न्यायालय का प्राधिकार
परिषदीय राज्य में संविधान की विधिक सर्वोच्चता परिषद की प्रणाली के लिए आवश्यक है सरकार की समकक्ष शाखाओं के बीच और परी संघीय शासन और संघटक राज्यों के बीच शक्तियों के विभाजन को बनाए रखना अपरिहार्य है। यह सुनिश्चित करने के लिए न्यायालय में संविधान के निर्वाचन की सर्वोच्च शक्ति निहित होती है। न्यायालय को यह शक्ति प्राप्त होती है कि वह परी संघीय और राज्य सरकारों द्वारा किए गए ऐसे कार्यों को शून्य घोषित कर दे जो संविधान के उपबंध का उल्लंघन करते हैं यह कार्य भारत में उच्चतम न्यायालय को सौंपा गया है।
अत हमारे संविधान द्वारा जिस राजनीतिक प्रणाली को अपनाया गया है उसमें परी संघीय राज व्यवस्था के सभी तत्व विद्यमान है अतः संविधान परिसंघात्मक है। ह्हीयर और जेनिंग्स जैसे कुछ विदेशी संविधानवेत्ताओ मे हमारे संविधान को संघात्मक मानने में आपत्ति की है। प्रोफेसर हीयर के अनुसार संघात्मक संविधान में कुछ अपवाद हो सकते हैं किंतु उसमें परिसंघात्मक तत्वों की प्रधानता होती है। यदि किसी संविधान में ऐसे तत्व हैं जो संघात्मक तत्व को गॉड बना देते हैं तो वह संविधान पर संघात्मक नहीं रह जाता है इस सिद्धांत की कसौटी पर प्रेशर इयर्स भारतीय संविधान को एक अर्ध संघीय संविधान अथवा एक ऐसा एकात्मक राज्य मानते हैं जिसमें परिसंघ आत्मक तत्व सहायक रूप में है ना की परी संघात्मक राज्य जिसमें एकात्मक तत्व सहायक कहे जा सकते हैं।
(2) संविधान की सर्वोच्चता
परी संघात्मक व्यवस्था में संविधान सर्वोच्च होता है क्योंकि परी संघीय राज्य का जन्म संविधान से होता है. उच्चतम न्यायालय ने 11 गोपालन बनाम मद्रास राज्य ए आई आर 1950 केसवानंद भारती बनाम केरल राज्य ए आई आर 1973 एस सी 14161 आदि अनेक मामलों में अभी निर्धारित किया है कि भारत का संविधान सर्वोच्च है इस दृष्टि से भारत का संविधान परिसंघात्मक है।
(3) शक्तियों का वितरण
परी संघात्मक संविधान का मेरुदंड है परिसंघ और उसकी कार्यों में शक्तियों का विभाजन भारतीय संविधान में भारत संघ और उसकी इकाइयों अर्थात राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है इस दृष्टि से तीन सूचियों के लिए उपबंध किया गया है जो इस प्रकार है
संघ सूची
राज्य सूची
समवर्ती सूची
संघ सूची में सम्मिलित किए गए विषयों पर केवल परिसंघ विधानमंडल अर्थात संसद ही विधि बना सकती है राज्य सूची में सन्निविष्ट किए गए विषयों पर केवल राज्य के विधान मंडल की विधि बना सकते हैं। समवर्ती सूची में दिए गए विषयों पर संसद और राज्य के विधान मंडल दोनों ही विधि बना सकते हैं अतः यह कहना सही है कि भारत का संविधान परिसंघात्मक है।
(4) लिखित संविधान: -
परिसंघीय संविधान लिखित होता है क्योंकि शक्तियों के विभाजन की योजना अलिखित संविधान या मौखिक समझौते से सुरक्षित नहीं रह सकती है भारत का संविधान लिखित है अतः भारत का संविधान परिसंघीय है।
(5) द्वैध शासन:
ऐकिक राज्य में एक सरकार होती है अर्थात राष्ट्रीय सरकार. संविधान के अनुसार परीसंघीय राज्य में दो सरकारों होती है राष्ट्रीय या परिसंघीय सरकार और प्रत्येक संघटक राज्य की सरकार हमारे संविधान द्वारा इसी प्रकार की द्वैध शासन व्यवस्था अपनाई गई है इस दृष्टि से भारत का संविधान परिसंघीय है.
(6) कठोरता: -
परिसंघीय संविधान कठोर होता है ताकि शक्ति वितरण की व्यवस्था कायम रहे यह तत्व भी भारतीय संविधान में विद्यमान है क्योंकि संविधान का संशोधन अनुच्छेद 368 के अधीन विहित की गई प्रक्रिया के अनुसार ही किया जा सकता है अन्यथा नहीं।
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