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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

भारत में राजद्रोह कानून (sedition law in India)

सुर्खियों में क्यों? हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने राजद्रोह से संबंधित भारतीय दंड संहिता (indian Penal Code: IPC) की धारा 124A की संवैधानिक वैधता के पुनर परीक्षण की याचिका को अस्वीकार कर दिया है. पृष्ठभूमि इस कानून का मसौदा मूल रूप से वर्ष 1837 में ब्रिटिश इतिहासकार और राजनीतिज्ञ थामस बैबिंगटन मैकाले( लॉर्ड मैकाले के नाम से विख्यात) द्वारा तैयार किया गया था हालांकि वर्ष 1860भारतीय दंड संहिता( आईपीसी) के क्रियान्वयन के दौरान इसे आईपीसी में शामिल नहीं किया गया था. वर्ष 1870 में भारतीय दंड संहिता में संशोधन कर धारा 124A को समाविष्ट किया गया था यह संशोधन सर जेम्स स्टीफन द्वारा प्रस्तावित किया गया था जिन्होंने भारत में स्वतंत्रता के विचारों का दमन करने के लिए एक विशिष्ट कानून की आवश्यकता पर बल दिया था. ध्यान देने वाली बात यह है कि यह कानून उस समय उत्पन्न किसी भी प्रकार के असंतोष को दबाने के लिए अधिनियमित किए गए विभिन्न कठोर कानूनों में से एक था. भारत में राष्ट्रद्रोह का पहला मामला वर्ष 1891 में दर्ज किया गया था जब समाचार पत्र बंगवासी के संपादक जोगेंद्र चंद्र बोस पर एज ऑफ कंसेंट

राज्य के विधान मंडल एवं उसके सदस्यों की शक्तियां तथा विशेषाधिकार: Describe the power and privilege rights of state and their members

विधायिका के सदस्यों का मुख्य कार्य राज्य की जनता की समस्याओं को सदन के समक्ष रखना उन पर चर्चाएं करना संबंधित मंत्रियों अधिकारियों से प्रश्न करना उनका समाधान एवं तक संबंधी समुचित विधि का निर्माण करनाहै कार्य इतना आसान नहीं है जितना लगता है इसके लिए सदस्यों में निरंतर निर्भीकता एवं निष्पक्षता का होना आवश्यक है। यही कारण है कि विधान मंडल के सदस्यों को विधानमंडल के साधनों की चारदीवारी में  विशेष अधिकार प्रदान किए गए हैं जो अधिकार उन्हें सदन की चारदीवारी में है वह उन्हें सदन के बाहर को उपबंध  नहीं है यही कारण है कि हम उन्हें अधिकार नहीं विशेषाधिकार कहते हैं। अनुच्छेद 194 में इन्हीं विशेषाधिकार और शक्तियों एवं उन्मुक्त क्यों का उल्लेख किया गया है. ( 1)वाक् स्वातन्त्र इसे हम भाषण अथवा बोलने की स्वतंत्रता भी कह सकते हैं विधान मंडल के सदस्यों को अपने मन की बात सदन में रखने का पूर्ण अधिकार है वह जन समस्याओं को निर्भीकता से सदन में रख सकते हैं एवं संबंधित मंत्रियों एवं अधिकारियों से इस संबंध में प्रश्न कर सकते हैं उनका मुंह बंद नहीं किया जा सकता है उन्हें वॉक स्वतंत्र पर जो कुछ भी प्

धन विधेयक क्या है? जिस प्रक्रिया से संसद धन विधेयक को पास करती है उसकी विवेचना कीजिए? यह साधारण विधेयक से कैसे भिन्न है? What is money bill? Describe the procedure or by the which Parliament passes money bill how does it differ from ordinary bill?

अनुच्छेद 110 (1) के प्रावधानों के अनुसार ऐसा विधेयक जिसको निम्नलिखित के लिए लाया गया हो धन विधेयक कहलाता है. ( 1) किसी कर को लगाना समाप्त करना उसमें छूट  देना या परिवर्तन करना या  विनियमित करना (2) भारत सरकार के धन उधार लेने या कोई गारंटी देने का विनियमन या भारत सरकार द्वारा स्वीकार किए गए  या किए जाने वाले किसी भी वित्तीय आभार के संबंध में कानून का संशोधन (3) भारत की आकस्मिक निधि (contingency fund) की  या संचित निधि (consolidated fund) की अभिरक्षा या ऐसी किसी निधि से रुपयों का भुगतान करना या उसमें रुपए निकालना (4) भारत की संचित निधि में से धन का विनियोग (appropriation) ( 5) किसी व्यय को भारत की संचित निधि का व्यय होना घोषित करना या ऐसे किसी व्यय की रकम को बढ़ाना (6) भारत की संचित निधि या भारत के लोक लेखा (public account) मद्दे धन प्राप्त करना या ऐसे धन की अभिरक्षा या जारी करना संघ के या किसी राज्य के लेखाओ का ऑडिट (7) उपयुक्त बातों में से किसी भी बात का कोई अनुषांगिक बात.              किसी विधायक को केवल इस कारण से धन विधेयक नहीं माना जाएगा कि वह जुर्माना या अन्य धन संबंधी

