मकान मालिक आप से जबरदस्ती मकान या दुकान खाली करवायें या फिर किराया दोगुना करने की धमकी दे तो ऐसी स्थिति में आप क्या करेंगे?
मकान मालिक द्वारा किराया दोगुना करने या दुकान खाली करने की मांग: →कानूनी समाधान
मकान मालिक और किरायेदार के बीच संबंध एक कानूनी अनुबंध पर आधारित होते हैं, जिसे पट्टा या लीज़ समझौता कहा जाता है। इस अनुबंध में दोनों पक्षों की जिम्मेदारियाँ और अधिकार स्पष्ट रूप से लिखे होते हैं। अगर मकान मालिक अचानक से किराया दोगुना कर देते हैं या दुकान खाली करने का आदेश देते हैं, तो इसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। आइए जानें कि ऐसे हालात में किरायेदार कोर्ट का सहारा कैसे ले सकते हैं:
1.किराया बढ़ाने पर कानूनी कदम→
मकान मालिक बिना पूर्व सूचना या कानूनी कारण के किराया नहीं बढ़ा सकते। अगर मकान मालिक बिना उचित सूचना दिए अचानक किराया दोगुना कर देता है, तो किरायेदार निम्नलिखित कदम उठा सकते हैं:→
लीज़/पट्टा समझौते की समीक्षा करें:→
सबसे पहले, किरायेदार को अपने लीज़ या पट्टा समझौते को ध्यान से पढ़ना चाहिए। इसमें यह उल्लेख होना चाहिए कि मकान मालिक को कब और किस परिस्थिति में किराया बढ़ाने का अधिकार है। अगर पट्टा समझौते में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, तो मकान मालिक किराया बढ़ाने का अधिकार नहीं रखता।
कानूनी नोटिस भेजें:→
अगर मकान मालिक नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं, तो किरायेदार उन्हें एक कानूनी नोटिस भेज सकते हैं, जिसमें स्पष्ट किया जा सकता है कि किराया बढ़ाने की उनकी मांग अवैध है। यह नोटिस मकान मालिक को स्थिति सुधारने के लिए समय देता है।
स्थानीय किराया नियंत्रण कानूनों की जांच करें:→
कई शहरों और राज्यों में किराया नियंत्रण कानून होते हैं, जो यह तय करते हैं कि मकान मालिक कितनी बार और कितना किराया बढ़ा सकते हैं। अगर आपके इलाके में ऐसे कानून मौजूद हैं, तो आप अपने अधिकारों की रक्षा के लिए उनका सहारा ले सकते हैं।
अदालत में मामला दर्ज करें:→
अगर मकान मालिक किराया बढ़ाने पर अड़े रहते हैं और कानूनों का पालन नहीं करते, तो आप अदालत में मामला दर्ज कर सकते हैं। अदालत आपके लीज़ समझौते और संबंधित कानूनों के आधार पर फैसला करेगी।
2.दुकान खाली करने की मांग पर कानूनी कदम→
अगर मकान मालिक अचानक से आपको दुकान खाली करने का आदेश देता है, तो इसका सीधा संबंध आपके लीज़/पट्टा समझौते से है। मकान मालिक केवल उन्हीं शर्तों पर दुकान खाली करवा सकता है जो समझौते में पहले से तय की गई हों।
लीज़ की अवधि का ध्यान रखें:→
अगर लीज़ की अवधि अभी खत्म नहीं हुई है, तो मकान मालिक आपको जबरन खाली नहीं करवा सकता। लीज़ समझौते में यह स्पष्ट होना चाहिए कि आप कितने समय तक उस संपत्ति का उपयोग कर सकते हैं। मकान मालिक को यह अवधि पूरी होने तक इंतजार करना होगा।
बेदखली के कानूनी कारण →
मकान मालिक को कानूनी रूप से दुकान खाली करवाने के लिए वैध कारण बताने होंगे। जैसे कि किराए का भुगतान न करना, संपत्ति का अनुचित उपयोग करना, या लीज़ समझौते की शर्तों का उल्लंघन करना। अगर कोई वैध कारण नहीं है, तो बेदखली अवैध मानी जाएगी।
बेदखली नोटिस:→
मकान मालिक को बेदखली के लिए आपको लिखित नोटिस देना होगा। इस नोटिस में कारण और खाली करने की समय सीमा स्पष्ट रूप से लिखी होनी चाहिए। यह समय सीमा राज्य के कानूनों के अनुसार होती है, जो आमतौर पर 30 दिन होती है।
अदालत की मदद लें:→
