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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

व्यवसायिक आचार अधिवक्ता की जवाबदेही एवं बार बेंच संबंध: Professional ethics accountability of lawyers and bar bench relation

आज विधि का व्यवसाय अधिवक्ताओं के लिए जीवन यापन का माध्यम है अन्य व्यवसायों की भांति या व्यवसाय भी कार्य कर रहा है प्रत्येक व्यवसाय के अपने-अपने मापदंड होते हैं प्रत्येक प्रत्येक व्यवसाय के अपने अलग-अलग स्वरूप होते हैं. ठीक उसी प्रकार विधि व्यवसाय के भी अपने मापदंड है . विधि व्यवसाय का संबंध अधिवक्ता के जीवन यापन से इसलिए आर्थिक महत्व का इससे जोड़ना अनिवार्य है. आज अन्य व्यवसाय की तरह विधि व्यवसाय में भी पतन हुआ है आज के दौर में कोई भी व्यवसाय आदर्श नहीं रह गया है. विधि व्यवसाय में भी आदर्श की कमी आई है यदि आज हम विधि व्यवसाय का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि यह व्यवसाय अन्य व्यवसाय की अपेक्षा अधिक महत्व का है इसका महत्व तब और बढ़ जाता है जब यह व्यवसाय उस देश में कार्य कर रहा हूं जिस देश में विधि का शासन हो. विधि का व्यवसाय और भी महत्व का होता है जबकि देश का प्रशासन लिखित संविधान ओं के अंतर्गत कार्य कर रहा हो. विधि का व्यवसाय लिखित संविधान के अंतर्गत जहां विधि का शासन है अन्य सभी व्यवसाय को पीछे छोड़ देता है परंतु भारत में ऐसा नहीं हो सकता है इसका मूल कारण है व्यवसायिक नीति का अभाव। अधिवक्ता समाज की ऐसी इकाई है जो बहुमुखी कार्य करती है अधिवक्ता का संबंध समाज के प्रत्येक वर्ग तथा इकाई से है इसलिए व्यवसाय की नीति और आर्थिक महत्व और हो जाता है विधि के व्यवसाय की दुर्दशा का कारण व्यवसायिक नीति का अभाव में विधि व्यवसाय की तरह अन्य कई व्यवसाय भी कार्य करते हैं उनकी भी यही दुर्गति है आज अनेक व्यवसायियों ने अपने अपने व्यवसाय को व्यापार बना दिया है कोई भी व्यवसाय नैतिक मानदंडों के अभाव में समाज का कल्याण नहीं कर सकता है अतः आज प्रत्येक व्यवसाय को कतिपय नैतिक मापदंड अपनाने होंगे।


                  आज विधि व्यवसाय पैसे में अधिवक्ताओं का दायित्व बहुत अधिक बढ़ गया है विधि शासन में अधिवक्ताओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है किसी भी विवाद का निर्णय देने में अधिवक्ता न्याय देशों की सहायता करते हैं अधिवक्ता विवाद से संबंधित विधि सामग्री एकत्रित करके न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करते हैं और इस सामग्री के आधार पर न्यायधीश निर्णय देते हैं। अधिवक्ताओं के अभाव में न्यायाधीश के लिए सही निर्णय देना एक अलौकिक कार्य होगा और भी बढ़ जाता है कि देश में प्रचलित अधिनियम एवं विनियमन का अध्ययन करता है जो कि एक नागरिक के बस की बात नहीं है एक नागरिक देश में प्रचलित कानूनों से अनभिज्ञ होता है इसलिए नागरिकों को इन अधिनियम एवं विनियमन के वास्तविक अर्थ समझने के लिए अधिवक्ता की सलाह की आवश्यकता पड़ती है एक महत्वपूर्ण बाद में न्यायालय ने यह मत प्रकट किया कि अधिवक्ता का कर्तव्य यह भी है कि वह उन व्यक्तियों को सलाह दें जिन्हें उनकी आवश्यकता होती है और इसके लिए वे फीस या मेहनताना के हकदार होते हैं एक अधिवक्ता का कार्य न्याय प्रशासन में सहायता प्रदान करने के साथ-साथ व्यवसायिक सलाह देना भी है।


