Skip to main content

भारत में दहेज हत्या में क्या सजा का प्रावधान है ? विस्तार से चर्चा करो।

राज्य के विधान मंडल एवं उसके सदस्यों की शक्तियां तथा विशेषाधिकार: Describe the power and privilege rights of state and their members

विधायिका के सदस्यों का मुख्य कार्य राज्य की जनता की समस्याओं को सदन के समक्ष रखना उन पर चर्चाएं करना संबंधित मंत्रियों अधिकारियों से प्रश्न करना उनका समाधान एवं तक संबंधी समुचित विधि का निर्माण करनाहै कार्य इतना आसान नहीं है जितना लगता है इसके लिए सदस्यों में निरंतर निर्भीकता एवं निष्पक्षता का होना आवश्यक है। यही कारण है कि विधान मंडल के सदस्यों को विधानमंडल के साधनों की चारदीवारी में  विशेष अधिकार प्रदान किए गए हैं जो अधिकार उन्हें सदन की चारदीवारी में है वह उन्हें सदन के बाहर को उपबंध  नहीं है यही कारण है कि हम उन्हें अधिकार नहीं विशेषाधिकार कहते हैं।


अनुच्छेद 194 में इन्हीं विशेषाधिकार और शक्तियों एवं उन्मुक्त क्यों का उल्लेख किया गया है.

( 1)वाक् स्वातन्त्र इसे हम भाषण अथवा बोलने की स्वतंत्रता भी कह सकते हैं विधान मंडल के सदस्यों को अपने मन की बात सदन में रखने का पूर्ण अधिकार है वह जन समस्याओं को निर्भीकता से सदन में रख सकते हैं एवं संबंधित मंत्रियों एवं अधिकारियों से इस संबंध में प्रश्न कर सकते हैं उनका मुंह बंद नहीं किया जा सकता है उन्हें वॉक स्वतंत्र पर जो कुछ भी प्रतिबंध है वह यही है कि संविधान के उपबंधों एवं विधानमंडल की प्रक्रिया को भी नियमित करके ने वाले नियमों एवं स्थाई आदेशों का पालन करें संविधान के अनुच्छेद 208 एवं 211 वाक् स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करते हैं अनुच्छेद 21 के अनुसार उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के आचरण पर सदन में चर्चा नहीं की जा सकती है


                 उनकी यह स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 (1) (क)  मे वर्णित स्वतंत्रता से भिन्न है अनुच्छेद 19 (1)(क) के प्रावधान अनुच्छेद 194(1) के प्रावधानों को नियंत्रित नहीं कर सकते.


(2) न्यायालय में कार्यवाही से उन्मुक्ति: सदस्य सदन में जो कुछ भी कहता है वह न्यायिक कार्यवाही से उन्मुक्त है अर्थात उस के कहे हुए पर न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती है इसका स्पष्ट अभिप्राय हुआ कि सदस्यों के वार्ड स्वतंत्रता का अधिकार एक निर्पेच अधिकार है हमारे मन में यह प्रश्न पूछ सकता है कि फिर व्हाट्सएप पर प्रथा पर प्रतिबंध का क्या अर्थ हुआ यदि कोई सदस्य सदन में उच्चतम न्यायालय अथवा किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के आचरण पर टीका टिप्पणी करता है तो क्या उसके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती है. कार्रवाई की जा सकती है लेकिन सिर्फ सदन द्वारा न्यायालय द्वारा नहीं वह सदन के प्रति उत्तरदाई होता है न्यायालय के प्रति नहीं ऐसे मामलों में सदन हीं न्यायालय और न्यायाधीश का कार्य करता है।


(3)अवमान  के लिए दंड देने की शक्ति

        सदन सर्वोच्च है वही अपना न्यायधीश है अपने अवमान  के लिए दोषी व्यक्ति को दंडित करने का अधिकार भी उसी को है न्यायालय ऐसे मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता है राज्यों के विधान मंडलों की यह शक्ति  वैसी है जैसी केंद्र में संसद की शक्ति है संसद में कई अवसरों पर अवमान के लिए दोषी सदस्यों को सदन के कठघरे में लाकर खड़ा किया है सदन की गरिमा को बनाए रखने तथा कार्यवाहियो के सुचारू रूप से संचालन के लिए यह उचित भी है।