अगर मकान मालिक आपको अवैध तरीके से खाली करवाने की कोशिश कर रहे हैं, तो आप अदालत की शरण ले सकते हैं। अदालत मकान मालिक से बेदखली का वैध कारण पूछेगी और बिना उचित कारण के बेदखली को रोकने के आदेश दे सकती है।
3. उदाहरण:→
मान लीजिए कि आपने एक दुकान पट्टे पर ली है, जिसकी अवधि अभी समाप्त नहीं हुई है, और मकान मालिक अचानक से किराया दोगुना कर देते हैं। आपने अपने लीज़ समझौते की समीक्षा की और पाया कि इसमें किराया बढ़ाने के बारे में कोई शर्त नहीं है। आप मकान मालिक को कानूनी नोटिस भेजते हैं, जिसमें स्पष्ट करते हैं कि उनकी मांग अवैध है। मकान मालिक फिर भी अपनी मांग पर अड़े रहते हैं, तो आप अदालत में मामला दर्ज करते हैं। अदालत आपके पक्ष में फैसला सुनाती है और मकान मालिक को पुराने किराए पर दुकान जारी रखने का आदेश देती है।
इस प्रकार, मकान मालिक की अनुचित मांगों के खिलाफ कानूनी मदद ली जा सकती है। किरायेदारों को अपने अधिकारों के बारे में जानकारी होनी चाहिए और किसी भी अनुचित मांग या दबाव के खिलाफ कानूनी रूप से कार्रवाई करनी चाहिए।
यदि आपकी दुकान का कोई लिखित एग्रीमेंट (पट्टा/लीज़) नहीं हुआ है, तो स्थिति थोड़ा जटिल हो सकती है। बिना लिखित एग्रीमेंट के भी, किरायेदारों और मकान मालिकों के बीच मौखिक समझौते या कुछ कानूनी नियम लागू होते हैं। ऐसे मामलों में, निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार किया जा सकता है:
1. मौखिक समझौते की वैधता:→
मौखिक समझौते कानूनी रूप से मान्य हो सकते हैं, लेकिन इनकी पुष्टि करना कठिन हो सकता है। अगर कोई लिखित एग्रीमेंट नहीं है, लेकिन दोनों पक्षों ने मौखिक रूप से किसी विशेष किराया, अवधि, और शर्तों पर सहमति दी है, तो वह एक तरह से कानूनी समझौता माना जा सकता है। हालांकि, इसे अदालत में सिद्ध करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि लिखित सबूतों की कमी होती है।
2.कानूनी नोटिस:→
अगर मकान मालिक आपसे दुकान खाली करवाना चाहते हैं, तो उन्हें आपको लिखित नोटिस देना होगा, भले ही कोई लिखित एग्रीमेंट न हो। अधिकतर राज्यों में, नोटिस की अवधि 30 दिन की होती है। इसका मतलब है कि अगर मकान मालिक आपसे दुकान खाली करवाना चाहते हैं, तो उन्हें आपको 30 दिन पहले नोटिस देना होगा, ताकि आप उचित व्यवस्था कर सकें।
3.स्थानीय किराया नियंत्रण कानून:→
कई राज्यों और शहरों में किराया नियंत्रण कानून होते हैं, जो किरायेदारों को बिना किसी लिखित एग्रीमेंट के भी सुरक्षा प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, अगर आप लंबे समय से किराए पर रह रहे हैं, तो मकान मालिक आपको तुरंत दुकान खाली करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। उन्हें स्थानीय कानूनों का पालन करना होगा और उचित कारण बताना होगा।
4.बेदखली के वैध कारण:→
मकान मालिक बिना किसी वैध कारण के दुकान खाली नहीं करवा सकते, चाहे कोई एग्रीमेंट हो या न हो। वैध कारणों में शामिल हो सकते हैं:→
•किराया न चुकाना
•दुकान का अनुचित उपयोग करना
•मकान मालिक का संपत्ति का निजी उपयोग करना
5.अदालत में समाधान:→
यदि मकान मालिक आपको बिना उचित कारण के दुकान खाली करने का आदेश देता है, तो आप अदालत का सहारा ले सकते हैं। अदालत यह देखेगी कि मकान मालिक का आदेश वैध है या नहीं। अगर मकान मालिक उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं करता, तो अदालत आपके पक्ष में फैसला दे सकती है।
उदाहरण:→
