Skip to main content

भारतीय जेलों में जाति आधारित भेदभाव: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और इसके प्रभाव

आयकर अधिनियम 1961 के निवासियों अनिवासियों साधारण निवासी resident non resident and non ordinary resident in Income Tax Act 1961

भारत में निवासी धारा 6 (2) के अनुसार एक हिंदू अविभाजित परिवार भारत का अनिवासी होगा अगर गत वर्ष में उसका संपूर्ण नियंत्रण तथा प्रबंधन भारत के बाहर से होता है.


असाधारण निवासी एक हिंदू अविभाजित परिवार साधारण निवासी होगा अगर उसका करता निम्नलिखित शर्तों (condition) को पूरा नहीं करता है


            वह गत वर्ष से तुरंत पूर्व के 10 गत वर्षों में कम से कम 2 साल भारत का निवासी रहा हो


              वह गत वर्ष से पहले के 7 सालों में कम से कम 730 दिन भारत में रहा हो.


कर भार की गणना (calculation of incidence of tax)

          किसी कर दाता के कर भार की गणना के लिए उसकी निवास स्थिति तथा उसके द्वारा अर्जित की गई आए को ध्यान में रखा जाता है आयकर अधिनियम की धारा 5 के विभिन्न उपकरणों में कर भार की गणना से संबंधित विधि का उपबन्धित किया गया है कर भार का निर्धारण निम्न देशों में अलग अलग किया जाता है.


( 1) साधारण निवासी के संदर्भ में आयकर अधिनियम की धारा 5 (1) के उप बंधुओं के अनुसार एक निवासी तथा साधारण निवासी कि गत वर्ष में समस्त संसाधनों से कमाई गई वह आयकर भार के लिए शामिल की जाती है


              गत वर्ष में प्राप्त की गई हो चाहे वह भारत में या भारत के बाहर उपार्जित या कमाई गई हो,


           गत वर्ष में भारत में उपार्जित या कमाई गई हो चाहे कहीं से भी प्राप्त की गई हो

           गत वर्ष में भारत के बाहर उपार्जित या कमाई गई हो

              अर्थात एक करदाता जो निवासी असाधारण निवासी है उसने गत वर्ष में जो भी आए विश्व के किसी भी बात पर क्यों ना कमाई हो या अर्जित की हो उस दशा में वह प्राप्त की गई राशि पर कर देने के लिए वह उत्तरदाई होगा,


( 2) असाधारण निवासी के संदर्भ में आयकर अधिनियम के अनुसार एक असाधारण निवासी के संदर्भ में कर भार की गणना के लिए आई में भले ही वह किसी भी संसाधन से कमाई गई हो निम्न प्रकार से जुड़ी जाएगी


             करदाता ने भारत में प्राप्त या कमाई गई हो या अर्जित की गई हो या उपार्जित की गई हो भले ही वह कहीं भी हो क्यों ना प्राप्त हुई हो और वह कमाई की गई हो


           करदाता को भारत में उपार्जित हुई मैं कमाई गई भले ही वे कहीं से भी प्राप्त की गई हो

करदाता को भारत में उपार्जित हुई हो या कमाई गई हो जो कि ऐसे व्यापार से जो कि भारत के बाहर से नियंत्रित होने वाला व्यापार


( 3) अनिवासी के संदर्भ में आयकर अधिनियम की धारा 5 (2) के अनुसार एक अनिवासी करदाता की स्थिति में आए पर कर भार की गणना के लिए उसकी गत वर्ष की आय में निम्नलिखित प्रकार से विभिन्न प्रकार के स्रोतों से कमाई गई आए को शामिल किया जाएगा

        करदाता ने इस गत वर्ष में भारत में प्राप्त की गई हो या प्राप्त समझी जाएगी जो कि भले ही भारत या भारत के बाहर कहीं भी उपार्जित की गई हो या कमाई गई हो.

          करदाता ने जो आयुष गत वर्ष में भारत में उपार्जित की गई हो या कमाई गई हो भले ही वह कहीं भी प्राप्त क्यों ना की गई हो.

            इस तरह हम कह सकते हैं कि कोई भी आए जो कि भारत के बाहर विदेश में क्यों न कमाई गई हो भारतीय आयकर दाता विदेश में आए तो कमाने पर कर बार के दायित्व ही नहीं माना जाएगा क्योंकि वह भारत में आए कमाने पर आयकर देने के लिए आयकर अधिनियम के अधीन उत्तरदाई होगा.


