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भारत में दहेज हत्या में क्या सजा का प्रावधान है ? विस्तार से चर्चा करो।

Who can claim maintenance? (भरण पोषण की मांग कौन कर सकता है?)

भरण पोषण की मांग पत्नी अपने बच्चे एवं माता-पिता कर सकते हैं भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता के अध्ययन 9 में एक व्यक्ति के इस आधारभूत कर्तव्य को संविधिक मान्यता दी गई है वह अपनी पत्नी बच्चों और माता-पिता का भरण पोषण करें जब तक कि वह स्वयं अपने भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं इस अध्याय के अंतर्गत  वृद्ध माता-पिता पत्नी एवं अवयस्क बच्चों के बारे में पोषण की व्यवस्था करने का मुख्य आशय एक सामाजिक प्रयोजन को पूरा करना है इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति को दंडित करना कभी नहीं रहा है और ना ही यह दंड की श्रेणी में आता है अहमद अली बनाम बेगम ए आई आर 1952 हैदराबाद 76 संहिता की धारा 125 के अनुसार -


अगर पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति -

अगर पत्नी का जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है या

अपनी धर्मज या अधर्मज अवयस्क संतान का चाहें  विवाहित हो या ना हो जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है या

धर्म अधर्म संतान का जो विवाहित पुत्री नहीं है जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है जहां ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक सा असमान्यता या क्षति के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है या


 अपने पिता या माता का जो अपना भरण-पोषण करने मे असमर्थ भरण पोषण करने में उपेक्षा करता है या भरण पोषण करने से इनकार करता है तो प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ऐसी उपेक्षा या इंकार के साबित हो जाने पर ऐसे व्यक्ति को यह निर्देश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी या ऐसी संतान पिता या माता के भरण-पोषण के लिए कुल मिलाकर ₹500 से अधिक की ऐसी मासिक दर पर जिसे मजिस्ट्रेट ठीक समझें मासिक भत्ता दे और उस भत्ते का सदाय ऐसे व्यक्ति को करें जिसको संदाय करने का मजिस्ट्रेट समय-समय पर निर्देश दें


परंतु मजिस्ट्रेट खंड ( ख) में निर्देशित अवयस्क   लड़की के पिता को निर्देश दे सकता है कि वह उस समय तक ऐसा बता दे जब तक वह वयस्क नहीं हो जाती है यदि मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाता है कि ऐसी आवश्यक पुत्री के यदि वह विवाहित हो पति के पास पर्याप्त साधन नहीं है

इस अध्ययन के प्रयोजनों के लिए निम्न है -

( 1) अवयस्क (minor )से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसके बारे में भारतीय वयस्कता अधिनियम 1875 के उपबंधों  के अधीन यह समझा जाता है कि उसने वयस्कता प्राप्त नहीं की है.

(b) पत्नी के अंतर्गत ऐसी स्त्री भी है जिसके पति ने उसे विवाह विच्छेद कर लिया है या जिसने अपने पति से विवाह विच्छेद कर लिया है और जिसने पुनर्विवाह नहीं किया है.

(c) ऐसा बता आदेश की तारीख से या यदि ऐसा आदेश दिया जाता है तो भरण-पोषण के लिए आवेदन की तारीख से संदेय होगा।

(d) अगर यदि कोई व्यक्ति जिसे आदेश दिया गया हो उस आदेश का अनुपालन करने में पर्याप्त कारण के बिना असफल रहता है तो उस आदेश के प्रत्येक भाग के लिए ऐसा कोई मजिस्ट्रेट रकम के ऐसी रीति से उद्ग रहित किए जाने के लिए वारंट जारी कर सकता है जैसी रीति जुर्माना उद्धृत करने के लिए एक उपबंधित है और उस वारंट निष्पादन के बाद प्रत्येक माह के ना चुकाए गए पूरे भत्ते या उसके किसी भाग के लिए ऐसा व्यक्ति को 1 माह की अवधि के लिए अथवा यदि वह अपने पूर्व चुका दिया जाता है तो चुका देने के समय तक के लिए कारावास का दंड दे सकता है परंतु इस धारा के अधीन देय किसी रकम की वसूली के लिए कोई वारंट तब तक जारी नहीं किया जाएगा जब तक उस रकम की उदगृहीत करने के लिए उस तारीख से किसी जिसका वह देय हुई 1 वर्ष की अवधि के अंदर न्यायालय में आवेदन नहीं किया गया है परंतु यह और कि यदि ऐसा व्यक्ति इस शर्त पर भरण पोषण करने की स्थापना करता है कि उसकी पत्नी उसके साथ रहे और वह पति के साथ रहने से इंकार करती है तो मजिस्ट्रेट उसके द्वारा कथित इनकार के किन आधारों पर विचार कर सकता है और ऐसी स्थापना के लिए जाने पर वह इस धारा के अधीन आदेश दे सकता है अगर उसका समाधान हो जाता है कि ऐसा आदेश देने के लिए न्याय संगत आधार है.


स्पष्टीकरण (conclusion) अगर पति ने अन्य स्त्री से विवाह कर लिया है या वह रखैल  रखता है तो उसकी पत्नी द्वारा उसके साथ रहने से इंकार का न्याय संगत आधार माना जाएगा।

(2) कोई पत्नी अपने पति से इस धारा के अधीन भत्ता प्राप्त करने की हकदार ना होगी यदि वह जारता की दशा में रह रही है यदि व पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इंकार करती है अथवा यदि वे पारस्परिक सम्मति से पृथक रह रहे हैं।

(3) मजिस्ट्रेट ने साबित होने पर आदेश को रद्द कर सकता है कि कोई पत्नी जिसके पक्ष में इस धारा के अधीन आदेश दिया गया है जारता की दशा में रह रही है अथवा पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इंकार करती है अथवा वे पारस्परिक सम्मति से पृथक रह रहे हैं।

            
              हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण पोषण अधिनियम की धारा 20(क) के अनुसार इस धारा के उपबंधों के अधीन रहते हुए कोई हिंदू अपने जीवन काल में अभ्यांतर अपने औरस या जारत बालको और वृद्ध या दुर्बल जनको का भरण पोषण करने के लिए बाध्य है.

