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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

वाद -पत्र क्या होता है ? वाद पत्र कितने प्रकार के होते हैं ।(what do you understand by a plaint? Defines its essential elements .)

वाद -पत्र किसी दावे का बयान होता है जो वादी द्वारा लिखित रूप से संबंधित न्यायालय में पेश किया जाता है जिसमें वह अपने वाद कारण और समस्त आवश्यक बातों का विवरण देता है ।  यह वादी के दावे का ऐसा कथन होता है जिसके आधार पर वह न्यायालय से अनुतोष(Relief ) की माँग करता है ।   प्रत्येक वाद का प्रारम्भ वाद - पत्र के न्यायालय में दाखिल करने से होता है तथा यह वाद सर्वप्रथम अभिवचन ( Pleading ) होता है । वाद - पत्र के निम्नलिखित तीन मुख्य भाग होते हैं ,  भाग 1 -    वाद- पत्र का शीर्षक और पक्षों के नाम ( Heading and Names of th parties ) ;  भाग 2-      वाद - पत्र का शरीर ( Body of Plaint ) ;  भाग 3 –    दावा किया गया अनुतोष ( Relief Claimed ) ।  भाग 1 -  वाद - पत्र का शीर्षक और नाम ( Heading and Names of the Plaint ) वाद - पत्र का सबसे मुख्य भाग उसका शीर्षक होता है जिसके अन्तर्गत उस न्यायालय का नाम दिया जाता है जिसमें वह वाद दायर किया जाता है ; जैसे- " न्यायालय सिविल जज , (जिला) । " यह पहली लाइन में ही लिखा जाता है । वाद - पत्र में न्यायालय के पीठासीन अधिकारी का नाम लिखना आवश्यक

अभिवचनों का संशोधन क्या है?संशोधन के सम्बन्ध मे न्यायालय की क्या शक्तियाँ होती है?(What is amendment of pleading ?state the general powers of the court regarding amendment .)

 अभिवचन का संशोधन ( Amendment of Pleading )  अभिवचन में संशोधन के सम्बन्ध में व्यवहार प्रक्रिया संहिता का आदेश 6 नियम 17 इस प्रकार है -  " न्यायालय दोनों में से किसी भी पक्षकार को कार्यवाहियों के किसी प्रक्रम में समनुज्ञा दे सकेगा कि वह अपने अभिवचनों को ऐसी रीति में और ऐसी शर्तों पर जैसे कि न्यायोचित हो बदल ले या संशोधित कर ले और समस्त ऐसे संशोधन किये जायेंगे जो कि पक्षकारों के बीच में विवादास्पद वास्तविक प्रश्नों के अवधारण के प्रयोजन के लिए आवश्यक हैं । "      अभिवचनों के संशोधन का अर्थ है अभिवचन में हुई किसी आकस्मिक भूल चूक को ठीक करना या किसी नये अभियोग या प्रतिरक्षा के नये आधार को जोड़ना जो छूट गया हो ।  अभिवचन के संशोधन के सिद्धान्त  ( Principles of Amendment of Pleading ) न्यायालय द्वारा अभिवचन के संशोधन किए जाने के सम्बन्ध में निम्नलिखित सिद्धान्त है - पहला सिद्धान्त यह है कि संशोधन करने की अनुमति उदारता से देनी चाहिए । प्रत्येक न्यायालय का यह कर्त्तव्य है कि वह वाद बाहुल्यता को रोके और पक्षों के बीच के विवाद को स्पष्ट करे और उस प्रयोजन के लिए यथासम्भव संशो

अभिवचनों के सम्बन्ध में विवरण कौन से होते है ? विवरणों का अभिवचनों में दिया जाना क्यों आवश्यक है तथा इसके कानूनी प्रभाव क्या हैं ? ( What do you understand by particulars in pleadings and what are its legal effects ? )

