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अनुसूचित जाति के व्यक्ति पर हमला करने वाले व्यक्तियों को सजा कैसे दिलायें। दलित व्यक्ति को न्याय प्राप्त करने के लिए कौन-कौन कानूनी प्रक्रियाएं होती हैं।

महर (Dower) क्या है?इस्लामी विवाह में इसका महत्व और उद्देश्य क्या- क्या है?

महर (Dower) इस्लामी विवाह का एक महत्वपूर्ण घटक है जो पत्नी के अधिकारों और सम्मान की रक्षा के लिए होता है। महर उस धनराशि या संपत्ति को कहते हैं जिसे विवाह के बदले पति अपनी पत्नी को प्रदान करता है। यह पत्नी का हक होता है और विवाह के समय ही इसके बारे में बात की जाती है। कई इस्लामी देशों और शरियत कानून के तहत, महर को विवाह का एक अनिवार्य तत्व माना जाता है।

महर का उद्देश्य (Object of Mehar)→

1. पत्नी के सम्मान का प्रतीक:→महर पत्नी के प्रति सम्मान और उसकी सुरक्षा का प्रतीक है। यह पति पर एक जिम्मेदारी डालता है कि वह अपनी पत्नी का ख्याल रखे।
   
2. तलाक के मनमाने अधिकार पर अंकुश:→महर पति के तलाक देने के मनमाने अधिकार पर भी अंकुश लगाता है क्योंकि तलाक के बाद महर का भुगतान करना अनिवार्य होता है। उदाहरण के तौर पर, अगर एक पति बिना किसी उचित कारण के तलाक देता है, तो उसे तत्काल महर चुकाना पड़ेगा, जिससे वह इस अधिकार का दुरुपयोग नहीं कर सकता।

3. आर्थिक सुरक्षा:→महर का एक और प्रमुख उद्देश्य तलाक या पति की मृत्यु के बाद पत्नी को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है। यह एक प्रकार की वित्तीय सहायता के रूप में काम करता है जिससे पत्नी अपने जीवन को आगे बढ़ा सके।

महर के प्रकार (Types of Dower)→

महर को दो प्रमुख प्रकारों में बांटा गया है: →

1. निर्दिष्ट महर (Specified Dower):→जब विवाह के समय महर की राशि निर्धारित कर दी जाती है, तो उसे निर्दिष्ट महर कहा जाता है। उदाहरण के रूप में, अगर निकाह के दौरान पति और पत्नी की आपसी सहमति से 50,000 रुपये महर तय होता है, तो यह निर्दिष्ट महर कहलाएगा। एक महत्वपूर्ण केस, मोहम्मद शहाबुद्दीन बनाम उम्मेदर रसूल में अदालत ने कहा कि पति अपनी पत्नी को मेहर के रूप में कोई भी राशि दे सकता है, भले ही वह उसकी आर्थिक स्थिति से अधिक हो। हालांकि, महर की न्यूनतम राशि के लिए शरिया कानून का पालन किया जाता है, जहां 10 दिरहम की न्यूनतम राशि होती है।

2. उचित महर (Proper Dower)→ यदि निकाह के समय महर की राशि तय नहीं होती है, तो पत्नी उचित महर (महर-ए-मिस्ल) की हकदार होती है। उचित महर का निर्धारण कई कारकों पर निर्भर करता है जैसे कि महिला के पिता की सामाजिक स्थिति, पति की आर्थिक स्थिति, और अन्य महिला रिश्तेदारों को मिले महर का मानक।

महर का वर्गीकरण (Classification of Dower)→
महर को भुगतान के आधार पर दो भागों में वर्गीकृत किया गया है:→

1. तत्काल महर (Prompt Dower)→ यह वह महर होता है जिसे निकाह के तुरंत बाद ही मांग पर चुकाना होता है।
   
2. विलम्बित महर (Deferred Dower):→यह वह महर होता है जिसका भुगतान तलाक के समय या पति की मृत्यु के बाद किया जाता है।

महर का दावा और समय सीमा (Claiming Dower and Limitation Period)→

अगर पत्नी को जीवनकाल में महर का भुगतान नहीं किया जाता, तो उसकी मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारी महर का दावा कर सकते हैं। परिसीमा अधिनियम, 1963 के अनुसार, महर का दावा 3 महीने की सीमा में किया जा सकता है:

•महर की मांग करने पर:→पत्नी तीन महीने के भीतर महर का दावा कर सकती है।
•पति की मृत्यु पर:→पति की मृत्यु के तीन महीने के भीतर पत्नी अपने कानूनी उत्तराधिकारियों से महर का दावा कर सकती है।
•तलाक की स्थिति में:→तलाक होने की तारीख से 3 महीने के भीतर महर का दावा किया जा सकता है।