मान लीजिए कि आपने 5 साल से एक दुकान किराए पर ली हुई है, लेकिन कोई लिखित एग्रीमेंट नहीं हुआ है। आप हर महीने नियमित रूप से किराया देते हैं, और मकान मालिक इसे स्वीकार करते हैं। एक दिन मकान मालिक आपसे अचानक दुकान खाली करने को कहता है, बिना कोई लिखित कारण बताए या नोटिस दिए।
इस स्थिति में, आप उनसे लिखित नोटिस मांग सकते हैं, और अगर वह कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं करते, तो आप उन्हें अदालत में चुनौती दे सकते हैं। अदालत में आप यह सिद्ध कर सकते हैं कि मौखिक समझौता था, और आप लंबे समय से नियमित किराया दे रहे थे। अदालत मकान मालिक को आपको उचित समय और कारण के बिना दुकान खाली करवाने से रोक सकती है।
निष्कर्ष:→
भले ही आपकी दुकान के लिए कोई लिखित एग्रीमेंट नहीं हुआ हो, फिर भी मकान मालिक आपको तुरंत दुकान खाली करवाने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। उन्हें उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होगा, जिसमें लिखित नोटिस और बेदखली का वैध कारण शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश में किरायेदारी से संबंधित कई रोचक और महत्वपूर्ण कानूनी मामले हुए हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख मामले नीचे दिए गए हैं:→
1.लक्ष्मी देवी बनाम अयोध्या प्रसाद (2017)→
मामला:→
यह मामला किरायेदारी कानून और किरायेदार के अधिकारों से जुड़ा था। मकान मालिक ने किरायेदार को किराया न चुकाने का आरोप लगाते हुए बेदखली का मामला दायर किया था। किरायेदार का दावा था कि उसने पूरा किराया चुकाया है, लेकिन मकान मालिक रसीद देने से इनकार कर रहा है।
न्यायालय का फैसला:→
अदालत ने किरायेदार के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि मकान मालिक को किराए की रसीद प्रदान करनी चाहिए थी। बिना उचित सबूत के मकान मालिक किरायेदार को बेदखल नहीं कर सकता। अदालत ने यह भी कहा कि रसीद देना मकान मालिक की जिम्मेदारी होती है, और रसीद न देना किरायेदार को बेदखल करने का उचित आधार नहीं हो सकता।
2. राजेश गुप्ता बनाम सुनील कुमार (2019)→
मामला:→
यह मामला तब सामने आया जब मकान मालिक ने किरायेदार को दुकान खाली करने के लिए कहा, यह दावा करते हुए कि वह दुकान का उपयोग अपने व्यवसाय के लिए करना चाहता है। किरायेदार ने दावा किया कि मकान मालिक का यह कारण झूठा है और वह केवल दुकान का किराया बढ़ाने के लिए दबाव बना रहा है।
न्यायालय का फैसला:→
अदालत ने इस मामले में किरायेदार के पक्ष में फैसला सुनाया। अदालत ने पाया कि मकान मालिक ने किराया बढ़ाने के उद्देश्य से दुकान खाली करने का आदेश दिया था, जबकि उसने यह साबित नहीं किया कि उसे वास्तव में दुकान की आवश्यकता है। इस मामले ने यह सिद्ध किया कि मकान मालिक बिना ठोस कारण के किरायेदार को बेदखल नहीं कर सकते।
3.बृजमोहन बनाम राधा कृष्ण (2021)→
मामला:→
इस मामले में किरायेदार ने मकान मालिक के खिलाफ बेदखली के नोटिस का विरोध किया। मकान मालिक ने किराए का भुगतान न करने का आरोप लगाया था, जबकि किरायेदार का कहना था कि उसने किराया समय पर दिया है और मकान मालिक ने किराए की राशि लेने से इनकार कर दिया है।
न्यायालय का फैसला:→
न्यायालय ने पाया कि किरायेदार ने अपने दावे के समर्थन में बैंक की रसीदें और अन्य दस्तावेज प्रस्तुत किए, जबकि मकान मालिक ने किराया लेने से इनकार किया था। अदालत ने किरायेदार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए मकान मालिक को निर्देश दिया कि वह किरायेदार को बिना किसी वैध कारण के बेदखल नहीं कर सकता। इस मामले में न्यायालय ने यह भी कहा कि मकान मालिक किराया लेने से मना नहीं कर सकता और किरायेदार को परेशान नहीं कर सकता।
