विशिष्टयाँ क्या हैं ? अभिवचनों में किन विशिष्टियों का दिया जान आवश्यक है ? विशिष्टियों एवं सारभूत तथ्यों में प्रभेद कीजिए । ( What are particulars ? What particulars are required to be given in the particulars ? Distinguish between particulars and material facts . )
विशिष्टियों से आशय ( Meaning of Particulars )
विशिष्टियों से तात्पर्य पक्षों द्वारा वाद - पत्र में उठाई गई घटनाओं के स्पष्ट और निश्चित वर्णन से है । विशिष्टियों के अन्तर्गत दावों के विभिन्न कथन शामिल हैं जो वादी या प्रतिवादी अपने वाद - पत्र या लिखित कथन या मौखिक ब्यान में देते हैं । किसी वाद में किसी घटना का कितनी मात्रा में विवरण दिया जाना चाहिये , इसका कोई निश्चित नियम नहीं है । किन्तु उतनी निश्चितता और विवरण पर जोर दिया जाना चाहिये जितना जरूरी समझा जाये । उदाहरणार्थ- किसी बेनामी लेन देन सम्बन्धी वाद में उन तथ्यों की विशिष्टियाँ ( विवरण ) दिये जाने चाहिये जिनसे यह ज्ञात हो सके कि अभिवचन का पक्ष या विपक्ष किस प्रकार बेनामी हुआ ; जैसे - वादी ने प्रतिफल दिया और बयनामा प्रतिवादी के नाम लिखाया गया ।
सामान्यत : विवरण के दो मुख्य उद्देश्य होते हैं- पहला यह कि वादी द्वारा प्रतिवादी को इस बात की जानकारी देना कि यह किन - किन बातों पर अपना वाद पेश करके न्यायालय से अनुतोष पाना चाहता है ; दूसरे अभिवचनों की व्यापकता को सीमित करना ताकि पूछ ताछ के समय पक्षों को उन्हीं तथ्यों तक सीमित रख . जा सके क्योंकि किसी भी पक्ष को विवरण में दिये गये तथ्यों के अलावा अन्य तथ्यों के उठाने का अधिकार नहीं है ।
अभिवचनों में किन किन विशिष्टियों का दिया जाना आवश्यक है ? ( What Particulars are required to be given in the Pleadings ? ) –अभिवचनों में दी जाने वाली आवश्यक विशिष्टियों के सम्बन्ध में दीवानी सहिता के आदेश 6 नियम 4 में यह कहा गया है कि सब परिस्थितियों में जिनमें कि अभिवचनकर्त्ता पक्ष किसी मिथ्या व्यपदेशन ( Misrepre sentation ) , कपट न्यास भंग , गलती या अनुचित प्रभाव का सहारा लेता है तो उनका आवश्यक विवरण दिया जाना चाहिये तथा दूसरी ओर अन्य समस्त अवस्थाओं में जिनमें की उक्त प्रारूपों के उदाहरण स्वरूप दिखलाई गई विशिष्टियों से भी अधिक विशिष्टियाँ ( विवरण ) आवयक हों तो उन विशिष्टियों का अभिवचन में यदि आवश्यक हो तो अपनी तिथियों और मदों के साथ वर्णित की जायेंगी ।
यद्यपि सामान्य नियम के अनुसार अभिवचन संक्षिप्त तथा स्पष्ट होना चाहिये । परन्तु साथ ही यह भी जरूरी है कि जो तर्क किसी वाद में उठाये जायें उनमे सम्बन्धित सभी घटनाओं का विवरण भी दिया जाना जरूरी है । इसका कारण यह है कि यदि घटना का निश्चित और स्पष्ट वर्णन नहीं किया गया तो वादपत्र अनिश्चित रहेगा तथा विपक्षी आश्चर्य में पड़ जायेगा तथा वह उन तर्कों का उत्तर देने में असमर्थ रहेगा । उदाहरणार्थ- निम्नलिखित मामलों के अभिवचनों में विवरण ( विशिष्टियाँ ) दिया जाना जरूरी है
1. प्रतिकूल कब्जे सम्बन्धी वाद ( Suit Relating to Adverse Possession ) प्रतिकूल कब्जे सम्बन्धी वाद में यह विवरण दिया जाना आवश्यक है कि किस प्रकार तथा कब प्रतिकूल कब्जा आरम्भ हुआ , जैसे यह कि प्रतिवादी 12 वर्ष से अधिक तक निरन्तर खुले आम कब्जा किये रहा , यह कि वादी उसके कब्जे से अवगत रहा था , उसे अवगत होना चाहिये था यदि वह उचित ध्यान देता ।
2. इकारारनामा सम्बन्धी वाद ( Suit for Agreement ) इकरारनामा से सम्बन्धित वाद में पक्षों का नाम , तिथि और प्रतिफल का प्रलेख लिखना आवश्यक है तथा यह भी लिखना चाहिये कि करार लिखित था या मौखिक ।
3. पूर्ववर्ती ऋण सम्बन्धी वाद ( Suit for Antecedent debt):यदि किसी वाद में हिन्दू पिता से लिये गये कर्ज को इस आधार पर उचित ठहराये जाने की कोशिश की जाती है कि वह पूर्ववर्ती ऋण के बदले दिया गया था तो केवल इतना कहना ही पर्याप्त न होगा बल्कि यह बताना आवश्यक है कि कर्ज की राशि कितनी थी तथा कर्ज की प्रकृति अर्थात् कर्ज सादा था या बन्धक द्वारा प्रतिभूत , महाजन का नाम तथा वह तारीख जिस दिन कर्ज लिया गया था ।
4. हिस्सा देने सम्बन्धी वाद ( Suit for Accounts ) — हिस्सा देने सम्बन्धी वाद में यह विवरण भी देना चाहिये कि प्रतिवादी किस प्रकार देने के लिये उत्तरदायी है ; जैसे- भोग बन्धक की हैसियत में या अभिकर्ता की हैसियत में ।
सारभूत तथ्यों और विशिष्टियों में भेद ( Difference between Particulars an Matterial Facts ) — सारभूत तथ्य वाद कारण के लिये एक आवश्यक तत्व है । यदि किसी वाद में इसे वर्णित नहीं किया गया तो वाद ऐसी चूक के कारण दूषित हो जायेगा तथा न्यायालय ऐस बाद को आदेश 6 के नियम 11 ( a ) C.P.C. के अन्तर्गत अस्वीकार कर सकता है । इसके विपरीत विशिष्टियाँ सारभूत तथ्य का ब्यौरा ( Detail ) होतो हैं जिनका उद्देश्य विरोधी पक्ष को इस बात की सूचना देता है कि उसे किस मामले का सामना करना है , परोक्षण के समय , आश्चर्य क निवारण करना तथा परीक्षण किये जाने वाले वाद - पदों ( Issues ) को सोमित करना है । विवरण की चूक के आधार पर न्यायालय वाद को अस्वीकार नहीं करता बल्कि पक्षकार के आवश्यक विरा ऐसे होते हैं जिनके अभाव में सारभूत तथ्य की स्वीकृति हो ही नहीं सकती ; जैसे - कपट । ऐसे विवरण की चूक से बाद दूषित होगा तथा पूर्णतः खण्डित किया जा सकता है ।
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