                 एक अधिवक्ता को अपने विधि व्यवसाय में उचित सद्भाव तथा आचरण का पालन करना चाहिए उसे अपने मुवक्किल के हित में कार्य करना चाहिए परंतु इसका यह भी मतलब नहीं है कि वह अपने मुबकिल के हाथ की कठपुतली बन जाए तथा उसके आदेशानुसार अपना आचरण बनाएं वाद के निष्पक्ष एवं उचित संचालन के लिए अधिवक्ता न्यायालय के प्रति जवाबदेह होता है जो मुवक्किल उसे भेज देता है अधिवक्ता उसका एजेंट नहीं होता है न्याय के उचित प्रशासन में न्यायालय की सहायता करना उसका कर्तव्य होता है अधिवक्ता के अपने इस व्यवसायिक पेशे में अपने ग्रुप तरकारी भी करने पड़ते हैं जैसे समाज में शांति बनाए रखने के लिए प्रशासन की सहायता करना अधिवक्ता उचित सामाजिक एवं विधि व्यवस्था की स्थापना के लिए कार्य करता है और यह कार्य समाज के श्रेष्ठतम कार्य में से एक है अधिवक्ता का प्रमुख जिसके लिए उसे अपने मोबाइल से मेहनताना मिलता है उसके लिए न्याय प्राप्त करने हेतु विधि के अनुसार पैरवी करें इस प्रकार अपने मुवक्किल के मामले में उचित पैरवी और अभिवचन करना अधिवक्ता होता है. अधिवक्ता न्यायालय का ऑफिसर उत्तर उसका कर्तव्य उठता है कि वह न्यायालय के प्रति आदर पूर्वक या उसका दृष्टिकोण बनाए रखे भारतीय विधिक परिषद के नियम के अनुसार अपने मामले की प्रस्तुति तथा न्यायालय के समक्ष अन्य किसी कार्य के दौरान अधिवक्ता को आचरण करना चाहिए भारतीय विधि परिषद के एक अन्य नियम के अनुसार अधिवक्ता न्यायालय के प्रति आदर को दृष्टिकोण इस बात को ध्यान में रखकर अपना आएगा कि स्वतंत्र समुदाय के कायम रहने के लिए न्यायिक पद की मर्यादा आवश्यक है.


भारत में विधि व्यवसाय का विकास: - ब्रिटिश शासन के पूर्व भारत में विधि व्यवसाय का प्रचलन नहीं था हिंदू गाल में राजा ही न्याय का स्रोत होता था किसी भी विवाद का निर्णय राजा अपने सलाहकारों की सहायता से करता था किसी भी विवाद की सुनवाई करते समय वह विवाद से संबंधित वादी तथा प्रतिवादी पक्षकारों की ओर से दी गई दलीलों को सुनने के पश्चात अपना निर्णय देता था इस युग में न्यायालय मामले का अन्वेषण करता है और निर्णय देता है हिंदू काल में विधिक व्यवसाय का अस्तित्व नहीं था परंतु न्यायमूर्ति आशुतोष मुखर्जी के मत में हिंदू काल में भी विधि व्यवसाय का अस्तित्व था.

               मुस्लिम काल में वाद कार्यों का प्रतिनिधित्व वकीलों द्वारा किया जाता था वाद के मूल्य का कुछ प्रतिशत वकील अपने महंत आने के रूप में प्राप्त करता था इस काल में विधि व्यवस्था व्यवसाय व्यवस्थित नहीं था इस काल में जो व्यक्ति विवाद कार्य की ओर से उसका पक्ष न्यायालय में लड़ते थे वह वकील की अपेक्षा उसके एजेंट के रूप में कार्य करते थे.


              विधि व्यवसाय का विकास वास्तविक रूप से ब्रिटिश शासन काल में हुआ ब्रिटिश शासन काल में विधि व्यवसाय के संबंध में सर्वप्रथम 1814 मैं बंगाल रेगुलेशन 27 विधि व्यवसाय को व्यवस्थित करने के लिए उपबंध बनाया गया.1833 के बंगाल रेगुलेशन 12 मैं वकीलों की नियुक्ति के संबंध में प्रावधान बनाया गया लीगल प्रैक्टिशनर एक्ट 1846 मैं यह प्रावधान उपस्थित किया गया कि किसी राष्ट्रीयता या धर्म के व्यक्ति वकील हो सकेंगे इस एक्ट में यह भी स्पष्ट कर दिया गया कि भारत में ब्रिटिश क्रॉउन के न्यायालयों में सूचीबद्ध अटॉर्नी और बैरिस्टर कंपनी के सदर अदालतों के समक्ष उपस्थित हो सकेंगे और आयोजन कर सकेंगे. वकीलों और मुख तारों की योग्यता और प्रवेश के संबंध में नियम बनाने के संबंध में हाईकोर्ट को शक्ति प्राप्ति अधिवक्ताओं यन बार काउंसिल एक्ट 1926 विधि व्यवसायियों को संतुष्ट करने में असफल रहा इसके अतिरिक्त बार काउंसिल को भी महत्वपूर्ण शक्तियां प्रदान नहीं की गई थी.
की बार के गठन के संबंध में इंडियन बार कमेटी 1923 एवं इंडियन बार काउंसिल 1926 पारित किया गया. इंडि उन्हें वकील और मुख्तार के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया जाना चाहिए इसके साथ ही इस ने यह भी सुझाव दिया कि एडवोकेट की एक सूची तैयार की जानी चाहिए उन्हें देश के किसी भी न्यायालय में प्रैक्टिस करने का अधिकार होना चाहिए.

          1951 में अखिल भारतीय विधि कमेटी 1951 की नियुक्ति की गई इस कमेटी ने अखिल भारतीय बार काउंसिल और स्टेट बार कौंसिल की स्थापना की सिफारिश की कमेटी ने यह भी सिफारिश की कि कुछ बचाव के अध्याय 3 अधिवक्ताओं को सूचीबद्ध करने और उन को निलंबित करने तथा हटाए जाने की शक्ति बार काउंसिल को होनी चाहिए इसमें यह भी सुझाव दिया कि जो व्यक्ति विधि स्नातक नहीं है

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