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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

मुस्लिम विधि मे वक्फ क्या होता है? वक्फ की स्थापना कब की जाती है और इसका मुस्लिम धर्म मे क्या उपयोग होता है?

वक्फ : वक्फ का शाब्दिक अर्थ है निरोध या रोक या प्रतिबन्धित करना अर्थात समर्पित ,सम्पत्ति के स्वामित्व को समर्पणकर्ता से दूर करने को सर्वशक्तिमान में निरुद्ध कर देना।


अबू हनीफा के अनुसार " यह किसी विशेष वस्तु को वाकिफ के स्वामित्व में रोक रखना और उसके लाभ या फलोपभोग की खैरात में गरीबों पर या दूसरे नेक प्रयोजनों से अरियत या बिना सूद के ऋण के रूप में विनियोग करना ( लगाना ) है । " इस परिभाषा में दो तथ्य निहित है -

  ( 1 ) वक्फ की जाने वाली सम्पत्ति पर उसके मूल स्वामी का स्वामित्व वक्फ स्थापित हो जाने पर समाप्त हो जाता है ।


  ( 2 ) उस सम्पत्ति के लाभों का उपयोग दानार्थ और पवित्र उद्देश्य के लिए किया जाता है ।


    अबू हनीफा के दो शिष्य काजी अबू युसूफ और इमाम मुहम्मद ने वक्फ की परिभाषा  इस प्रकार दी है कि " वक्फ किसी विशेष वस्तु का इस रीति से विनियोग व्यक्त करता है जिससे कि वह खुदाई सम्पत्ति के नियमों के अधीन हो जाती है और उस वस्तु में वाकिफ का अधिकार समाप्त हो जाता है और उसका लाभ खुदा के जीवों तक पहुंचाता है जिससे वह अल्लाह की सम्पत्ति हो जाती है ।


      उपर्युक्त परिभाषा को हनाफी सम्प्रदाय के विधिशास्त्रियों ने बहुतायत से माना और  विश्लेषण किया । उनके अनुसार उक्त परिभाषा में वक्फ के तीन निम्न मुख्य तत्व हैं -


( 1 ) सर्वकालीन और अखण्डनीय ईश्वरीय स्वामित्व ।

 ( 2 ) स्थापना करने वाले के अधिकार की समाप्ति ।

  ( 3 ) मानव जाति का कल्याण ।


 विद्यावारुथी तीर्थ बनाम बलुसायी अय्यर ' के वाद में न्यायमूर्ति असीर अली ने कहा था कि भारत में दान के साथ - साथ न्यास की विधि की उत्पत्ति मुस्लिम शासन स्थापित होने के बाद हुई और यही कारण है कि बाद के कई दस्तावेजों में देश के उन भागों में जहाँ मुस्लिम प्रभाव रहा , वक्फ शब्द का प्रयोग समर्पण के लिए किया गया था । वक्फ का अर्थ है सम्पत्ति को  सर्वशक्तिमान खुदा के उपलक्षित स्वामित्व में इस प्रकार बाँधना कि उसका लाभ मानव को वापस पहुंचे या मानव हित के प्रयोग में लाया जाय । 


 शिया सम्प्रदाय ( Shiatie ) —शिया सम्प्रदाय में वक्फ के बारे में कुछ अन्यथा धारणा है । शरा - य - उल - इस्लाम में वक्फ ( Wakf ) की परिभाषा इस प्रकार दी गई है कि वक्फ ऐसी संविदा है जिसका फल या प्रभाव यह होता है कि मूल ( सम्पत्ति ) प्रतिबन्धित हो जाती है और उसका फलोपभोग अब्दु ( free ) रह जाता है ।