4.मोहम्मद सलीम बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (2022)→
मामला:→
यह मामला उत्तर प्रदेश के एक बड़े शहर में किराए के विवाद से संबंधित था। मकान मालिक ने किरायेदार को बेदखल करने की कोशिश की, यह दावा करते हुए कि उसे संपत्ति की जरूरत है। हालांकि, किरायेदार ने कहा कि मकान मालिक झूठे दावे कर रहा है और केवल किराया बढ़ाने का प्रयास कर रहा है।
न्यायालय का फैसला:→
अदालत ने पाया कि मकान मालिक का दावा सत्य नहीं था और उसने केवल किराया बढ़ाने के उद्देश्य से किरायेदार को परेशान करने की कोशिश की थी। अदालत ने मकान मालिक को निर्देश दिया कि वह किरायेदार को परेशान न करे और बिना उचित कारण के बेदखल करने के प्रयासों को रोक दे।
5.श्यामलाल बनाम शांति देवी (2020)→
मामला:→
यह मामला तब सामने आया जब एक वृद्ध महिला ने अपने मकान मालिक पर बेदखली का केस दर्ज किया। मकान मालिक ने अपने पुराने किरायेदार को अचानक बेदखल करने की कोशिश की थी, यह दावा करते हुए कि किरायेदार ने किराए का भुगतान नहीं किया है।
न्यायालय का फैसला:→
अदालत ने पाया कि वृद्ध महिला नियमित रूप से किराया देती थी, लेकिन मकान मालिक रसीद नहीं देता था। अदालत ने मकान मालिक के खिलाफ जुर्माना लगाया और किरायेदार के पक्ष में फैसला दिया। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि बिना उचित दस्तावेज़ों और साक्ष्यों के मकान मालिक किसी भी किरायेदार को बेदखल नहीं कर सकता।
इन मामलों से यह स्पष्ट होता है कि उत्तर प्रदेश में किरायेदारी के मामलों में न्यायालय किरायेदारों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए सतर्क है। मकान मालिकों को कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना चाहिए और बिना वैध कारणों के किरायेदारों को बेदखल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
कोर्ट में मकान या दुकान मालिक के खिलाफ मुकदमा दायर करने के लिए कई धाराओं का उपयोग किया जा सकता है, जो कि मामले की परिस्थिति और विवाद के प्रकार पर निर्भर करती हैं। किरायेदारी विवादों में, किरायेदारों के अधिकारों की रक्षा के लिए दण्ड संहिता,सिविल प्रक्रिया संहिता, और किरायेदारी कानून के तहत कई प्रावधान उपलब्ध हैं। आइए, उन प्रमुख धाराओं और कानूनी प्रावधानों की विस्तृत जानकारी लेते हैं, जिनका उपयोग किरायेदारी विवादों में किया जाता है:→
1.सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC), 1908→
यह कानून सिविल विवादों का निपटारा करने के लिए प्रक्रियाओं का प्रावधान करता है, जैसे कि किरायेदारी विवाद। यदि किरायेदार और मकान मालिक के बीच विवाद सिविल प्रकृति का है, तो सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत केस दाखिल किया जा सकता है।
•धारा 9 (न्यायालय का क्षेत्राधिकार):→
इस धारा के तहत, किरायेदार अदालत में मकान मालिक के खिलाफ सिविल मुकदमा दायर कर सकता है। यदि किरायेदार को लगता है कि उसके अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, तो वह धारा 9 के तहत न्यायालय में राहत के लिए आवेदन कर सकता है।
•धारा 11 (रेस जुडिकाटा):→
