मुस्लिम विधि के अनुसार वसीयत कौन कर सकता है? क्या धर्म त्याग किये व्यक्ति अथवा दिवालिया द्वारा की गयी वसीयत मान्य होती है? क्या वसीयत को रद्द किया जा सकता है ?
वसीयत(will)– ' वसीयत ' शब्द की उत्पत्ति वसीया से हुई है जिसका तात्पर्य है इच्छा - पत्र । अतः जब किसी व्यक्ति द्वारा अपनी चल या अचल सम्पत्ति के बंटवारे या निपटारे की मौखिक अथवा लिखित रूप से इच्छा अभिव्यक्ति की जाय तो उसे इच्छा पत्र या वसीयत कहा जाता है । उस इच्छा - पत्र को लिखित रूप दिये जाने पर वसीयतनामा कहा जाता है । अतः यह कहा जाता है कि वसीयत एक ऐसा अभिलेख है जिसके माध्यम से कोई व्यक्ति अपनी मृत्यु के पश्चात् अपनी सम्पदा के बारे में इच्छा व्यक्त करता है कि उस सम्पत्ति का प्रबन्ध किस प्रकार किया जाय ।
फतवा - ए - आलमगीरी वसीयत की परिभाषा इस प्रकार करता है- " वसीयतकर्ता की मृत्यु हो जाने पर प्रभाव में आने वाले किसी विशेष वस्तु के मुनाफे , लाभ या वृत्ति ( Gratuity ) में सम्पत्ति के अधिकार का दान । " इस प्रकार वसीयत किसी व्यक्ति की अपनी सम्पत्ति सम्बन्धी इरादे की कानूनी घोषणा है जिसे वह अपनी मृत्यु के बाद कार्यान्वित करना चाहता है ।
भारतीय उत्तराधिकारी अधिनियम की धारा 2 के अनुसार वसीयत की निम्न परिभाषा है
" वसीयत का तात्पर्य उस घोषणा से है जिससे कि व्यक्ति अपनी सम्पत्ति के निस्तारण की व्यवस्था करता है और यह इच्छा करता है कि उसकी मृत्यु के पश्चात् उसको सम्पत्ति की व्यवस्था इस घोषणा में निहित प्रावधानों के अनुसार की जाये ।
अतः यह कहा जा सकता है कि वसीयत एक ऐसा अभिलेख है जिसके माध्यम से कोई व्यक्ति अपनी मृत्यु के पश्चात् अपनी सम्पदा के बारे में यह इच्छा व्यक्त कर जाता है कि उसका प्रबन्ध किस प्रकार किया जाय ।
इस्लाम से पहले लोगों को अपनी सम्पत्ति को किसी भी प्रकार से तथा कितनी ही सीमा तक निपटारा करने का अधिकार था , परन्तु बाद में कुरान में सम्पत्ति के वितरण और दान के सम्बन्ध में जब निश्चित नियम बनाये गये तो लोगों के ऐसे नियमित अधिकारों पर नियन्त्रन लग गया । अतः वह चाहे तो अपनी पूरी सम्पत्ति का दान कर दें परन्तु इच्छा पत्र द्वारा 2/3 से अधिक हिस्से का दान नहीं कर सकते हैं ।
वसीयत करने के उद्देश्य का वर्णन करते हुए अमीर अली ( Ameer Ali ) ने विधिशास्त्र M. Santayra का सन्दर्भ दिया और लिखा कि " वसीयत मुसलमानों के दृष्टिकोण से दैवीय कार्य है , क्योंकि यह कुरान से नियन्त्रित होता है । यह वसीयत कर्ता को उत्तराधिकारी के अधिकार से रहित कुछ सम्बन्धियों की अपनी सम्पत्ति का उत्तराधिकारी बनने अजनबी व्यक्तियों द्वारा की गई सेवाओं का प्रत्युपकार करने तथा अन्तिम समय में किये गये स्नेह का प्रत्युपकार करने का अवसर देती है । इस प्रकार यह वसीयतकर्ता को कुछ सीमा तक उत्तराधिकार के कानून में सुधार करने का उपाय है । पैगम्बर ने यह कहा था कि " प्रत्येक मुसलमान को अपनी मृत्यु के बाद सम्पत्ति के वितरण की व्यवस्था करनी चाहिए तथा जब तक वह वसीयत न लिख ले उसे रात में भी न सोना चाहिए ।
