भारतीय संविधान के भाग 4 में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों को उपस्थित किया गया है.
नीति निर्देशक सिद्धांतों से संबंधित अनुच्छेद 37 प्रारंभ में ही यह घोषित करता है कि भाग 4 में उत्पादित किए गए प्रावधान किसी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनी नहीं होंगे किंतु उसमें प्रतिपादित सिद्धांत फिर भी देश के प्रशासन में मूलभूत है और राज्य का यह कर्तव्य होगा कि वह इन सिद्धांतों को कानून बनाने में लागू करें संविधान में निम्नलिखित नीति निर्देशक सिद्धांत राज्य पर कर्तव्य आरोपित करते हैं.
(1) लोक कल्याण की उन्नति के लिए राज्य समाजिक व्यवस्था बनाएंगे
अनुच्छेद 38 इस शीर्षक के अंतर्गत ऐसी सामाजिक व्यवस्था बनाने के लिए राज्य से कहा गया है कि जिस में सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं में जान डाल दे और विशेष रूप से आमदनी में आ समानता है कम हो और ना केवल इकाई व्यक्तियों के बीच में बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले या विभिन्न देशों में लगे हुए लोगों के समूहों के बीच में हैसियत सुविधाओं और अवसरों में व्याप्त असमानता मिट जाए.
( 2) राज्य द्वारा अनुसरण नीति के सिद्धांत
अनुच्छेद 39a शीर्षक के अधीन आर्थिक न्याय प्राप्त करने के लिए राज्य पर निम्नलिखित बातों को प्राप्त करने के कर्तव्य आरोपित किए गए हैं
: स्त्री और पुरुष सभी नागरिकों का समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो
: समुदाय की भौतिक संपदा का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार वितरित किया जाए जिससे कि सामूहिक हित सर्वोत्तम रूप से सदस्य के
: आर्थिक प्रणाली इस प्रकार चलाई जाए जिससे कि धन और उत्पादन के साधनों का सर्वसाधारण के लिए हितकर केंद्रीकरण ना हो.
: पुरुषों और स्त्रियों दोनों का समान कार्य के लिए समान वेतन हो,
लेकिन प्राइवेट गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक विद्यालय के कर्मचारी राज्य सरकार के विद्यालयों के कर्मचारी के समान वेतन का दावा नहीं कर सकते क्योंकि ऐसे विद्यालय राज्य की परिभाषा में नहीं आते हैं
“श्रीमती शकुंतला शर्मा बनाम सेंट पॉल सीनियर सेकेंडरी स्कूल ए आई आर 2011 एस सी 2926”
: श्रमिक पुरुषों और स्त्रियों के स्वास्थ्य और शक्ति का और बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग ना हो तथा आर्थिक लाचारी से मजबूर होकर नागरिकों को ऐसे रोजगार में ना जाना पड़े जो उनकी उम्र या शक्ति के अनुकूल ना हो.
: बालकों को स्वतंत्र और गरिमामय दशाओं में और स्वस्थ ढंग से अपना विकास करने के लिए अवसरों सुविधाएं दी जाए और शोषण के विरुद्ध तथा नैतिक और भौतिक समर्पण के विरुद्ध और तरुणाई की रक्षा की जाए.
( 3) समान न्याय और निशुल्क कानूनी सहायता:
अनुच्छेद 39 का इस शीर्षक के अंतर्गत राज्य का यह कर्तव्य आरोपित किया गया है कि वह ऐसे विधिक प्रणाली का संचालन करें जिसमें समान अवसर के आधार पर न्याय की उन्नति और विशेष रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए आर्थिक या अन्य योग्यता के कारण से कोई नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसरों से वंचित न रह जाए उपयुक्त कानूनी या योजनाओं के द्वारा या अन्य प्रकार से निशुल्क कानूनी सहायता की व्यवस्था करें.
( 4) गांव पंचायतों का गठन
अनुच्छेद 40 शीर्षक के अधीन राज्य पर गांव पंचायत गठित करने और उन्हें ऐसी शक्ति देने का कर्तव्य आरोपित किया गया है कि जिससे वे स्वयं शासन की इकाइयों के रूप में कार्य कर सकें.
( 5) कुछ मामलों में काम करने शिक्षा और लोग सहायता पाने का अधिकार
अनुच्छेद 41 इस शीर्षक के अधीन राज्य से यह कहा गया है कि वह अपनी आर्थिक सामर्थ्य और विकास की सीमाओं के भीतर काम पानी शिक्षा पाने और बेकारी बुढ़ापा और अंग हानि तथा अन्य योग्य बनाने वाले अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त करने की कारगर व्यवस्था करें.
( 6) काम की न्यायोचित और मानवीय दशाओं और प्रसूति सहायता के लिए व्यवस्था
अनुच्छेद 42e शीर्षक के अधीन राज्य से यह कहा गया है कि वह काम करने की न्याय उचित और मानवीय दशाएं प्राप्त कराने के लिए और प्रसूति सहायता के लिए व्यवस्था करें
( 7) कामगारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि
अनुच्छेद 43 शीर्षक के अधीन राज्य से यह कहा गया है कि वह उपयुक्त कानून बनाकर या आर्थिक संगठन के द्वारा या किसी प्रकार से कृषि उद्योग या अन्य प्रकार के सब कामगारों को काम निर्वाह मजदूरी सिस्टर जीवन स्तर तथा अवकाश का संपूर्ण उपभोग सुनिश्चित करने वाली काम की दशाएं और सामाजिक तथा सांस्कृतिक अवसर प्राप्त कराने का प्रयत्न करें और विशेष रूप से गांव में कुटीर उद्योगों को व्यक्तिगत या सहकारी आधार पर बढ़ाने का प्रयत्न करें.