 इस परिभाषा के मुख्य तत्व निम्नलिखित हैं -

( 1 ) वक्फ की सम्पत्ति को बाँधना या स्थिर करना ,

 ( 2 ) सम्पत्ति की आय को मानवता के हित के उद्देश्यों में प्रयुक्त करना । 

 वक्फ अधिनियम 1913 ( The wakf Act 1913 ) - वक्फ अधिनियम 1913 की धारा 2 ( 1 ) के अनुसार , " वक्फ का तात्पर्य , इस्लाम धर्म में निष्ठा प्रकट करने वाले किसी व्यक्ति द्वारा सी सम्पत्ति का मुस्लिम विधि के अन्तर्गत धार्मिक पवित्र या खैराती समझे जाने वाले प्रयोजन के लिए स्थायी समर्पण । " 



 वक्फ के आवश्यक तत्व ( The essentials of a Wakf ) - 


( 1 ) वक्फ करने का उद्देश्य धार्मिक होना चाहिए और आध्यात्मिक हित की प्राप्ति के लिए वह सम्पति  का ईश्वर को समर्पण करे ।

 ( 2 ) सम्पत्ति के स्वामित्व का समर्पण सर्वकालिक ( Imperpetuity ) होना चाहिए । किसी निश्चित अवधि जैसे बीस वर्ष तीस वर्ष इत्यादि के लिए किया गया वक्फ अवैध होता है।

 ( 3 ) वाकिफ ( Wakif ) अर्थात् जो अपनी सम्पति का वक्फ स्थापित करे , उस पर वास्तव में स्वामित्व रखता हो और उसको उस सम्पत्ति में समर्पण करने और अन्तरण करने  की अध्यक्षता ( disability ) न हो ।


 ( 4 ) वाकिफ को अपनी सम्पत्ति वक्फ में देने के बाद उसका कब्जा पूर्ण रूप से छोड  देना चाहिए । यदि वक्फ की सम्पत्ति पर यदि वह थोड़ा - सा भी कब्जा रखता है तो ऐसा  अवैध होगा । यदि वक्फकर्ता स्वयं मुतवल्ली ( Mutvalli ) है तो भौतिक रूप से कब्जे के अन्तरण करने की आवश्यकता नहीं होगी । ऐसे मामले में केवल घोषणा ही पर्याप्त होगी । 


( 5 ) वक्फ का प्रयोजन मुस्लिम कानून द्वारा मान्यता प्राप्त अन्य कार्यों जैसे मस्जिदों की मरम्मत या देखभाल , मकतब ( स्कूल ) ताजियों की देखभाल इत्यादि आते हैं । मुस्लिम वक्फ  वैधता अधिनियम 1913 ( Muslim wakf Validating Act 1913 ) के अनुसार सन्तान के लिए वक्फ स्थापित किया जा सकता है जिसे वक्फ - उल - औलाद ( Wakf - ul - aulad ) कर जाता है ।


 ( 6 ) वाकिफ या वक्फ करने वाला व्यक्ति 

( अ ) मुस्लिम धर्म को मानने वाला होना चाहिए । 

( ब ) स्वस्थ चित्त हो । 

( स ) नाबालिग हो । 

( 7 ) वक्फ समाश्रित ( Contingent ) नहीं होना चाहिए । उसकी प्रकृति स्थायी हो तभी वह वैध माना जाता है ।


  ( 8 ) वक्फ बिना किसी शर्त के होना चाहिए । यदि वक्फ स्थापित करने वाले ने कोई शर्त लगा रखी हो तो वह उक्त वक्फ  को कभी भी विखंडित (Revoke) करा सकता है । 


( 9 ) वक्फ में प्रयोजन का नाम स्पष्ट कर दिया जाना आवश्यक नहीं है  परन्तु उसको  निश्चिततापूर्वक स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए । यदि वक्फ के प्रयोजन में अनिश्चितता होगी तो वह शून्य ( Void ) हो जायेगा । 


शिया कानून ( Shiate's law ) शिया सम्प्रदाय के अनुसार वक्फ के निम्नलिखित तत्व है-

 ( 1 ) वह स्थायी हो ।

 ( 2 ) पूर्ण और शर्त रहित हो ।

 ( 3 ) समर्पित सम्पत्ति का आधिपत्य दे दिया गया हो ।


 ( 4 ) समर्पित सम्पत्ति वाकिफ के पास से पूर्णतः हटा ली जाय अर्थात् उसका कोई भी भाग वाकिफ के किसी हित के लिये सुरक्षित न हो।