              यदि कोई सदस्य सदन को अपने कृतियों के निर्वहन से निर्धारित करता है उनमें व्यवधान पैदा करता है अथवा सदन के सदस्यों या अधिकारियों के कर्तव्य निर्वहन में बाधा डालता है तो यह सदन का अवमान है। आजकल इसे विशेषाधिकार उल्लघन के नाम से संबोधित किया जाता है।


         इस संबंध में उत्तर प्रदेश विधानसभा का अब तक का अत्यंत महत्वपूर्ण एवं रोचक मामला है उत्तर प्रदेश विधानसभा में एक संकल्प पारित कर दो सदस्यों को अवमान के लिए दंडित किया था और वह कारावास में थे इनकी ओर से उच्च न्यायालय ने बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट याचिका प्रस्तुत की गई रिट याचिका को स्वीकार किया है जाकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों की पीठ ने उन 2 सदस्यों में से एक केशव सिंह को जमानत पर रिहा कर दिया इस बात पर विधानसभा ने उन दोनों न्यायाधीशों को सदन के समक्ष यह बताने के लिए कि क्यों ना उनको अवमान के लिए दंडित किया जाए प्रस्तुत करने का आदेश दिया इस आदेश को 28 न्यायाधीशों की पूर्ण पीठ ने स्थगित कर दिया विधानसभा एवं उच्च न्यायालय के बीच उत्पन्न  इस विवाद में संवैधानिक संकट खड़ा कर दिया जिसे राय हेतु राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय को भेजा गया उच्चतम न्यायालय की ओर से बहुमत का निर्णय देते हुए मुख्य न्यायमूर्ति पीबी गजेंद्रगड़कर ने कहा कि न्यायालय सदन की कार्रवाई यों की वैधानिकता का परीक्षण कर सकते हैं।

         विधायिका और न्यायपालिका के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई का इस प्रकार अंत हुआ


इनाडू का मामला

सन 1984 में तेलुगु दैनिक इनाडु के संपादक द्वारा प्रकाशित एक लेख को आंध्र प्रदेश विधान परिषद की अवमानना करने वाला पाया गया और सदन ने इसके लिए संपादक को छमा याचना करने के लिए कहा संपादक ने उक्त आदेश के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में याचिका प्रस्तुत कर दी जिस पर उच्चतम न्यायालय ने उसे गिरफ्तार नहीं करने के आदेश दिए उन्होंने न्यायपालिका एवं विधायिका के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गए आंध्र प्रदेश विधान परिषद के उच्चतम न्यायालय के आदेश को अधिकारिता से बाहर का बताते हुए संपादक को गिरफ्तार कर सदन के समक्ष पेश किए करने का निर्णय लिया गया जब स्थिति बिगड़ती देखी तो मुख्यमंत्री एनटी रामा राव ने हस्तक्षेप किया तथा स्थिति को संभाल लिया.


मणिपुर विधानसभा का मामला: - सदा में फिर ऐसा विवाद छिड़ गया वहां दल बदल विरोधी कानून के अंतर्गत अध्यक्ष ने 7 सदस्यों को सदन की सदस्यता से निर्हित घोषित कर दिया उच्चतम न्यायालय में दल बदल विरोधी कानून का तो समर्थन किया परंतु सदस्यों के निष्कासन को अवैध करार दिया अध्यक्ष ने उच्चतम न्यायालय के उक्त निर्णय को मानने से इंकार कर न्यायालय का अवमान  किया यहां भी जब स्थिति बिगड़ती देखी तो अंकिता अध्यक्ष को शपथ पत्र के माध्यम से उच्चतम न्यायालय के आदेश को स्वीकार करने का आश्वासन देने के लिए राजी किया गया।


तमिलनाडु का मामला 

       तमिलनाडु के समाचार पत्रों में यह समाचार प्रकाशित हुआ कि अन्ना डीएमके के एक विधायक ने डीएमके के विधायक पर सदन में आक्रमण किया है अध्यक्ष ने इस समाचार को असत्य बताते हुए संपादकों पर सदन की ओमान की कार्यवाही चलाई और उन्हें सदन के समक्ष उपस्थित होकर स्पष्टीकरण देने को कहा जब भी सदन में उपस्थित नहीं हुए तो उनके विरुद्ध गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया संपादकों ने उच्चतम न्यायालय से गिरफ्तारी के आदेश के विरुद्ध स्थगन आदेश प्राप्त कर लिया परंतु अध्यक्ष ने उच्चतम न्यायालय के आदेश को मानने से इंकार कर दिया यह विवाद भी जैसे तैसे टल गया।