विवरणों से आशय ( Meaning of Particulars )  प्रत्येक अभिवचन में कुछ विवरण आवश्यक होते हैं जिससे किसी केस के बारे में स्पष्ट जानकारी हो सके तथा दूसरा पक्ष भी आश्चर्य में न पड़े । विवरण का अर्थ है कि पक्षकार द्वारा वाद - पत्र में उठाये गये मामलों का विवरण किसी मामले में कितनी मात्रा में विवरण देने चाहिए इसका कोई निश्चित नियम नहीं है परन्तु इतना अवश्य है कि उस मामले में इतने विवरण दिये जाने चाहिए जो कि मामले को समझने के लिए आवश्यक हों ।  आवश्यक विवरण जो अभिवचन में दिये जाने चाहिए - व्यवहार प्रक्रिया का आदेश 6 नियम 4 इस प्रकार है- " जहाँ विवरणों का दिया जाना आवश्यक हो वहाँ उसको दिया जाना चाहिए - उन सब अवस्थाओं में जिनमें कि अभिवचन करने वाला पक्षकार किसी मिथ्या व्यपदेशन ( misrepresentation ) में कपट , न्यास भंग , कामत : चूक या असम्यक् असर का सहारा लेता है । और अन्य सब अवस्थाओं जिनमें कि उपर्युक्त प्रारूपों के उदाहरण दर्शित किये गये हैं जैसी विशिष्टओं में से भी अधिक विशिष्टयाँ आवश्यक हों । अभिवचन में वे अभिविशिष्टयाँ यदि आवश्यक हो तो अपनी तारीखों और मदो सहित की जायेंगी ।         इस नियम

अभिवचन के आधारभूत नियम कौन से है ?(Describe the fundamental Rules of Pleading .)

अभिवचन के आधारभूत नियम ( Fundamental Rules of Pleading )  दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 6 के अनुसार , अभिवचन में निम्नलिखित बातों का वर्णन किया जाना चाहिये - 1. केवल तथ्यों का वर्णन किया जाना चाहिये , विधि का नहीं ( Only Facts must be stated , not Law ) – अभिवचन में केवल तथ्यों को ही लिखना चाहिये कानून को नहीं । कानून के उपबन्धों और तथ्य के मिश्रित निष्कर्षो का वर्णन अभिवचन में नहीं करना चाहिये । इसका कारण यह है कि कानून के अभिवचनों का पता लगाना और उसकी परीक्षा करना न्यायालय का कर्त्तव्य है । न्यायाधीशों का कर्त्तव्य है कि वे तथ्यों से सम्बन्धित उचित विधि को लागू करें तथा सही कानूनी अर्थ निकालें । उदाहरणार्थ- हिन्दू विधि के अनुसार पुत्र का यह पुनीत कर्त्तव्य है कि वह अपने पिता के कर्ज को चुकाये अभिवचन में इस कानून का कथन करना जरूरी नहीं है , केवल पिता और पुत्र का सम्बन्ध देना ही पर्याप्त है ।    2. केवल सारवान तथ्यों का वर्णन किया जाना चाहिये ( Only Material Facts must be stated ) प्रत्येक अभिवचन में सिर्फ सारवान तथ्यों का ही समावेश होना चाहिये जिन पर अभिवचन करने वाला पक्षकार अपने द

अभिवचन क्या होते है ?अभिवचन के कौन कौन से उद्देश्य होते है ?(what do you understand by pleading? State the objects of Pleading.)

 अभिवचन का अर्थ एवं परिभाषा ( Meaning and Definition of Pleading )  अभिवचन उन लिखित कथनों को कहते हैं जो किसी वाद की कार्यवाही के पक्षकारों द्वारा दाखिल किए जाते हैं । इनमें वे समस्त तथ्य एवं तर्क दिए जाते हैं जो वाद की सुनवाई के समय उठाए जाएँगे तथा उनमें ऐसे सभी विवरण दिए जाते हैं जिनकी आवश्यकता विरोधी पक्षकार को अपना मामला तैयार करने में होती है । अभिवचन की प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-   1. आर्जस के अनुसार- " अभिवचन प्रत्येक पक्षकार द्वारा लिखित रूप से प्रस्तुत किये गए ऐसे कथन होते हैं जिनमें वह उल्लेख करता है कि मुकदमें के परीक्षण में उसके क्या अभिवचन होंगे , इन कथनों में वह उन सब विवरणों को प्रस्तुत करता है जो इसके विपक्षी के लिये उत्तर में अपना मामला तैयार करने के लिए आवश्यक हों । "  2. पी ० सी ० मोघा के अनुसार- " अभिवचन ऐसे कथन होते हैं जो किसी मामले के प्रत्येक पक्ष द्वारा लिखित तथा तैयार किये जाते हैं । इनमें इस बात का कथन किया जाता है कि परीक्षण में उसका क्या अधिकथन होगा और उसमें ऐसी सब बातों का विवरण रहेगा जो दूसरे पक्षकारों को अपना मामला तैयार करने के लिये

