एक वाद - पत्र किन अवस्थाओं में निरस्त किया जा सकता है ? ( On what circumstances a plaint can be rejected ? )
एक - वाद - पत्र का निरस्त किया जाना ( Rejection of Plaint )
एक वाद - पत्र को निम्नलिखित परिस्थितियों में निरस्त किया जा सकता है-
( 1 ) जहाँ कि वाद - पत्र में वाद हेतु प्रकट नहीं होता है । हरद्वारी लाल बनाम कुँवल सिंह के वाद में सर्वोत्तम न्यायालय ने यह अभिमत व्यक्त किया है कि जहाँ वाद कारण प्रकट नहीं होता वहाँ वाद - पत्र को खारिज किया जाता है । जो वाद - पत्र समुचित वाद हेतु स्पष्ट नहीं करता उसे एक अच्छा वाद - पत्र नहीं कहा जा सकता है और उसे अस्वीकृत किया जा सकता है ।
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 87 , चुनाव याचिकाओं के विचारण में व्यवहार प्रक्रिया संहिता को लागू करती है । अतः कथित ' हरद्वारी लाल ' के मामले में यह धारित किया गया है कि यदि किसी चुनाव याचिका में वाद हेतु का उल्लेख नहीं किया गया है तो संक्षिप्त रूप में खारिज किया जा सकता है ।
( 2 ) जहाँ कि दावा किया गया अनुतोष कम मूल्यांकित किया गया है और वादी मूल्यांकित को ठीक करने के लिए न्यायालय द्वारा अपेक्षित किये जाने पर उस समय के भीतर ऐसा करने में असफल रहता है तो न्यायालय ने नियत किया है , तो वाद - पत्र खारिज किया जा सकता है ।
( 3 ) जहाँ कि दावा किये गये अनुतोष का मूल्यांकन ठीक है परन्तु वाद - पत्र अपर्याप्त मुद्रांकित पत्र पर लिखा गया है और वादी अपेक्षाकृत मुद्रांकित कागत देने के लिए न्यायालय द्वारा अपेक्षित किये जाने पर उस समय के भीतर असफल रहता है तो न्यायालय ने नियत किया है , तो वाद - पत्र खारिज कर दिया जायेगा ।
( 4 ) एक वाद - पत्र उस समय भी खारिज किया जा सकता है यदि वाद किसी विधि द्वारा वर्जित है ।
कई वादों में यह धारण किया जा चुका है कि उपर्युक्त वर्णित आधारों पर न्यायालय वाद - पत्र को न केवल उसकी स्वीकृति के समय उसे अस्वीकृत कर सकता है , बल्कि स्वीकृत करने के पश्चात् किसी अवस्था में ऐसा कर सकता है , चाहे प्रतिवादियों द्वारा अपने लिखित कथन दायर किये जाने के पूर्व या अपील में जब कभी भी त्रुटि मालूम हो जाये या प्रतिवादी द्वारा इंगित की जाय । किन्तु न्यायालय अपनी अन्तर्निहित शक्तियों के माध्यम से वाद - पत्र की त्रुटियों को प्रतिवादी द्वारा इंगित किये जाने पर वाद - पत्र बनने के पूर्व ठीक भी कर सकता है यदि इससे वादी का कोई नुकसान न हो उस पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े । ( किशोर बनाम सब्दल आई . एल . आर . 12 इला . 553 )
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