उत्तर प्रदेश जमीदार एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950 के अंतर्गत जमीदारों के अधिकार जो शेष रहे (the rights of jamidar that remains under up zamindari abolition and land Reform Act 1950
काश्तकारी अधिकार: - जमीदारों की जमीदारी का उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम में उन्मूलन कर दिया लेकिन उनकी काश्तकारी उनके पास ही रही प्रत्येक जमीदारी अपनी भाग खूनी खुदकाश्त भूमिका एवं बिना उठाई सिर्फ खून का भूमिधर बन गया तथा वे उसी के पास रह गई फर्क सिर्फ इतना पढ़ा कि अभी तक वह भूमियों का जोरदार भी था अब वह सिर्फ एक काश्तकार बन गया.
( 2) चालू खान को जारी रखने का अधिकार: - मिलन के पूर्व जमीदारी संपत्ति में कोई खान चालू हालत में थी एवं मध्यवर्ती के द्वारा सीधे चलाई जा रही हो तो जमीदारी समाप्ति के पश्चात भी जमीदार को हक होगा कि वह खान को चलाता रहे यह सरकार का पत्तेदार हो जाएगा पट्टे की शर्त पारस्परिक संविदा से निश्चित की जाएगी अगर जमीदारी तथा सरकार में कोई बात तय ना हो सके तो खान न्यायाधिकरण द्वारा तय किया जाएगा।
( 3) सुखाधिकार एवं ऐसे ही अन्य अधिकार: -
अगर वह किसी भूमि का भूमिधर सिरदार या आसामी हो तो भूमि के और अधिक लाभप्रद उपयोग के लिए किसी पूर्व सुखाधिकार या तत्सम अधिकार का उपभोग करता रहेगा
इस अधिनियम को बनाते समय विधानमंडल का उद्देश्य जमीदारी का मिलन करना किंतु काश्तकारों के वर्तमान लाभप्रद उपभोग को सुरक्षित रखना था काश्तकारी की जो सुविधाएं हैं वे सभी काश्तकारों को मिलती रहेंगी किसी काश्तकार को इस आधार पर सुविधा से वंचित ना किया जाएगा कि वह पहले जमीदार था इसी प्रकार यदि काश्तकार को कोल्हु गाडने भिटहुर लगाने खाद रखने पशुपालन एवं खलिहान रखने की सुविधा निहित होने के दिनांक के पूर्व थी तो वह जारी रहेगी।
( 4) बकाया लगान आदि के वसूली के अधिकार
नींद होने के दिनांक के पूर्व के लगान आदि जो काश्तकारों के द्वारा जमीदारों को दे चुका था उसे जमीदारी काश्तकारों से वसूल कर सकेगा किंतु इस वसूली की प्रक्रिया में जमीदारी बकाया लगान के काश्तकारों को जोर से बेदखल ना कर सकेगा यदि बकाया लगान वाला काश्तकार किसी अन्य स्थान या मध्यवर्ती था तो राज्य सरकार द्वारा ऐसे व्यक्ति को दे मुआवजे की रकम में से काटा जा सकता है और काट कर उस रकम को उस व्यक्ति को दे दिया जाएगा जो उसका अधिकारी है बकाया लगान वसूली के संबंध में एक रोचक मुकदमा है विश्वनाथ बनाम चकबंदी उपनिदेशक तथा अन्य विवादित जमीन हर प्रसाद आदि की जोत दारी थी जिसमें उन लोगों ने बाग लगा रखा था के पूर्व का लगान जमीदार का हर प्रसाद आदि पर बकाया था 1954 मैं जमीदार ने लगान वसूली का केस यूपी काश्तकारी अधिनियम के अंतर्गत तहसीलदार के राजस्व न्यायालय में दायर किया और डिग्री प्राप्त कर ली फ्री के निष्पादन में न्यायालय द्वारा बर्बाद भूमि जोहार प्रसाद आदि की भूमि धरी थी नीलाम कर दी गई जिसे विश्वनाथ में नीलामी में ले लिया इसके पश्चात विश्वनाथ का नाम राजस्व कालजात में दर्ज कर दिया गया.
1970 मैं जब चकबंदी होने लगी तो हर प्रसाद जो मर चुके थे कि वैद्य उत्तराधिकारी श्रीमती प्रवीणा ने एतराज दायर किया कि बकाया लगान की वसूली की बिक्री के निष्पादन में जो भूमि का विक्रय हुआ था वह क्योंकि अधिनियम की धारा 7(ख) के परंतु द्वारा निषिद्ध है अतः भूमि का विक्रय अवैध और शून्य था वह संपत्ति श्रीमती बबूना उसकी हकदार है चकबंदी अधिकारी बंदोबस्त अधिकारी और उप निर्देशक चकबंदी ने श्रीमती बबूना के पक्ष में निर्णय दिया अत विश्वनाथ ने उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की।
हाई कोर्ट ने निर्णय किया कि बकाया लगान की डिग्री किया गया भूमि का विक्रय मारने और वैधता और उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा 7(ख)द्वारा वर्जित नहीं है न्यायालय ने यह कहा कि बेदखली द्वारा बिक्री का निष्पादन नहीं किया जा सकता किंतु भूमि के विक्रय से डिग्री का निष्पादन हो सकता है अतः विश्वनाथ की भूमि के असली हकदार हुए।
कुए आबादी में स्थित पेड़ इमारतों के स्थल एवं हुए तथा इमारतों से संबंध भूमि भी उनके स्वामियों के पास रह गई अगर जमीदार के पास इमारतें थी तो वह इमारतें और इमारतों के स्थल संबंध भूमि भी जमीदारों के पास रह गई थी
यदि जमीदार ने कोई इमारत किराए पर दे रखी है तो भी वह उस इमारत का स्वामी हो गया किराएदार को कोई श्रेष्ठ का अधिकार नहीं मिला इसी प्रकार लाइसेंस दार के कब्जे की इमारत भी जमीदार के पास आ गई ना कि लाइसेंस धार के पास चाहे लाइसेंस तार राज्य सरकार ही क्यों ना हो जहां जमीदार किसी इमारत के अवैध कब्जे में नहीं था वहां वह उस इमारत का स्वामी नहीं बन सका अधिनियम अवैध कब्जे को वैध नहीं करता है.
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