महर न चुकाने पर पत्नी के अधिकार:→

महर का भुगतान न करने पर पत्नी के पास कुछ कानूनी अधिकार होते हैं:→

1. साथ रहने से इनकार:→अगर महर का भुगतान नहीं किया जाता, तो पत्नी यौन-संबंध न होने की स्थिति में अपने पति के साथ रहने से इनकार कर सकती है।
   
2. ऋण का अधिकार:→महर पति के खिलाफ एक असुरक्षित ऋण है, जिसे पति की मृत्यु के बाद भी उसके कानूनी उत्तराधिकारी से वसूला जा सकता है।

3. पति की संपत्ति पर कब्जा:→यदि महर का भुगतान नहीं किया गया, तो पत्नी महर के बदले पति की संपत्ति पर कब्जा कर सकती है, हालांकि वह उसे बेच नहीं सकती।

महर माफ करने की प्रक्रिया (Remission of Dower by Wife):→

पत्नी चाहे तो विवाह के बाद महर को माफ कर सकती है, लेकिन इसके लिए उसे स्वतंत्र सहमति देनी होगी और वह मानसिक रूप से सक्षम होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, एक पत्नी यदि अपने पति के प्रति प्रेम या किसी अन्य व्यक्तिगत कारण से महर माफ करना चाहती है, तो वह ऐसा कर सकती है, बशर्ते कि उसकी सहमति पूर्णतया स्वतंत्र हो।

उदाहरण (Example):→

मान लीजिए कि फातिमा और अली का निकाह हुआ और महर के रूप में 1 लाख रुपये निर्धारित किए गए। अगर अली तलाक देता है या उसकी मृत्यु हो जाती है, तो फातिमा को यह महर मिलना चाहिए। अगर अली महर का भुगतान नहीं करता, तो फातिमा उसके उत्तराधिकारियों से इसका दावा कर सकती है या अली की संपत्ति पर कब्जा कर सकती है, जब तक कि उसे महर नहीं मिल जाता।

निष्कर्ष (Conclusion):→

महर इस्लामी विवाह में केवल एक वित्तीय लेनदेन नहीं है, बल्कि यह पत्नी के अधिकारों की सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण तत्व है। यह पति के लिए एक जिम्मेदारी है जो उसे अपनी पत्नी के प्रति सम्मान, सुरक्षा, और समर्पण के रूप में अदा करनी होती है।

महर से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण और रोचक केस इस्लामी कानून में पति-पत्नी के अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में स्पष्टता प्रदान करते हैं। ये केस न केवल महर की अवधारणा को समझने में मदद करते हैं बल्कि यह भी बताते हैं कि किस प्रकार कानून का उपयोग पत्नी के अधिकारों की रक्षा के लिए किया जाता है। यहाँ कुछ प्रमुख केस दिए गए हैं:→

1.अब्दुल कादिर बनाम सलीमा (1886):→
महर का उद्देश्य:→
इस केस में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि मुस्लिम विवाह एक "सिविल कॉन्ट्रैक्ट" है, जिसमें महर एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अदालत ने कहा कि महर का उद्देश्य पत्नी के प्रति सम्मान व्यक्त करना और उसकी आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित करना है। महर का भुगतान न केवल शादी के समय होता है, बल्कि तलाक या पति की मृत्यु की स्थिति में भी इसका दावा किया जा सकता है।  
महत्व:→इस फैसले ने महर को पति के अधिकार और कर्तव्य के रूप में देखा, और इसे विवाह का अनिवार्य हिस्सा माना।

2.मोहम्मद शहाबुद्दीन बनाम उम्मेदर रसूल:→
महर की राशि:→
इस केस में, अदालत ने यह माना कि पति अपनी पत्नी को कोई भी राशि महर के रूप में दे सकता है, भले ही वह उसकी सामर्थ्य से बाहर हो। यहाँ तक कि अगर महर की राशि इतनी बड़ी हो कि उसे चुकाने के बाद पति के उत्तराधिकारियों के पास कुछ भी न बचे, तो भी पति महर का भुगतान करने के लिए बाध्य होता है।  
महत्व:→इस केस से यह बात स्पष्ट होती है कि महर एक निर्धारित जिम्मेदारी है, जिसे पति अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार तय नहीं कर सकता।

3.हमिदुल्ला बनाम फौजिया बेगम (1918):→
महर माफ करने का अधिकार:→
इस केस में अदालत ने कहा कि पत्नी महर माफ कर सकती है, लेकिन ऐसा करने के लिए उसे पूरी तरह से वयस्क और मानसिक रूप से सक्षम होना चाहिए। इसके साथ ही, उसे माफ करने का निर्णय स्वतंत्र रूप से और बिना किसी दबाव के करना होगा।  
महत्व:→इस केस ने यह स्पष्ट किया कि महर माफ करने का अधिकार पत्नी के पास है, लेकिन यह तभी मान्य होगा जब उसकी सहमति स्वतंत्र और दबावमुक्त हो।