( 1) उपार्जित या कमाई गई हो अर्थात जब आयकर दाता अपना श्रम करके या सेवा करके या अन्य किसी भी देख प्रक्रिया के द्वारा आए को प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त कर लेता है तो कहा जाता है कि उसने आए उपार्जित कर लिया या कमा  ली है.

( 2) प्राप्त की गई हो अर्थात ऐसी आए जिसे करदाता श्रव्य सेवा कर के अधिकार के रूप में प्राप्त कर लेता है तो कहां जाता है कि वहां पर करदाता ने उसे को प्राप्त किया है तथा वह स्थान जहां पर आए को पहली बार प्राप्त किया गया हो तो माना जाएगा कि अमुक स्थान पर आय प्राप्त हुई है भले ही उसके बाद उसे कहीं नहीं भेजा जा गया हो भेजे गए स्थान पर आयकर योग्य नहीं होगी बल्कि उद्गम स्थान पर ही कर योग्य होगी.

Comments

Popular posts from this blog

असामी कौन है ?असामी के क्या अधिकार है और दायित्व who is Asami ?discuss the right and liabilities of Assami

अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार  (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि  (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार  (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार  (5)काशतकार भोग बंधकी  (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।           वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता ह...

पार्षद अंतर नियम से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of article of association)

कंपनी के नियमन के लिए दूसरा आवश्यक दस्तावेज( document) इसके पार्षद अंतर नियम( article of association) होते हैं. कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को ही अंतर नियम( articles of association) कहा जाता है. यह नियम कंपनी तथा उसके साथियों दोनों के लिए ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी की संपूर्ण प्रबंध व्यवस्था उसके अंतर नियम के अनुसार होती है. दूसरे शब्दों में अंतर नियमों में उल्लेख रहता है कि कंपनी कौन-कौन से कार्य किस प्रकार किए जाएंगे तथा उसके विभिन्न पदाधिकारियों या प्रबंधकों के क्या अधिकार होंगे?          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(5) के अनुसार पार्षद अंतर नियम( article of association) का आशय किसी कंपनी की ऐसी नियमावली से है कि पुरानी कंपनी विधियां मूल रूप से बनाई गई हो अथवा संशोधित की गई हो.              लार्ड केयन्स(Lord Cairns) के अनुसार अंतर नियम पार्षद सीमा नियम के अधीन कार्य करते हैं और वे सीमा नियम को चार्टर के रूप में स्वीकार करते हैं. वे उन नीतियों तथा स्वरूपों को स्पष्ट करते हैं जिनके अनुसार कंपनी...

वाद -पत्र क्या होता है ? वाद पत्र कितने प्रकार के होते हैं ।(what do you understand by a plaint? Defines its essential elements .)

वाद -पत्र किसी दावे का बयान होता है जो वादी द्वारा लिखित रूप से संबंधित न्यायालय में पेश किया जाता है जिसमें वह अपने वाद कारण और समस्त आवश्यक बातों का विवरण देता है ।  यह वादी के दावे का ऐसा कथन होता है जिसके आधार पर वह न्यायालय से अनुतोष(Relief ) की माँग करता है ।   प्रत्येक वाद का प्रारम्भ वाद - पत्र के न्यायालय में दाखिल करने से होता है तथा यह वाद सर्वप्रथम अभिवचन ( Pleading ) होता है । वाद - पत्र के निम्नलिखित तीन मुख्य भाग होते हैं ,  भाग 1 -    वाद- पत्र का शीर्षक और पक्षों के नाम ( Heading and Names of th parties ) ;  भाग 2-      वाद - पत्र का शरीर ( Body of Plaint ) ;  भाग 3 –    दावा किया गया अनुतोष ( Relief Claimed ) ।  भाग 1 -  वाद - पत्र का शीर्षक और नाम ( Heading and Names of the Plaint ) वाद - पत्र का सबसे मुख्य भाग उसका शीर्षक होता है जिसके अन्तर्गत उस न्यायालय का नाम दिया जाता है जिसमें वह वाद दायर किया जाता है ; जैसे- " न्यायालय सिविल जज , (जिला) । " यह पहली लाइन में ही लिखा जाता है । वाद ...