. उ . प्र . जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950 की धारा 157 के अंतर्गत वे कौन लोग हैं जो अक्षम व्यक्ति कहलाते हैं ? ( Who are disabled persons under section 157 of the U.P Zamindari Abolition and Land Reform Act , 1950. )

   अक्षम व्यक्तियों द्वारा भूमि पट्टे पर देना धारा 157 ( 1 ) - ( Lease by Disabled Persons )  भूमि विधि का सिद्धान्त है कि भूमि लगान पर न उठायी जाय । किन्तु मानवीय आधारों पर विधान मण्डल ने कुछ विशेष दशाओं में , जिनका वर्णन धारा 157 ( 1 ) में किया गया है भूमि को लगान पर देने की आज्ञा दी है । धारा 157 ( 1 ) में ऐसी सात दशाओं का वर्णन है । कोई भूमिधर या गुजारे के बदले में लिए हुए भूमि वाला असामी अपनी जोत को या उसके भाग को पट्टे पर उठा सकता है , बशर्ते कि वह सात दशाओं में से एक या अधिक दशाओं में आता हो । वे सात दशाओं वाले व्यक्ति निम्नलिखित हैं ********  1. ऐसा व्यक्ति जो अन्धेपन या अन्य शारीरिक दुर्बलता के कारण खेती - बारी करने में असमर्थ हो : ' अन्य शारीरिक दुर्बलता ' .. का अर्थ यह कदापि नहीं है कि जोतदार लकवा का मारा हुआ हो या विस्तर से न उठ सकता हो ; या अन्य किसी तरह से वह चल फिर न सकता हो । इसका अर्थ केवल इतना ही है कि जो व्यक्ति बीमारी आदि के कारण खेती - बारी का कार्य स्वयं नहीं कर सकते वे अपनी भूमि को लगान पर दे सकते हैं , भले ही वे खेती की देख - भाल करने के लायक हों । 13 सि

भूराजस्व वसूल करने का दायित्व किसका होता है ? ( Which is Responsible for the collection of land revenue ? )

अधिनियम के अन्तर्गत , तहसीलदार द्वारा प्रमाणित हिसाब का लेखा , इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए मालगुजारी के बाकी होने का , उसकी मात्रा का और ऐसे व्यक्ति का जो बाकीदार है , निश्चायक प्रमाण होगा । कमीशन 5 से 10 प्रतिशत तक हो सकता है । परिस्थितियों को ध्यान में रखकर कमीशन का निर्धारण किया जाता है । किन्तु किसी ऐसे गाँव में , जिनके सम्बन्ध में धारा 276 के अधीन आज्ञा दी गयी हो , ऐसा लेखा किसी विशेष बाकीदार के सम्बन्ध में भूमि प्रबन्धक समिति द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है । ( धारा 278 ) चूँकि भूमियों तथा उसकी मालगुजारी के सभी आवश्यक कागजात , खसरा खतौनी , जमाबन्दी तहसील पर ही रहती है इसलिए रिकार्ड को देखकर इसे आसानी से पता लगाया जा सकता है कि कौन - कौन बकायेदार हैं और कौन लोग मालगुजारी अदा कर चुके हैं ।  बकाया भूराजस्व की प्रक्रिया ( Processes for Realisation of Arrears ) अधिनियम की धारा -279 के अन्तर्गत बकाया भू - राजस्व निम्नलिखित ऐतियों में से एक था , अधिकार प्रकार से वसूल किया जा सकेगा ।  ( i ) किसी बाकीदार ( चूककर्ता ) पर माँग पत्र या उपस्थिति - पत्र तामील करके ,  ( ii ) उस व्यक्ति की ग