अगर किसी किरायेदारी विवाद पर पहले ही अदालत द्वारा फैसला दिया जा चुका है, तो उसी मामले को फिर से अदालत में नहीं लाया जा सकता। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि एक ही विवाद पर बार-बार मुकदमा दायर न किया जाए।
•स्थायी निषेधाज्ञा (Order XXXIX, Rule 1 and 2):→
यदि मकान मालिक किरायेदार को अनुचित रूप से बेदखल करने की कोशिश करता है, तो किरायेदार अदालत से स्थायी निषेधाज्ञा की मांग कर सकता है। इसके तहत, अदालत मकान मालिक को बेदखली या अन्य कार्रवाई करने से रोक सकती है जब तक कि मामला सुलझ नहीं जाता।
2. भारतीय दण्ड संहिता (IPC), 1860→
अगर किरायेदार के खिलाफ मकान मालिक की कार्रवाई आपराधिक प्रकृति की है, तो भारतीय दण्ड संहिता के प्रावधानों के तहत मुकदमा किया जा सकता है। किरायेदारी विवादों में आमतौर पर निम्नलिखित धाराओं का उपयोग किया जाता है:
•धारा 441 (आपराधिक अतिक्रमण):→
यदि मकान मालिक किरायेदार की अनुमति के बिना उसकी संपत्ति में प्रवेश करता है या संपत्ति पर अतिक्रमण करता है, तो यह धारा 441 के तहत आपराधिक अतिक्रमण माना जाएगा। इस धारा के तहत मकान मालिक के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जा सकता है।
•धारा 448 (अवैध घुसपैठ):→
अगर मकान मालिक जबरदस्ती किरायेदार की संपत्ति में प्रवेश करता है और उसे खाली करने की कोशिश करता है, तो यह धारा 448 के तहत अपराध माना जाता है। इस धारा के तहत अवैध घुसपैठ के लिए सजा हो सकती है।
•धारा 503 (आपराधिक धमकी):→
यदि मकान मालिक किरायेदार को धमकी देता है कि वह उसकी संपत्ति छीन लेगा या उसे नुकसान पहुंचाएगा, तो यह धारा 503 के तहत आपराधिक धमकी का अपराध बनता है।
•धारा 506 (धमकी देना):→
धारा 506 के तहत, यदि मकान मालिक किरायेदार को नुकसान पहुंचाने या धमकाने का प्रयास करता है, तो यह आपराधिक अपराध माना जाएगा और इस धारा के तहत सजा दी जा सकती है।
3.उत्तर प्रदेश शहरी भवन (किरायेदारी विनियमन) अधिनियम, 1972→
उत्तर प्रदेश में किरायेदारी विवादों से निपटने के लिए यह विशेष कानून लागू है। इस कानून के तहत मकान मालिक और किरायेदारों के अधिकार और कर्तव्यों को स्पष्ट किया गया है।
•धारा 20 (बेदखली से सुरक्षा):→
इस धारा के तहत मकान मालिक बिना वैध कारण के किरायेदार को बेदखल नहीं कर सकता। किरायेदार को न्यायालय में जाकर बेदखली से सुरक्षा के लिए आवेदन करने का अधिकार है। इस धारा के तहत मकान मालिक को किरायेदार को नोटिस देना आवश्यक है और बेदखली का कारण स्पष्ट करना होता है।
•धारा 21 (बेदखली के लिए न्यायालयीन अनुमति):→
अगर मकान मालिक किरायेदार को बेदखल करना चाहता है, तो उसे न्यायालय से अनुमति लेनी होगी। मकान मालिक केवल उन्हीं कारणों पर किरायेदार को बेदखल कर सकता है, जिन्हें कानून के तहत वैध माना गया है, जैसे कि किराया न चुकाना, संपत्ति का अनुचित उपयोग, या लीज़ समझौते का उल्लंघन।
4. भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872→
यह अधिनियम सभी प्रकार के अनुबंधों को नियंत्रित करता है। किरायेदारी अनुबंध भी इसके अंतर्गत आता है। यदि मकान मालिक और किरायेदार के बीच किसी अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन होता है, तो भारतीय अनुबंध अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है।
•धारा 73 (अनुबंध का उल्लंघन और हर्जाना):→
यदि मकान मालिक या किरायेदार अनुबंध का उल्लंघन करता है, तो हर्जाने की मांग की जा सकती है। यह धारा मकान मालिक के खिलाफ मुकदमे के लिए प्रासंगिक हो सकती है यदि वह अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन करता है।