          पर टकराव और संघर्ष की स्थिति लोकतांत्रिक देशों के लिए शुभ संकेत नहीं है विधानसभा जनप्रतिनिधियों का मंच है जनता को विधानसभा के भीतर की कहानी को जानने का अधिकार है समाचार पत्रों को यह कहानी जनता तक पहुंचाने की स्वतंत्रता होनी ही चाहिए।


(4) मताधिकार:

          किसी आपराधिक मामले में कारागार में निरुद्ध विधायक विधानसभा की कार्यवाही में भाग लेने अथवा मतदान करने का अधिकार नहीं रखता


सदस्यों के वेतन और भत्ते

        राज्य के विधानसभा और विधान परिषद के सदस्य ऐसे वेतन और भत्ते जी ने उस राज्य का विधान मंडल समय-समय पर विधि द्वारा आधारित करें और जब तक इस संबंध में इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसे वेतन और भत्ते ऐसी दरों से और ऐसी शर्तों पर जो तक स्थानीय प्रांत की विधानसभा के सदस्यों को इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले लागू थी प्राप्त करने के हकदार होंगे।

                                                                                       (अनुच्छेद 195)

Comments

Popular posts from this blog

असामी कौन है ?असामी के क्या अधिकार है और दायित्व who is Asami ?discuss the right and liabilities of Assami

अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार  (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि  (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार  (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार  (5)काशतकार भोग बंधकी  (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।           वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता ह...

पार्षद अंतर नियम से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of article of association)

कंपनी के नियमन के लिए दूसरा आवश्यक दस्तावेज( document) इसके पार्षद अंतर नियम( article of association) होते हैं. कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को ही अंतर नियम( articles of association) कहा जाता है. यह नियम कंपनी तथा उसके साथियों दोनों के लिए ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी की संपूर्ण प्रबंध व्यवस्था उसके अंतर नियम के अनुसार होती है. दूसरे शब्दों में अंतर नियमों में उल्लेख रहता है कि कंपनी कौन-कौन से कार्य किस प्रकार किए जाएंगे तथा उसके विभिन्न पदाधिकारियों या प्रबंधकों के क्या अधिकार होंगे?          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(5) के अनुसार पार्षद अंतर नियम( article of association) का आशय किसी कंपनी की ऐसी नियमावली से है कि पुरानी कंपनी विधियां मूल रूप से बनाई गई हो अथवा संशोधित की गई हो.              लार्ड केयन्स(Lord Cairns) के अनुसार अंतर नियम पार्षद सीमा नियम के अधीन कार्य करते हैं और वे सीमा नियम को चार्टर के रूप में स्वीकार करते हैं. वे उन नीतियों तथा स्वरूपों को स्पष्ट करते हैं जिनके अनुसार कंपनी...

कंपनी के संगम ज्ञापन से क्या आशय है? What is memorandum of association? What are the contents of the memorandum of association? When memorandum can be modified. Explain fully.

संगम ज्ञापन से आशय  meaning of memorandum of association  संगम ज्ञापन को सीमा नियम भी कहा जाता है यह कंपनी का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। हम कंपनी के नींव  का पत्थर भी कह सकते हैं। यही वह दस्तावेज है जिस पर संपूर्ण कंपनी का ढांचा टिका रहता है। यह कह दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह कंपनी की संपूर्ण जानकारी देने वाला एक दर्पण है।           संगम  ज्ञापन में कंपनी का नाम, उसका रजिस्ट्री कृत कार्यालय, उसके उद्देश्य, उनमें  विनियोजित पूंजी, कम्पनी  की शक्तियाँ  आदि का उल्लेख समाविष्ट रहता है।         पामर ने ज्ञापन को ही कंपनी का संगम ज्ञापन कहा है। उसके अनुसार संगम ज्ञापन प्रस्तावित कंपनी के संदर्भ में बहुत ही महत्वपूर्ण अभिलेख है। काटमेन बनाम बाथम,1918 ए.सी.514  लार्डपार्कर  के मामले में लार्डपार्कर द्वारा यह कहा गया है कि "संगम ज्ञापन का मुख्य उद्देश्य अंश धारियों, ऋणदाताओं तथा कंपनी से संव्यवहार करने वाले अन्य व्यक्तियों को कंपनी के उद्देश्य और इसके कार्य क्षेत्र की परिधि के संबंध में अवग...