 मान्य वक्फ की स्थापना - वक्फ की स्थापना किसी भी ऐसे व्यक्ति द्वारा की जा सकती है जो मुस्लिम धर्म में आस्था रखता हो और अपनी सम्पत्ति को ईश्वरीय सत्ता की घरोहर समझ कर पवित्र धार्मिक उद्देश्यों के लिए समर्पण करने को कृत संकल्प हो । वक्फ की स्थापना के  निम्न तरीके हो सकते हैं 

( 1 ) वाकिफ  द्वारा उसको सम्पत्ति वक्फ के लिए समर्पित ( Dedicate ) करने पर वह उसके जीवन काल में ही लागू होता है ।


  ( 2 ) अब वाकिफ अपनी मृत्यु के पश्चात् इच्छा - पत्र ( will ) छोड़ जाय कि उसकी मृत्यु के बाद उसकी सम्पत्ति का वक्फ स्थापित कर दिया जाय तो ऐसा वक्फ उसकी सम्पत्ति के 1/3 भाग से अधिक पर बिना उत्तराधिकारियों की सहमति के लागू नहीं किया जा सकता ।


 ( 3 ) यदि वक्फ मौत की बीमारी ( मर्ज - उल - मौत ) के दौरान होता है तो बिना उत्तराधिकारियों की सम्पत्ति के वास्तविक सम्पत्ति के 1/3 से अधिक हिस्से पर वह लागू नहीं होगा ।

 ( 4 ) यदि किसी सम्पत्ति को वक्फ के उद्देश्यों के समर्पित किये जाने का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिलता तो उसके स्थायित्व का साक्ष्य वे लोग देते हैं जो उस सम्पत्ति का उपयोग करते हैं जैसे किसी भूमि पर मस्जिद या भूमि पर श्मशान इत्यादि । 


वक्फ ( Wakf ) की स्थापना व निम्नलिखित औपचारिकताएँ ( formalites ) होती है

 ( 1 ) मौखिक वक्फ - जो वक्फ मौखिक रूप से किये जाने हैं उनकी घोषणा लिखित नहीं की जाती । ऐसे मामलों में वाकिफ और उसके उत्तराधिकारी का वक्तव्य , उनका आचरण , सम्पत्ति को उपयोग में लाने का ढंग इत्यादि महत्वपूर्ण तथ्य होते हैं ।

( 2 ) लिखित वक्फ - जब वक्फ के लिए सम्पत्ति के समर्पण की सभी शर्तें पूरी हो जाती हैं तो उसको लिपिबद्ध कर लिया जाता है और आवश्यकता पड़ने पर वक्फ को साबित करने के लिए किसी अन्य साक्ष्य की बजाय लेख - पत्र पर उसकी प्रमाणित प्रतिलिपियाँ ही पर्याप्त होती हैं।

 ( 3 ) पंजीकरण ( Registration ) - वक्फ की गई अचल सम्पत्ति यदि सौ रुपये से अधिक की हो उसका भारतीय पंजीकरण अधिनियम ( Indian Registration Act ) के  अन्तर्गत रजिस्ट्रेशन होना आवश्यक होता है । 

 वक्फ की पूर्णता ( Completion of Wakf) - वक्फ की पूर्णता के विषय में प्रत्येक सम्प्रदाय के विधिशास्त्रियों ( Jurists ) में मतभेद हैं । उदहारण के लिए हनाफी सम्प्रदाय के अन्तर्गत जीवितों ( Intervivos ) के वक्फ के प्रश्न पर विभिन्न मत हैं । 