संघात्मक संविधान के प्रमुख तत्व: - main elements of Federal constitution

न्यायालय का प्राधिकार  परिषदीय राज्य में संविधान की विधिक सर्वोच्चता परिषद की प्रणाली के लिए आवश्यक है सरकार की समकक्ष शाखाओं के बीच और परी संघीय शासन और संघटक राज्यों के बीच शक्तियों के विभाजन को बनाए रखना अपरिहार्य है। यह सुनिश्चित करने के लिए न्यायालय में संविधान के निर्वाचन की सर्वोच्च शक्ति निहित होती है। न्यायालय को यह शक्ति प्राप्त होती है कि वह परी संघीय और राज्य सरकारों द्वारा किए गए ऐसे कार्यों को शून्य  घोषित कर दे जो संविधान के उपबंध का उल्लंघन करते हैं यह कार्य भारत में उच्चतम न्यायालय को सौंपा गया है।          अत हमारे संविधान द्वारा जिस राजनीतिक प्रणाली को अपनाया गया है उसमें परी संघीय राज व्यवस्था के सभी तत्व विद्यमान है अतः संविधान परिसंघात्मक है। ह्हीयर और जेनिंग्स जैसे कुछ विदेशी संविधानवेत्ताओ मे हमारे संविधान को संघात्मक मानने में आपत्ति की है। प्रोफेसर हीयर के अनुसार संघात्मक संविधान में कुछ अपवाद हो सकते हैं किंतु उसमें परिसंघात्मक तत्वों की प्रधानता होती है। यदि किसी संविधान में ऐसे तत्व हैं जो संघात्मक तत्व को गॉड बना देते हैं तो वह संविधान पर संघात

भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं (silent feature of Indian Constitution)

  विश्व का लिखित संविधान: विश्व के किसी भी देश का संविधान भारत के संविधान जैसा विस्तृत नहीं है सर आई वर जेनिंग्स के मतानुसार भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा एवं विस्तृत संविधान है किंतु हमारे संविधान निर्माताओं को अपने राष्ट्र के की हालातों को ध्यान में रखकर ही इसका निर्माण करना पड़ा था उस वक्त देश के सम्मुख विभिन्न भौगोलिक राजनीतिक सामाजिक एवं ऐतिहासिक परिस्थितियां विद्यमान थी हमारे संविधान को विस्तृत एवं बृहद बनाने की में सबसे बड़ा अधिक योगदान है वह यह है कि इस संविधान में केंद्रीय सरकार के संगठन एवं संरचना के लिए ही उप बंद नहीं किया गया है बल्कि राज्यों की सरकारों के संगठन एवं संरचना के लिए प्रबंध किया गया है भारतीय संविधान राष्ट्र की सर्वोच्च विधि है संविधान की विशालता को लेकर भले ही कुछ आलोचक इसे वकीलों का स्वर्ग कहे परंतु राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक यही चाहता है कि उसमें हर प्रकार की ऐसी नीति संबंधी बातों की व्याख्या की जानी चाहिए जिससे वह यह महसूस कर सके कि भारत में सच अर्थों में प्रजातंत्र विद्यमान है. संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक पंथनिरपेक्ष समाजवादी गणराज्य की स्थाप

संघात्मक शासन के आवश्यक तत्व: Essential elements of Federal constitution

  लिखित संविधान संघात्मक संविधान हमेशा लिखित होता है संघीय शासन पद्धति में इकाइयों के रूप में राज्य संघ शामिल होते हैं एवं उनके मध्य शर्तों का निर्धारण होता है राज्यों को मत संविदा आत्मक संबंध होते हैं ऐसे संबंधों का अक्षर रहना तभी संभव होता है जब लेख रूप में संकलित हो एवं उनके अधिकार तथा कर्तव्य से स्पष्ट हो लिखित संविधान द्वारा ही संभव होता है. शक्तियों का विभाजन संघात्मक संविधान का प्रमुख तत्व है केंद्रीय तथा प्रांतीय सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन हियर के मतानुसार संगीत संविधान के अंतर्गत शक्तियों का विभाजन संघ और इकाइयों में या विभाजन ऐसी नीति से किया जाए ताकि दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र में भली-भांति रूप से एक दूसरे से स्वतंत्र हुआ एवं एक साथ ही एक दूसरे के सहयोगी ना एक दूसरे के अधीन यह विभाजन संविधान द्वारा किया जाता है भारत के संविधान में यह तत्व मौजूद है भारत में केंद्रीय सरकार एवं राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है दोनों अपने-अपने क्षेत्र में सर्वोपरि एवं एक दूसरे के सहयोगी भी राया शक्तियों का विभाजन तीन सूचियों संघ सूची राज्य सूची एवं समवर्ती सूची के अंतर्