5. निषेधाज्ञा अधिनियम, 1963 (Specific Relief Act)→
इस अधिनियम के तहत यदि मकान मालिक अनुचित तरीके से किरायेदार से संपत्ति खाली करवाने की कोशिश करता है, तो किरायेदार विशेष राहत के लिए न्यायालय में आवेदन कर सकता है।
धारा 38 (स्थायी निषेधाज्ञा):→
अगर मकान मालिक किरायेदार को परेशान कर रहा है या बिना उचित कारण संपत्ति से बेदखल करने का प्रयास कर रहा है, तो धारा 38 के तहत किरायेदार स्थायी निषेधाज्ञा की मांग कर सकता है, ताकि मकान मालिक को इस प्रकार की गतिविधियों से रोका जा सके।
निष्कर्ष:→
मकान या दुकान मालिक के खिलाफ मुकदमा करने के लिए किरायेदार के पास विभिन्न कानूनी प्रावधान उपलब्ध हैं। ये धाराएं मकान मालिक के अनुचित या अवैध कार्यों को नियंत्रित करती हैं और किरायेदार को न्यायालय में उचित संरक्षण प्राप्त करने में मदद करती हैं।
यदि किरायेदार और मकान मालिक के बीच किरायेदारी विवाद पर मुकदमा दर्ज किया गया है, तो एक सामान्य प्रश्न यह होता है कि जब मुकदमा कोर्ट में लंबित है, तब किराया किसे दिया जाना चाहिए। इस प्रकार के मामलों में अदालत किरायेदार को किराया जमा करने का एक कानूनी तरीका प्रदान करती है ताकि किरायेदार पर बेदखली का दबाव न बने और मकान मालिक भी उचित रूप से किराया प्राप्त कर सके।
किराया कोर्ट में जमा करने की प्रक्रिया:→
1. कोर्ट में किराया जमा करना (Tendering Rent in Court):→
यदि मकान मालिक किराया लेने से इनकार कर देता है या विवाद के चलते किराया नहीं लिया जाता है, तो किरायेदार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह निर्धारित समय पर किराया जमा कर दे। इस स्थिति में, किरायेदार अदालत में एक आवेदन कर सकता है और अदालत के आदेश के तहत किराया अदालत में जमा करवा सकता है। इसे कंडिशनल डिपॉजिट कहते हैं, और अदालत उस जमा किए गए किराए की राशि को नियंत्रित करती है।
2. रेंट कंट्रोलर के पास किराया जमा करना:→
उत्तर प्रदेश में, किरायेदारी मामलों में किरायेदार विवाद के दौरान रेंट कंट्रोलर (Rent Controller) के पास किराया जमा कर सकता है। यह प्रक्रिया राज्य के किरायेदारी कानूनों के तहत की जाती है, जैसे कि उत्तर प्रदेश शहरी भवन (किरायेदारी विनियमन) अधिनियम, 1972। यह सुनिश्चित करता है कि किरायेदार के खिलाफ बेदखली की कार्रवाई केवल इस आधार पर न हो कि उसने किराया नहीं चुकाया है।
3. मकान मालिक को कोर्ट के माध्यम से किराया प्राप्त करना:→
यदि मुकदमा चल रहा है और किरायेदार अदालत में या रेंट कंट्रोलर के पास किराया जमा कर रहा है, तो मकान मालिक अदालत के आदेश के तहत उस किराए को प्राप्त कर सकता है। यह मकान मालिक और किरायेदार दोनों के लिए फायदेमंद होता है क्योंकि यह विवाद के समाधान तक किराए की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
संबंधित महत्वपूर्ण केस:→
1.मोहनलाल बनाम मिर्जा अब्दुल सत्तार (1974)→
मामला:→
यह मामला तब आया जब किरायेदार ने मकान मालिक को किराया देने की कोशिश की, लेकिन मकान मालिक ने इसे लेने से मना कर दिया और किरायेदार के खिलाफ बेदखली की कार्रवाई शुरू की। किरायेदार ने अदालत में किराया जमा कर दिया और मकान मालिक को नोटिस भी भेजा।
न्यायालय का फैसला:→
अदालत ने कहा कि किरायेदार द्वारा अदालत में किराया जमा करना उचित था, और मकान मालिक को यह राशि अदालत के माध्यम से प्राप्त करनी चाहिए। इस मामले में, अदालत ने किरायेदार के पक्ष में फैसला सुनाया और बेदखली की कार्रवाई को खारिज कर दिया, यह मानते हुए कि किरायेदार ने अपना दायित्व पूरा किया है।