अतः मुस्लिम विधि की नीति यही है कि मुसलमान लोग अपनी पूरी सम्पत्ति का भी दान कर सके परन्तु इच्छा - पत्र द्वारा अपनी सम्पत्ति का केवल 1/3 हिस्सा ही कर सकते हैं ।
वसीयत के आवश्यक तत्व - वसीयत के निम्न आवश्यक तत्व हैं
( i ) वसीयतकर्ता की ओर से वसीयत करने का विचार स्पष्ट और अभिव्यक्त होना चाहिए ।
( ii ) यह वसीयतकर्ता की मृत्यु के पश्चात् लागू हो । वसीयत का दस्तावेज वसीयतनामा
कहलाता है ।
शिया मत इशना आशिरी सम्प्रदाय के लोग उक्त आनुपातिक वितरण के सिद्धान्त को मान्यता नहीं देते । उसके अनुसार पहले आने वाले व्यक्ति को वसीयता दी जाती है जिसके अनुसार यदि किसी सम्पत्ति की वसीयत कई लोगों को दी गई है तो जिस क्रम से उनका नम्बर आयेगा उसी अनुपात से उसकी सम्पत्ति में से हिस्सा दिया जायेगा । उदाहरण के लिए यदि वसीयतकर्ता अपनी सम्पत्ति का 1/3 भाग ' अ ' को 1/4 भाग ' ब ' को और 1/6 भाग ' स ' को वसोयत करता है परन्तु वारिस उस वसियत को मान्यता नहीं देते ऐसी स्थिति में ' ब ' को 13 वसीयत मानी जायेगी । भाग और ' अ ' को 1/4 भाग मिलता है तथा ' स ' को कुछ नहीं मिलता । इस सिद्धान्त का अपवाद यह है कि यदि कोई व्यक्ति 1/4 भाग की वसीयत दो विभिन्न व्यक्तियों को करें तो दूसरी वसीयत मानी जायेगी ।
प्रकृति ( Nature of will ) - वसीयत के अन्तर्गत अधिकार का अन्तरण सम्पत्ति का शीघ्र अन्तरण नहीं करता बल्कि वसीयत करने वाले की मृत्यु के पश्चात् लागू होता है । दान एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें अधिकार ( Rights ) और स्वत्व ( Title) दोनों ही शीघ्र आन्तरित हो जाते हैं।
अब्दुल मन्नान खाँ बनाम मुरतजा खान ' के वाद में पटना उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि प्रत्येक मुस्लिम जो कि वयस्क है वह अपनी सम्पत्ति की वसीयत द्वारा अन्तरित कर सकता है । जहाँ तक वसीयत पत्र का सम्बन्ध है , उसके लिए विधि द्वारा कोई निर्धारित प्रारूप या औपचारिकता का प्रावधान वर्णित नहीं है । एक वसीयतकर्ता को स्पष्ट अभिव्यक्ति इस उद्देश्य को पूरा कर सकती है ।
मान्य वसीयत की अपेक्षाएँ ( Requisites of Valid Will ) - मुस्लिम विधि के अन्तर्गत मान्य वसीयत की आवश्यक उपेक्षाएँ निम्नलिखित हैं
( 1 ) वसीयत कर्ता ( Testator ) को वसीयत करने के लिए सक्षम होना जरूरी है ।
( 2 ) वसीयत ( Legatee ) को वसीयत ग्रहण करने के लिए सक्षम होना जरूरी है ।
( 3 ) वसीयत द्वारा दान की विषय - वस्तु का मान्य होना जरूरी है ।
( 4 ) वसीयत द्वारा दान का मुसलमानों की वसीयती शक्ति की सीमा के भीतर होना जरुरी है।
