक निर्गमित की जाने वाली प्रतिलिपि परिवार के अनुसार होनी चाहिए.
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