2. चंद्रशेखर सिंह बनाम हरी प्रसाद (1992)→
मामला:→
इस मामले में किरायेदार ने नियमित रूप से किराया देने की कोशिश की, लेकिन मकान मालिक ने जानबूझकर किराया लेने से इनकार कर दिया। मकान मालिक ने बाद में किरायेदार के खिलाफ बेदखली का मामला दायर किया, आरोप लगाते हुए कि किराया नहीं दिया गया था।
न्यायालय का फैसला:→
अदालत ने कहा कि यदि मकान मालिक किराया लेने से इनकार करता है, तो किरायेदार अदालत में किराया जमा कर सकता है, और मकान मालिक को इसे अदालत के माध्यम से प्राप्त करना चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि किरायेदार अपने कानूनी कर्तव्यों का पालन कर रहा है और मकान मालिक को किराया नहीं मिलने की शिकायत नहीं हो सकती।
3. फतेह सिंह बनाम ललिता देवी (2008)
→
मामला:→
यह मामला तब सामने आया जब किरायेदार ने अदालत में रेंट कंट्रोलर के पास किराया जमा कर दिया था क्योंकि मकान मालिक ने किराया लेने से इनकार कर दिया था। मकान मालिक ने इस आधार पर बेदखली का दावा किया कि किराया समय पर नहीं चुकाया गया।
न्यायालय का फैसला:→
अदालत ने कहा कि जब किरायेदार ने अदालत में या रेंट कंट्रोलर के पास किराया जमा कर दिया है, तो इसे वैध माना जाएगा, और मकान मालिक इसे प्राप्त कर सकता है। यह मामला किरायेदार के पक्ष में गया और बेदखली की कार्रवाई खारिज कर दी गई।
4. हरी सिंह बनाम रामेश्वर प्रसाद (2015)→
मामला:→
इस मामले में किरायेदार और मकान मालिक के बीच किराए को लेकर विवाद था। किरायेदार ने अदालत में मुकदमे के दौरान किराया जमा करवा दिया, लेकिन मकान मालिक ने इसे अदालत से लेने से इनकार कर दिया।
न्यायालय का फैसला:→
अदालत ने फैसला सुनाया कि यदि किरायेदार अदालत में नियमित रूप से किराया जमा करवा रहा है, तो मकान मालिक को यह किराया लेने का अधिकार है, और अदालत के आदेश को अस्वीकार करने का कोई वैध कारण नहीं होना चाहिए। मकान मालिक को यह निर्देश दिया गया कि वह किराए की राशि अदालत से प्राप्त करे।
निष्कर्ष:→
जब किसी किरायेदारी विवाद पर अदालत में मुकदमा दर्ज किया जाता है, तो किरायेदार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह अदालत में या रेंट कंट्रोलर के पास किराया नियमित रूप से जमा करे। ऐसा करने से मकान मालिक किराए का दावा नहीं कर सकता कि किरायेदार ने किराया नहीं दिया है। किरायेदार के खिलाफ बेदखली की कार्रवाई भी रोक दी जा सकती है यदि वह समय पर अदालत में किराया जमा कर रहा हो।
अगर किरायेदार और दुकान/मकान मालिक के बीच विवाद हो जाता है और मामला कोर्ट में चला जाता है, तो सवाल उठता है कि इस दौरान किराया किसे दिया जाएगा। आसान भाषा में समझते हैं:→
जब मामला कोर्ट में है, किराया किसे दिया जाए?→
1. कोर्ट में किराया जमा करना:→
अगर मकान मालिक किराया नहीं ले रहा है या विवाद के कारण लेना नहीं चाहता, तो किरायेदार कोर्ट में जाकर किराया जमा कर सकता है। इसका मतलब यह है कि किरायेदार कोर्ट के पास पैसे जमा करेगा और मकान मालिक बाद में कोर्ट से वह किराया ले सकता है।
2. मकान मालिक किराया लेने से मना करता है:→
अगर मकान मालिक कहता है कि वह किराया नहीं लेगा, तब भी किरायेदार को परेशानी नहीं होगी। वह कोर्ट में जाकर कह सकता है कि "मैंने किराया देने की कोशिश की, लेकिन मकान मालिक ने मना कर दिया।
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