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विदेशों में भारतीय कानून: IPC, UAPA, और अंतरराष्ट्रीय संधियों के तहत भारतीय अधिकार क्षेत्र की समझ

भारत में उच्चतम न्यायालय की शक्तियां एवं कार्यों का वर्णन: Discuss the power and function of the Supreme Court of India

उच्चतम न्यायालय की शक्तियां एवं कार्य 
(power and function of Supreme Court)

सुप्रीम कोर्ट की निम्नलिखित शक्तियां एवं कार्य है -

( 1) न्यायालय के पदाधिकारियों और सेवकों की नियुक्ति की शक्ति है - अनुच्छेद 146 के अंतर्गत -

(A) उच्चतम  न्यायालय के पदाधिकारियों और सेवकों की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके निर्देश पर कोई अन्य न्यायाधीश  करेगा किंतु राष्ट्रपति नियम बनाकर यह अपेक्षा कर सकेगा कि ऐसे नियम में निर्दिष्ट मामलों में ऐसा कोई व्यक्ति जो पहले से न्यायालय में कार्यरत ना हो न्यायालय से संबंधित किसी भी पद पर बिना संघ लोक सेवा आयोग के परामर्श के नियुक्त नहीं किया जाएगा.

(B) संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के अधीन रहते हुए उच्चतम न्यायालय के पदाधिकारियों और सेवकों की सेवा शर्ते भारत के मुख्य न्यायाधीश या उसके द्वारा प्राधिकृत किसी अन्य न्यायाधीश के द्वारा बनाए गए नियमों में विहित किए गए अनुसार होंगी किंतु जहां तक यह नियम वेतन भत्तों छुट्टि यां पेंशन से संबंधित है उन्हें राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित होना चाहिए.

(C) उच्चतम न्यायालय के प्रशासनिक व्यय जिसमें न्यायालय के पदाधिकारियों सेवकों के वेतन भत्ते और पेंशन शामिल भारत की संचित निधि पर भारित होंगे और न्यायालय द्वारा ली जाने वाली फीस या अन्य धन उस निधि के भाग होंगे.

(2)पुनर्विलोकन की शक्ति : अनुच्छेद 137 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय संविधान द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों  या अनुच्छेद 145 के अधीन बनाए गए किहीं नियमों के अधीन रहते हुए अपने किसी भी निर्णय या आदेश का पुनर्विलोकन कर सकता है।

(3) संसद के कानून द्वारा और भारत सरकार तथा किसी राज्य सरकार के विशेष करार द्वारा प्रदत्त अधिकारिता और शक्तियां अनुच्छेद 133 के अंतर्गत -

(A) संसद द्वारा संघ सूची में किन्ही विषयों के संबंध में उच्चतम न्यायालय को और भी अधिक अधिकारिता और शक्तियां प्रदान कर सकती हैं.

(B) भारत सरकार और कोई राज्य सरकार विशेष करार द्वारा किसी भी बात के बारे में उच्चतम न्यायालय के वह क्षेत्राधिकार और शक्तियां प्रदान कर सकती है

( 4) कुछ अन्य प्रयोजनों के लिए लेख जारी करने की शक्ति: - अनुच्छेद 32 (2) मे उल्लेखित प्रयोजनों से भिंन्न किन्हीं अन्य प्रयोजनों के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण परमादेश प्रतिषेध अधिकार पृच्छा और  उत्प्रेषण प्रकृति के लेख जारी करने की शक्ति संसद अनुच्छेद 139 के अंतर्गत कानून बनाकर उच्चतम न्यायालय को प्रदान कर सकती है।