मुस्लिम विधि के अन्तर्गत किसी वसीयत को वैध बनाने के लिए उसका लिखित रूप में होना या उसके लिए कोई औपचारिकता पूरी होना आवश्यक नहीं है । ऐसी वसीयत केवल मौखिक घोषणा द्वारा भी की जा सकती है । बशर्ते कि वसीयतकर्ता ऐसी घोषणा साफ और विशिष्ट रूप से करे और उससे उसकी साफ नीयत का आभास हो । वसयीतकर्ता अपने अन्तिम संस्कार के लिए होने वाले कार्यक्रम को उस सम्पत्ति से निकालकर 1/3 भाग की वसीयत कर सकता है ।
मुस्लिम विधि में संकेतों द्वारा भी वसीयत की जा सकती है । फतवा - ए - आलमगीरी के अनुसार बोलने में असमर्थ बीमार व्यक्ति संकेतों द्वारा या सिर हिलाकर वसीयत कर सकता है । यदि उसकी मृत्यु बोलने की सामर्थ्य वापिस पाने के पूर्व हो जाती है तो उसके द्वारा की गयी वसीयत मान्य होगी ।
वसीयती शक्ति और सीमाएँ - किसी मुसलमान को वसीयती शक्ति दो प्रकार से सीमित होती है । उसे वसीयती द्वारा बन्दोबस्त की असीमित शक्ति नहीं होती ।
मुसलमान द्वारा उत्तराधिकारी के पक्ष में वसीयत नहीं की जा सकती है । ऐसा कहा जाता है खुदा ने प्रत्येक व्यक्ति को उसका हिसाब दे दिया है । इसलिए ऐसे व्यक्ति के पक्ष में वसीयत नहीं की जा सकती जो उत्तराधिकार प्राप्त करने का अधिकारी हो । परिणामस्वरूप सुन्नी एवं फतिमिद विधियों का यह सिद्धान्त है कि जब तक अन्य उत्तराधिकारियों द्वारा सहमति न दे दी जाय , किसी उत्तराधिकारी को उत्तरदान ( वसीयत ) नहीं दिया जा सकता है ।
( 2 ) सम्पत्ति सम्वन्धी सीमा - वसीयत के द्वारा बन्दोबस्त योग्य सम्पत्ति की सीमा के सम्बन्ध में सामान्य नियम यह है कि कोई भी मुसलमान अपनी परिसम्पत्ति ( Asset ) ( जायदाद ) में से कफन दफन के खर्च और गुणों के भुगतान के खर्च से बची हुई सम्पत्ति में एक तिहाई से ज्यादा का वसीयती दान नहीं कर सकता । इस सामान्य नियम के अग्रलिखित अपवाद है -
( i ) सुन्नी विधि के अन्तर्गत यदि वसीयतकर्ता मर जाने के बाद ऐसे उत्तराधिकारी जिसके अधिकारों का अतिलंघन हो , अपनी सहमति दे दे तो शुद्ध परिसम्पत्ति के एक तिहाई से अधिक का वसीयती दान मान्य हो जाता है । शिया विधि में उत्तराधिकारियों की सहमति , चाहे वसीयतकर्ता के जीवनकाल में दी गई हो या मरने के बाद , प्रभावी होती है ।
( ii ) जहाँ वसीयतकर्ता उत्तराधिकारी न हों वहाँ वसीयती दान के योग्य तिहाई का उपर्युक्त नियम लागू नहीं होगा । लावारिस व्यक्ति ( Hewless person ) की सम्पदा ग्रहण करने का सरकार का अधिकार किसी व्यक्ति के अपनी सम्पदा के इच्छानुसार बन्दोबस्त करने के अधिकार को किसी प्रकार निर्बन्धित नहीं करता ।
वसीयत कौन कर सकता है ? क्या धर्म त्याग किये व्यक्ति अथवा दिवालिया द्वारा की गई वसीयत मान्य होती है ? क्या वसीयत को रद्द किया जा सकता है ? Who can make will ? Is the will made by an opostatic and insolvent valid ? Can a will be revoked ?