4. फत्तो बाई बनाम महबूब साहिब (1929):→
विलम्बित महर का भुगतान:→
इस केस में अदालत ने कहा कि जब महर की राशि विवाह के समय निर्धारित नहीं की गई हो, तो तलाक या पति की मृत्यु के बाद पत्नी "उचित महर" (महर-ए-मिस्ल) पाने की हकदार होती है।  
महत्व:→यह केस यह बताता है कि यदि महर की राशि निकाह के समय तय नहीं की गई है, तो भी पत्नी को न्यायपूर्ण महर प्राप्त करने का अधिकार होता है।

5.सारा बीबी बनाम अहमद सईद (1937):→
पति के ऋण के रूप में महर:→
इस केस में अदालत ने स्पष्ट किया कि महर एक असुरक्षित ऋण के रूप में पति के ऊपर होता है। अगर पति की मृत्यु हो जाती है और महर का भुगतान नहीं किया गया है, तो पत्नी उसके उत्तराधिकारियों से इस राशि का दावा कर सकती है।  
महत्व:→इस फैसले ने महर को पति की संपत्ति के विरुद्ध एक दायित्व के रूप में देखा, जिसे उसकी मृत्यु के बाद भी वसूला जा सकता है।

6.फजलन बीबी बनाम खैरुल्लाह (1976):→
महर के लिए पत्नी का संपत्ति पर कब्ज़ा:→
इस मामले में, पत्नी ने महर का भुगतान न होने पर पति की संपत्ति पर कब्ज़ा कर लिया। अदालत ने यह फैसला सुनाया कि पत्नी अपने महर की राशि के बदले संपत्ति पर कब्ज़ा कर सकती है, लेकिन उसे बेचने का अधिकार नहीं है।  
महत्व:→यह केस यह बताता है कि अगर महर का भुगतान नहीं किया जाता है, तो पत्नी को संपत्ति पर कब्ज़ा करने का अधिकार है, लेकिन संपत्ति की बिक्री की अनुमति नहीं दी जाती।

7. शमीम बीबी बनाम मोहम्मद (2018):→
तलाक के बाद महर का दावा:→
इस केस में, पत्नी ने तलाक के बाद महर का दावा किया। पति ने तलाक के बाद महर की अदायगी से इनकार कर दिया था। अदालत ने फैसला सुनाया कि तलाक के बाद भी पत्नी महर की हकदार होती है और पति को उसका भुगतान करना अनिवार्य होता है।  
महत्व:→यह केस तलाक के बाद महर के अधिकार को स्पष्ट करता है और यह सुनिश्चित करता है कि पत्नी को तलाक के बाद भी आर्थिक सुरक्षा प्राप्त हो।

निष्कर्ष:→

इन मामलों से यह स्पष्ट होता है कि महर इस्लामी कानून में केवल एक वित्तीय लेन-देन नहीं है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण साधन है जो पत्नी के सम्मान और सुरक्षा की रक्षा करता है। यह केस न केवल मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित रखने में मदद करते हैं बल्कि यह भी दिखाते हैं कि न्यायालयों ने समय-समय पर महर की अहमियत को स्वीकार किया है और उसके उचित भुगतान को सुनिश्चित किया है।

महर (Dower) की प्रथा, इस्लामी विवाह में एक महत्वपूर्ण तत्व के रूप में स्थापित है और इसका मूल उद्देश्य महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा करना है। हालांकि, इसके वास्तविक कार्यान्वयन और आधुनिक सामाजिक संदर्भ में इसके प्रभाव को ध्यान में रखते हुए यह कहना ज़रूरी है कि यह प्रथा महिलाओं के लिए पूरी तरह से सुरक्षित है या नहीं, यह कई कारकों पर निर्भर करता है। आइए इसके कुछ प्रमुख पहलुओं पर विचार करें:

महर के पक्ष में तर्क:→

1. आर्थिक सुरक्षा का साधन:→
   महर का मुख्य उद्देश्य यह है कि विवाह के बाद या तलाक की स्थिति में पत्नी को आर्थिक सुरक्षा मिले। अगर इसे सही ढंग से लागू किया जाए, तो यह महिला को तलाक या पति की मृत्यु के बाद आर्थिक रूप से स्वतंत्र बना सकता है। तलाक या मृत्यु के बाद महिला को तुरंत भरण-पोषण के लिए महर मिलना उसे असहाय स्थिति में जाने से बचाता है।

