भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 6 के अनुसार उच्च न्यायालयों और इस संहिता से भिन्न किसी विधि के अधीन गठित न्यायालय के अतिरिक्त प्रत्येक राज्य में निम्नलिखित वर्गों के दंड न्यायालय होंगे अर्थात -
( 1) सत्र न्यायालय
( 2) प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट और किसी महानगर क्षेत्र में महानगर मजिस्ट्रेट
( 3) द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट
भारतीय संविधान के अनुसार उच्चतम न्यायालय को कुछ अपराधिक मामलों से व्यवहार करने की शक्ति प्राप्त है अनुच्छेद 134 में वर्णित अपराधिक मामलों के संबंध में उच्चतम न्यायालय को अपीलीय क्षेत्राधिकार प्रदान किया गया है.
सत्र न्यायालय भारतीय दंड संहिता की धारा 9 के अनुसार -
( 1) राज्य सरकार प्रत्येक सेशन खंड के लिए एक सत्र न्यायालय स्थापित करेंगे
( 2) प्रत्येक सत्र न्यायालय में एक न्यायाधीश पीठासीन होगा जो उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त किया जाएगा
( 3) उच्च न्यायालय अपर सत्र न्यायधीश और सहायक सत्र न्यायाधीशों को भी सत्र न्यायालय में अधिकारिता का प्रयोग करने के लिए नियुक्त कर सकता है
( 4) हाई कोर्ट द्वारा एक सेशन खंड के जज को दूसरे खंड का अपर न्यायाधीश भी नियुक्त किया जा सकता है और ऐसी अवस्था में वह मामलों को निपटाने के लिए दूसरे खंड के ऐसे स्थान या स्थानों में बैठ सकता है जिनका उच्च न्यायालय के निर्देश दे।
( 5) जहां किसी सत्र न्यायाधीश का पद रिक्त होता है वहीं उच्च न्यायालय किसी ऐसे अर्जेंट आवेदन के लिए जो उस सेशन न्यायालय के समक्ष किया जाता है या लंबित है या पर या सहायक सेशन न्यायाधीश द्वारा या अगर आप अन्य सहायक लंबित है पर या सहायक सेशन न्यायाधीश द्वारा या अगर अप्रिय सकसेशन न्यायाधीश नहीं है तो सत्र खंड के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा निपटाए जाने के लिए व्यवस्था कर सकता है और ऐसे प्रत्येक न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट ओं को ऐसे आवेदन पर कार्रवाई करने की अधिकारिता होगी.
( 6) सत्र न्यायालय सामान्य अपनी बैठक ऐसे स्थान वाले स्थानों पर करेगा जो उच्च न्यायालय अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करें परंतु अगर किसी विशेष मामले में सेशन न्यायालय की यह राय है कि सेशन खंड में किसी अन्य स्थान में बैठक करने से पत्रकारों और साक्षियों को सुविधा होगी तो वह अभियोजन और अभियुक्त की सहमति से उस मामले को निपटाने के लिए या उसमें साक्षी या साक्षियों की परीक्षा करने के लिए उस स्थान पर बैठक कर सकता है.
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता के प्रयोजनों के लिए नियुक्ति के अंतर्गत सरकार द्वारा संघ या राज्य कार्यकलापों के संबंध में किसी सेवा या पद पर किसी व्यक्ति की प्रथम नियुक्ति पदस्थापना या पदोन्नति नहीं है जहां किसी विधि के अधीन ऐसी नियुक्ति पद स्थापना या पदोन्नति सरकार द्वारा किए जाने के लिए अपेक्षित है संहिता की धारा 10 के अनुसार -
( 1) सभी सहायक सेशन न्यायाधीश उस सेशन न्यायाधीश के अधीनस्थ होंगे जिसके न्यायालय में व अधिकारिता का प्रयोग करते हैं.
( 2) सेशन न्यायाधीश ऐसे सहायक सेशन न्यायाधीशों में कार्य के वितरण के बारे में इस संहिता के संगत नियम समय-समय पर बना सकता है.
( 3) सेशन न्यायाधीश अपनी गैरमौजूदगी में या कार्य करने में असमर्थता की स्थिति में किसी अर्जेंट आवेदन किया अपर सहायक सेशन न्यायाधीश द्वारा या यदि कोई अप्रिय सहायक सेशन न्यायाधीश ना हो तो मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा निपटाए जाने के लिए व्यवस्था कर सकता है और यह माना जाएगा कि ऐसे प्रत्येक न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट हो को ऐसे आवेदन पर कार्रवाई करने की अधिकारिता है.
न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय (courts of judicial magistrate)
संहिता की धारा 11 के अनुसार -
प्रत्येक जिले में प्रथम वर्ग और द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के इतने न्यायालय ऐसे स्थानों में स्थापित किए जाएंगे जितने और जो राज्य सरकार उच्च न्यायालय से परामर्श के बाद अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करें.