(5) कुछ मामलों की अंतरित करने की शक्ति: - 44 वा संशोधन 1978 द्वारा संशोधित अनुच्छेद 139 ( क ) के अनुसार (A) जहां उच्चतम न्यायालय और एक या अधिक उच्च न्यायालयों के सामने लंबित मामलों में एक समान या शारदा एक समान विधि के प्रश्न अंतर ग्रस्त हो और उच्चतम न्यायालय या तो स्वयं अपनी पहल पर या भारत के महान्यायवादी द्वारा या उस मामले के किसी पक्ष कार द्वारा आवेदन किए जाने पर इस बात से संतुष्ट हो कि ऐसे प्रश्न सामान्य महत्व के सारवान प्रश्न है वहां उच्चतम न्यायालय ऐसे किसी मामले में या कि नहीं मामलों को जो उच्च न्यायालयों में लंबित है अपने पास मंगा सकेगा और स्वयं उन सभी मामलों का निपटारा कर सकेगा परंतु यह की कथित विधि के प्रश्नों का अवधारणा करने के बाद उच्चतम न्यायालय उस मामलों पुणे की एक प्रति के साथ और उन उच्च न्यायालयों को जहां से उन्हें मंगाया गया था वापस लौटा देगा और उच्च न्यायालय उसी के अनुसार मामलों का निपटारा करेंगे (B) उच्चतम न्यायालय यदि न्याय के उद्देश्यों से ऐसा करना उचित समझता है तो वह किसी भी उच्च न्यायालय के सामने लंबित किसी भी मामले अपील या अन्य कार्यवाही को दूसरे उच्च न्यायालय को अंतरित कर सकेगा.

( 6) अनुषांगिक शक्तियां: - अनुच्छेद 140 के अंतर्गत संसद ऐसी अनुपूरक शक्तियों को जो इस संविधान के उप बंधुओं में से किसी से असंगत ना हो कानून बनाकर उच्चतम न्यायालय को प्रदान करने की व्यवस्था किसी से असंगत ना हो कानून बनाकर उच्चतम न्यायालय को प्रदान करने की व्यवस्था कर सकेगी जैसा कि उच्च न्यायालय को इस संविधान के द्वारा या अधीन प्रदत अधिकारिता का अधिकार कारगर ढंग से प्रयोग करने के योग्य बनाने के लिए आवश्यक या वांछनीय प्रतीत होता है.

( 7) उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि का सभी न्यायालयों पर बंधन कारी होना: - अनुच्छेद 141 के अनुसार उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि भारत के सभी न्यायालयों पर बंधन कारी होगी.

( 8) उच्चतम न्यायालय की आज्ञा पतियों और आदेशों का प्रवर्तन: - अनुच्छेद 142 के अनुसार (1) उच्चतम न्यायालय अपनी अधिकारिता के प्रयोग में ऐसी आज्ञप्ति या आदेश दे सकेगा जैसा कि उसके सामने लंबित किसी मामले या विषय में को न्याय करने के लिए आवश्यक हो तथा इस प्रकार पारित आज्ञप्ति या आदेश भारत में सर्वत्र संसद कानून द्वारा वितरित इसे अथवा राष्ट्रपति के आदेश द्वारा विहित इसे प्रवर्तनीय होगा. (इस संबंध में उच्चतम न्यायालय (आज्ञप्ति या  आदेश) प्रवर्तन आदेश 1954 सी.ओ.47लागू किया गया है. (2) संसद द्वारा इस संबंध में बनाए गए किसी कानून के उपबंधों  के अधीन रहते हुए उच्चतम न्यायालय को समस्त भारत में किसी भी व्यक्ति को हाजिर कराने के लिए या किन्हीं  दस्तावेजों को प्रकट किया पेश करने के लिए अथवा अपने किसी अवमान का अनुसंधान कराने  या दण्ड देने के प्रयोजन से कोई आदेश देने की संपूर्ण और प्रत्येक शक्ति होगी.

(9) असैनिक  तथा  न्यायिक पदाधिकारी  उच्चतम न्यायालय  की सहायता  मे कार्य  करेगें :
अनुच्छेद 144 के अनुसार भारत में सभी असैनिक और न्यायिक प्राधिकारी उच्चतम न्यायालय की सहायता में कार्य करेंगे.

( 10) न्यायालय के नियम आदि बनाने की शक्ति: - उच्चतम न्यायालय को अनुच्छेद 145 के अंतर्गत समय-समय पर राष्ट्रपति के अनुमोदन से और संसद द्वारा बनाए गए किसी विधि के उप बंधुओं के अधीन रहते हुए न्यायालय की कार्यप्रणाली और प्रक्रिया के साधारण विनियमन के लिए नियम बनाने की शक्ति प्रदान की गई है.

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