उप धारा (1) के अनुसार निम्नलिखित व्यक्ति भरण पोषण प्राप्त करने के अधिकारी -

(अ) पत्नी जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो 

(ब) अवयस्क संतान चाहे वह औरस हो या जारज अथवा विवाहित हो या अविवाहित जो अपना पालन पोषण करने में असमर्थ हो


(स) विवाहित पुत्र से अन्यथा ऐसी औरस या जाऱत संतान जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली हो लेकिन में शारीरिक व मानसिक दुर्बलता के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है।

(द) माता-पिता जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं

(ज) ऐसी अवयस्क विवाहित पुत्री जो अपने पति से भरण-पोषण प्राप्त करने में असमर्थ है।


               इस धारा के अनुसार तलाकशुदा पत्नी अपने भरण पोषण का दावा करने का अधिकार रखती है यदि वह अन्यथा हकदार है नई संहिता के अधीन विवाह विच्छेद का भरण पोषण के अधिकार प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता.


नूर सबा खातून बनाम मोहम्मद खातून के वाद में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मुस्लिम बच्चों के माता-पिता अपने बच्चों के वयस्क होने अथवा  स्वयं का रोजगार उपलब्ध होने तक भरण पोषण करने के लिए बाध्य हैं महिला बच्चों के विवाह होने तक मुस्लिम माता-पिता उनके भरण-पोषण के लिए दायित्वाधीन है इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि बच्चे तलाकशुदा मां के पास रह रहे हैं.


अशोक कुमार सिंह बनाम षष्टम अपर सत्र न्यायाधीश में या आधारित हुआ कि पति की नपुंसकता के कारण यदि पति-पत्नी में लैंगिक संबंध स्थापित नहीं हो सके और इस कारण पत्नी अपने पति से अलग रह रही है तो पत्नी धारा 125 के अंतर्गत भरण-पोषण पाने की अधिकारी होगी.



कामदी भावनी बनाम के एल एल राव में यह निर्णय हुआ कि पति का क्रूरता पूर्वक व्यवहार पत्नी को भरण-पोषण मिलने का पर्याप्त आधार है।

विजया बनाम केशवराव ए आई आर 1987 एस सी 1100 मे उच्चतम न्यायालय ने निर्णय किया कि विवाहित पुत्री भी अपने माता-पिता का भरण पोषण करने के लिए उत्तरदाई है।


मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम ए आई आर 1985 एस सी 945 के बाद में आधारित हुआ कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला भी धारा 125 के अंतर्गत अपने पति से भरण-पोषण प्राप्त करने की हकदार है.



भरण पोषण की प्रक्रिया (Procedure  for maintenance)

                भरण पोषण के लिए मासिक भत्ता दिलाने के लिए न्यायालय से आदेश जारी कराने की प्रक्रिया का वर्णन दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 126 में किया गया है जिसके अनुसार -


( 1) किसी व्यक्ति के विरुद्ध धारा 125 के अधीन कार्यवाही किसी ऐसे जिले में की जा सकती है -

           जहाँ वह उसकी पत्नी रहती हैं अथवा जहां उसने अंतिम बार यथास्थिति अपनी पत्नी के साथ या अधर्मज संतान की माता के साथ निवास किया है।


                ऐसी कार्रवाई में सब साक्ष्य ऐसे व्यक्ति की उपस्थिति में जिसके विरुद्ध भारण पोषण के लिए सदाय का आदेश देने का प्रस्थापना है अथवा जब उसकी वैयक्तिक  हाजिरी से अभीमुक्ति दे दी गई है जब उसके प्लीडर की उपस्थिति में लिया जाएगा और उसी रूप में अभी लिखित किया जाएगा जो समन  मामलों के लिए विहित है परंतु अगर मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाए की ऐसा व्यक्ति जिसके खिलाफ भरण पोषण के लिए सदाय का आदेश देने की प्रास्थावना है तामील से जानबूझकर बच रहा है अथवा न्यायालय में उपस्थित होने में जानबूझकर उपेक्षा करना है तो मजिस्ट्रेट मामले को एक अच्छी रूप में सुनने और अवधारणा करने के लिए अग्रसर हो सकता है और ऐसे दिया गया कोई आदेश उसकी तारीख से 3 मास के अंदर किए गए आवेदन पर दर्शित अच्छे कारण से ऐसे निबंधों के अधीन जिनके अंतर्गत विरोधी पक्ष कार को खर्चे के संदाय के बारे में ऐसी निबंध नहीं है जो मजिस्ट्रेट न्याय उचित और उचित समझे अपास्त किया जा सकता है.


           धारा 125 के अधीन आवेदनों पर कार्रवाई करने में न्यायालय को सकती है होगी कि वह खर्चों के बारे में ऐसा आदेश दे जो न्याय संगत है.


             धारा 125 के अंतर्गत दी जाने वाली भरण-पोषण की कार्रवाई दिवानी प्रकृति की कार्यवाही अर्जुन शंकर नायक बनाम सुमित्रा ए आई आर 1970 गोवा 140.


         

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