ऐसे न्यायालयों के पीठासीन अधिकारी उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त किए जाएंगे.
उच्च न्यायालय जब कभी उसे यह समीचीन या आवश्यक प्रतीत हो कि किसी सिविल न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्यरत राज्य की न्यायिक सेवा के किसी सदस्य को प्रथम वर्ग किया द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट की शक्तियां प्रदान कर सकता है।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एवं अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (chief judicial magistrate and additional chief judicial magistrates etc.)
भारतीय दंड संहिता की धारा 12 के अनुसार -
उच्च न्यायालय प्रत्येक जिले में जो महानगर क्षेत्र नहीं है एक प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नियुक्त करेगा.
उच्च न्यायालय किसी प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट को अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकता है और ऐसे मजिस्ट्रेट को इस संहिता के अधीन या तत समय प्रवृति किसी अन्य विधि के अधीन मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की सभी या कोई शक्ति है जिनका उच्च न्यायालय निर्देश दे प्राप्त होंगे.
उच्च न्यायालय आवश्यकता अनुसार किसी उपखंड में किसी प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट को उपखंड न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में पदाभिहित कर सकता है और उसे इस धारा में विनिर्दिष्ट उत्तरदायित्वों से मुक्त कर सकते हैं।
प्रत्येक उपखंड न्यायिक मजिस्ट्रेट को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के साधारण नियंत्रण के अधीन रहते हुए उपखंड में अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ओं से भिन्न न्यायिक मजिस्ट्रेटों के काम का पर्यवेक्षण और नियंत्रण की ऐसी शक्तियां भी होंगी जैसे उच्च न्यायालय साधारण या विशेष आदेश द्वारा नियमित विनिर्दिष्ट करें और वह उनका प्रयोग करेगा.
विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट (special judicial magistrate): -
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 13 के अनुसार -
( 1) अगर केंद्रीय या राज्य सरकार उच्च न्यायालय से ऐसा करने के लिए अनुरोध करती है तो उच्च न्यायालय किसी व्यक्ति को जो राज्य सरकार के अधीन कोई पद धारण करता है या जिसने कोई पद धारण किया है किसी जिले में जो महानगर क्षेत्र नहीं है विशेष मामलों के या विशेष वर्ग के मामलों के या साधारणता मामलों के संबंध में द्वितीय वर्ग के न्यायिक मजिस्ट्रेट को इस संहिता द्वारा या उसके अधीन प्रदत्त या प्रत्यय की जा सकने वाली सभी या कोई शक्तियां प्रदत्त कर सकता है परंतु ऐसी कोई शक्ति किसी व्यक्ति को प्रदान नहीं की जाएगी जब तक उसके पास विधिक मामलों के संबंध में ऐसी अर्हता या अनुभव नहीं है जो उच्च न्यायालय नियमों द्वारा विनिर्दिष्ट करें।
( 2) ऐसे मजिस्ट्रेट विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट का लाएंगे और एक समय में 1 वर्ष से अधिक की इतनी अवधि के लिए नियुक्त किए जाएंगे जितनी उच्च न्यायालय साधारण या विशेष द्वारा आदेश द्वारा निर्दिष्ट करें.
महानगर मजिस्ट्रेट के न्यायालय(court of Metropolitan cities)
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 16 के अनुसार प्रत्येक महानगर क्षेत्र में महानगर मजिस्ट्रेट के इतने न्यायालय ऐसे स्थानों में स्थापित किए जाएंगे जितने और जो राज्य सरकार उच्च न्यायालय से परामर्श के पश्चात अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करें ऐसे न्यायालयों के पीठासीन अधिकारी उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त किए जाएंगे प्रत्येक महानगर मजिस्ट्रेट ओं की अधिकारिता और शक्तियों का विस्तार महानगर क्षेत्र में सर्वत्र होगा ।ारा 17 के अंतर्गत उच्च न्यायालय अपनी स्थानीय अधिकारिता के भीतर क्षेत्र के संबंध में एक महानगर मजिस्ट्रेट जो ऐसे महानगर क्षेत्र का प्रमुख महानगर मजिस्ट्रेट नियुक्त करेगा.
उच्च न्यायालय किसी महानगर मजिस्ट्रेट को अपर मुख्य न्यायाधीश मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकता है और ऐसे मजिस्ट्रेट को इस संहिता के अधीन या तत समय प्रवृति किसी अन्य विधि के आदेश मुख्य मजे महानगर मजिस्ट्रेट की सब या कोई शक्तियां जिनका उच्च न्यायालय निर्देश दे होंगी.