( 1 ) अबूयुसूफ ( Abu Yusur ) - अबूयुसूफ के अनुसार वाकिफ की केवल घोषणा मात्र से ही वक्फ पूरा हो जाता है और वक्फ सम्पत्ति का स्वामित्व परोक्ष रूप से ईश्वर से अन्तरित हुआ माना जाता है । इस दृष्टिकोण को भारतवर्ष में कई न्यायालयों ने माना है ।


 ( 2 ) इमाम मुहम्मद ( Imam Muhammad ) इमाम मुहम्मद के अनुसार वक्फ की पूर्णतः  ( Completion of wakf ) के लिए निम्न तीन बातें आवश्यक हैं -


( अ ) घोषणा ( Declaration ) | 


(ब) मुतवल्ली की नियुक्ति (Appointment of mutwalli)




 ( स ) मुतवल्ली के हक के कब्जे का अन्तरण ( Transfer of possession in favour of mutwalli ) । 


     जिस मामले में वाकिफ स्वयं ही मुतवल्ली हो तो कब्जे की सम्पत्ति के अन्तरण की कोई आवश्यकता नहीं होती । ऐसे मामले में यह भी आवश्यक नहीं है कि वाकिफ के स्वामित्व के नाम से सम्पति उसके मुतवल्ली के नाम अन्तरित हो । यदि वक्फ के सम्बन्ध में न तो घोषणा हो और न कब्जे का अन्तरण हो तो इच्छा मात्र से ही वक्फ नहीं बन जाता । 


( 3 ) अबू हनीफा ( Abu Hanifa ) अबू हनीफा के अनुसार वाकिफ की शक्ति या अधिकार को समाप्त करने के लिए डिक्री आवश्यक है । 


शिया सम्प्रदाय ( Shia School ) - इस सम्बन्ध में शिया सम्प्रदाय वालों के वही मत है । जो इमाम मुहम्मद के हैं । 



     भारत में प्रचलित व्यवस्था- भारत में अबू युसूफ के इस मत  कि घोषणा मात्र से वक्फ पूर्ण हो जाता है । विभिन्न उच्च न्यायालयों जैसे कलकत्ता , बम्बई , पटना , रंगून , इलाहाबाद इत्यादि ने माना है । किसी समय में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इमाम मुहम्मद वाली विचारधारा को माना था परन्तु बहुमत ने निर्णय द्वारा उसको अस्वीकार करके इसे माना ।


    वक्फ का विखण्डन ( Revocation of Wakf) 


सामान्य नियम यह है कि एक बार वक्फ पूरा हो जाने पर उसे विखण्डित या रद्द ( Revoke ) नहीं किया जा सकता है ।


    इस सम्बन्ध में कुछ अन्य व्यवस्थाएँ निम्न प्रकार से हैं-


 ( 1 ) जब कोई व्यक्ति अपनी सम्पत्ति अपने जीवनकाल में दानार्थ उद्देश्यों के लिए समर्पित करके वक्फ स्थापित करता है तो ऐसे वक्फ को रद्द नहीं किया जा सकता । 


( 2 ) जिस वक्फ में यह व्यवस्था होती है कि वाकिफ की मृत्यु के पश्चात् उसकी सम्पति का अमुक भाग उद्देश्य में प्रयोग किया और उसका उल्लेख इच्छा - पत्र में होता है तो ऐसे वक्फ में सम्पत्ति का दान करने वाला व्यक्ति अपनी स्वेच्छा से अपनी मृत्यु के पूर्व रद्द पूर्व कभी भी रद्द कर सकता है । 


( 3 ) मर्ज - उल - मौत ( Marj - ul - maut ) के अधीन किये गये वक्फ को वाकिफ मृत्यु के  पूर्व कभी भी रद्द कर सकता है ।


 शिया कानून ( Shia's Law ) - शिया कानून के अनुसार घोषणा और कब्जे का अन्तरण करना आवश्यक होता है ।  यदि वाकिफ ही प्रथम मुतवल्ली है तो दाखिल खारिज ( Mutation ) करना आवश्यक होता है।



( 1921 ) 8 आई . ए . 302 , 312

A.I.R. 1977 मद्रास 374

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