( 8) उद्योगों के प्रबंध में कामगारों का भाग लेना
अनुच्छेद 45 का इस शीर्षक के अधीन राज्य पर यह कर्तव्य आरोपित किया गया है कि वह उपयुक्त कानून द्वारा या किसी अन्य प्रकार से ऐसी व्यवस्था करें जिससे किसी उद्योग में लगे हुए उपक्रमों स्थापना हो या अन्य संगठनों के प्रबंधन में कामगार भी भाग ले.
( 9) बालकों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था
अनुच्छेद 45 के 86 वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 45 में अव्यवस्था प्रत्यय स्थापित किया गया है कि राज्य 6 वर्ष की आयु से सभी बालकों के पूर्व कार्यकाल की देखरेख और शिक्षा के लिए अवसर प्रदान करने के लिए उपबंध करेगा.
( 10) अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों और अन्य कमजोर वर्गों के शैक्षणिक और आर्थिक हितों की उन्नति
अनुच्छेद 46 इस शीर्षक के अधीन राज्य से यह कहा गया है कि वह विशेष सावधानी के साथ जनता के कमजोर वर्गों के विशेष रूप से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के शैक्षणिक और आर्थिक हितों की उन्नति करें और सामाजिक अन्याय तथा सब प्रकार के शोषण से उनकी रक्षा करें.
( 11) पौष्टिक आहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा उठाने और लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य का कर्तव्य
इस शीर्षक के अधीन राज्य पर यह कर्तव्य आरोपित किया गया है कि वह अपनी जनता के पौष्टिक आहार का स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा उठाने और लोक स्वास्थ्य के सुधार को अपने प्राथमिक कर्तव्यों में से माने और विशेष रूप से स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माध्यक पियो और औषधियों के औषधीय प्रयोजन के अतिरिक्त उपयोग को निश्चित करने का प्रयत्न करें.
( 12) कृषि और पशुपालन का संगठन
अनुच्छेद 48 इस शीर्षक के अधीन राज्य से यह कहा गया है कि वह कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों से संगठित करने का प्रयत्न करें और विशेष रूप से गाय और बछड़ा और अन्य दुधारू और वह घोड़ों की नस्ल के परीक्षण और सुधार के लिए तथा उनके वध का निषेध करने के लिए अग्रसर हो.
( 13) पर्यावरण की रक्षा और सुधार तथा वनों का सुधार तथा वन्य और वन्यजीवों की सुरक्षा
अनुच्छेद 48 का शीर्षक के अधीन राज्य से यह कहा गया है कि वह देश के पर्यावरण की रक्षा तथा उसमें सुधार करने का और जंगलों तथा जंगलों जीवो की सुरक्षा का प्रयत्न करें.
“राज्य मिनरल बनाम स्टेट ऑफ़ गुजरात ए आई आर 2012 एन ओ सी 179 गुजरात
इस मामले में गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनय धारित किया गया कि जनसाधारण के जीवन एवं संपत्ति को पर्यावरण प्रदूषण से बचाने के लिए खनन पट्टों को निरस्त किया जा सकता है पारिस्थितिकी ए समस्याओं के निराकरण के लिए ऐसा किया जा सकता है.
सामान्य निर्देशक तत्व जो आर्थिक क्रियाओं से संबंधित नहीं है (general directive principle which are not connected with Economic reaction)
Samanya Niti nirdeshak tatva jo Arthik riyona se sambandhit Hain
( 1) अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की उन्नति
अनुच्छेद 51 अंतरराष्ट्रीय संबंधों से संबंधित है इसके अनुसार राज्य अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए प्रयास करेगा.
( 2) कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण
अनुच्छेद 50 में यह बंद है कि लोक सेवाओं में न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक करने के लिए राज्य अग्रसर होगा
( 3) राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों स्थान और वस्तुओं का संरक्षण
अनुच्छेद 49 यह उपस्थित करता है कि राज्य कलात्मक या ऐतिहासिक अभिरुचि वाले प्रत्येक इस मारा गया स्थान को भी रूपण विनाश अब सारण 1 तथा निर्यात से रक्षा करेगा.
( 4) समान नागरिक संहित
अनुच्छेद 44 अंक के अनुसार भारत के समस्त राज्य क्षेत्र के लिए नागरिकों के लिए एक समान व्यवहार संहिता प्राप्त करने का प्रयास करेगा सरला मुद्गल बनाम भारत संघ 1935 3 एसीसी 635 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने सभी नागरिकों के लिए समान सिविल संहिता बनाने का निर्देश दिया और कहा कि ऐसा करना पीड़ित व्यक्ति की रक्षा तथा राष्ट्रीय एकता तथा अखंडता के अभिवृद्धि दोनों दृष्टि से आवश्यक है.
यद्यपि नीति निर्देशक सिद्धांत न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय अर्थात वाद योग्य नहीं आता स्वाभाविक रूप से यह आलोचना की जाती है कि इन सिद्धांतों की कोई उपयोगिता नहीं है और राज्य की सुरक्षा पर उनको लागू करना या न करना निर्भर है परंतु यह नहीं भूलना चाहिए कि इन सिद्धांतों के पीछे कानून से भी बड़ी शक्ति जन्नत की शक्ति है संसदीय प्रजातंत्र में विधानमंडल में जनता के प्रतिनिधि सरकार पर यह दबाव डाल सकते हैं कि वह इन सिद्धांतों को कानून बनाकर लागू करें और ऐसा हुआ भी जिसके परिणाम स्वरूप इसमें से बहुत से सिद्धांतों को सरकार ने कानून बनाकर लागू किया था कोर्ट ने उन कानूनों को संवैधानिक घोषित किया है.
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