विशेष महानगर मजिस्ट्रेट (special metropolitan magistrate)
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 18 के अनुसार -
( 1) अगर केंद्रीय या राज्य सरकार उच्च न्यायालय से ऐसा करने के लिए अनुरोध करते हैं जो उच्च न्यायालय किसी व्यक्ति को जो सरकार के अधीन कोई पद धारण करता है या जिसने कोई पद धारण किया है अपनी स्थानीय अधिकारिता के भीतर किसी महानगर क्षेत्र में विशेष मामलों के या विशेश्वर के मामलों के या साधारण मामलों के संबंध में महानगर मजिस्ट्रेट को इस संहिता द्वारा या उसके अधीन प्रदान की जा सकने वाली सभी या कोई शक्तियां प्रदान कर सकता है परंतु ऐसी कोई शक्ति किसी व्यक्ति को प्रदान नहीं की जाएगी जब तक उसके पास विधिक मामलों के संबंध में ऐसी अर्हता ताजा अनुभव नहीं है जो उच्च न्यायालय नियमो द्वारा विनिर्दिष्ट करें.
( 2) ऐसी मजिस्ट्रेट विशेष महानगर मजिस्ट्रेट कहलाएंगे और एक समय में 1 वर्ष से अधिक की इतनी अवधि के लिए नियुक्त किए जाएंगे जितनी उच्च न्यायालय साधारण या विशेष आदेश द्वारा निर्दिष्ट करें.
( 3) इस संहिता में अन्यत्र किसी बात के होते हुए भी विशेष महानगर मजिस्ट्रेट ऐसा कोई डंडा देश नहीं देगा जिसे द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट महानगर क्षेत्र के बाहर अधिकृत करने के लिए सक्षम नहीं है.
महानगर मजिस्ट्रेट की अधीनस्थता भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 19 के अनुसार
( 1) मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट और प्रत्येक अपर मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट सेशन न्यायाधीश के अधीनस्थ होगा और प्रत्येक अन्य महानगर मजिस्ट्रेट सेशन न्यायाधीश के साधारण नियंत्रण के अधीन रहते हुए मुख्य नगर मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ होंगे.
( 2) हाई कोर्ट भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता के प्रयोजनों के लिए परी निश्चित कर सकेगा कि अपर मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट किस विस्तार तक यदि कोई हो मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ होगा.
( 3) मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट महानगर मजिस्ट्रेट के कार्य के वितरण के बारे में और अपर मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट को कार्य के आवंटन के बारे में समय-समय पर इस संहिता से संगत नियम बना सकेगा या विशेष आदेश दे सकें.
कार्यपालक मजिस्ट्रेट (executive magistrate)
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 20 के अनुसार -
( 1) राज्य सरकार प्रत्येक जिले और प्रत्येक महानगर क्षेत्र में उतने व्यक्तियों को जितने भी उचित समझें कार्यपालिका मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकती है और उनमें से एक को जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त करेगी.
( 2) राज्य सरकार किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को अपर जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकेगी और ऐसे मजिस्ट्रेट को इस संहिता के अधीन या तत समय प्रवृति किसी अन्य विधि के अधीन जिला मजिस्ट्रेट की सभी या कोई शक्तियां प्राप्त होगी.
( 3) जब कभी किसी जिला मजिस्ट्रेट के पद की रिक्ति के परिणाम स्वरूप कोई अधिकारी उसे लेकर कार्यपालक प्रशासक के लिए अस्थाई रूप से उत्तर भर्ती होता है तो ऐसे उत्तराधिकारी राज्य सरकार द्वारा आदेश दिए जाने तक तक समय उन सभी शक्तियों का प्रयोग और कर्तव्यों का पालन करेगा जो उस संस्था द्वारा जिला मजिस्ट्रेट को प्रधान की गई है.
( 4) राज्य सरकार आवश्यकता अनुसार किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को उपखंड का भार साधक बना सकती है और उसको बाहर साधन से मुक्त कर सकती है और इस प्रकार किसी उपखंड का भार साधक बनाया गया मजिस्ट्रेट कहलाएगा.
( 5)इस धारा की कोई बात तत्समय र्पवर्त्य विधि के अधीन महानगर क्षेत्र के संबंध में कार्यपालक मजिस्ट्रेट की सब शक्तियां या उनमें से कोई शक्ति पुलिस आयुक्त को प्रदत्त करने से राज्य सरकार को प्रभावित नहीं करेगी.
दंड प्रक्रिया संहिता के अधीन विशेष से कार्यपालक मजिस्ट्रेट व की नियुक्ति का ग्रुप बंद किया गया है यह मजिस्ट्रेट जिला मजिस्ट्रेट की अधिकारिता में रहेंगे और स्थानीय क्षेत्राधिकार सेवा के अंतर्गत अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे.
(धारा 21, 22व 23)
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