किन परिस्थितियों में हिंदू विधवा पृथक भरण पोषण की हकदार होती है? Under what circumstances is a Hindu widow entitled to separate maintenance?
विधवा पुत्र वधू: - प्राचीन विधि के अनुसार विधवा पुत्रवधू को भरण-पोषण देना ससुर का ना तो विधिक दायित्व और ना व्यक्तिगत. यह केवल एक नैतिक दायित्व है. अधिनियम की धारा 19 मे पुत्रवधू के भरण-पोषण के बारे में कहा गया है किंतु वह ससुर के दायित्व को व्यक्तिगत दायित्व नहीं बनाती ।जैसा कि मु.रूपा बनाम ग्रियावती के वाद में कहा गया है कि पुत्रवधू के भरण-पोषण का ससुर का केवल नैतिक दायित्व है कि वह विधवा पुत्र वधू का भरण पोषण करें किन्तु ससुर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र से उसकी स्वार्जित संपत्ति को प्राप्त करता है वह कानूनी रूप से विधवा पुत्रवधू के भरण पोषण देने के लिए बाध्य रहता है.
हिंदू दत्तक ग्रहण तथा भरण पोषण अधिनियम की धारा 19 यह उपबंधित करती है -
( 1) कोई हिंदू पत्नी चाहे वह इस अधिनियम के प्रारंभ से पूर्व या पश्चात विवाहित हो अपने पति की मृत्यु के पश्चात अपने ससुर से भरण-पोषण प्राप्त करने की हकदार होगी.
परंतु यह सब अब तक और उस विस्तार तक जहां कि वह स्वयं अर्जन से या अन्य संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो या उस दशा में जहां उसके पास अपनी स्वयं की कोई भी संपत्ति नहीं है वह निम्नलिखित में से किसी से अपना भरण-पोषण अभिप्राप्त करने में असमर्थ हो -
( क) अपने पति या अपने पिता की संपदा से या
(b ) अपने पुत्र या पुत्री से यदि कोई हो या उसकी संपदा से
( 2) यदि ससुर के अपने कब्जे में की ऐसी सहदायिकी संपत्ति से जिसमें से पुत्रवधू को कोई अंश अभिप्राप्त नहीं हुआ है ससुर के लिए ऐसा करना बाध्य नहीं है तो उस उपधारा (1) के अधीन किसी आभार का अनुपात नहीं कराया जा सकेगा और ऐसा कोई आभार पुत्र वधू के पुनर्विवाह पर ना रहेगा.
धारा 19 (2) मे उन दशाओं को बतलाया गया है जिसके अनुसार विधवा पुत्रवधू के भरण पोषण का दायित्व समाप्त हो जाता है. यह दशाएं निम्नलिखित है -
( 1) यदि ससुर के पास कोई साधन पोषण के लिए नहीं है जो ऐसी सहदायित्व संपत्ति में हो जिसका पति रहा हो
( 2) विधवा पुत्रवधू ने इस प्रकार की सहदायिकी संपत्ति में हिस्सा ना प्राप्त किया हो
( 3) उसने पुनर्विवाह कर लिया हो
( 4) उसने धर्म परिवर्तन कर लिया हो
विधवा के लिए भरण पोषण प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि वह साध्वी बनी रहे परंतु जब भरण-पोषण किसी डिक्री अथवा किसी करार द्वारा किसी संपत्ति पर प्रभार बना दिया जाता है और डिक्री अथवा करार में यह शर्त ना हो कि विधवा के असाध्वी होने पर उसका भरण पोषण का अधिकार समाप्त नहीं होगा. (लख्मीचंद रबर नाम आनंद ए आई आर 250).
पुनर्विवाह कर लेने पर विधवा का भरण पोषण का अधिकार समाप्त हो जाता है.
कनर्ड लाल प्रमाणिक बनाम श्रीमती पुष्पा रानी के वाद में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया की धारा 19 की उप धारा(2) मिताक्षरा विधि में ही लागू होती है यह दाएंभाग विधि में लागू नहीं होती क्योंकि दाएभाग विधि के अनुसार विधवा पुत्रवधू के पति को सहदायिकी संपत्ति में कोई अंश मिलने का प्रश्न ही नहीं उठता जब तक ससुर जीवित रहता है उसके पुत्र को सहदायिकी संपत्ति में कोई हक प्राप्त नहीं होता अतः विधवा पुत्रवधू को सहदायिकी की संपत्ति में किसी अंश के प्राप्त होने की संभावना नहीं होगी इस प्रकार उपयुक्त धारा की उपधारा (2)केवल मिताक्षरा विधि तक सीमित है.
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