भारतीय संविधान की प्रस्तावना ( the Preamble of Indian constitution)

 प्रत्येक अधिनियम प्रारंभ में प्राया प्रस्तावना का उल्लेख मिलता है यह आवश्यक भी है क्योंकि प्रस्तावना उस अधिनियम का दर्पण होती है वह संपूर्ण अधिनियम की भावनाओं को कुछ ही शब्दों में प्रकट कर देती है यही कारण है कि न्यायमूर्ति सुब्बाराव ने प्रस्तावना को अधिनियम के मुख्य आदर्श आकांक्षाओं का प्रतीक माना है दूसरे शब्दों में प्रस्तावना के अधिनियम के उद्देश्य एवं नीतियों को समझने में सहायता मिलती है ठीक है यही बात संविधान पर भी लागू होती है संविधान की प्रस्तावना संविधान निर्माताओं के विचारों को जानने की कुंजी है.             प्रस्तावना को संविधान का एक भाग ही माना गया है जहां कहीं संविधान की भाषा स्पष्ट या संदिग्ध लगती है वही प्रस्तावना से उसके अर्थ निर्धारण में सहायता मिलती है.      एसआर बोम्मई बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के मामले में उच्चतम न्यायालय ने प्रस्तावना को संविधान का अभिन्न अंग माना है प्रस्तावना में संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य जैसे शब्दों का आवाहन किया गया है जो इसके स्वरूप का संकेत देते हैं. दो बातों का संकेत मिलता है यह संकेत प्रस्तावना से मिलत

राज्य के नीति निर्देशक तत्व (the Directive Principles of State Policy)

  भारतीय संविधान के भाग 4 में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों को उपस्थित किया गया है.                        नीति निर्देशक सिद्धांतों से संबंधित अनुच्छेद 37 प्रारंभ में ही यह घोषित करता है कि भाग 4 में उत्पादित किए गए प्रावधान किसी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनी नहीं होंगे किंतु उसमें प्रतिपादित सिद्धांत फिर भी देश के प्रशासन में मूलभूत है और राज्य का यह कर्तव्य होगा कि वह इन सिद्धांतों को कानून बनाने में लागू करें संविधान में निम्नलिखित नीति निर्देशक सिद्धांत राज्य पर कर्तव्य आरोपित करते हैं.          (1) लोक कल्याण की उन्नति के लिए राज्य समाजिक व्यवस्था बनाएंगे           अनुच्छेद 38 इस शीर्षक के अंतर्गत ऐसी सामाजिक व्यवस्था बनाने के लिए राज्य से कहा गया है कि जिस में सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं में जान डाल दे और विशेष रूप से आमदनी में आ समानता है कम हो और ना केवल इकाई व्यक्तियों के बीच में बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले या विभिन्न देशों में लगे हुए लोगों के समूहों के बीच में हैसियत सुविधाओं और अवसरों में व्याप्त असमानता मिट जाए. ( 2) राज्य द्वा

भारतीय संविधान की प्रस्तावना (the significance of Preamble to the Indian Constitution)

  भारतीय संविधान की प्रस्तावना मूल रूप से निम्नलिखित है           “हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक पंथनिरपेक्ष समाजवादी गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय विचार अभिव्यक्ति विश्वास धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में               व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तथा अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए,         दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित और आत्मा अर्पित करते हैं.               प्रस्तावना के तत्व भारतीय संविधान की प्रस्तावना मुख्य रूप से निम्नलिखित बातों को उल्लेखित करती है ( 1) यह संविधान का स्रोत हम भारत के लोग अर्थात भारत की जनता से है ( 2) यह कि भारत एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक पंथनिरपेक्ष समाजवादी गणराज्य है. ( 3) यह कि संविधान का उद्देश्य उन महान अधिकारों और स्वतंत्रता ओं की घोषणा करना है जिन्हें शक्ति के स्रोत के रूप में भारतीय जनता ने देश के