वसीयत कौन कर सकता है ? - प्रत्येक मुसलमान जो
( 1 ) वयस्क हो ,
( 2 ) उसका मानसिक सन्तुलन सही हो ,
( 3 ) वसीयत करने का अधिकार रखता हो ।
वसीयत कर सकता है । वसीयत के उद्देश्य से वयस्कता की आयु Indian Majority Act , 1875 द्वारा निश्चित की जाती है जो कि कोर्ट ऑफ वार्डस द्वारा संरक्षण प्राप्त व्यक्ति के लिए 21 वर्ष तथा अन्य मामलों में 18 वर्ष है । यदि नाबालिग का अनुसमर्थन ( ratification ) करें। किसी व्यक्ति को दण्डित ( Condemned ) किये जाने के आधार पर ही वसीयत से वंचित नहीं किया जा सकता ।
अब्दुल मयन खाँ बनाम मुर्तजा खाँ ' के वाद में पटना उच्च न्यायालय ने यह अभिव्यक्त किया है कि कोई मुसलमान जो स्वस्थ चित्त का है तथा बालिग है अपनी सम्पत्ति को निस्तारण करने के लिए करने के लिए वैध वसीयत कर सकता है । वैध वसीयत का विशेष प्रारूप वसीयत करने के आवश्यक नहीं है ।
एक मामले में मुस्लिम विधि द्वारा नियन्त्रित नाबालिगों की ओर से न्यायालय में एक वाद दायर किय गया कि उनके हिस्से में 4/5 तक हिस्से के उस विक्रय पत्र को निरस्त किया जाय जो कि उनकी ओर से उनके संरक्षक के निष्पादित किया था । प्रश्न यह था कि क्या ऐसे बाधित ( barred ) विक्रय - पत्र को निरस्त किया जा सकता है और क्या वह मर्यादा विधि की धारा 34 के अधीन बाधित है । इस प्रश्न पर उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि विधि में ऐसी कोई. व्यवस्था नहीं है जिसके अनुसार किसी विक्रय - पत्र को निरस्त करने से मना किया जा सके चाहे वह स्वयं में शून्य ( void ) ही हो ।
शिया कानून - शिया कानून के अनुसार ऐसा व्यक्ति जिसने अपने स्वयं को
(अ) घातक रूप से घायल किया हो
( ब ) आत्म हत्या के लिए विषपान किया हो ।
के द्वारा की गई वसीयत को मान्यता नहीं दी जाती क्योंकि उसने उक्त कार्य करके यह साबित कर दिया कि उसने अपनी चेतना समाप्त कर दी है तथा वह मृतकों की श्रेणी में आ गया है । अतः ऐसा वसीयतनामा अमान्य होता है ।
धर्म त्याग किए व्यक्ति द्वारा की गई वसीयत –'धर्म त्याग ' ( aspostate ) द्वारा की गई वसीयत मान्य होगी अथवा नहीं , इस विषय पर मतभेद है । सुन्नी सम्प्रदाय के मालिकी कानून अनुसार धर्म त्याग करने वाले व्यक्ति द्वारा की गई वसीयत अमान्य होगी ।
हनाफी कानून के अनुसार ऐसी वसीयत मान्य होगी बशर्ते कि जिस सम्प्रदाय से उक्त व्यक्ति ने धर्म त्याग किया हो उसके कानून के अनुसार यह वैध हो ।
दिवालिए द्वारा किया गया वसीयतनामा - किसी दिवालिए द्वारा किया गया वसीयतनामा वैध नहीं होता है क्योंकि वसीयत करने की पहली शर्त यह है कि वसीयतकर्ता उस सम्पत्ति का स्वयं मालिक हो । यदि सम्पत्ति के परिसम्मत ( asscts ) कम होंगे और आधार ( liabilities ) से मुक्त न हो जाये । अधिक हों तो वसीयतनामा उस समय मान्य नहीं होगा जब तक सम्पत्ति सारे ऋण और आभारों ऐसे मुक्त न हो जाये।
व्यक्ति की वसीयत जिसे मृत्यु दण्ड दिया गया हो वसीयत मान्य है । किसी अपराध के लिए दिया गया मृत्यु - दण्ड उसे वसीयत करने के अधिकार से वंचित नहीं कर सकता ।
वसीयत का रद्द होना ( Revocation of will ) - वसीयत को मौखिक लिखित रूप से घोषणा करके वसीयतकर्त्ता द्वारा किया जा सकता है । यदि वह चाहे तो कोई इस प्रकार का कार्य करके वसीयत को रद्द कर सकता है जिससे कि उसके ऐसा करने की इच्छा अभिव्यक्त हो , जैसे
( i ) वसीयतकर्ता किसी भूमि की वसीयत करने के बाद उस पर मकान बनवा ले तो वसीयत स्वयमेव रद्द हो जायेगी । या
( ii ) वसीयत किये गये मकान को बेच दे या किसी अन्य व्यक्ति को दान कर दे ,
( iii ) वसीयत की गई सम्पत्ति का स्वरूप ही बदल जाय , जैसे खाली भूमि पर फसल उगाकर खेत खड़े कर लिए जाएँ ,
( iv ) एक बार वसीयत किसी व्यक्ति के लिए हो जाने के बाद दुबारा किसी अन्य व्यक्ति को वसीयत किये जाने पर पहले व्यक्ति की वसीयत रद्द हो जाती है ।
ए . आई . 1991 पटना 154
रफीक खान बनाम मोहम्मद उमर खान व अन्य ( 1883 All .LJ.211)
A.I.R. 1991 पटना 155
वीर वी व अन्य बनाम पुत्तो गवेन ( A. I. R. 1986 )
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