2. पति के अधिकारों पर नियंत्रण:→
   महर तलाक के मनमाने अधिकार पर एक प्रकार से नियंत्रण रखता है। अगर पति तलाक देना चाहता है, तो उसे महर की राशि का भुगतान करना होगा। इससे पति पर आर्थिक दबाव पड़ता है और तलाक देने के निर्णय पर पुनर्विचार करने का अवसर मिलता है।

3. सम्मान और सुरक्षा का प्रतीक:→
   महर का विचार पत्नी के प्रति सम्मान और उसकी स्थिति को मान्यता देने के लिए है। यह पत्नी के अधिकारों को संरक्षित करने का एक प्रयास है ताकि वह सिर्फ़ विवाह के समय ही नहीं, बल्कि तलाक या मृत्यु के बाद भी सुरक्षित रहे।

महर के खिलाफ तर्क:→

1. वास्तविक कार्यान्वयन में समस्याएं:→
   महर का सही और समय पर भुगतान करने में कई व्यावहारिक कठिनाइयाँ होती हैं। कई बार पति महर की राशि को जानबूझकर बहुत कम रखते हैं या विवाह के समय महर का निर्धारण न करके इसे बाद में विवाद का कारण बना देते हैं। इसके अलावा, तलाक या पति की मृत्यु के बाद भी महिलाओं को महर प्राप्त करने में कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती है।

2. महिला की आर्थिक स्थिति का कोई प्रभाव नहीं:→
   महर एक ऐसा प्रावधान है जो विवाह के समय तय
किया जाता है, लेकिन इसमें महिला की आर्थिक स्थिति और उसकी भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में नहीं रखा जाता। कई बार पति महर की रकम को जानबूझकर कम रखने की कोशिश करते हैं, जिससे तलाक या पति की मृत्यु के बाद महिला को पर्याप्त आर्थिक सहायता नहीं मिल पाती।

3. सामाजिक और पारिवारिक दबाव:→
   कई बार महिलाओं पर सामाजिक और पारिवारिक दबाव डाला जाता है कि वे महर को माफ कर दें या कम राशि स्वीकार कर लें। इस कारण महिलाएँ स्वतंत्र रूप से महर का दावा करने या उचित महर की मांग करने से हिचकिचाती हैं। इस स्थिति में, महर का उद्देश्य समाप्त हो जाता है, और महिलाएँ आर्थिक रूप से असुरक्षित रह जाती हैं।

4. समानता के सिद्धांत का उल्लंघन:→
   महर की प्रथा सिर्फ़ महिलाओं के लिए होती है और यह पति के वित्तीय कर्तव्यों पर केंद्रित है। हालांकि यह आर्थिक सुरक्षा का एक साधन है, लेकिन यह पूरी तरह से पति पर निर्भर करता है, जिससे महिला की खुद की आर्थिक स्वतंत्रता की अनदेखी होती है। 

समाधान और सुधार के उपाय:→

1. महर की रकम का सही निर्धारण:→
   महर की रकम का निर्धारण यथार्थवादी होना चाहिए और इसे महिला की आवश्यकताओं और पति की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए तय किया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाए कि यह राशि न तो बहुत कम हो और न ही इतनी बड़ी हो कि इसका भुगतान असंभव हो।

2. कानूनी सुरक्षा:→
   महर के भुगतान में किसी भी प्रकार की देरी या विवाद से बचने के लिए इस प्रथा को कानूनी रूप से और भी अधिक सख्त बनाया जाना चाहिए। महिलाओं को उनके महर के अधिकार के प्रति जागरूक किया जाए और उन्हें कानूनी समर्थन दिया जाए ताकि वे अपने अधिकारों का दावा कर सकें।

3. महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता:→   महर के साथ-साथ महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने के अन्य उपायों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। सिर्फ़ महर पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है। शिक्षा, रोजगार और संपत्ति के अधिकार जैसे मुद्दों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि महिलाएँ खुद आर्थिक रूप से मजबूत हों।

निष्कर्ष:→

महर की प्रथा का उद्देश्य महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की रक्षा करना है, और यदि इसे सही तरीके से लागू किया जाए, तो यह महिलाओं के लिए एक सुरक्षित व्यवस्था हो सकती है। हालांकि, कई बार यह प्रथा सामाजिक और कानूनी बाधाओं के कारण अपने उद्देश्य को पूरी तरह से पूरा नहीं कर पाती। इसे और अधिक प्रभावी बनाने के लिए जागरूकता, कानूनी सुधार, और महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता पर ध्यान देना आवश्यक है। महर का सही और न्यायपूर्ण कार्यान्वयन महिलाओं के लिए एक सकारात्मक और सुरक्षित व्यवस्था बन सकता है, लेकिन इसे सामाजिक और कानूनी ढांचे में सुधार की आवश्यकता है।

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